Author Topic: Pilgrimage Or Tourism? - उत्तराखंड में पर्यटन हो या तीर्थाटन?  (Read 11152 times)

खीमसिंह रावत

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फॉरम के सम्मानीय सदस्यों व प्रबुद्ध पाठकों यह टोपिक शुरू कराने की इजाजत चाहता हूँ।
समाचार पत्रों के मध्यम से पत्ता चलता है की पहाड़ पर बाहर वालो का कब्जा होता जा रहा है। एक ही दृष्टि है पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देना। गेस्ट हॉउस, होटल, पिकनिक स्पॉट विकसित किए जा रहे हैं। क्या पर्यटन से हमें सामाजिक, सांस्कृतिक सुरक्षा मिलाती है या फ़िर आर्थिक तौर पर ही हम सक्षम हो पाते हैं?

पर्यटन जहाँ पर्याय है विलासता का, मौज मस्ती का, वही तीर्थाटन से मन की शान्ति।

कृपया इन्ही दो बिन्दुवो पर आप लोग विचार दें। 

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Kyunki Uttarakhand Devbhumi hai isliye wahan Thirthatan ko badhawa dena chhaiye. Paryatan ke liye local participation bhi must kiya jaana chahiye.

VK Joshi

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Yadi aap thora gaur sey sochey to teerthatan bhi ek prakar ka paryatan he hai-matr astha ka fark hai. Isliye main samajhta hun ki paryatan evam teerthatan dono sath chal saktey hain. Aap kah saktey hain ki 'tourists' ayengey to unkey liye hotel et banegey, tourists gandagai failayengey-to kya teerthyatri khuley akash key neechey soyengey? Jahan tak prashna hai anya prakar ki ganadgi ka to usey to tourists ho ya teerthyatri dono ko swyam rokna hoga sath he yatr ya tour agents ko bhi rokney mein madad kerni padegi. Jis samay 1 lakh teerthyatri achana Rishikesh mein ekatrit ho jatey hain us samay wahan ki safayi ki durdasha wahan rahney wala he janta hai. UK key pass income badhaney ka matr shrot hai tourism ya teerthatan-sadiyon sey teerthatan hota aa raha hai-per main samajhta hun wah ek prakar ka tourism he tha per mun mein shraddha ya astha thi. 'UK Devbhoomi hai is pawan bhoomi ko her prakar sey swachh rakhey'-yeh msg her tourists ko diya jana chahiye.Hotel/guest house etc kahan kitney banengey yeh sarkar ko sunishchit kerna hoga. Per chahye tourism ho ya teerthatan dono ko control aur manage UK wasi he karengey yeh bhi sunishchit kiya jana avashyak hai.

पंकज सिंह महर

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खीम दा,
      उत्तराखण्ड में ज्यादा प्रचलित और यहां के लोगों के लिये ज्यादा फायदेमंद कौन है, यह कहना तो मुश्किल है। यहां का पर्यटन ज्यादा तीर्थाटन पर ही निर्भर है, तीर्थाटन और पर्यटन दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं, जैसा आपने कहा कि पर्यटन मौज-मस्ती और तीर्थाटन आध्यात्मिक शांति का पर्याय है तो अब लोगों का नजरिया इसके प्रति भी बदला है। लोगों का अब सोचना है कि चलो बद्रीनाथ जी के दर्शन कर आते हैं और वापसी में मसूरी-देहरादून की सैर भी कर आयेंगे।
      जहां तक सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सुरक्षा की बात है तो सरकार को इसके प्रति गंभीर होकर सोच-समझक्र कार्य योजना तैयार करनी होगी। आज आप कोई भी हिल स्टेशन देखें छोटे से छोटा या बड़े से बड़ा, जहां-जहां भी रिसार्ट बने हैं या हट्स बनीं हैं या होटल, स्थानीय लोगों की कोई भागीदारी उसमें नहीं है। इसे बढ़ाना पड़ेगा, अपनी संस्कृति का भी सहयोग हम इसमें ले सकते हैं, ग्राम्य स्तर पर एक सहकारी समिति का गठन करवाया जाय और उसे ऋण देकर वहां पर एक होटल/रिसार्ट का निर्माण करवा दिया जाय, स्थानीय लोग इसमें काम करें और यहां पर उत्तराखण्डी व्यंजन बनाये जांय, सायंकाल को ग्रामीण बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करें......इससे जो आय हो, उसका २५ % इसकी मरम्मत/देख-भाल के लिये सुरक्षित रख दिया जाय, १५ % आय को संबंधित गांव के विकास कार्यों में खर्च किया जाय और शेष राशि से कर्मचारियों की तनख्वाह दी जाय। कुमाऊ/गढ़वाल मंडल विकास निगम इन होटल/रिसार्ट में टूरिस्ट को लाने की व्यवस्था करे। पर्यटन या तीर्थाट्न का असली फायदा तभी होगा, जब सीधे गांव का और वहां के निवासियों की इसमें सहभागिता होगी।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Dhanyavaad Joshi ji aapke amulya vicharon ke liye. Vaastav main aapne jo kaha hai woh satya hai.

Yadi aap thora gaur sey sochey to teerthatan bhi ek prakar ka paryatan he hai-matr astha ka fark hai. Isliye main samajhta hun ki paryatan evam teerthatan dono sath chal saktey hain. Aap kah saktey hain ki 'tourists' ayengey to unkey liye hotel et banegey, tourists gandagai failayengey-to kya teerthyatri khuley akash key neechey soyengey? Jahan tak prashna hai anya prakar ki ganadgi ka to usey to tourists ho ya teerthyatri dono ko swyam rokna hoga sath he yatr ya tour agents ko bhi rokney mein madad kerni padegi. Jis samay 1 lakh teerthyatri achana Rishikesh mein ekatrit ho jatey hain us samay wahan ki safayi ki durdasha wahan rahney wala he janta hai. UK key pass income badhaney ka matr shrot hai tourism ya teerthatan-sadiyon sey teerthatan hota aa raha hai-per main samajhta hun wah ek prakar ka tourism he tha per mun mein shraddha ya astha thi. 'UK Devbhoomi hai is pawan bhoomi ko her prakar sey swachh rakhey'-yeh msg her tourists ko diya jana chahiye.Hotel/guest house etc kahan kitney banengey yeh sarkar ko sunishchit kerna hoga. Per chahye tourism ho ya teerthatan dono ko control aur manage UK wasi he karengey yeh bhi sunishchit kiya jana avashyak hai.

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तराखंड में जो भी कोई प्रयटक आता है तो उसे दोनों दिर्ष्टि  से उत्तराखंड में आने का आनंद आता है पर्यटन की दिर्ष्टि  से और तीर्थाटन की दिर्ष्टि से भी कोई अगर चारधाम यात्रा करने की इच्छा से आता है तो वो एक सैलानी बनाकर भी उत्तराखंड के पर्यटक स्थलों को आनदं लेता है ,और उत्तराखंड से कुछ न कुछ लेकर जाता है देखकर जता है उत्तराखंड में आने से अहि वाली कहावत लागू होती एक पन्त दो काज ,आओ तीर्थों के दर्सन करने और उत्तराखंड के पर्यटक स्थलों आनन्द लेकर चले जाओ !

lpsemwal

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दोनों के बीच जादा फर्क नहीं है, घूमने फिरने से आनंद की प्राप्ति आत्मिक हो या शारीरक अनद पाना लक्य होना चाहिए पर बिना सुबिधाओं के कुछ भी नन्ही हो सकता, जरूरी ये है की आवागमन, रहन, सहन और भोजन भजन की सुबिधायें बड़ाई जानी.

Devbhoomi,Uttarakhand

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देवभूमि उत्तराखंड ने अनादि काल से विश्‍व भर पर्यटकों तथा तीर्थयात्रियों को आकर्षित किया हैं। भारत के विशाल एवं सुंदर विस्‍तार के उत्तर में स्थित, और भव्‍य हिमालय के विस्‍मयकारी सौंदर्य तथा शांत स्‍वच्‍छता में पल रहा यह प्रदेश पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।

 विभिन्‍न धर्मो के पवित्र तीर्थ-हरिद्वार, विश्‍व प्रसिद्ध चार धाम या श्री बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के हिंदुओं के चार तीर्थस्‍थान; हेमकुंड-लोकपाल, नान कमत्‍था तथा मीठा-रीठा साहिब के सिखों के पवित्र तीर्थस्‍थान; और पीरन कलियार तीर्थ यात्रियों को तथा आध्‍यात्मिक तृप्ति के आकांक्षियों को प्राचीन काल से उत्तराखंड की ओर खींचते रहे हैं। पवित्र गंगा तथा यमुना नदियों के उदगम की इस भूमि की समृद्ध सांस्‍‍कृतिक परंपराएं, दुर्लभ प्राकृतिक सौंदर्य और शीतल एवं स्‍फूर्तिदायक जलवायु इसके मुख्‍य आकर्षण रहे हैं।


तथापि, पर्यटन विभाग की सुनियोजित और समन्वित नीति के अभाव में उत्तराखंड की असीम पर्यटन संभाव्‍यता का पूरा लाभ नहीं उठाया जा सका हैं। पर्यटन मूल संरचना में अपर्याप्‍त पूँजी निवेश और निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी इसके लिए काफी हद तक उत्तरदायी रहे हैं।

 अत:, राज्‍य में पर्यटन के विकास के लिए दिशानिर्देश उपलब्‍ध कराने के उद्देश्‍य से सरकार द्वारा एकपर्यटन नीती की घोषणा की गई हैं। नीति का लक्ष्‍य यह है कि पर्यटन का विकास रोजगार तथा आय/राजस्‍व पैदा करने के एक मुख्‍य स्रोत के रूप में और राज्‍य में आर्थिक एवं सामाजिक विकास के एक केंद्र के रूप में किया जाए।

विनोद सिंह गढ़िया

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'उत्तराखंड में पर्यटन हो या तीर्थाटन?' के अंतर्गत आप सभी के विचारों को पढ़कर काफी अच्छा लगा।

जो भी व्यक्ति उत्तराखंड में आते हैं चाहे वे पर्यटक हों या श्रद्धालु सर्वप्रथम उनके मन में यही विचार होता है कि मैं देवभूमि जा रहा हूँ, धार्मिक भावना तो उसके मन में उत्तराखंड आने से पूर्व आ जाती है। श्रद्धालु तो यहाँ के देवों के दर्शन के लिए आते हैं लेकिन जो पर्यटक यहाँ आते हैं  उनकी शुरुवात भी देवों के दर्शन से ही होती है। उत्तराखंड में पर्यटन और तीर्थाटन दोनों का लाभ हर पर्यटक व श्रद्धालु को मिलता है, इससे अच्छी जगह उत्तराखंड के अलावा और कहाँ मिल सकती है। 

 

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