Author Topic: NARENDAR NAGAR,UTTARAKHAND,(नरेंद्रनगर,उत्तराखंड )  (Read 36294 times)

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परंपरागत गढ़वाली गीतों या गानों में वास्तव में अपने प्रिय पात्रों के प्रति प्रेम संवाद होता है। प्रायः ही गीतों का विषय विरह होता हैं जो अपने प्रिय या परिवार से अलग होने का दुख है।

उदाहरण के लिए गायिका एक पक्षी चकोरी को अपनी पीड़ा बताती हैं तथा उससे आग्रह करती है कि वह जाकर उसके प्रियतम को बताये कि वह उसे कितना चाहती है।



गीत के साथ-साथ ढ़ोल, दामौ,  नगाड़ा तथा बांसुरी प्रायः साथ होते हैं। फिर भी ढोल का एक अन्य कार्य भी होता हैं। कठिन पहाड़ी भूमि पर यह संचार का एक माध्यम होता हैं। उदाहरण के लिए विवाह के दैरान ढोल बजने से अगले गांव को पता चल जाता है कि वहां बारात कब पर पहुंचेगी।

एक परंपरागत नृत्य हैं चौफुला नृत्य जहां पुरूष एवं महिलाएं बाहों में बाहें डालकर संगीत की धुन पर थिरकते हैं।

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टिहरी गढ़वाल के महाराजा का राजमहल इस क्षेत्र की परंपरागत वास्तुकला का वास्तविक नमूना ही नहीं, बल्कि इस शहर में सबसे पुराने मकान के रूप में सर्वाधिक परंपरानुसार भी है।

मूरी वास्तुकला पर आधारित यह एक व्यक्तिगत शैली है जिसमें इटली के पुनर्जागरण के खंभे तथा गुजराती झरोखे भी देखे जा सकते हैं, जो राज्य के राजमहल तक फैले हैं। राज्य का प्रतिनिधि राजमहल भी एक मिश्रित निर्माण हैं पर बहुत कम शैलीयुक्त है जिसमें भारतीय बीजापुरी मेहराब कलात्मक आंतरिक सज्जा के साथ बाहर की ओर है।

नरेन्द्र नगर की वास्तुकला का एक और अदभुत उदाहरण है यहां के बाजार की इमारत। यह भी राजा नरेन्द्र शाह के समय में बनी और आज यहां निचली मंजिल में दुकानें हैं और दूसरी में आवास।

सभी नये भवन परंपरागत शैली के नहीं बल्कि उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों जैसे आधुनिक निर्माण हैं।

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नरेन्द्र नगर का महल


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  नरेन्द्र नगर का महल

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  नरेन्द्र नगर का महल, जो कि आज आनंदा के नाम से जाना जाता है





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       शहर के मूल निवासी राज दरबार के सदस्य हैं, जिन्हें राजा नरेन्द्र शाह ने बसाया। इनमें उनके दरबार के ब्राह्मण तथा राजपूत एवं अन्य अधिकारी की तरह यहां भी उत्तरी भारत के मैदानों से आकर वे लोग बस गये, जो मुसलमानों तथा अंग्रेजो आक्रमणकारियों से त्रस्त होकर भाग आये थे


कुछ दशकों पहले लोग मिर्जई, पायजामा एवं गढ़वाली टोपी का इश्तेमाल किया करते थे। महिलाओं के बीच घाघरा तथा आंगरा का सामान्य प्रचलन था।

समय बीतने के साथ-साथ खासकर नयी पीढ़ियों के बीच पैंट एवं शर्ट, साड़ी एवं ब्लाउज सलवार एवं कुर्त्ता परंपरागत परिधानों की जगह ले रहे हैं।

परंपरागत रूप से गढ़वाली महिलाएं नथों, कान की बालियों, बुलकियों, तिमानियां, चन्द्रहार, कंठी, बॉंसुल, झपनवाड़ी, कमरबंद, शीशफूल, मतबेनू आदि जेवरों को पहनती हैं। परंतु रहन-सहन एवं परिधानों के आधुनिक तरीकों के आने से इन जेवरों का इश्तेमाल सुदूर गांवों तक ही सीमित हो गया है

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जीवन की परंपरागत शैली
मवेशियों को चराने तथा खेती करना आज भी इर्द-गिर्द के गांवों तक ही सीमित हैं परंतु नरेन्द्र नगर में नहीं।

चावल, मक्का, गेहूं, झंगोरा, आलू तथा उड़द परंपरागत फसलें थी जो शहर के इर्द-गिर्द चौरस या चबूतरानुमा खेतों में उपजायी जाती थीं और आज भी ऐसा ही है।

अन्य परंपरागत पेशों में राजदरबार की नौकरी थी जो बाद में प्रांत के प्रशासन में सरकारी पदों में परिवर्तित हो गया। परंतु आज शहर में ऐसे बहुत कम अवसर होते हैं तथा लोगों को रोजगार की तलाश में शहर के बाहर जाना पड़ता है।

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नरेन्द्र  नगर    निचले  हिमालय   में    शिवालिक    एवं    वृहत्तर  हिमालय   के बीच  स्थित  है।इसके इर्द-गिर्द की विशेषता है चौरस बनी जमीन पर की खेती तथा तंग घाटियों तथा ढलानों पर चीड़, देवदार के पेड़ भरे पड़े हैं। आडू के पौधों की बहुतायत है। पड़ोसी पर्वतों के सुहावने दृश्य के साथ नरेन्द्र नगर का हरा-भरा शहर विल्कुल तथा नितांत शान्तिपूर्ण है।

नरेन्द्र नगर को अपने मनोरम सुंदरता के लिए जाना जाता हैं जहां सुंदर सूर्यास्त तथा दून घाटी के दृश्य देखे जाते हैं। मनोरम हरियाली से घिरे शहर की सुंदरता का आनंद सड़क पर टहलते हुए लिया जा सकता है।

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      नरेन्द्र  नगर    निचले  हिमालय   में    शिवालिक    एवं    वृहत्तर  हिमालय   के बीच  स्थित  है।इसके इर्द-गिर्द की विशेषता है चौरस बनी जमीन पर की खेती तथा तंग घाटियों तथा ढलानों पर चीड़, देवदार के पेड़ भरे पड़े हैं। आडू के पौधों की बहुतायत है। पड़ोसी पर्वतों के सुहावने दृश्य के साथ नरेन्द्र नगर का हरा-भरा शहर विल्कुल तथा नितांत शान्तिपूर्ण है।

अमलतास के फूल


नरेन्द्र नगर को अपने मनोरम सुंदरता के लिए जाना जाता हैं जहां सुंदर सूर्यास्त तथा दून घाटी के दृश्य देखे जाते हैं। मनोरम हरियाली से घिरे शहर की सुंदरता का आनंद सड़क पर टहलते हुए लिया जा सकता है।

वनस्पतियां,ढ़ेऊ

नरेन्द्र नगर के इर्द-गिर्द पहाटियों पर मुख्यतः चीड़, देवतार के पेड हैं तथा बीच-बीच में शीशम, नीम, चंदन, अमलतास, केला, कचनार एवं चंदन की लकड़ी के पेड़ आदि हैं। स्थानीय वनस्पतियों में मुख्यतः लेंटना, काला बॉसा, बासिगां अमृता, अंगूर की बेल तथा अरंजी जिससे कास्टर तेल निकाला जाता है, शामिल हैं।

 अन्य पाया जाने वाला पेड़ ढ़ेऊ (आरटोकारपस लैकुचा राकेब) है, जिसके फल से आचार बनाया जाता है। यात्रियों को बिच्छू बूटी वह झाड़ी जिससे घोर खुजलाहट एवं जलन होती है) से दूर ही रहना चाहिए।

 

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