Author Topic: NARENDAR NAGAR,UTTARAKHAND,(नरेंद्रनगर,उत्तराखंड )  (Read 36293 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
नरेंद्रनगर,का नाम सभी जानते है यह बहुत सुन्दर जगह है और अपने मैं अपने सुन्दरता के लिए उतारांचल मैं परषिद है यहाँ के राजा जी का महा और पोलिटेक्निक इन्गिनियारिंग कोलेज के लिए भी प्रशिध हैं !
पंवार वंश की स्थापना कनक पाल ने 9वीं शताब्दी में की। उसने चांदपुर गढ़ी के सरदार, भानू प्रताप, की पुत्री से शादी की और स्वयं इस नगरी का सरदार बन गया। राजा अजय पाल, जो कनक पाल का 37वां वंशज था, ने गढ़वाल के 52 सरदारों को परास्त कर पंवार या पाल वंश का शासन कायम किया।


 16वीं शताब्दी में उसने अपनी राजधानी चांदपुर गढ़ी से हटकर पहले देवलगढ़ और फिर श्रीनगर में स्थापित की। इसके बाद पंवार शासकों ने अपने राज्य के आकार एवं शक्ति को बढ़ाया। वास्तव में, गढ़वाल एक स्वतंत्र राज्य था जहां दिल्ली के शक्तिशाली मुगलों का न तो प्रभाव था और न ही वर्चस्व। 17वीं सदी में किसी समय ‘पाल’ शब्द को ‘शाह’ में परिणत कर दिया गया।


वर्ष 1803 में गोरखों ने गढ़वाल पर आक्रमण किया और राजा प्रद्युम्न शाह अपना राज्य और जीवन खो बैठे। वर्ष 1815 में अंग्रेजों की सहायता से राजा सुदर्शन शाह, प्रद्युम्न शाह के बेटे ने 12 वर्षों बाद गुरखों से अपना राज्य वापस छीन लिया और टिहरी रियासत की राजधानी टिहरी में बनायी।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
दरबार के ज्योतिषी पंडित ने शहर के दुर्भाग्य की भविष्यवाणी की (जो सच साबित हुई क्योंकि अब टिहरी का अस्तित्व नहीं है) तथा राजा  सुदर्शन शाह के उत्तराधिकारी 59वें शासक  राजा नरेन्द्र शाह  से आग्रह किया कि वे अपनी राजधानी बदलें। दरबार की सलाह पर राजा नरेन्द्र शाह ने नए नगर नरेन्द्र नगर को वर्ष 1919 में अपनी राजधानी बनाया।

शहर का नाम इसके संस्थापक नरेन्द्र शाह के नाम पर रखा गया। नई राजधानी स्थापित करने के कई कारण थे। कई पीढ़ियों तक शाह वंश के शासक 30 वर्ष की आयु से पहले ही चल बसे थे। राजा नरेन्द्र शाह ने समझा कि अपनी राजधानी बदलकर वे इससे बच सकते हैं।

कुछ बताते हैं कि उनके स्वास्थ्य के कारण डॉक्टर ने उन्हें टिहरी से जाने की सलाह दी थी। एक और कारण  राजधानी बदलने का बताया जाता है कि राजा नरेन्द्र शाह प्रभु सेवा प्रथा का अंत कर एक उदाहरण पेश करना चाहते थे।

जब भी जाड़ों में राजपरिवार टिहरी से देहरादून जाता तो उनका सामान उस लंबी दूरी तक उन लोगों द्वारा ढोया जाता था जो उस कष्टदायक परंपरा में रहते थे। समझा गया कि नरेन्द्र नगर का देहरादून से सान्निध्य इसे दूर करने में सहायक होगा।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
राजा नरेन्द्र शाह,NARENDR NAGAR TEHRI

अपनी छोटी उम्र में ही 25 अप्रेल, 1913 को दिवंगत हुए राजा कीर्ति शाह के उत्तराधिकारी नरेन्द्र शाह बने। उनकी बाल्यावस्था में राज्य के प्रशासन की देखभाल उनकी मां ने की। 14 अक्टूबर, 1919 को नरेन्द्र शाह का राज्याभिषेक हुआ।



अपने पिता की तरह उनकी शिक्षा भी अजमेर के मेयो कॉलेज में हुई। वे अपनी किशोरावस्था में ही ब्रिटिश सरकार द्वारा लेफ्टिनेंट बनाये गये तथा उनकी माता को प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान युद्ध सेवा की मान्यता स्वरूप केसर-ई-हिंद का मेडल दिया गया। ये सेवाएं युद्ध के दौरान अंग्रेजी-सरकार को लकड़ी की आपूर्ति करना थी।

राजा नरेन्द्र शाह ने 27 वर्षों तक शासन किया तथा राज्य के प्रशासन में सक्रिय रूचि दिखायी। उन्होंने वन विभाग विकास योजना शुरू करने के लिए युवा अधिकारियों को प्रशिक्षण लेने वन कॉलेज, देहरादून में भेजा तथा अपने राज्य के वन-प्रबंधन में सुधार लाने के लिए विदेशी विशेषज्ञों को आमंत्रित किया।

उन्होंने मुनि की रेती से अपनी नई राजधानी तक मोटर गाड़ी के लिए सड़क बनवाया। वर्ष 1918 में राज्य के नागरिक कानूनों को नरेन्द्र हिंदु कानून नामक पुस्तक में संग्रहित करवाया तथा वर्ष 1922 में संपूर्ण भूमि के लिए भूमि कर का निर्धारण करवाया।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
भूतपूर्व रजवाड़े के इस शहर की साफ, सुथरी स्थिति आज भी प्रमाणित होती है। आज भी अस्पताल एवं सचिवालय जैसे भवनों का इस्तेमाल होता है। वर्ष 1919 में ही बाजार के मकानों का निर्माण हुआ। इसमें पहले राजा के कर्मचारी रहते थे जहां निचली मंजिल पर घोड़े रखे जाते थे एवं ऊपरी मंजिल पर कर्मचारियों का आवास था।

 1900 सदी के प्रारंभ में नरेन्द्र नगर उस समय के अंग्रेजों का एक प्रिय स्थल होता था। वर्ष 1910 में तत्कालीन भारतीय वायसराय लॉर्ड लिनलिथगों एवं उनके काफिले को ठहराने के लिये मूल राजमहल में एक अतिरिक्त एनेक्सी राजमहल जोड़ा गया क्योंकि वे प्राय: ही नरेन्द्र नगर आते थे।

इन वर्षों में राजमहल में कई गणमान्य अतिथियों यथा स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री, स्वर्गीय इन्दिरा गांधी भारतीय प्रधानमंत्रियों का तथा आध्यात्मिक नेताओं का आनंदमयी एवं स्वामी शिवानंद के साथ ही अंतिम अंग्रेज वायसराय लार्ड लुईस माउंटबेटन  का भी आगमन हुआ। अब राजमहल के इस एनेक्सी में आनन्दा इन हिमालयाज रिसार्ट है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
राजा मानवेन्द्र शाह,NARENDR TEHRI GARHWAL

राजा मानवेंद्र शाह की शिक्षा लाहौर (जो अब पाकिस्तान में है) के राजकीय कॉलेज तथा देहरादून के भारतीय नागरिक सेवा शिविर में हुई। वे दूसरे, तीसरे, चौथे, ग्यारहवें, तेरहवें एवं चौदहवें लोक सभा के सदस्य रहे जिन्होंने अपने गृह क्षेत्र से चुनाव लड़ा।



 वे भारतीय जनता पार्टी के सर्वाधिक सेवाकाल के सदस्य थे। सामाजिक मसलों के कई सरकारी समिति के सदस्य होने के अतिरिक्त वे वर्ष 1980-83 में आयरलैंड में भारत के राजदूत, बद्री केदार मठ के संरक्षक, टिहरी गढ़वाल के मंदिर प्रबंधन मंडल के अध्यक्ष, महाराजा नरेन्द्र शाह न्यास के न्यासी तथा महाराजा कीर्ति शाह न्यास के न्यासी भी रहे।

फरवरी 4, 1937 को उन्होंने बांसवारा की महारानी सुरज कंवर से विवाह किया स्वयं उन्हें एक पुत्र तथा तीन पुत्रियां हैं। जनवरी 5, 2007 को उनकी मृत्यु हो गयी। उनके पुत्र मनुजेन्द्र शाह उनके उत्तराधिकारी बने।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
लुईस माउंटबेटन, नेहरु जी के साथ 



बेटनबर्ग का लुईस, महारानी विक्टोरिया का प्रयोग तथा जार्ज पंचम का निकट का भाई, भारत का अंतिम वायसराय तथा प्रथम गर्वनर जनरल था।
अपने विशिष्ट नौसेना जीवनी में उसने भारत का विभाजन तथा उपमहादेश से अंग्रेजों की वापसी का अनुमान लगा लिया था। आयरलैंड के काउंटी स्लीगो में अपने घर के निकट घुट्टी में तैराकी के दौरान आई आर ए के एक बम से लुईस माउंटबेटन की मृत्यु हो गयी।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Narendra Nagar came into existence in 1895, when Maharaja Narendra Shah decided to move his capital from Tehri to a more picturesque locale. A legendary fount of religion and spirituality, Narendra Nagar was chosen by Maharaja Narendra Shah to house the Palace of Tehri Garhwal.

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
     कहा  जाता  है कि  ऊधव मुनि  ने उस  जगह घोर  तप किया  जहां  आज नरेन्द्र  नगर स्थित  है। उनके  नाम के  पीछे  ही इसका  नाम ऊधवस्थली  रखा गया  जिसका  बाद में  अपभ्रंश  ओदाथली  हो गया।  इसी जगह  भारतीय  वैदिक  ज्योतिष  के संस्थापक     पाराशर  मुनि     ने  ग्रहों  की गति  पर विभिन्न  प्रयोग  किये।  उनकी  प्रयोगशाला  का होना  वहीं  अनुमानित  है जहां  स्थानीय  पॉलिटेक्निक  स्थित  है।


Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
पाराशर मुनि



 विभिन्न प्राचीनल लेखों में भारतीय ज्योतिष का उद्गगम विभिन्न देवताओं एवं ऋषियों से हुआ माना जाता है। अपनी बहुचर्चित पुस्तक वृहत पाराशर होड़ शास्त्र में ऋषि पाराशर में हिंदुओं के भविष्य ज्योतिष शास्त्र के संपूर्ण सूत्रों की व्याख्या क्रमानुसार किया है। मान्यता के अनुसार वे ऋषि वशिष्ठ की कन्या शक्ति के पुत्र हैं।

 वे ऋषि वेद व्यास के पिता थे। व्यास ऋषि ने 18 पुराणों सहित महाकाव्य महाभारत जिसमें भागवत गीता, ब्रह्मसूत्र तथा उत्तर मीमांसा शामिल हैं, की रचना की। उनका ज्योतिष ज्ञान इतना प्रबल था कि एक दिन जब वे नदी पार कर रहे थे तो उन्होंने आकाश में अपने पसंदीदा सितारों की ओर देखा तथा अकस्मात उन्हें मान हुआ कि वह एक अप्रत्याशित शुभ मुहुर्त था

 तथा अगर कोई बच्चा इस समय बीजारोपित होता है तो वह सभी शास्त्रों का विशेषज्ञ बनेगा। इसलिए उन्होंने नाव की नाविका (मल्लाह) स्त्री से विवाह करने का अनुरोध किया। वह राजी हो गयी और उनसे वेद व्यास नामक पुत्र पैदा हुआ। उन्होंने पाराशर संहिता तथा पाराशर स्मृति की भी रचना की।

एक मतानुसार ब्रह्मा ने अपने पुत्र नारद को वेदों तथा ज्योतिष की शिक्षा दी। नारद ने बाद में ऋषि सौनक को इसकी शिक्षा दी। पाराशर सौनक मुनि के शिष्य थे। वृहत पाराशर होड़ शास्त्र पाराशर मुनि तथा उनके शिष्य मैत्रेय के बीच संवाद के रूप में है। मैत्रेय प्रश्न पूछते हैं तथा पाराशर सिद्धांतों का बखान करते हैं। 5,000 वर्षों के बाद भी यह भारत में ज्येतिष की सर्वश्रेष्ठ रचना है।
 

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों के समय की परंपरा को बढ़ाने वाले इस राज्य में नरेन्द्र नगर अपेक्षया एक नया शहर है।

 पूर्व रजवाड़ों के प्रांत टिहरी-गढ़वाल की राजधानी के रूप में इसने दो राजाओं नरेन्द्र शाह तथा मानवेन्द्र शाह के वैभव को देखा है, जब उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के अंतिम दौर में अपने घऱ यहां बसाये। प्रशासनिक इकाई टिहरी के केंद्र होने के नाते यह कई सालों तक सरकारी कार्यकलापों का केंद्र रहा है।


 
शाह वंश के वंशज राजा मनुजेंद्र शाह जनवरी 5, वर्ष 2007 से बद्री-केदार मंदिरों के संरक्षक तथा टिहरी गढ़वाल के प्रबंधक के मंदिर बोर्ड के अध्यक्ष हैं। फलस्वरूप, नरेन्द्र नगर में ही तय होता है कि जाड़ों के बाद बद्रीनाथ मंदिर का कपाट लोगों के लिये किस तारीख को खोला जाय। इसी शहर में कीर्तिपंजग (सभी वार्षिक उत्सवों एवं धार्मिक समारोहों का हिन्दु कैलेंडर) का मुख्यालय है और इससे परामर्श के बाद ही तारीख की घोषणा होती है।

 राजमहल में प्रत्येक वर्ष बसंत-दरबार का आयोजन होता है। प्रत्येक वर्ष कपाट खुलने से पहले नरेन्द्र नगर की महिलाएं तिल से वह तेल तैयार करती है जिसका इस्तेमाल साल भर बद्रीनाथ की मूर्ति पर लेप करने के लिए होता है।

वास्तव में, शाह वंश के वंशज को बोलंदा बद्रीनाथ, भगवान

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22