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Tourism in Bagehswar (Uttarakhand) पर्यटन की दृष्टि से बागेश्वर

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विनोद सिंह गढ़िया:
कांडा-विजयपुर

बागेश्वर जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यहाँ के हर एक कोने में प्रकृति ने जो सौन्दर्य लुटाया है अभी भी वह पर्यटकों की पहुँच से दूर है।  कांडा से सिर्फ 6 किलोमीटर और बागेश्वर से 30 किलोमीटर पर स्थित खूबसूरत विजयपुर गांव हिमालय की शानदार वादियों से रूबरू कराता है। यहाँ से प्रकृति का जो आनंद मिलता है शायद ही कहीं और मिले !



इसके अलावा कांडा-पड़ाव स्थित कालिका मंदिर आस्था का केंद्र है।  प्रचलित लोककथाओं के अनुसार माता कालिका की स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य जी द्वारा करवायी गयी थी। पौराणिक गाथाओं के अनुसार पहले इस क्षेत्र में कालसिण अथवा काल  का खौफ था। कहा जाता है कि प्रत्येक रात्रि को काल इस क्षेत्र में बसे आसपास के गांवों में किसी एक मनुष्य को पुकारता था जिस व्यक्ति का नाम पुकारता था उसकी मौत हो जाती थी। इससे समस्त क्षेत्रवासियों में भय व्याप्त हो गया था। इसी दौरान शंकराचार्य जी जब कैलाश माता से वापस आ रहे थे उन्होंने इस जगह पर विश्राम किया। इसी दौरान क्षेत्र के लोगों ने उन्हें इस विपत्ति  से निदान दिलाने के लिए विनती की। शंकराचार्य  ने क्षेत्रवासियों के अनुरोध पर स्थानीय लोहार से नौ कढ़ाई  मंगवाकर उस काल रूप का कीलन करके उसे शिला द्वारा दबा दिया तथा इस जगह पर माता कालिका की स्थापना की। आज भी वह शिला मंदिर प्रांगण में मौजूद है।
शंकराचार्य ने माता कालिका की स्थापना एक पेड़ की जड़ पर की थी 1947 में इस जगह पर मंदिर का निर्माण किया गया जिसे 1998 में क्षेत्रीय जनता के सहयोग से पूर्ण निर्मित मंदिर के बाहर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है।


विनोद सिंह गढ़िया:
[justify]श्री 1008 नौलिंग देव मंदिर - सनगाड़ (कपकोट) बागेश्वर

जैसा कि आप सभी मालूम है उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री जैसे चार धाम इसी देवभूमि में स्थित हैं। यहाँ वर्ष में लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। इसी प्रकार उत्तराखंड में अनेकों ऐसे मंदिर हैं जो अपने क्षेत्र  में प्रसिद्द हैं और उन्हें पर्यटन से जोड़ा जाये तो वे धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि देश और विदेशों में अपनी पहचान बना सकते हैं। बागेश्वर जिले के पोथिंग (कपकोट) स्थित भगवती मंदिर,शिखर स्थित मूलनारायण मंदिर, भनार स्थित  बंजैण मंदिर और सनगाड़ स्थित नौलिंगदेव मंदिर इनके उदहारण हैं। इन्हीं में से एक मंदिर सनगाड़ स्थित श्री 1008 नौलिंगदेव क्षेत्र के लोगों का अपार श्रद्धा का केंद्र है। चैत्र तथा आश्विन महीने के नवरात्र पर मंदिर में पूजा-अर्चना बड़ी धूम-धाम के साथ की जाती है।लोगों का विश्वास है कि पुत्र के लिए परेशान कोई महिला मंदिर में व्रत रखकर 24 घंटे का अखंड दीपक जलाती है तो नौलिंग देव प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना पूरी कर देते हैं।
सनगाड़ गांव में श्री 1008 नौलिंग देव का भव्य तथा आकर्षक मंदिर है। जनश्रुति के अनुसार सदियों  पूर्व शिखरवासी मूलनारायण भगवान की पत्नी माणावती से बंजैण देवता का जन्म हुआ। बंजैण की माता स्नान के लिए पचार गांव स्थित नौले तथा धोबी घाट गईं। स्नान के बाद उन्हें नौले से एक सुंदर हंसता खेलता नन्हा बालक मिला। माणावती सोच में पड़ गईं। उसने सोचा कि वह बगैर बंजैण के यहां आई थी लेकिन वह यहां कैसे पहुंच गया। बालक को गोद में रखकर वह शिखर पर्वत चली गई। वहां बंजैण देवता डलिया में किलकारी मार रहे थे। मूलनारायण तथा माणावती ने दोनों बालकों को अपना मानकर उनका लालन पालन किया। नौले से जन्म लेने से उसका नाम नौलिंग रखा गया। बाद में दोनों को विद्याध्ययन के लिए काशी भेज दिया गया। विद्याध्ययन के बाद मूलनारायण ने बंजैण को भनार गांव तथा नौलिंग को सनगाड़ गांव भेज दिया। तब सनगाड़ गांव में सनगड़िया नामक राक्षस का जबरदस्त आतंक था। वह नरबलि लेता था। नौलिंग तथा राक्षस में जबरदस्त लड़ाई हो गई। अपने पराक्रम से नौलिंग ने उसे मौत के घाट उतार दिया। इस राक्षस को आज भी लोग खिचड़ी अर्पित करते हैं। लोगों का कहना है कि नौलिंग के डंगरिए अवरित होकर लोगों का नाम पुकार उन्हें अपने पास बुलाते हैं और उनके दु:खों का निवारण करते हैं। वहीं क्षेत्र के किसानों की फसल को ओलावृष्टि से बचाते हैं तथा क्षेत्र के लोगों की रक्षा करते हैं।



यहां पर्यटन, विधायक निधि तथा अन्य मदों से अनेक सुंदरीकरण कार्य हुए हैं। पास में ही धरमघर है जहाँ पर्यटक चाय बगान, यहाँ की प्राकृतिक छटा का आनंद ले सकते हैं। यह स्थल अब सड़क मार्ग से भी जुड़ चुका है। पर्यटक यहाँ जनपद मुख्यालय बागेश्वर से रीमा-पचार मार्ग और कांडा-धरमघर दोनों मार्गों से आ सकते हैं।

विनोद सिंह गढ़िया:


स्रोत : अमर उजाला

विनोद सिंह गढ़िया:
श्री 1008 काशिल देव मंदिर



कपकोट तहसील मुख्यालय की ग्राम पंचायत कपकोट की सुरम्य पहाड़ी पर स्थित श्री 1008 काशिल देव मंदिर क्षेत्र के लोगों का अपार श्रद्धा का केंद्र है। मंदिर में हर साल क्षेत्र का सुप्रसिद्ध स्यालदे बिखौती का मेला लगता है। मेले में दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुजन अपनी मनौती पूरी होने पर मंदिर में घंटियां, शंख और पूजा के काम आने वाली अन्य वस्तुएं अर्पित करते हैं।
पिंडारी मार्ग से करीब एक किमी की दूरी पर स्थित कपकोट की सुरम्य पहाड़ी में श्री 1008 काशिल देव का भव्य मंदिर है। मंदिर के पास ही भगवती माता तथा बाण देवता के मंदिर हैं। लोगों  का कहना है कि काशिल देव लोगों की खेती तथा बागवानी को ओलावृष्टि तथा गांव को अनिष्ट से बचाते हैं। काशिल देव को करीब 612 साल पहले राजा रत कपकोटी अपने साथ लाए थे। वह उनके आराध्य देवता थे। राजा कोई भी काम बगैर काशिल देवता की इच्छा के बगैर कोई भी फैसला नहीं लेते थे। कपकोट की शरहद पहले जरगाड़ गधेरे से फुलाचौंर तक थी। इसके तहत कपकोट, गैनाड़, भंडारीगांव, गैरखेत, उत्तरौड़ा, फुलवारी ग्राम पंचायत आते हैं। इन गांवों के लोग स्यालदे बिखौती के मौके पर मंदिर में नए अनाज का प्रसाद अर्पित करते हैं। यहाँ के स्थानीय निवासी बताते हैं कि पहले काशिल देव आवाज लगाकर लोगों को विभिन्न पर्वो के अलावा अमावस्या तथा पूर्णिमा की जानकारी देते थे। काशिल देव भगवान विष्णु के अवतार हैं उन्हें लाल रंग का पीठ्या नहीं चढ़ता है। मंदिर परिसर से हिमालय के विहंगम दृश्य के दर्शन के साथ कपकोट, ऐठान, भयूं, फरसाली, बमसेरा, चीराबगड़ आदि गांवों के सीढ़ीदार खेत, शिखर पर्वत के अलावा पवित्र सरयू नदी के दर्शन होते हैं। मंदिर का धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से विकास होने पर यहां आने वाले श्रद्धालुओं के आने की संख्या में खासी वृद्धि होगी।

स्रोत- अमर उजाला

विनोद सिंह गढ़िया:



बागेश्वर के पर्यटन पर अमर उजाला की एक रिपोर्ट।

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