Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन

Know Your State Uttarakhand-जानिये अपने राज्य उत्तराखंड को

<< < (3/4) > >>

Devbhoomi,Uttarakhand:
टिहरी के बारे में
=============

ऐसा कहा जाता है कि मालवा के राजकुमार कनकपाल एक बार बद्रीनाथ जी (जो आजकल चमोली जिले में है) के दर्शन को गये जहाँ वो पराक्रमी राजा भानु प्रताप से मिले। राजा भानु प्रताप उनसे काफी प्रभावित हुए और अपनी इकलौती बेटी का विवाह कनकपाल से करवा दिया साथ ही अपना राज्‍य भी उन्‍हें दे दिया। धीरे-धीरे कनकपाल और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ एक-एक कर सारे गढ़ जीत कर अपना राज्‍य बड़ाती गयीं। इस तरह से सन्‌ 1803 तक सारा (918 सालों में) गढ़वाल क्षेत्र इनके कब्‍जे में आ गया।

Devbhoomi,Uttarakhand:
क्या आप ये जानते हैं


मन्सार नामक स्थान पर सीता माता धरती में धरती में समाई थी। यह स्थान उत्तराखण्ड के पौडी जिले में है और यहाँ प्रतिवर्ष एक मेला भी लगता है।
कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मन्दिर श्रीनगर का सर्वाधिक पूजित मन्दिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु को भगवान शंकर से इसी स्थान पर सुदर्शन चक्र मिला था।
सती अनसूइया ने उत्तराखण्ड में ही ब्रह्म, विष्णु, एवँ महेश को बालक बनाया था।
डोईवाला भगवान दत्तात्रेय के २ शिष्यों की निवास भूमि है। यही नहीं, भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने भी यहीं प्रायश्चित किया था।

Devbhoomi,Uttarakhand:
क्या आप ये जानते हैं ?

किरात जाति के अलावा कुमाऊँ क्षेत्र में हिमालय के उत्तरांचल में निवास करने वाली भोटिया जाति का भी प्रभुत्व रहा। भोटिया शब्द मूलतः बोट या भोट है। तिब्बत को भोट देश या भूटान भी कहा जाता है तथा उस देश से संबंधित होने के कारण वहाँ के निवासियों को भोटिया कहा गया। भोटियों की भाषा तिब्बती कही गई। यह तिब्बती से निकटता रखती है। जोहार दारमा, ब्याँस तथा चौदाँस की भाषा में स्थानगत विभेद पाए जाते हैं

Devbhoomi,Uttarakhand:
क्या आप ये जानते है ?

अठारहवीं सदी के अंतिम दशक में आपसी दुर्भावनाओं व राग-द्वेष के कारण चंद राजाओं की शक्ति बिखर गई थी। फलतः गोरखों ने अवसर का लाभ उठाकर हवालबाग के पास एक साधारण मुठभेड़ के बाद सन्‌ १७९० ई. में अल्मोड़ा पर अपना अधिकार कर लिया।

 गोरखा शासन काल में एक ओर शासन संबंधी अनेक कार्य किए गए, वहीं दूसरी ओर जनता पर अत्याचार भी खूब किए गए। गोरखा राजा बहुत कठोर स्वभाव के होते थे तथा साधारण-सी बात पर किसी को भी मरवा देते थे। इसके बावजूद चन्द राजाओं की तरह ये भी धार्मिक थे। गाय, ब्राह्मण का इनके शासन में विशेष सम्मान था।

Devbhoomi,Uttarakhand:
क्या आप ये जानते हैं ?

हेनरी रामजे के विषय में बद्रीनाथ पांडे लिखते हैं- 'उनको कुमाऊँ का बच्चा-बच्चा जानता है। वे यहाँ के लोगों से हिल-मिल गए थे। घर-घर की बातें जानते थे। पहाड़ी बोली भी बोलते थे। किसानों के घर की मंडुवे की रोटी भी खा लेते थे।' अंग्रेजों ने शासन व्यवस्था में पर्याप्त सुधार किए, वहीं अपने शासन को सुदृढ़ बनाने के लिए कठोरतम न्याय व्यवस्था भी की।

 १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्रेम में कुमाऊँ के लोगों की भागीदारी उल्लेखनीय रही, परन्तु १८७० ई. में अल्मोड़ा के शिक्षित व जागरूक लोगों ने मिलकर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याओं के समाधान के लिए चंद्रवंशीय राजा भीमसिंह के नेतृत्व में एक क्लब की स्थापना की। १८७१ में 'अल्मोड़ा अखबार' का प्रकाशन प्रारंभ किया। १५ अगस्त, १९४७ को सम्पूर्ण भारत के साथ कुमाऊँ भी स्वाधीन हो गया।

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version