गढ़वाल मैं इसाई कमिश्नरों के सामाजिक,आर्थिक कार्यकर्मों के प्रति निर्बल शिल्पकार वर्ग की लालसा और धर्मांतरण की बढती रूचि उच्च वर्ग के लिए एक चुनोती थी!फलस्वरूप सर्वणों द्वारा इसाई कर्ण की प्रविर्ती को रोकने के उद्देश्य से शिल्पकारों के मध्य उनके सामाजिक, आर्थिक पिछडेपन को दूर करने के लिए प्रयत्न किये गए,इन प्रयासों मैं १९१० को दुग्गाडा मैं पहला आर्य समाजी स्कूल स्थापित किया गया था!
तत्पश्चात १९१३ मैं स्वामी श्र्धानंद द्वारा भूख हड़ताल मैं आर्य समाज का स्कूल प्रारंभ किया गया,गढ़वाल मैं आर्य समाज से इन प्रारम्भिक प्रयत्नों से एक ओर जन्हाँ आर्य समाज के कार्य छेत्र मैं अपेछित विर्धि हुई,वहीँ दूसरी ओर शिल्पकार मैं शिछा के प्रति बढती रूचि के कारण ईसाईकरण के प्रयास शिथिल पड़ने लगे!
गढ़वाल मैं आर्य समाज द्वारा शिल्पकारों के मध्य उनके शैछिक पिछडेपन को दूर करने के की भी अनुकूल प्रतिकिर्या हुई,प्रथम विश्व युद्घ से पूर्व तक गढ़वाल मैं एक भी शिल्पकार इंट्रेस परीछा उतीरण नहीं था!
गढ़वाल मैं आर्य समाज को विस्तार देकर शिल्प्वर्ग की सहानुभूति अपने पछ मैं करने के उद्देश्य से आर्य प्रतिनिधि सभा के उपदेशक सन १९२० मैं गढ़वाल के प्रमुख नगरो कोटद्वार,दुगड्डा,लेंसिदौन,प ोडी,श्रीनगर,तक पहुंचे! इसके उपरांत गुरुकुल कांगडी के प्रचारक जिनमें नरदेव शास्त्री प्रमुख ब्यक्ति थे!
गढ़वाल मैं आर्य समाज के आन्दोलन के रूप मैं गाँवों तक पहुँचने के उद्देश्य से नगर-कस्बों के पश्चात् चेलू सैन,बीरोंखाल,उदयपुर,अवाल्सु ं,खाटली,रिन्ग्वाद्स्युं आदि ग्रामीण छेत्रों मैं आर्य समाज की शाखाएं ओए स्कूल स्थापित कर इसाई मिशनरी की चुनोती को स्वीकार किया गया!