Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Penance to get offspring- संतान प्राप्ति के लिए खड़े दीये पूजा प्रथा

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
दोस्तों

 उत्तराखंड की इस पावन भूमि को दुसरे शब्दों में देव भूमि के रूप में जाना जाता है! मतलब वह भूमि जहाँ  देवी देवता निवास करते है, जहाँ पर हजारो ऋषि मुनियों ने जन कल्याण के तपस्याए की है!  जन मानस में देव भूमि में होने वाली पूजा पाठ एव धार्मिक  रीति रिवाजो में अटूट श्रद्धा है!  संतान की प्राप्ति के लिए भी देव भूमि जगह पर दीये हाथ में लाकर पूजा करने की प्रथा है! इस टॉपिक में  उत्तराखंड के विभिन्न धार्मिक स्थलों पर होने वाली संतान प्राप्ति पूजा के बारे में जानकारी देंगे!

Here is the first Information about Kamleshwar Temple Garhwal गोद भरने को 210 ने की खडे़ दीए पूजा November 27, 2012
  श्रीनगर। बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर पौराणिक रूप से संतान और सुख प्राप्ति के लिए होने वाले खड़े दीये की पूजा में 210 श्रद्घालुओं ने भाग लिया। कमलेश्वर महादेव मंदिर में हजारों लोगों ने पहुंचकर वर्ष भर के पापों के निवारण के लिए 365 बत्तियों का दीप जलाया। शाम पांच बजे से मंदिर परिसर भक्तों से भरना शुरू हुआ। रात भर मंदिर परिसर में चहल पहल बनी रही।
खड़े दीए पूजा में इस वर्ष पिछले वर्ष से अधिक दंपतियों ने भाग लिया। इस मौके पर दीवड़ियों को देखने तथा भगवान कमलेश्वर महादेव का आशीष लेने के लिए हजारों भक्तों की भीड़ मंदिर परिसर में मौजूद रही। आस-पास के गांवों से भी बड़ी संख्या में भक्तों की टोलियां भजन-कीर्तनों के लिए मंदिर में पहुंचे हैं। कमलेश्वर मंदिर में मुहूर्त के अनुसार, ठीक पांच बजे महंत आशुतोष पुरी ने पूजा-अर्चना शुरू की तथा खड़े दीये के लिए दंपतियों को आशीष दिया। साढ़े पांच बजे से खड़े दीए की पूजा विधिवत शुरू करा दी गई। गत वर्ष 198 दंपत्तियों ने खड़ा दीया किया था, जो इस वर्ष बढ़कर 210 पहुंच गया है। महंत के साथ पंडित दुर्गा प्रसाद बमराड़ा, मुरलीधर घिल्डियाल, प्रकाश चंद्र कंकरियाल, नवीन बलूनी आदि ने पूजा-अर्चना में सहयोग किया।


ऐसे होती है खडे़ दीए की पूजा

खड़ा दीया पूजा कर रही महिलाएं दो जुड़वा नींबू, श्रीफल, दो अखरोट, पंचमेवा, चावल अपनी कोख से बांधकर घी से भरा दीपक लेकर रात्रि भर खड़ी रहती हैं। महिला के थक जाने पर उसके पति या अन्य पारिवारिक सदस्य कुछ देर के लिए दीपक हाथ में ले लेते हैं।
(source amar ujala)

M S Mehta

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
This is the news of Baikunth Chaturdashi, Fair 2007.

श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। बैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर पौराणिक कमलेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित होने वाली खड़ दीपक रात्रि जागरण पूजा के लिए श्रद्धालुजन जोर-शोर से तैयारियां कर रहे हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों से 120 नि:संतान दंपतियों से खड़ दीपक पूजा में भाग लेने की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है।

पुत्र मनोकामना को लेकर होने वाली इस विशेष पूजा के प्रति अगाध श्रद्धा और विश्वास के कारण ही बोला पल्ली आंध्रप्रदेश निवासी दंपति भी इस खड़ा दीया पूजन में भाग ले रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अमेरिका में रह रहे अपने पुत्र और पुत्रवधू की संतान प्राप्ति की कामना को लेकर संभवत: बोला पल्ली में रह रहे उनके पिताजी इस पूजा में भाग लेंगे। महंत आशुतोष पुरी ने बताया कि रुद्रपुर, नोयडा, जगादरी, ऋषिकेश, दिल्ली, देहरादून, पौड़ी, लैंसडौन, हरिद्वार, चमोली, टिहरी सहित अन्य क्षेत्रों से नि:संतान दंपति इस विशेष पूजा में भाग ले रहे हैं। महंत आशुतोष पुरी ने बताया कि 23 नवम्बर को साढ़े पांच बजे सांय से यह पूजा प्रारम्भ होगी
जिसमें संतान प्राप्ति की कामना के लिए नि:संतान दंपति उपवास रखकर रात्रिभर खड़े रहकर प्रज्ज्वलित दीपक के साथ भगवान शिव और विष्णु की स्तुति करते हैं। दूसरे दिन प्रात: ब्रह्माकाल में कमलेश्वर मंदिर मठ की पूजा के उपरांत महंत को साक्षी मानकर उस दीपक को शिव को अर्पण किया जाता है। बाद में गंगा स्नान कर मंदिर में ही हवन और गोदान किया जाता है। महंत पुरी ने कहा कि बैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर खड़ दीपक रात्रि जागरण का वर्णन स्कंध पुराण में भी मिलता है। केदारखंड में कहा गया है कि कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी के दिन भगवान शिव परिवार सहित भगवान विष्णु के साथ कमलेश्वर मंदिर में ही वास करते हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Triyuginarayan Temple, Rudraprayag

विष्णु भगवान ने राजा बलि को दिए थे वामन रूप में दर्शन

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रुद्रप्रयाग, जागरण कार्यालय: तीन लोक के सम्राट बनने की इच्छा से राजा   बलि ने त्रियुगीनारायण में यज्ञ किए, लेकिन भगवान विष्णु ने समय रहते ऐसी   लीला रची कि वह बलि पाताल लोक का राजा बन गया और उसी समय से यहां वामन   द्वादशी मेला आयोजित होता आ रहा है।
केदारघाटी के अंतर्गत भगवान विष्णु की स्थली त्रियुगीनारायण में वर्षो   से आयोजित होता आ रहा वामन द्वादशी मेला क्षेत्रीय लोगों की आस्था से जुड़ा   है। यह मेला सम्राट बलि को विष्णु भगवान द्वारा पाताल लोक का राजा बनाए   जाने के अवसर पर होता है। साथ ही मेले में नि:संतान दंपतियों को भी पुत्र   प्राप्ति की आलौकिक शक्ति प्रदान होती है। देवभूमि उत्तराखंड में आयोजित   होते आ रहे विभिन्न पौराणिक मेलों में वामन द्वादशी धार्मिक एवं पर्यटन   मेला का अपना अलग महत्व है। मान्यता है कि जब महाबलि सम्राट बलि पृथ्वी लोक   में मजबूत शासक के रूप में स्थापित हो गए तो उन्होंने तीनों लोक का राजा   बनने के लिए यज्ञ शुरू कर दिया। इसके लिए उन्हें 100 यज्ञ करने थे, जब वह   99 यज्ञ पूरे कर चुके थे, तब सभी देवगण भगवान विष्णु के पास आए तथा स्थिति   की गंभीरता से अवगत कराया। विष्णु ने वामन रूप में अवतरित होकर बलि को   दर्शन दिए तथा भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी। इसमें पहले पग में देव लोक,   दूसरे पग में पृथ्वी नाप ली। जब तीसरे पग के लिए बलि के पास जगह नहीं बची   तब बलि ने अपना सिर आगे कर दिया और उस पर पग रखने को कहा। भगवान विष्णु का   पांव बलि के सिर पर पड़ते ही वह सीधे पाताल लोक पहुंच गए तथा यहां का राजा   बन गया। इसी दिन से त्रियुगीनारायण में वामन द्वादशी मेले का आयोजन होता आ   रहा है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
 मद्महेश्वर: यहां होती है शिव की नाभि पूजा   हिमालय पर्वत की श्रंखलाओं की गोद में अनेक तीर्थ स्थल है जो कि श्रद्धालुओं के लिए असीम आस्था के केंद्र है इन्हीं पंचकेदारों में से एक द्वितीय केदार के नाम से प्रसिद्ध भगवान मद्महेश्वर जहां शिव के नाभि की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग लोक से कामधेनु गाय रोज यहां दूध चढ़ाती थी। आज भी यहां गाय के खुर व स्तन विद्यमान है। गत रविवार को द्वितीय केदार के कपाट खुलने के बाद यहां भगवान के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी है। 
हिमालय के चौ-खम्बा पर्वत की गोद में समुद्र तल से 9700 फिट की ऊंचाई पर स्थित भगवान मद्महेश्वर का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए असीम आस्था का केन्द्र बिन्दु है। मान्यता है कि भोले को यह स्थान काफी प्रिय था, विवाह कि बाद भगवान शिव ने अधिक समय यहीं पर बिताया था। इसे गुप्त तीर्थ के नाम भी जाना जाता है। किवदंती है कि जो भी नि:संतान दंपति पुत्ररत्न की प्राप्ति के लिए यहां पर भगवान की मन से पूजा करता है उसे इच्छित फल की प्राप्ति होती है। पांडवों ने स्वर्गारोहण के समय पंचकेदारों की स्थापना की। कहा जाता है कि स्वर्ग लोक से कामधेनु गाय नित्य यहां दूध चढ़ाती थी। वर्तमान में यहां गाय के खुर व स्तन भी विद्यमान है। यहां श्वेत भैरव निरन्तर भोले की रक्षा करते है। पुराणों के अनुसार मद्महेश्वर तीर्थ में गौड़ देश का स्वाधी ब्राह्मण अपने समस्त पित्रों के कल्याणार्थ तीन रात्रि जागरण करने के पश्चात पूजा अर्चना कर लौट रहा था कि उन्हें मार्ग में एक विशाल विकराल राक्षस दिखाई दिया जिसकी जंघाओं से सैकड़ों कृमि निकल रहे थे यह देखकर उक्त ब्राह्मण भयभीत हो गया। घबराए हुए व कुछ भी न बोल सका, वह राक्षस भी ब्राह्मण की एकटक देखने लगा वह बोला कि में समझ रहा हूं कि मेरे कुछ पाप तुम्हारे दर्शनों से दूर हो गए है देखते-देखते ही वह स्वस्थ हो गया। ठंड अधिक होने के कारण नवम्बर में भगवान मद्महेश्वर के कपाट छ: माह के लिए बंद कर दिए जाते है। भगवान की डोली ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचती है तथा यहां पर विश्व विख्यात धार्मिक मद्महेश्वर मेले का आयोजन होता है। गत रविवार को कपाट खुलने के बाद भगवान मद्दमहेश्वर के दर्शनों के लिए देश-विदेश के श्रद्धालुओं का यहां पहुंचना शुरू हो गया है। भगवान मद्दमहेश्वर की पैदल यात्रा कठिन होने के बावजूद भी यहां पहुंचने पर श्रद्धालुओं को असीम शांति की अनुभूति होती है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
भनार बजैण मंदिर, जिला बागेश्वर उत्तराखंड -  संतान प्राप्ति के लिए यहाँ होती है खड़े दिए की पूजा

 'थाड दियु पुजी'  यानी खड़े होकर एक टक जलते दिए को बिना  झपकाए देखते रहना और दिए की पूजा करना! कार्तिक माह होने मेले में भगवान् बजैण जी के मंदिर में दूर दूर से श्रद्धालु आते है और निसंतान लोग यहाँ संतान प्राप्ति के लिए पूजा करते है!  पूजा के दौरान भक्त को एक टक दिए को देखते रहना होता है चाहे शरीर में खुजली हो रही  हो या अन्य कोई भी समस्या लेकिन जब दिए के पूजा के लिए खड़े हो गये तो बहुत है कठिन साधना  करनी  होती है !  जब भगवान् की प्रातः काल की आरती होती है तब किसी डंगरिया (जिस पर भगवान् अवतरित होते है) आने के बाद ही इन श्रधालु को भगवान् आशीर्वाद देते है!

 मुझे भी एक बार इस मेले सम्मलित होने के सौभाग्य मिला! मेरा गृह जिला बागेश्वर है और मेरे गाव के मैंने कई लोगो को यह पूजा करते हुए सुना है! भगवान् की दिया से उनको निश्चित रूप से संतान की प्राप्ति हुयी है !


This is the photo of Bajain Devta temple Gate at Bhanar, District  -Bageshwar.


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