Author Topic: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी  (Read 140977 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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जे माँ नंदा देवी भाग 04
http://www.youtube.com/watch?v=n7AUy-o2F2E

गढ़वाल में हर  देवी-देवताओं के पीछे एक कहानी छिपी है। ऐसे ही कहानी किस्सों में एक किस्सा नंदा देवी का भी है। गढ़वाल में एक गांव है, जो देवीखेत कस्बे के नज़दीक पड़ता है। इस गांव में नेगी जाति के लोग रहते हैं। कहते हैं, सदियों पहले इनके पूर्वज राजस्थान से आकर इस गांव में बस गए थे। यहां भी पूरा गढ़वाल 52 गढों में बंटा था। इनके पूर्वज बड़े शूरवीर थे और यह गांव उन्हें उनकी शूरवीरता के लिए इनाम में मिला था।

नंदा नाम की बालिका इसी गांव की एक सुंदर, सुशील होनहार लड़की थी। एक मुहावरा है, 'होनहार बिरवान के होत चिकने पात'। यह लड़की गांव की अन्य लड़कियों से बिल्कुल अलग थी। बच्चों से प्यार करना, बड़े- बूढ़ों का आदर करना, असमर्थ अपाहिजों की मदद करना, अपने मुस्कराते चेहरे और मधुर व्यवहार से वह पूरे गांव के छोटे-बड़े सबका दिल जीत चुकी थी। सब लोग उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते थे।

गांववालों को विश्वास था कि एक दिन इस लड़की को लेने के लिए एक बहुत अच्छा लड़का आएगा और डोली में बिठाकर ले जाएगा। उस जमाने में आवागनम के साधन नहीं थे। लोग दूर-दूर तक पैदल ही सफर करते थे। शादी-विवाह भी दूर-दूर के गांवों में होते थे। इस लड़की के लिए भी एक रिश्ता दूर के गांव से आया था। लड़का ठीक गांव के लोगों के सपनों के राजकुमार जैसा ही था।

चौड़ा माथा, गोल खूबसूरत सा चेहरा, मजबूत कंधे, चमकदार आंखें, सुशील और नर्म स्वभाव। कहने का मतलब दोनों की जोड़ी बेमिशाल थी। शादी होते ही डोली सजाई गई। भरे दिल से उसे डोली में बिठाया गया। गाजे बाजों के साथ बारात ने प्रस्थान किया। बराती गाजे बाजे सहित सब मिलाकर 120 आदमी थे। बारात चल पड़ी और नदी, जंगल, घाटियां पार करते हुए अब एक ऊंचे पर्वत की कठिन चढ़ाई पार करनी बाकी थी, इसके बाद ढलान आ जाता।

खैर, डोली को बड़ी सावधानी से ले जाते हुए पहाड़ की चोटी पर बारात पहुंची। बराती काफी थक चुके थे, इसलिए डोली वालों ने डोली नीचे रखी और सारे बाराती विश्राम करने लगे। अभी इन लोगों की थकान भी नहीं उतरी थी, कि अचानक ज़ोर की आंधी चली और फिर बर्फ पड़नी शुरू हो गई। इतने ज़ोर से बर्फ पड़नी शुरू हुई कि बारातियों को संभलने का अवसर ही नहीं मिला और सारे बराती उस बर्फ में दब कर मर गए। कोई नहीं बचा।

कहते हैं वहां जितने लोग बर्फ में दबे थे, उतने ही पेड़ उग आए हैं। लड़की की आत्मा वापस अपने मां के घर लौट आई। उसी की याद में पूरे गांव वालों ने नंदा देवी के नाम से गांव में एक मंदिर बनवाया है। पूरे गांव वाले बड़ी श्रद्दा से नंदा देवी की पूजा करते हैं और 20-25 सालों में एक बड़ी पूजा करवाते हैं, जिसमें नंदा नेगी के तमाम नाते-रिश्तेदारों तथा गांव की तमाम लड़कियों को बुलाया जाता है।

Devbhoomi,Uttarakhand

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जे माँ नंदा देवी भाग 05


http://www.youtube.com/watch?v=qUORjTin68U


गांववालों को विश्वास था कि एक दिन इस लड़की को लेने के लिए एक बहुत अच्छा लड़का आएगा और डोली में बिठाकर ले जाएगा। उस जमाने में आवागनम के साधन नहीं थे। लोग दूर-दूर तक पैदल ही सफर करते थे। शादी-विवाह भी दूर-दूर के गांवों में होते थे। इस लड़की के लिए भी एक रिश्ता दूर के गांव से आया था। लड़का ठीक गांव के लोगों के सपनों के राजकुमार जैसा ही था।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Superhit Bhajan of Gajendra Rana on Nanda Raj Jaat from Him Marchhiwan album. The lines of this has provided by Mukesh JOshi.



जय चक्रबंदनी  जोग माया खप्परभरनी
तू ही चामुंडा शैलपुत्री नंदा इंगला पिंगला दैत्याधाविनी
महानारी चंद्रघंटिका महाकालरात्रि कालीमाता
जब देवतों को अत्यचार हुए तब त्येर माता को जन्म हुए
राज राजेश्वरी गोरजा भवानी चमन्कोट चामुंडा
श्री शक्लेश्वर कार्तिकेय श्री देवी दैन्य संघारे
श्री गणेशाय नमः जाए नमः उद्हारिणी पिंगला महेश्वरी
महेश्वरी दैत्यधाऊ गेमन मिचाऊ तब त्वे देवी कै जाप सुनाऊ       

जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
जय बोला तेरी जय बोला
जय बोला तेरी जय बोला
बल गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
हाँ  गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला


जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला


बेली बधान माता बल तेरा मैती होला
बेली बधान माता बल तेरा मैती होला
मल बधान जालू माँ नंदा जी को डोला
शिव कैलाश जालू माँ नंदा जी का डोला

सिद्धपीठ नौटी से चले राज जात
त्येर मैतार नौटी से चले राज जात
नन्द केसरी में हौला गढ़ कुमो का साथ
नन्द केसरी में हौला गढ़ कुमो का साथ

जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

११  वर्षा पुजा हूनी  वैदिनी का ताल
११  वर्षा पुजा हूनी  वैदिनी का ताल
देख तेरा हाथून हवे राज्ञसू को काल
देख तेरा हाथून हवे राज्ञसू को काल

बारहू साल में त्येर चौसीघा हवे खांडू
बारहू साल में त्येर चौसीघा हवे खांडू
बान गो माँ भाई त्येरु देवता रे दुलातु
बान गो माँ भाई त्येरु देवता रे दुलातु

जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

रजा कनकपाल न चंदपुरान बती
रजा कनकपाल न चंदपुरान बती
कन्नोज का राजा छाणी दैज देन भेटी
कन्नोज का राजा छाणी दैज देन भेटी

१ बार ऊ भी बल माला खून ग्येन
१ बार ऊ भी बल माला खून ग्येन
अरे येन भग्यान हवेन नि घर बोडी एइन
अरे येन भग्यान हवेन नि घर बोडी एइन

जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

अध बाटा मलानी कुपुत्र हून ल्हेगे
अध बाटा मलानी कुपुत्र हून ल्हेगे
नर संहार ह्वेगे माता कुचील हवे गे
नर संहार ह्वेगे माता कुचील हवे गे

तब से नार का कालू  न बनी रूप कुंद
तब से नार का कालू  न बनी रूप कुंद
माँ कु श्राप ल्हेगे बची अस्थि और मुंड
माँ कु श्राप ल्हेगे बची अस्थि और मुंड

 जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

भद्रेस्वर निस्मा चा कडू रो को धाम
भद्रेस्वर निस्मा चा कडू रो को धाम
६ मेहना बवून ६ दसौली का नाम
६ मेहना बवून ६ दसौली का नाम

पडो हो नंदा कु बल पैलू कुल सारी माँ
पडो हो नंदा कु बल पैलू कुल सारी माँ
जख बिराज मान चा भगवती काली माँ
जख बिराज मान चा भगवती काली माँ

 जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

रूप कुंद पित्रू तर्पण दिए जांदु
रूप कुंद पित्रू तर्पण दिए जांदु
होम कुंद खाडू चौसिंघ पूजी जांदु
होम कुंद खाडू चौसिंघ पूजी जांदु

माता ९ दुर्गा की पुनि आरती पूजा देना
कैलाश की और चौसिंघ पाठी देना

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जे माँ नंदा देवी भाग 06

http://www.youtube.com/watch?v=EjF6qEja1P0

नंदा के इस शक्ति रुप की पूजा गढ़वाल में करुली, कसोली, नरोना, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, नौटी, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में होती है । गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नंदा के सम्मान में होता है ।

कुमाऊँ में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पौथी, चिल्ठा, सरमूल आदि में नंदा के मंदिर हैं ।अनेक स्थानों पर नंदा के सम्मान में मेलों के रुप में समारोह आयोजित होते हैं । नंदाष्टमी को कोट की माई का मेला और नैतीताल में नंदादेवी मेला अपनी सम्पन्न लोक विरासत के कारण कुछ अलग ही छटा लिये होते हैं परन्तु अल्मोड़ा नगर के मध्य में स्थित ऐतिहासिकता नंदादेवी मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगने वाले मेले की रौनक ही कुछ अलग है ।

अल्मोड़ा में नंदादेवी के मेले का इतिहास यद्यपि अधिक ज्ञात नहीं है तथापि माना जाता है कि राजा बाज बहादुर चंद (सन् १६३८-७८) ही नंदा की प्रतिमा को गढ़वाल से उठाकर अल्मोड़ा लाये थे । इस विग्रह को वर्तमान में कचहरी स्थित मल्ला महल में स्थापित किया गया । बाद में कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को वर्तमान से दीप चंदेश्वर मंदिर में स्थापित करवाया था ।

मदन मोहन भट्ट

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आदरणीय पंकज जी

आपके ज्ञान की प्रशंशा के लिए कोई शब्द नहीं हैं.  इस फोरम पर सटीक रूप में सजोने के लिए आपका हार्दिक धन्यबाद.  बस इतना और बताने की कृपा करें कि बारह वर्ष में होने वाली माँ नंदा देवी कि राज जाट अब कौन से वर्ष में होगी? आपका पुनः धन्यबाद.

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प्रत्येक 12 वर्षों पर राज जाट का आयोजन होता है जिसकी पूरी तैयारी इस रिवाज के मूल भागीदार लोगों के वंशजों, नौटी के नौटियालों एवं कंसुआ गांव के कुंवरों द्वारा किया जाता है। कुंवर राज परिवार के वंशज हैं। जब अजय पाल ने श्रीनगर को अपनी राजधानी बनायी (वर्ष 1506-1509) तो उसने नंद राज जाट के आयोजन की जिम्मेदारी कुंवरों को सौंप दी। यह माना जाता है कि अजय पाल ने ही हर 12 वर्षों में राज जाट आयोजित करने की प्रथा चलायी। यह प्रथा तब से चली आ रही है।

परंपरागत रूप से कुंवर, राज जाट का आयोजन करने नंदा देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने नौटी आते हैं। इसके बाद शीघ्र ही एक चार सिंगों वाला भेड़ कंसुआ गांव में जन्म लेता है। राज जाट के लिये इस प्रकार की एक समय-सारणी बनायी जाती है कि यह नंद घुंटी के आधार पर एक झील होमकुंड अगस्त/सितंबर नंदाष्टमी के दिन पहुंचे तथा कुलसारी विशेष पूजा के लिये इसके पूर्ववर्त्ती दूज के दिन पहुंच जाये। इसके अनुसार चार सिंगों वाले भेड़ सहित कुंवर नौटी पहुंचते हैं जिनके साथ एक रींगल की छटोली तथा देवी को भेंट की गयी वस्तुएं होती हैं। नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा डोली में रखकर राज जाट लगभग 280 किलोमीटर की गोल यात्रा आरंभ होती है जिसके रास्ते में 19 पड़ाव होते है तथा यह 19 से 22 दिनों में पूरा होती है। पास के इलाकों से अपनी मूर्तियां, डोलियां तथा देवताओं के साथ कई समुदाय इसमें शामिल हो जाते हैं। कुमाऊं के गोरिल या गोलू देवता तथा बंधन के लट्टू देवता 300 से अधिक प्रतिमाओं एवं सज्जित छतरियों के साथ घाट तपोवन के निकट लाता एवं अल्मोड़ा से शामिल हो जाते हैं।

शिला समुद्र में, भक्तगण सुबह के ठीक पहले तीन प्रकाश एवं एक धुएं की लकीर दैवीय संकेत के रूप में देख पाते हैं। नौटी से होमकुंड पहुंचने तक देवी के लिये पूजा सामग्री से लदा चार सिंगों वाला भेड़ जुलुस के आगे-आगे चलता है। समुद्र तल से 22,000 फीट ऊंचाई पर पर्वतों में वह भेड़ गायब हो जाता है और उसके साथ ही देवी की प्रसाद सामग्रियां भी चली जाती हैं।

राज जाट के दिन यात्रियों के उपयोग के लिये वान गांव के घर के प्रत्येक वासी घर खुला रखने के एक अलौकिक रिवाज का पालन करते हैं जो नंदा देवी का धार्मिक आदेश होता है तथा धार्मिक रीति से ही इसका पालन होता है। हजारों की संख्या में भक्तजन राज जाट में शामिल होते हैं बर्फ एवं हिम के ढेरों पर पैदल चलते हैं, घने जंगलों से गुजरते हैं तथा समुद्र तल से 17,000 फीट ऊंचाई पर स्थित रूप कुंड को पार करते हैं।

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धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मां नंदादेवी का मेला प्रत्येक वर्ष पर्वतीय क्षेत्र में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। मां नंदा को पूरे उत्तरांचल में विशेष मान मिला है। वेदों में जिस हिमालय को देवात्मातुल्य माना गया है नंदा उसी की पुत्री है। उत्तराखण्ड में मां नंदा का पूजन सर्वत्र किसी न किसी रूप में किया जाता है। नंदा के पूजन का एक अन्य स्वरूप नंदा की राजजात यात्रा के रूप में प्रत्येक बारह वर्ष में नौटी ग्राम के वेदिनी कुंड से आगे की होम कुंड की पर्वत श्रृंखलाओं में पूजन के साथ संपन्न होता है। जिसमें जन-जन जुड़ता है। यहां उल्लेखनीय है कि नंदा-सुनंदा की पूजा-अर्चना में नंदा जागर का विशेष महत्व है।

नंदा को उत्तरांचल में बड़ी श्रद्धा से पूजने की परंपरा शताब्दियों से है। मां नंदा के मान-सम्मान में उत्तरांचल के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिवर्ष मेलों का आयोजन किया जाता है। यह मेला अल्मोड़ा सहित नैनीताल, कोटमन्या, भवाली, बागेश्वर, रानीखेत, चम्पावत व गढ़वाल क्षेत्र के कई स्थानों में आयोजित होते है। मानसखण्ड में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि मां नंदा के दर्शन मात्र से ही मनुष्य ऐश्वर्य को प्राप्त करता है तथा सुख-शांति का अनुभव करता है। अल्मोड़ा का नंदादेवी मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। पंचमी तिथि को जागर के माध्यम से मां नंदा-सुनंदा का आह्वान किया जाता है। इसी दिन गणेश पूजन कर कार्य के निर्विघ्न संपन्न होने की कामना की जाती है।

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नंदा देवी (नंदा देवी) भारत के सर्वोच्च शिखर दूसरा, 7816 मीटर समुद्र तल से ऊपर अधिक है.  यह उच्चतम शिखर को भारतीय क्षेत्र में ही स्थित है.  Garhválskych हिमालय में है, पहाड़ों की नंदा देवी समूह.

नंदा देवी पुंजक dvojvrcholový रूपों. मुख्य (पश्चिमी) पीक और पूर्वी चोटी (7434 मी) के 3 किमी लंबी रिज जोड़ता है. इसके उत्तरी दीवार, 2500 मीटर से अधिक ऊंची है.

Prvovýstup 1936 में मुख्य चोटी को एंग्लो अमेरिकन अभियान दल के सदस्यों की. वर्ष 1950 तक के उच्चतम शिखर से निपटने के लिए. पूर्व की चोटी 1939 डंडों में किया पर. दोनों चोटियों के पारित होने के बाद 3 किमी लंबी रिज 1976 में, जापानी पर्वतारोही सफल रहा है. 1976 में उत्तर की दीवार zdolali, अमेरिकी और भारतीय पर्वतारोही.

नंदा देवी भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान है और एक पवित्र पर्वत के रूप में माना जाता है. यह नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क का हिस्सा है और यह 1983 के बाद से संलग्न है.

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चौसिंगा खाडू का जन्म लेना राजजात की एक खास बात है। चौसिंगा खाडू की पीठ पर नौटियाल और कुँवर लोग नन्दा के उपहार में होमकुण्ड तक ले जाते हैं। वहाँ सो यह अकेला ही आगे बढ़ जाता है। खाडू के जन्म साथ ही विचित्र चमत्कारिक घटनाये शुरु हो जाती है। जिस गौशाला में यह जन्म लेता है उसी दिन से वहाँ शेर आना प्रारम्भ कर देता है और जब तक खाड़ का मालिक उसे राजजात को अर्पित करने की मनौती नहीं रखता तब तक शेर लगातार आता ही रहता है। यात्रा को दौरान भीड़-भाड़ होने पर भी यह बेधड़क यात्रा का मार्गदर्शन करता है। आस पास के अन्य जानवरों (भेड़ बकरियों) का इस पर कोई असर नहीं पड़ता है। रात को भी यह नन्दा की मूर्ति वाले रिगाल की छताली के पास ही सोता है। लोक मान्यता है कि यह कैलाश तक जाता है। इतना ही, नहीं लोक मान्यता से यह भी है कि खाडू हरिद्वार तक गंगा स्नान के लिये पहुँच जाता हैं। कुछ यात्रियों ने मुझसे यह भी बताया कि होमकुण्ड से ऊपर चढ़ने के पश्चात खाडू का सिर धड़ से अलग होकर नीचे आ जाता है जिसे भक्त लोग प्रसाद समझकर ले जाते हैं।

रिगाल की छतोली भी राजजात की एक विशेषता है। देवी के आदेशानुसार हर बारहवें वर्ष राजजात के संचालक कोसवा के कुँवर रिगाल की छतोली देवी के लिये लाते हैं। यह प्रथा राज घरानों में प्राचीन काल से प्रचलित है कि इस यात्रा के दौरान सिर के ऊपर छत्र (एक प्रकार की छतरी) का उपयोग किया जाता है। समृद्धता और अवसर के अनुसार इसमें धातुओं का प्रयोग किया जाता है। गढ़वाल में देवी देवताओं को भी सोने या चाँदी के छत्र चढ़ाने का रिवाज है। नन्दा द्वारा अपने लिये रिगाल या बांस की छतरी कुंवरी से मांगी गई। इसी प्रकार की छतोलियाँ कई अन्य स्थानों से भी यात्रा मार्ग में राजजात में शामिल हो जाती हैं जो कि होमकुण्ड तक साथ जाती हैं। नौटी में राजजात का शुभारम्भ ही रियाल की छतोली और चौसिंगा खाडू की पूजा से होता है।


राजजात की विधिवत घोषणा होती ही कांसुवा के राजवंशी कुंवर चौसिंगा खाडू और रियाल की छतोली लेकर नौटी आते हैं। छतोली पर नन्दादेवी का प्रतीक सोने की मूर्ति रखी जाती है। नौटी में एक विशेष बात यह है कि यहाँ पर नन्दा देवी का कोई मन्दिर या मूर्ति नही है। देवी का श्रीयंत्र को नवीं शताब्दी में राजा शालिपाल ने नौटी में भूमिगत करा दिया था। छतोली और खाडू का स्थानीय परम्परा के अनुसार विधि-विधान से पूजन होता है और राजजात शुरु हो जाता है। हजारों लोग नौटी से राजजात के साथ चल पड़ते हैं। चौसिंगा खाडू राजजात का नेतृत्व करता है और अन्य लोग उसके पीछे-पीछे चलते हैं। नंदा देवी के गीत, जयकार और देवी देवताओं की स्तुति यात्रीगण करते चलते हैं। कासुंवा पहँचने पर राजजात की छतोली कोटी चान्दपुर के ड्यूडी पुजारियों को आगे की यात्रा के लिये
सौंप की जाती है। इस बीच यात्रा मार्ग पर चान्दपुर के बारह थोकी ब्राह्मणों की छतोलियाँ भी सम्मिलित हो जाती हैं। चांदपुर गढ़ी में ही गढ़वाल के राजपरिवार द्वारा नन्दा देवी की पूजा अर्चना की जाती है। इस बीच भक्तों में से 'पोमारी' अर्थात् भार उठाने वाले देवताओं की सामग्री ढ़ोते हुए साथ चलते हैं। कुलसारी का इस धार्मिक यात्रा के कार्यक्रम निर्धारण में महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि कुलसारी के काली मन्दिर में भूमिगत काली यंत्र को केवल राजजात की अमावस्या की आधी रात को निकालकर पूजा की जाती है और फिर अगली राजजात तक के लिये भूमिगत कर दिया जाता है। नन्दकेसरी में भी यात्रा का पड़ाव होता है। यहाँ पर कुरुड़ की नन्दा देवी की मूर्ति डोली पर राजजात में शामिल होती है। इसके बाद कुरुड़ के पुजारी राजजात की छतोली सम्भालते हैं। विभिन्न पड़ावों से होती हुई यात्रा वाण गाँव पहुँचती है।

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सामान्य लोगों की मान्यता के अनुसार नन्दादेवी दक्ष प्रजापति की सात कन्याओं में से एक थीं। नन्दादेवी का विवाह शिव के साथ होना माना जाता है। शिव के साथ ऊँचे बर्फीले पर्वतों पर नन्दादेवी रहती हैं। पति के साथ होने के सुख के बदले भीषण से भीषण कष्ट वह हंसकर सह लेती है। कहीं-कहीं नन्दादेवी को पार्वती का रुप ही माना गया है। नन्दा के अनेक नामों में प्रमुख है, शिवा, सुनन्दा, शुभानन्दा, नन्दिनी।

उत्तरांचल में देवताओं की स्तुति में रात-दिन जगकर गाए जाने वाले गीत को जागर कहते हैं। नन्दादेवी के सम्बन्ध में कई जागरों के अनुसार विभिन्न कथाएँ पायी जाती है। एक जागर में नन्दा को नन्द महाराज की बेटी बताया जाता है। नन्द महाराज की यह बेटी कृष्ण जन्म के पूर्व ही कंस के हाथों से निकलकर आकाश में उड़कर नगाधिराज हिमालय की पत्नी मैना की गोद में पहुँच गई।

एक अन्य जागर में नन्दादेवी को चान्दपुर गढ़ के राजा भानुप्रताप की पुत्री बताया जाता है। एक और जागर में ऐसा वर्णन आता है कि नन्दादेवी का जन्म ॠषि हिमवंत और उनकी पत्नी मैना के घर पर हुआ था। यह सब अलग-अलग धारणायें होते हुए भी नन्दादेवी पर्वतीय राज्य उत्तराँचल के लोक मानस की एक दृढ़ आस्था का प्रतीक है तथा इसे परम्परा के अनुसार निभाकर हर बारहवें वर्ष में राजजात का भव्य आयोजन किया जाता है।

राजजात या नन्दाजात का अर्थ है राज राजेश्वरी नन्दादेवी की यात्रा। गढ़वाल क्षेत्र में देवी देवताओं की जात बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। जात का अर्थ होता है देवयात्रा। लोक विश्वास यह है कि नन्दा देवी हिन्दी माह के भादव के कृष्णपक्ष में अपने मैत (मायके) पधारतीं हैं। कुछ दिन के पश्चात उन्हें अष्टमी को मैत से विदा किया जाता है। राजजात या नन्दाजात देवी नन्दा की अपने मैत से एक सजीं संवरी दुल्हन के रुप में ससुराल जाने की यात्रा है। ससुराल को स्थानीय भाषा में सौरास कहते हैं। इस अवसर पर नन्दादेवी को सजाकर डोली में बिठाकर एवं वस्र, आभूषण, खाद्यान्न, कलेवा, दूज, दहेज आदि उपहार देकर पारम्परिक गढ़वाल की विदाई की तरह विदा किया जाता है।

 

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