Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन

Kalu Singh Mahara, First Freedom Fither of Uttarakhand-कालू सिंह महरा

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने में उत्तराखंड के शूरवीर भी पीछे नहीं रहे थे। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिन्द सेना में शामिल आठ सौ गढ़वाली सैनिकों ने अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया था।

आधिकारिक जानकारी के अनुसार नेताजी सुभाषचंद्र की फौज के 23 हजार 266 सैनिकों में लगभग 2500 सैनिक गढ़वाली थे जिनमें से आठ सौ जाँबाज गढ़वाली सैनिक देश की आजादी के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे। इसी तरह लेफ्टिनेंट ज्ञानसिंह ने 17 मार्च 1945 को अपने 14 जाँबाज साथियों के साथ ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ते हुए देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। इस दौरान भारत छोड़ो आंदोलन में उत्तराखंड के 21 स्वतंत्रता सेनानियों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी।

नेताजी ने कैप्टन बुद्धिसिंह रावत को अपना निजी सहायक और पितृशरण रतूडी को कर्नल और बाद में सुभाष रेजीमेंट की पहली बटालियन का कमांडर नियुक्त किया था। सूबेदार चंद्रसिंह नेगी कर्नल और बाद में सिंगापुर में ऑआफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल के कमांडर तथा सूबेदार देवसिंह दानू मेजर बनने के बाद उनकी अंगरक्षक गढ़वाली बटालियन के कमांडर नियुक्त हुए थे।

उत्तराखंड के आजादी के परवानों में देशभक्ति का जज्बा इतना प्रबल था कि चंद्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में पहाड़ी फौजियों ने पेशावर में आजादी के लिए आंदोलन कर रहे लोगों पर गोलियाँ चलाने से इनकार कर दिया था।

सन् 1857 के आजादी के पहले शंखनाद के दौरान भी उत्तराखंड की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी। उस दौरान धार्मिक और सामाजिक विसंगतियों के कारण जनता बँटी हुई थी। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने लोगों को एकजुट करने के लिए उत्तराखंड से ही राष्ट्रीय चेतना यात्रा की शुरुआत की थी। कालू महरा को उत्तराखंड का पहला स्वतंत्रता सेनानी होने का गौरव हासिल है। उन्होंने सैन्य संगठन करके अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक आंदोलन चलाया था।

महात्मा गाँधी के नमक आंदोलन में भी उत्तराखंड के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी की साबरमती से डांडी तक की यात्रा में उनके साथ जाने वाले 78 सत्याग्रहियों में उत्तराखंड के तीन सत्याग्रही ज्योतिराम कांडपाल,भैरव दत्त जोशी और खड्ग बहादुर भी शामिल थे।

सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उत्तराखंड के 21 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए तथा हजारों आंदोलनकारी गिरफ्तार किए गए। आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी और दमन के बाद उत्तराखंड में जगह-जगह अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन हुए। खुमाड (सल्ट) में आंदोलनकारियों पर हुई फायरिंग में दो सगे भाई गंगाराम और खीमदेव तथा बहादुर सिंह और चूडामणि शहीद हो गए थे।

महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में सल्ट की सक्रिय भागीदारी के कारण इसे 'भारत की दूसरी बारढोली' से गौरवान्वित किया था। (source - webdunia.com)

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