Author Topic: Saneshwar Mahadev Mandir Rudraprayag-साणेश्वर महादेव मंदिर, अगस्त्यमुनि  (Read 3978 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

In this topic, we are sharing information about Shri Saneshwar Mahadev Temple which is situated in silla village of Rudraprayag District, Uttarakhand. 

जनपद रुद्रप्राग के विकास खंड अगस्त्यमुनि के अंतर्गत मन्दाकिनी के दाहिने पार्शव में सिल्ला गाव है जहाँ पर स्थित है श्री साणेश्वर महादेव का मंदिर व् मंदिर सम्हूह की विशेष है! इस स्थान पर छत्र रेखा शिखर शैली के निर्मित चार बड़े एव रखा शिखर शैली के निर्मित आठ उनसे आकर में छोटे मंदिर दर्शनीय है ! पाषण निर्मित, काष्ट छत्र एवंम कलश सुशोभित मुख्य मंदिर साणेश्वर महराज का है!  मंदिर गर्भगृह में साणेश्वर महराज उनके धर्म बहन कुष्मांडा और गणेश जी विराजमान है! दूसरा मंदिर भगवान् शिव को समर्पित है! जहवां गर्वगृह में एकमुखी शिवलिंग की प्रतिष्ठा है ! तीसरा मंदिर लक्ष्मी नारायण का है और चौथा शिवालय है ! जहाँ पुनः शिवलिंग की प्रतिष्ठा है ! (Ref- Kedarkhand Book Written by Hema Uniyal)

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Saneshwar Mahadev Mandir Rudraprayag-
« Reply #1 on: July 30, 2011, 01:25:51 PM »

गस्त्यमुनि/रुद्रप्रयाग। देवी भगवती का चतुर्थ रूप कूष्मांडा अथवा कुर्मासना सबको सुख देने वाला है। कूष्मांडा सुख की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। कूष्मांडा का मंदिर अगस्त्यमुनि के समीप मंदाकिनी नदी के दक्षिण दिशा में कुमड़ी नामक गांव में स्थित है। भगवती का कूष्मांडा (कोखमांडा) नाम कोख से उत्पन्न होने के कारण पड़ा।

भगवती का उद्भव सिल्ला साणेश्वर महादेव मंदिर में असुरों के संहार प्रकरण जुड़ा है। कहा जाता है कि जब महर्षि अगस्त्य रक्तबीज दैत्य से लड़ते-लड़ते थक गए, तो उन्होंने आदिशक्ति मां जगदंबा का ध्यान करते हुए अपनी कोख को मलकर कूष्मांडा का अर्विभाव किया। कूष्मांडा ने विकराल रूप धारण कर समस्त दैत्यों का संहार किया। अंत में दो दैत्य शेष बच गए। एक दैत्य कुमड़ी के समीप सिल्ली और दूसरा बद्रीनाथ धाम में जा छुपा। मार्कंडेय पुराण के देवी महातम्य (दुर्गा सप्तशती) में चतुर्थ क्रम में कूष्मांडा का वर्णन किया गया है। कुमासैंण इसी रूप का स्थानीय नाम है। कुमासैंण और साणेश्वर को भाई-बहन माना जाता है।

नवरात्रों में कूर्मासनास्रोत का पाठ परम समृद्धि तथा मनोवांछित फलप्रदायक होता है। तीन दिनों तक इस पीठ में सात्विक रूप से रहकर उचित सिद्धि की प्राप्ति होती है। स्थानीय लोग विभिन्न लोक वाद्यों से देवी की पूजा करते हैं। पुराने मंदिर के स्थान पर विगत वर्ष नए मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर में देवी की प्राचीन अष्टधातु की अष्टभुजा मूर्ति स्थापित है। इसके अलावा देवी भगवती का प्रस्तर प्रतीक भी है। (Amar Ujala)

देवी मंत्रः ततो वै पूर्वहदग्भागे गव्यूतौ ते परमं स्थलम्, यत्र कूर्मासना देवी कूर्मपृष्ठे व्यवस्थिता।
कूर्मरुपी पुरा विष्णु संस्मार जगदम्बिकाम, घराया धारणं देवी मंदरस्य च धारणे।
सेयं देवी समाख्याता सर्वशक्तिमहिश्वरी, संस्तुता ददौ शक्तिं निजरुपां महेश्वरी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Saneshwar Mahadev Mandir Rudraprayag-
« Reply #2 on: July 30, 2011, 01:35:25 PM »
दुर्गा जी की प्रतिमा भी यहाँ दर्शनीय है ! इन मंदिरों के वाम पार्शव का समूह है! मंदिर परिसर में पथ्थरो से निर्मित एक एक यज्ञ शाळा है ! जहाँ हर बारह साल के बाद एक विशाल यज्ञ होता है ! परम्परा के अनुसार यज्ञ के अवसर पर यहाँ कुष्मांडा को बुलाया जाता है और पथ्थरो से निर्मित एक ऊँची पीठिका पर कुष्मांडा देवी मुख्य रूप से विराजमान होती है! इसका स्थान इस जगह से १४-१५ किलोमीटर दूर पट्टी सिलगढ़ के गाव कुमडी जहाँ कुष्मांडा देवी का एक प्राचीन मंदिर है!




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Saneshwar Mahadev Mandir Rudraprayag-
« Reply #3 on: July 30, 2011, 02:35:22 PM »
][/u]डोली यात्रा

हर बार साल में होने वाले यज्ञ से पहले साणेश्वर की डोली क्षेत्र के लिए निकलती है ! क्षेत्र भ्रमण के बाद वापस सिल्ला गाव आकर यह यज्ञ महायज्ञ होता है! इस महायज्ञ के आचार्य बैजवाल (बेजी गाव), पन्त (कुणजी गाव), पुरोहित व् सेमवाल (सिल्ला गाव), डिमरी (बीरो), किमोठी (किसाल) व भट्ट होते है! साणेश्वर के १२ वर्ष में होने वाले इस यज्ञ महायज्ञ के लिए सम्पूर्ण पंच शिला क्षेत्र के लोग उनकी धर्मं बहन कुष्मांडा को बुलाने को कुमडी होते है जो इस महायज्ञ में मुख्य देवी के रूप में यहाँ विराजमान होती है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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इस स्थान पर शिव गण साणेश्वर की पूजा अनेको वर्षो से होती आ रही है ! घर में कोई भी शुभ कार्य से पूर्व श्रदालुजन साणेश्वर महराज की आराधना करते है ! साणेश्वर को बूडा शिव भी कहा जाता है !

रोचक तथ्य - बद्री नाथ धाम में शंख दवानी नहीं होने की?

श्री बदरीनाथ धाम के शंख न बजाये जाने की धारणा इस मंदिर से जुडी है! मान्यता है प्राचीन काल पर नरभक्षी दैत्यों का आतक छा गया था ! आताप और वातापी दैत्यों ने इस भूमि पर इस कदर छा गया था की सभी भयभीत हो गए थे! तब अगस्त्यमुनि महराज ने पराशक्ति का ध्यान किया और माँ भगवती प्रकट हुयी जिन्होंने राक्षसों का संहार किया जिनमे राक्षस आतापी भी मारा गया ! इनमे वातापी नाम का दैत्य भागकर बदरीनाथ के शंख में जा छिपा! इस दिन बाद बदरीनाथ में शंखनाद नहीं होता है ! कुष्मांडा ने इस स्थान पर दैत्यों का वध किया वह स्थान दैत्यों के खून से अपवित्र हो गया ! इसे पवित्र करने के लिए महर्षि अगस्त्य ने यहाँ पर महायज्ञ का आयोजन किय१ बाद में ऋषि के चले जाने के बाद यज्ञ की जिम्मेदारी शिवगण साणेश्वर को दी गयी परम्परानुसार साणेश्वर के भक्तो द्वारा आज भी सम्पन्न होता है ! यह मंदिर ग्यारह गावो व् पूर पंच शिला पट्टी, काली पार के प्रमुख मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है ! महायज्ञ के अलावा इस मंदिर की पूजा अर्चना सिल्ला गाव के सेमवाल, नौटियाल और और पुरोहित बारी बारी करते है !

 

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