बैकुंठ चतुर्दशी मेला
कार्तिक महीने (अक्टूबर-नवम्बर) में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन कमलेश्वर महादेव मंदिर एक बड़े मेले का स्थल होता है। झालरों से सज्जित श्रीनगर का बाजार एक व्यस्त समारोही स्थल बन जाता है क्योंकि आस-पास के गांवों तथा संपूर्ण भारत से लोग मंदिर में पहुंचते हैं। पूजा सुबह सवेरे शुरू हो जाती है और कीर्तन दिन-रात चलता रहता है।
इस अवसर पर संतानहीन दम्पत्ति गंगा में स्नान कर व्रत रखते हैं तथा खड़े रहकर इस विश्वास से अपनी हथेलियों पर रात-भर दीप जलाये रखते हैं कि उनकी पूजा का प्रतिफल मिलेगा। घी से जले दीप में वे 365 बत्तियां रखते हैं क्योंकि माना जाता है कि इससे वर्ष के 365 दिनों की दुर्घटनाएं दूर रहेगी। सुबह होते ही दम्पत्ति दीप को भगवान शिव को समर्पित कर देते हैं, और इसके बाद अलकनंदा में स्नान कर मंदिर के महंथ से प्रसाद ग्रहण करते हैं।
आजकल पांच-छ: दिनों तक चलने वाले इस मेले का आयोजन नगर पालिका परिषद करती है। लोकनृत्य एवं संगीत कार्यक्रमों, सांस्कृतिक वाद-विवादों, खेलकूदों, नाटकों, लोककलाओं एवं हस्तकारीगरी के प्रदर्शनों के साथ कवि सम्मेलनों, संगीत भरी शामों जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इसमें श्रीनगर के प्रत्येक नागरिक, बच्चों से लेकर वयस्कों तक भाग लेते हैं। स्थानीय प्रशासन मेले का उपयोग स्थानीय कलाओं एवं अन्य कलाओं को बढ़ावा देमे में करते हैं।
अचला सप्तमी/ घृतकमल
कमलेश्वर मंदिर से संबद्ध अन्य प्रसिद्ध उत्सव होता है अचला सप्तम या घृतकमल। यहां बसंत ऋतु में बसंत पंचमी के ठीक बाद मनाया इसे जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा चांदी से की जाती है। शिवलिंग को घी से धोकर एक ऊनी कंबल से इसे ढंक कर फूल-पत्तियों से सजाया जाता है। भगवान शिव को 52 प्रकार का प्रसाद चढ़ाया जाता है जो भिन्न प्रकार से तैयार होते है। उस दिन मंदिर का महंथ उपवास करता है और मात्र एक मात्र लंगोटी पहनकर लेटकर मंदिर की परिक्रमा करता है। उसके पीछे भक्तों का समूह होता है। इसके बाद चढ़ाये गये 52 सामग्रियों का प्रसाद वितरित होता है।