एशिया में चीड़ एवं देवदार प्रजाति के वृक्षों में उत्तराखंड के जंगलों का दबदबा रहा है। एशिया का सबसे मोटा देवदार वृक्ष जनपद उत्तरकाशी के टौंस वन प्रभाग अंतर्गत कोठिगाड़ रेंज के बालचा वन खंड में स्थित है। यह वन क्षेत्र जनपद देहरादून की सीमांत तहसील त्यूणी से सटा हुआ है। देवदार के इस महावृक्ष की मोटाई (गोलाई) 8.25 मीटर और ऊंचाई 48 मीटर है। इस वृक्ष की आयु 400 साल से अधिक बताई जाती है।
वर्ष 1994 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा इसे महावृक्ष के रूप में पुरस्कृत किया गया था। भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के म्यूजियम में देवदार वृक्ष की जो सबसे अधिक गोलाई की अनुप्रस्थ काट प्रदर्शित की गई है, वह वृत भी इसी खंड में स्थित थी, जिसके अवशेष अभी भी मौजूद हैं। देहरादून जिले के चकराता वन प्रभाग अंतर्गत कनासर रेंज में स्थित देवदार का एक और वृक्ष महावृक्ष बनने की होड़ में अपना आकार फैलाए जा रहा है।
चकराता-त्यूणी मोटर मार्ग पर कोटी-कनासर वन खंड में स्थित इस देवदार वृक्ष की मोटाई (गोलाई) 6.35 मीटर है। इस वृक्ष की अनुमानित आयु 600 साल से अधिक बताई जाती है। देवदार एवं चीड़ प्रजाति के वृक्षों की चाहे ऊंचाई की बात रही हो या मोटाई की, महावृक्ष का खिताब पाने में पूरे एशिया में उत्तराखंड के जंगलों का ही दबदबा रहा है।
एशिया के सबसे ऊंचे चीड़ महावृक्ष में भी उत्तराखंड राज्य के टौंस वन प्रभाग ने अपनी पहचान बनाई। 8 मई 2008 को क्षेत्र में आए भीषण आंधी-तूफान से यह महावृक्ष धराशायी हो गया था। मोटे वृक्ष की रोचक है