ऋषिकेश एक तपस्थली
उत्तराखण्ड के चारों धाम का प्रवेश द्धार ऋषिकेश यूं तो विश्व मानचित्र में योग अध्यात्म एवं धार्मिक पर्यटन में विश्व विख्यात हो चुका है किन्तु प्राचीन व पौराणिक समय से ही इस तीर्थ नगरी में ऋषि-मुनियों ,साधु-सन्यासियों के अलावा बहुत से महापुरूषों ने तप भी किया है अगर हम ऋषिकेश को तपस्थली के रूप में जाने तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी।
पौराणिक साहित्य में इस स्थान के लिए अनेको नाम आये है यथा कुब्जाम्रक क्षेत्र तथा अब ऋषि केश । महाभारत वनपर्व 3082 कुब्जाम्रक तीर्थ का उल्लेख इस प्रकार है
तत:कुब्जाम्रक गच्छेतीथे सेवी यथा क्रमम् ।
गो सहस्रमवाप्रोति स्वर्ग लोकं च गच्छति।।
इसमें सह्स्र गोदान का फल और स्वर्ग लोक की प्राप्ति के सुख का वर्णन किया गया है। कालिका गम 20. 25 के अनुसार महानगर के किसी कोण पर जब एक ऎसी बस्ती को निबिष्ट किया जाये जो शोर गुल से दुर शान्त स्थान पर हो तपस्वी साधु सन्यासी वानप्रस्थी कोलाहल से बचने के लिए जिस जगह पर रहे उस स्थान को कुब्जक कहा जाता है।
तपस्थली के रूप में ऋषिकेश---- देवताओ से सम्बन्धित ऋषि-मुनियों की तपस्थली पर्वतों की तलहटी में बहती देवनदी गंगा के कारण यह स्थान अति पवित्र माना गया है। स्कन्द पुराण में वर्णन आता है की ऋषिकेश में चनद्रेश्वर मंदिर जहां स्थित है उसका सम्बन्ध चन्द्रमा द्वारा क्षय रोग से निवृत्ति के लिए की गयी तपस्या के फलस्वरूप है । यही पर चन्दमा ने क्षय रोग से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी । वाल्मीकी रामायण में व्णरन आता ह कि भगवान राम न ने वैराग्य से परिपूर्ण यही विचरण किया था ।शिवपुराण से पता चलता है कि ब्रह्रमानुत्री संध्या ने भी यहां तप कर शिव के दर्शन किये थे व बाद में अरून्धती के नाम से प्रसिद्ध हुई ।
ऋषिकेश नाम प्रचलित होने के सन्दर्भ में विशालमणि शर्मा ने लिखा है ऋषक नाम है इन्द्रि यो का, का जहां शमन किया जाये । ऋषिक इन्द्रियों को जीत कर रैभ्य मुनि ने ईश इन्द्रयों के अधिपति विष्णु को प्राप्त किया इसलिए( ह्रषीक+ईश+ अ+ इ =ए गुण) हृषी केश यह नाम सटीक है। धीरे धीरे यह ऋषिकेश के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।
केदारखण्ड पुराण के अनुसार गंगा द्धारोत्तर विप्र स्वर्ग स्मृता बुधे यस्य दर्शन मात्रेण वियुक्तों भव बन्धनों अर्थात गंगाद्धार हरिद्धार के उपरान्त केदार भूमि स्वर्ग भूमि के समान शुरू हो जाती है ,जिसमें प्रवेश करते ही प्राणी भव बन्धनों से मुक्त हो जाता है।राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने के उपरान्त जो चार पुत्र रह गये थे उसमें से एक ह्रषीकेतु ने भी यहां तप किया था ।
इसी क्रम में सतयुग में सोमशर्मा ऋषि ने ह्रषीकेश नरायण की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हे वर मांगने को कहा था भगवान विष्णु ने उन्हे वर प्रदान कर दर्शन दिये जिसका ज्रिक केदारखण्ड में मिलता है । यहां के तीन सिद्ध पीठों में यथा वीरभद्रेश्र,चन्द्रेश्वर व सोमेश्वर में रात्रि में आलौकिक अनुभूतियां होने के बारे मे बताया जाता है ।चन्द्रेश्वर में चन्द्रमा ने तप किया सोमश्वर में सोमदेव नामक ऋषि ने अपने पांव के अंगूठे के बल खडे हो शिव की कठिन पर तपस्या की ।बालक ध्रुव ने भी विष्णु भगवान की तपस्या की प्रतीक स्वरूप ध्रुवनारायण मंदिर बना है ।
मुनि की रेती व तपोवन के उत्तर में ऋषिपर्वत के नीचे के भाग में अर्थात गंगा के तट पर एक गुफा में शेष जी स्वंय निवास करते है । इस तपोवन क्षेत्र में अनेको गुफाए थी जहां पूर्वकाल में अनेको ऋषिमुनि तपस्यारत रहते थे ।शिव पुराण खण्ड आठ अध्याय 15 के अनुसार गंगा के पश्चिमी तट पर तपोवन है जहां शिवजी की कृपा से लक्ष्मण जी पवित्र हो गये थे यहां लक्ष्मण शेष रूप में तथा शिवजी लक्ष्मणेश्वर के नाम से विख्यात हुए ।
ऋषिकेश के निकट शत्रघन ने ऋषि पर्वत पर मौन तपस्या की । स्वामी विवेकानन्द ने एक वर्ष तक तप किया। आज भी लोगो को यहां मानसिक शान्ति व पुण्य का लाभ मिलता है।मणि कूट पर्वत में महर्षि योगी द्धारा ध्यान पीठ की स्थापना की गयी जिसमें चौरासी गुफाए योगसाधना के लिए सौ साधना के लिए गुफाएं भूमि के गर्भ में बनी है । यहां आश्रमों में योग व अध्यात्म की अतुलनीय धारा बहती है । देश से ही नही वरन् विदेशों से भी काफी मात्रा में लोग तप के लिए यहां आते है ।
जहां एक ओर ऋषिकेश में आधुनिक पर्यटन की सभी सुख-सुविधा है वही दूसरी ओर त्रिवेणी घाट की परमार्थ की सांयकालीन आरती का दृष्य बडा ही आलौकिक लगता है। इस तपस्थली का वर्णन शब्दो मे नही किया जा सकता इसकी महिमा अपरम्पार है ।