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Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें

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devbhumi:
बस यादें दे गई जिंदगी 

जिंदगी ने खेल ऐसा खेला
बस हार ही हार मिली
ना शिकवा  रहा अब किसी से
ना गिला करने कोई मिला

गलत ना समझना  तुम  मुझको
मैंने भी बहुत प्यारा किया तुमको
दांव बिछा कर ऐसा खेल,खेल गई
अब उम्र भर अकेले रह  गई जिंदगी

झूठी हंसी  का हुनर अब वो
हमे भी खूब समझा गई जिंदगी
मरहम की कसम मरहम न मिला
उस दर्द से हमे मार गई जिंदगी

जब अब हार ने के लिये
ना बचा कुछ भी पास मेरे
तड़पा कर फिर मुझे मारने लिए
यादें उसकी पास छोड़ गई जिंदगी 

वो ख़ुद बुलायेगा मुझे
बस मेरा वक़्त तो आने दो
इसी उम्मीद के छलावे देकर
पूरी उम्र मुझे छला गई जिंदगी 

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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devbhumi:
क्या बोलते हैं

क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं
सुन लो ना मेरे यार 
क्या बोलते हैं

कुछ अलग लिखने चला 
हूँ मैं  आज
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं

रचा जिसने इन्हे  धरा पर
उसे नित मेरा प्रणाम
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं

ऊँचा हुआ वो हिस्सा
बरसों  का वो किस्सा
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं

मन बस जाते हैं
रह रहकर याद आते हैं 
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं

मेरा विश्वास है तू
तू ही मेरी आस  है
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं

शब्द  झूठ नहीं बोलते कभी
तू ही शरीर  तू  ही मेरा प्राण है
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं

सच को सच कहने के लिए
खड़े रहते हैं वो , वो ही मेरा पहाड़ है
क्या बोलते हैं पहाड़
क्या बोलते हैं

बालकृष्ण डी ध्यानी
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devbhumi:
तू पुकारेगा जरूर 

किस काम की नहीं
अब रह गई है तू
आंखों में इन्तजार
बस दे गई है तू

साँसों की रफ्तार में
खोजा था साथ तेरा
हातों से छोड़ा कर हात
अकेला छोड़ गई है तू

तन्हा इतनी  होगी तू
क्यों ना ये जान पाया
आखरी सफर था शायद
आकर गुजर गई 

कैसे भरोसा करूँ तुझ पर
करीब तू  आएगी  जरूर 
किसी ना किसी बहाने
अपने साथ ले जायेगी जरूर

कैसे अपना वाद मुझ से
तू निभाएगी बता
दरवाज  मेरा खटखटाने से पहले
क्या  तू मुझे बताएगी बता

रुखसत मेरे होने का
वक्त जब मुक़रार होगा
नाम मेरा शायद
तू पुकारेगा जरूर 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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devbhumi:

किसी ने तुम्हे  कह दिया

किसी ने तुम्हे  कह दिया
और तुमने उसे मान लिया
कभी मुझसे पूछा नहीं
और मुझे पहचान लिया

मैं धीर गंभीर  समंदर सा
सब कुछ चुप हंसकर पी गया
मेरा हृदय को तुम ने ऐसे छुआ की
वो टूटकर चूर हुआ

सबसे ऊंचा आकाश है
और तुमने उसे मान लिया
कभी तुम ने मुझे ठीक परखा ही नहीं
और मेरी गहराइयों को माप लिया

सागर में सबसे अधिक खारा पानी है
और तुमने उसे मान लिया
कभी मेरे उन आँखों को छलकते  देखा नहीं
और उन आंसुओं को तोल दिया

बरगद की जड़ें गहरी, मजबूत हैं
और तुमने उसे मान लिया
उन अपनी  दोस्ती की जड़ों को सींचा ही नहीं
और उसे  उखाड़ फेंक दिया

किसी ने तुम्हे  कह दिया

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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devbhumi:
वो ख़ुशी

बिखरे पड़े हैं समेट  लो   
जितना समेटना चाहते हो 
उतना लपेट  लो   

मन की आंखें  खोलो जरा
जैसे देखना उसे  देख लो
पास तुम्हारे हैं ,वो साथ तुम्हारे हैं
बिखरे पड़े हैं समेट  लो

बस महसूस ना  करो
जी लो उन संग
जो नजरें कितने प्यारे हैं
उतना  ही काफी  है
बिखरे पड़े हैं समेट  लो

आँखों में उतार  लो
साँसों में उसे संवार लो
इन हातों लेकर  हात तुम
बस जिंदगी गुजार लो
बिखरे पड़े हैं समेट  लो

दिल में वो उतर जायेगी
वो तेरे साथ चली आएगी
जो अब तक अकेली थी
उसे भी साथी  मिल जाएगा
बिखरे पड़े हैं समेट  लो

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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