Author Topic: Fairs & Festivals Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध त्यौहार एवं मेले  (Read 95559 times)

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण संवाददाता: झंडा आरोहण के साथ दूनघाटी का ऐतिहासिक झंडा मेला रविवार से आरंभ हो गया। इस दौरान एक ओर हजारों श्रद्धालु झंडे जी को वस्त्रापर्ण के बाद अपने कंधों पर उठाए उनके आरोहण की तैयारी कर रहे थे, वहीं दरबार में समाधि पर मत्था टेकने, उसकी परिक्रमा करने, झंडे जी पर नए वस्त्र चढ़ाने और लंगर में प्रसाद ग्रहण करने का क्रम भी अनवरत चल रहा था। मेले का मुख्य आकर्षण रहा पंजाब के ग्राम जलादोवाला निवासी 60-वर्षीय करतार सिंह के हाथों झंडे जी को दर्शनी गिलाफ चढ़ाना। झंडे जी को दर्शनी गिलाफ चढ़ाना किसी भी श्रद्धालु के लिए परम सौभाग्य का प्रतीक है। इसकी महत्ता इसी से समझी जा सकती है कि वर्ष 2079 तक के लिए दर्शनी गिलाफ की बुकिंग हो चुकी है। यह बुकिंग कुराली रोड रोपड़ निवासी 55-वर्षीय स्वरूप सिंह के नाम से हुई है। उन्हें अपनी बारी के लिए ठीक 70 वर्ष इंतजार करना पड़ेगा। स्वरूप सिंह पिछले 45 सालों से झंडा मेला में दर्शन के लिए आ रहे हैं। रविवार को झंडे जी पर दर्शनी गिलाफ चढ़ाने वाले करतार सिंह ने वर्ष 1991 में इसकी बुकिंग कराई थी। तब उनकी उम्र 42 साल थी। करतार सिंह ने बताया कि संतान न होने के कारण उन्होंने झंडे साहिब से मन्नत मांगी थी। उनकी मन्नत पूरी हुई और आज वह सुअवसर भी आ गया है, जब वह झंडे जी की सेवा में दर्शनी गिलाफ चढ़ा रहे हैं। करतार सिंह ने बताया कि वर्ष 1965 से लगातार झंडे जी को मत्था टेकने दरबार साहिब पहुंचते हैं। परंपरा के अनुसार झंडे जी को दर्शनी गिलाफ के अलावा मारकीन के 41 और शनील के 21 गिलाफ चढ़ाए जाते हैं। जबकि, गिलाफ अर्पित करने वालों की तादाद हजारों में होती है। गिलाफ अर्पित करने वालों की तादाद हजारों में होती है। इस बार 957 सादे गिलाफ श्रद्धालुओं द्वारा झंडे जी को अर्पित किए गए। विदित हो कि शनील के गिलाफ की भी वर्ष 2025 तक के लिए बुकिंग हो चुकी है।
 

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण संवाददाता: झंडा आरोहण के साथ दूनघाटी का ऐतिहासिक झंडा मेला रविवार से आरंभ हो गया। इस दौरान एक ओर हजारों श्रद्धालु झंडे जी को वस्त्रापर्ण के बाद अपने कंधों पर उठाए उनके आरोहण की तैयारी कर रहे थे, वहीं दरबार में समाधि पर मत्था टेकने, उसकी परिक्रमा करने, झंडे जी पर नए वस्त्र चढ़ाने और लंगर में प्रसाद ग्रहण करने का क्रम भी अनवरत चल रहा था। मेले का मुख्य आकर्षण रहा पंजाब के ग्राम जलादोवाला निवासी 60-वर्षीय करतार सिंह के हाथों झंडे जी को दर्शनी गिलाफ चढ़ाना। झंडे जी को दर्शनी गिलाफ चढ़ाना किसी भी श्रद्धालु के लिए परम सौभाग्य का प्रतीक है। इसकी महत्ता इसी से समझी जा सकती है कि वर्ष 2079 तक के लिए दर्शनी गिलाफ की बुकिंग हो चुकी है। यह बुकिंग कुराली रोड रोपड़ निवासी 55-वर्षीय स्वरूप सिंह के नाम से हुई है। उन्हें अपनी बारी के लिए ठीक 70 वर्ष इंतजार करना पड़ेगा। स्वरूप सिंह पिछले 45 सालों से झंडा मेला में दर्शन के लिए आ रहे हैं। रविवार को झंडे जी पर दर्शनी गिलाफ चढ़ाने वाले करतार सिंह ने वर्ष 1991 में इसकी बुकिंग कराई थी। तब उनकी उम्र 42 साल थी। करतार सिंह ने बताया कि संतान न होने के कारण उन्होंने झंडे साहिब से मन्नत मांगी थी। उनकी मन्नत पूरी हुई और आज वह सुअवसर भी आ गया है, जब वह झंडे जी की सेवा में दर्शनी गिलाफ चढ़ा रहे हैं। करतार सिंह ने बताया कि वर्ष 1965 से लगातार झंडे जी को मत्था टेकने दरबार साहिब पहुंचते हैं। परंपरा के अनुसार झंडे जी को दर्शनी गिलाफ के अलावा मारकीन के 41 और शनील के 21 गिलाफ चढ़ाए जाते हैं। जबकि, गिलाफ अर्पित करने वालों की तादाद हजारों में होती है। गिलाफ अर्पित करने वालों की तादाद हजारों में होती है। इस बार 957 सादे गिलाफ श्रद्धालुओं द्वारा झंडे जी को अर्पित किए गए। विदित हो कि शनील के गिलाफ की भी वर्ष 2025 तक के लिए बुकिंग हो चुकी है।
 

पंकज सिंह महर

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पवित्र तालाब में स्नान करते लोग


देहरादून, जागरण संवाददाता: चैत्र कृष्ण पंचमी, समय-सायं 3 बजकर 45 मिनट, सूर्य की ढलती हुई रश्मियां दरबार साहिब की मीनारों और गुंबदों पर पड़ रही हैं। सज्जादा नसीन महंत देवेंद्रदास महाराज का आदेश मिलते ही झंडा जी को चढ़ाने की प्रक्रिया आरंभ हुई। धीरे-धीरे हाथों, रस्सों व बल्लियों के सहारे मखमली आवरण ओढ़े झंडे जी ऊपर उठने लगे। समय 4 बजकर 41 मिनट, झंडे जी कैंचियां छोड़कर सीधे हुए और चारों दिशाओं में गूंज उठी श्री गुरु रामराय जी महाराज की जय-जयकार। दूर आकाश में एक बाज आया और झंडे जी की परिक्रमा कर नजरों से ओझल हो गया। यही वह क्षण है,आस्था की दीवार भक्तजनों के मन में विश्र्वास की पराकाष्ठा को छू रही है। पुराने झंडे जी का उतरना और नए झंडे जी का चढ़ाना एक ऐसा पल है, जिसका साक्षी बनने की तमन्ना हर श्रद्धालु के मन में होती है। रविवार की शाम देश-विदेश से दरबार साहिब पहुंचे लाखों श्रद्धालुओं ने इस अलौकिक एवं दिव्य दृश्य को अपने मन-मंदिर में उतारा। सुबह आठ बजे पुराने झंडे जी को उतारने की रस्म आरंभ हुई और एक घंटे तक यह प्रक्रिया चली। इसके बाद करीब 104 फीट ऊंचे झंडे जी को दूध, दही व गंगाजल से स्नान कराया गया और फिर चंदन का लेप कर नए वस्त्र पहनाने क्रम शुरू हुआ। झंडे जी की पूजा के उपरांत उन्हें मारकीन के सादे गिलाफ, फिर शनील के गिलाफ और आखिर में गहरे लाल रंग का मखमली गिलाफ आवरण पहनाया गया। यही दर्शनी गिलाफ है। झंडे जी के शीर्ष पर मोर पंख और चंवर लगाई गई। इसके अलावा श्रद्धालुओं द्वारा रंगीन दुपट्टे, स्कार्फ, रुमाल आदि भी झंडे जी को अर्पित किए गए। जैसे ही झंडे जी अपने राजसी ठाट के साथ खुले आकाश में लहराए, संगतों की परिक्रमा का सिलसिला आरंभ हो गया।
 

हेम पन्त

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कर्णप्रयाग (चमोली)। उत्तराखंड के प्रसिद्ध नंदाधाम नौटी में इस बार 21 से 23 मार्च तक मेला आयोजित किया जायेगा।

नौटी में सोमवार को मेला कमेटी की बैठक में मेले को आर्कषक व लोकप्रिय बनाने के लिए पदाधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गयी। इस वर्ष विश्व वानिकी दिवस से प्रारंभ होने वाले नंदादेवी हरियाली मेले में रूपकुंड रहस्य नाटिका, भाषण व चित्रकला प्रतियोगिता सहित विभिन्न विभागों के स्टाल मेले के आकर्षण के केन्द्र होंगे। मेला समिति अध्यक्ष भुवन नौटियाल ने बताया कि मेला संचालन को राज्य सरकार की ओर से 50 हजार की स्वीकृति प्रदान की गयी है।

हेम पन्त

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Source : Dainik Jagran

लोहाघाट (चंपावत)। मीठे रीठे के चमत्कार के लिए प्रसिद्ध गुरूद्वारा श्री रीठासाहिब में इस वर्ष होने वाले बैशाखी मेले की तैयारियां युद्ध स्तर पर शुरू हो गयी हैं। मेले को इस बार आकर्षक रूप दिया जायेगा। कार सेवा प्रमुख बाबा तरसेम सिंह के नेतृत्व में इन दिनों विभिन्न निर्माण कार्य किए जा रहे है। मंगलवार के तड़के से ही यहा के लंगर हॉल के भवन में कंकरीट करने का कार्य शुरू किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में कार सेवकों ने हिस्सा लिया। नानकमत्ता से बाबा टहल सिंह, दिल्ली से बाबा सुरेन्द्र सिंह, बाबा बचन सिंह, पीलीभीत से बाबा पाल सिंह के अलावा पंजाब, यूपी, बिहार, हरियाणा एवं उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों से सात सौ कारसेवक इस कार्य में देर रात तक जुटे रहे। इग्लैंड से आए तीर्थयात्रियों एवं महिलाओं ने भी कार सेवा में हिस्सा लिया। कार सेवा के लिए नानकपुरी टाडा से कार सेवकों का जत्था भी पहुंचा हुआ है। गुरूद्वारा प्रबंधक जत्थेदार बाबा श्याम सिंह की पहल पर गुरूद्वारा परिसर में पर्यटन विभाग द्वारा हाईटैक शौंचालय, मुख्य प्रवेश द्वार एवं स्नान घाट का भी निर्माण किया जा रहा है। कार सेवा प्रमुख बाबा तरसेम सिंह ने बताया कि इस वर्ष गुरूद्वारे द्वारा 50 हजार तीर्थयात्रियों के ठहरने एवं उनके लंगर की व्यवस्था की गई है। इस स्थान में मेले के प्रति देश विदेश के तीर्थयात्रियों के रूझान को देखते हुए इस वर्ष मेले की अवधि को बढ़ाये जाने पर विचार चल रहा है।

K C Joshi

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चौखुटिया(अल्मोड़ा): क्षेत्र का प्रसिद्घ धार्मिक मेला 'आठों कौतिक' बुधवार 1 अप्रैल से शुरू हो रहा है। इस बार यह मेला तीन दिनों तक चलेगा तथा इस दौरान प्रसिद्घ लोक कलाकार कुमाऊंनी व गढ़वाली लोक संस्कृति के रंग बिखेरेगे। साथ ही पारंपरिक लोक विधायें छोलिया नृत्य, छपेली, श्रंकार व भगनौल की प्रस्तुति देखने को मिलेगी। इसके लिये समिति द्वारा व्यापक तैयारियां चल रही है।

मेले का शुभारंभ 1 अप्रैल को 11 बजे प्रमुख मीना कांडपाल तथा जीएस मटियानी द्वारा दीप प्रच्चवलित कर होगा। इसके बाद बरलगांव महिला समूह द्वारा मैया की आरती के साथ ही झोड़ा-नृत्य वहीं लोक गायक हीरा सिंह राणा एंड पार्टी द्वारा रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी जायेगी। सायं अन्य टीमों की ओर से कार्यक्रम होंगे। दूसरे दिन सुप्रसिद्घ गायिका कल्पना चौहान व राजेन्द्र चैहान सहित अन्य स्थानीय कलाकार व स्कूली बच्चे अपनी प्रस्तुतियां देंगे।

मुख्य मेला 3 अप्रैल को लगेगा तथा मुख्य आकर्षक बलि प्रथा होगी। इस बार भटकोट थोक की ओर से नगाड़े निशानों के साथ बलि के लिये मेला स्थल पर भैंसा-जतिया लाया जायेगा तथा प्रथानुसार अगला बीड़ा उड़लीखान थोक द्वारा ग्रहण किया जायेगा। सायं पुरस्कार वितरण के साथ ही मेला को समापन होगा। इस बीच समिति के लोग व्यापक तैयारी में जुटे है।

पंकज सिंह महर

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Chaitola, Kumaon’s very own harvest festival
« Reply #146 on: April 09, 2009, 01:05:17 PM »
Chaitola, Kumaon’s very own harvest festival 
B D Kasniyal




India celebrates number of harvesting festivals like Pongal, Bihu and Bashakhi. A similar festival is also celebrated in the Kumaon region here, especially in the eastern districts of Kumaon. Chaitola, a local festival celebrates the new crop.

In the month of April the villages of Pithoragarh district smear in a unique flavour of festivity of Chaitola, which is celebrated from 10th day (dashmi) onwards till the last day of the Shukla Paksha in the month of Chaitra. An umbrella shaped posture of the local deities is carved around a log decorated with the colourful scarfs. The umbrella, considered as a local deity or Bhumia Devta, is offered Harela leaves, which are considered to be sacred as per the rituals. The deity (umbrella) thereafter travels every village where the villagers pray for the protection for their Rabi crop and health of their livestock. As per the other ritual of the festival married girls get gifts from their parents and brothers.

“This festival not only celebrates the love and affection between sisters and their brothers but is also celebrated to seek blessings of our local deity,” said Mohan Singh Rawat, a resident of Pithoragarh town. The peculiar thing about the Chaitola is that women prepare rice papad. Men folk are totally debarred from the entire process and these papads along with other preparation are gifted to village girls who offer these preparations to the local diety. In the villages of Sore valley, the local deity Devalsamet is worshipped and is carried out to travel all the 22 villages. Besides these, some other deities are also worshipped in diiferent parts of the district.

Dr Ram Singh, a historian believes in the old times when there were tribal groups, the mother of the clan happened to be the head of the family. These mother goddesses were dominant in the entire Himalayan region and this festival reflects their influence in the region. The festival ends with the sound of Damau, a traditional drum, at the temple of the local deities.

Devbhoomi,Uttarakhand

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माघ मेला, उत्तरकाशी

माघ मेला उत्तरकाशी इस जनपद का काफी पुराना धार्मिक/सांस्कृति तथा व्यावसायिक मेले के रूप में प्रसिद्ध है। इस मेले का प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन पाटा-संग्राली गांवों से कंडार देवता के साथ -साथ अन्य देवी देवताओं की डोलियों का उत्तरकाशी पहुंचने पर शुभारम्भ होता है। यह मेला 14 जनवरी मकर संक्राति से प्रारम्भ हो 21 जनवरी तक चलता है। इस मेले में जनपद के दूर दराज से धार्मिक प्रवृत्ति के लोग जहाँ गंगा स्नान के लिये आते है। वहीं सुदूर गांव के ग्रामवासी अपने-अपने क्षेत्र के ऊन एवं अन्य हस्तनिर्मित उत्पादों को बेचने के लिये भी इस मेले में आते है। इसके अतिरिक्त प्राचीन समय में यहाँ के लोग स्थानीय जडी-बूटियों को भी उपचार के लिये लाते थे किन्तु वर्तमान समय में इस पर प्रतिबन्ध लगने के कारण अब मात्र ऊन आदि के उत्पादों का ही यहाँ पर विक्रय होता है।

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वर्तमान समय में यह मेला धार्मिक/ सांस्कृतिक एवं विकास मेले के अतिरिक्त पर्यटक मेले के रूप में भी अपनी पहचान बना रहा है। इसका मुख्य कारण वर्तमान विभाग द्वारा यहाँ के पर्यटक स्थलों के विकास एवं प्रचार/प्रसार की मुख्य भूमिका रही है। चूंकि यह मेला माह जनवरी में आयोजित होता है जिसके कारण उस समय पहाडों में अत्यधिक बर्फ रहती है पर्यटन विभाग द्वारा दयारा बुग्याल को स्कीइंग सेंटर के रूप में विकसित/प्रचारित करने के कारण इस क्षेत्र में काफी पर्यटकों का आवागमन होता है।


भविष्य में इस प्रकार के आयोजनों से माघ मेले में देशी/विदेशी पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होने की पूरी आशा है। माघ मेला उत्तरकाशी का यदि सम्यकरूप से प्रचार-प्रसार किया जाय एवं इसे महोत्सव का रूप दिया जाय तो निसन्देह जहाँ एक ओर इससे पर्वतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार होगा वहीं देशी-विदेशी पर्यटकों के आवागमन में वृद्धि के साथ पर्यटन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

Devbhoomi,Uttarakhand

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पिरान कलियर उर्स
उत्तरांचल राज्य के रुड़की शहर में पिरान कलियर उर्स का आयोजन होता है। मेले का आयोजन रूडकी के समीप ऊपरी गंग नहर के किनारे जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पिरान कलियर गांव में होता है। इस स्थान पर हजरत मखदूम अलाउदीन अहमद ‘‘साबरी‘‘ की दरगाह है। यह स्थान हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता का सूत्र है। यहां पर हिन्दु व मुसलमान मन्नते मांगते है व चादरे चढाते है। मेले स्थल पर दरगाह कमेटी द्वारा देश/विदेश से आने वाले जायरिनों/श्रद्वालुओं के लिये आवास की उचित व्यवस्था है।दरगाह के बाहर खाने पीने की अच्छी व्यवस्था उपलब्ध है।
गढवाल मण्डल विकास निगम द्वारा संचालित पर्यटन आवासगृह उपलब्ध है जिसके आवास एवं खान-पान की व्यवस्था उपलब्ध है। डाकखाना ,पुलिस चौकी, दूरसंचार विभाग के पी0सी0ओ0 कार्यरत है पीने का पानी की व्यवस्था दरगाह कमेटी द्वारा की जाती है मेले के समय हैण्ड पम्पों की व्यवस्था एवं शौचालय आदि का सुविधा उपलब्ध है स्थानीय स्तर पर मेटाडोर द्वारा यातायात की सुविधा उपलब्ध है। रवीउल अब्बल, चाँद के अनुसार मेले के आयोजन की तिथि तय की जाती है एवं मेला एक माह तक चलता है ।
यहां पर प्रत्येक वर्ष उर्स का आयोजन होता है। उर्स की परम्परा सात सौ वर्षो से भी अधिक पुरानी है। इस अवसर पर यहां लाखों की संख्या में जायरीन (श्रद्धालु) देश व विदेश से आते है। पारम्पारिक सूफीयाना कलाम व कव्वालियां उर्स के समय यहां पर विशेष आकर्षण होता है । उत्तराखण्ड पर्यटन द्वारा वार्षिक उर्स मेले के आयोजन हेतु विगत वर्ष रू0 3.25 लाख की अनुदान धनराशि भी उपलब्ध कराई गई थी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बैकुण्ठ चतुर्दशी मेला, श्रीनगर
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उत्तर प्रदेश के गढ़वाल अंचल में श्रीनगर में बैकुंठ चतुर्दशी का मेला प्रतिवर्ष लगा करता है। विभिन्न पर्वों की भांति वैकुण्ठ चतुर्दशी वर्षभर में पडने वाला हिन्दू समाज का महत्वपूर्ण पर्व है। सामान्यतः दीपावली तिथि से 14 वे दिन बाद आने वाले साल का यह पर्व धार्मिक महत्व का है। इस अवसर पर विभिन्न शिवालयों में पूजा/अर्चना साधना का विशेष महत्व है। गढवाल जनपद के प्रसिद्ध शिवालयों श्रीनगर में कमलेश्वर तथा थलीसैण में बिन्सर शिवालय में इस पर्व पर अधिकाधिक संख्या में श्रृद्धालु दर्शन हेतु आते हैं तथा इस पर्व को आराधना व मनोकामना पूर्ति का मुख्य पर्व मानते हैं। श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मन्दिर पौराणिक मन्दिरों में से है। इसकी अतिशय धार्मिक महत्ता है, किवदंती है कि यह स्थान देवताओं की नगरी भी रही है। इस शिवालय में भगवान विष्णु ने तपस्या कर सुदर्शन-चक्र प्राप्त किया तो श्री राम ने रावण वध के उपरान्त ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति हेतु कामना अर्पण कर शिव जी को प्रसन्न किया व पापमुक्त हुए।

अनुक्रम [छुपाएँ]
१ कथा
२ ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि
३ वर्तमान वैकुण्ठ चतुर्दशी मेला
४ श्रीनगर की भौगोलिक स्थिति
५ कैसे पहुंचें
 


[संपादित करें] कथा
वैकुण्ठ चतुर्दशी कथा का एक वर्णन इस प्रकार है- दिया था चक्र शुक्ता कार्तिक को, करी जब भाव से पूजा श्री चोदश शुक्ला कार्तिक को, दिया जब दर्शन शिव गिरिजा। तभी से शुक्ला चौदश का हुआ विख्यात यह मेला। पुत्र वरदान शंकर दे, काटकर पाप का झेला। स्पष्ट है कि इस स्थान की प्राचीन महत्ता के कारण कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चौदवीं तिथि को भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्राप्ति का पर्व माना गया है। इसे उपलब्धि का प्रतीक मानकर आज भी श्रृद्धालू पुत्र प्राप्ति की कामना से प्रतिवर्ष इस पर्व पर रात्रि में साधना करने हेतु मन्दिर में आते हैं। तो अनेक श्रृद्धालु दर्शन व मोक्ष के भाव से इस मन्दिर में आते हैं। जिससे उत्तराखण्ड के गढवाल क्षेत्र में यह मेला एक विशिष्ठ धार्मिक मेले का रूप ले चुका है।


[संपादित करें] ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि
वैकुण्ठ चतुर्दशी मेले के महत्व के साथ-साथ कमलेश्वर मंदिर के महत्व का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भी समझना आवश्यक है। श्रीनगर जो प्राचीन काल में श्री क्षेत्र कहलाता था। त्रेता युग में रावण वधकर रामचन्द्र जी द्वारा यहॉ पर 108 कमल प्रतिदिन एक माह तक भगवान शिव का अर्पण किया जाने का वर्णन मिलता है। प्रतिवर्ष कार्तिक मास की त्रिपुरोत्सव पूर्णमासी को जब विष्णु भगवान ने सहस कमल पुष्पों से अर्चनाकर शिव को प्रसन्न कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था, उस आधार पर वैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु दम्पत्ति रात्रि को हाथ में दीपक धारण कर भगवान शंकर को फल प्राप्ति हेतु प्रसन्न करते हैं।


[संपादित करें] वर्तमान वैकुण्ठ चतुर्दशी मेला
वैकुण्ठ चतुर्दशी मेला वर्तमान में एक पर्व व पूजा आराधना तक सीमित नहीं है। श्रीनगर की बढती आबादी व गढवाल के इस शहर की केन्द्रीय भौगोलिक स्थिति व इस शहर के शैक्षणिक केन्द्र (विश्व विद्यालय, पॉलिटेक्निक, आई.टी.आई. ) होने के कारण एक व्यापक धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजन का स्वरूप ले चुका है। प्रतिवर्ष नगरपालिका परिषद श्रीनगर द्वारा वैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व से लगभग 5-6 दिन तक व्यापक सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद प्रतियोगिताओं व स्थानीय संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों को और व्यापक स्वरूप प्रदान कर तथा इनका प्रचार प्रसार कर कमलेश्वर मन्दिर से सम्बन्धित पौराणिक/ धार्मिक मान्यताओं को उजागर कर उन पर आधारित कार्यक्रम तैयार कर इस अवसर पर पर्यटकों को भी आकर्षित किया जा सकता है।


[संपादित करें] श्रीनगर की भौगोलिक स्थिति
श्रीनगर शहर जो कि ऋषिकेश से 107 कि.मी.पौडी से 29 कि.मी.कोटद्वार से 135 कि.मी.दूरी पर है व बद्री-केदार यात्रा मार्ग पर स्थित है पर्यटकों के आवागमन के दृष्टिकोण से उपयुक्त स्थल है।इस आयोजन को व्यवस्थित कर व व्यापक स्वरूप देकर पर्यटकों के उपयोग हेतु प्रचारित किया जा सकता है।


[संपादित करें] कैसे पहुंचें
श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवस्थित है तथा चार धाम यात्रा मार्ग पर पडता है एवं राज्य के अन्य मुख्य शहरों से सड़क मार्ग से जुडा है । बस, टैक्सी तथा अन्य स्थानीय यातायात की सुविधायें उपलब्ध है ।


निकटतम रेलवे स्टेशन कोटद्वार- 137 किमी एवं ऋषिकेश 105 किमी0
निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट 123 किमी0

source :http://hi.wikipedia.org/

 

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