समुद्र तल से 6,597 मीटर ऊंची नीलकंठ पीक एक पिरामिड के समान नजर आती है। इस पहाड़ी पर चढ़ना काफी कठिन है। यही कारण है कि पिछले 50 साल में इस पहाड़ी परबहुत कम अन्वेषण हुए हैं।
पता है, इस पीक पर फतह पाने के पहले 9 अन्वेषण असफल रहे थे। पहला प्रयास 1937 में फ्रैंक स्मिथ द्वारा किया गया था। उनका अभियान असफल रहा, लेकिन वह नीलकंठ के सौन्दर्य से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने इसे हिमालय की दूसरी सुंदरतम पहाड़ी कहा था। पहली बार जून 1974 में इस पर फतह पायी गयी।
भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के सोनम पुल्जर, कन्हैया लाल, दिलीप सिंह तथा नीमा दोरजी उत्तरी दिशा से नीलकंठ शिखर तक पहुंचे थे। उस अभियान का नेतृत्व एसपी चमोली द्वारा किया गया था। उसके उपरांत दूसरा सफल अभियान 1993 में संभव हुआ।
जून 2000 में ब्रिटेन के मार्टिन मोरेन ने पश्चिमी रिज से पहली बार नीलकंठ शिखर को स्पर्श किया। उन्होंने आखिर के दो सौ मीटर की चढ़ाई रस्से की सहायता से की थी। 2001 और 2007 में भी इस शिखर पर सफल अभियान हुए। 2007 के अभियान में कुल 11 पर्वतारोही शिखर तक पहुंचने में सफल हुए। इस अन्वेषण का नेतृत्व अपूर्व कुमार भट्टाचार्य द्वारा किया गया था।