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भरत नाट्य शास्त्र का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Bharata Natya Shast

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Bhishma Kukreti:


हास भाव अभिनय /हौंस चित्त वृति कु पाठ खिलण

  Laughter Sentiment
 भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली   अनुवाद शास्त्री – भीष्म कुकरेती
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परचेष्टानुकरणाद्धास: समुपजायते ।   
 स्मितहासातिहसितैरभिनय: स पण्डितै
 । 7 . 10  । 
हास क पाठ खिलणौ (अभिनय ) कुण हौर लोकुं कार्य क उपहासपूर्ण अनुकरण 'हास' तै जन्म दींद।  यांक अतिरिक्त, अनर्थक  अव्यवस्था पैदा करण ,दोष दृष्टि से छिद्रान्वेषण करण पर जु 
 रौंस मिल्द वी 'हास'  चित्त वृति च।  हौस उत्पन्न हूण  से हौंस लगद /आंद। 
हौंस छह प्रकार कु हूंद -
स्मित - म दंत पाटी  नि दिख्यांदि , गल्वड़ थोड़ा फुल्यां, अर  दृष्टि सुंदर व कटाक्ष युक्त हूंद। 
हसित - मुख अर  आँख चौड़ा (विकसित ) होवन , गल्वड़ पूर फुल्यां ह्वावन , अर  दांतु पाती थोड़ा सा इ दिख्यांदि। 
विहसित - हंसद समौ आँख अर गल्वड़  आकुंचित हूंदन  अर गिच्च  ब्रिटेन मिठ ध्वनि व मुख पर लालिमा हूंद ।
उपहासित - म नाक फुलिं  दिखेंद।  दरसिहति ट्याड़ि , अर कंधा व आँख आकुंचित /घुमावदार हूंदन। 
अपहसित - हंसद हंसद आंख्युं म पाणि  आणु  रौंद अर मुंड व कंदा कमणा (कम्पन ) रौंदन ) I  जब अधिक देर तक हो तो पुचक पर हाथ चल जांद आदि। 
भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
raptures emotions in Garhwali dramas and Poetries and in miscellaneous  Garhwali  Literature

Bhishma Kukreti:


शोक भाव अभिनय / शोक भावक पाठ खिलण
Grief Sentiment Performances in Dramas 
 भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद शास्त्री  – भीष्म कुकरेती
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सस्वनरुदिताक्रांदितदीर्घानि: श्वसितजडतोन्मादमोहमरणादिभिरनुभावैरभिनय: प्रयोक्तव्य:  I (७। १० को परवर्ती कारिका )
शोक भावक पाठ खिलणो  कुण शनैः शनैः  रूण , कबि कबि किराण,कबि लम्बी सांस लीण /उसासी लीण , कबि जम जाण /जड़ ह्वे जाण , कबि बौळेण , कबि मोह दिखाण, कबि मोरण जन करतबों अनुकरण  आदि जन अभिनय करे जांद। 
गढ़वाली हंत्या जागर शोक भाव को सबसे उत्तरम उदाहरण च।  इखम एक हन्त्या  जागर  व एक लोक गीत दिए गेन जो शोक भाव दर्शांदन -

हंत्या जागर का  प्रथम भाग
 
 मृत पितर अथवा पुरखों की लालसा को गढवाली-कुमाउनी में  हंत्या कहते हैं
ओ ध्यान जागि जा
ओ ध्यान जागि जा
गाड का बग्यां को ध्यान जागि जा
ओ ध्यान जागि जा
भेळ का लमड्याञ  को ध्यान जागि जा
 ओ ध्यान जागि जा
डाळ  का लमड्याञ को ध्यान जागि जा
फांस खैकि मरयाँ  को ध्यान जगी जा
ओ ध्यान जागि जा
जंगळ मा बागक  खयां को ध्यान जागि जा
 ओ ध्यान जागि जा
घात प्रतिघात का मोर्याँ को ध्यान जाग
आतुर्दी मा मरयाँ को ध्यान जागि जा
भूत देवता परमेश्वर महाराज
हरि का हरिद्वार जाग -- धौळी देवप्रयाग जाग
जै रण का मोर्याँ तै रण का ध्यान जाग ..
आकस्मिक अपघात मृत्यु का रवांल्टी करुण-दारुण  लोक गीत

(सन्दर्भ: महावीर रंवाल्टा, 2011, उत्तराखंड में रंवाइ क्षेत्र के लोक साहित्य की मौखिक परंपरा, उदगाता, पृष्ठ 48- 56 )   
( इंटरनेट प्रस्तुति  एवं अतिरिक्त व्याखा - भीष्म कुकरेती )

फूली जाली कवाईं, फूली जाली कवाईं
न आई बेटी समुन्दरा  न आई भंडारी ज्वाईं।
फूली जाली कवाईं, फूली जाली कवाईं
न आई बेटी समुन्दर न आई भंडारी ज्वाईं।
ले लुवा गाड़ी कूटी,  ले लुवा गाड़ी कूटी,
तेरी बेटी समुन्दरा सांदरा पुलौ दी छूटी।।
ले लुवा गाड़ी कूटी,  ले लुवा गाड़ी कूटी,
तेरी बेटी समुन्दरा सांदरा पुलौ दी छूटी।।
भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
Raptures emotions in Garhwali dramas and Poetries and in miscellaneous  Garhwali  Literature
Grief Sentiments in Garhwali  Folk literature, Grief Sentiments in Garhwali  dramas ,Grief Sentiments in Garhwali Poetries
 
 

Bhishma Kukreti:


 क्रोध भाव अभिनय: रोष भावो पाठ खिलण व उदाहरण
 
   Playing Role for Anger Sentiment

 भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 7 : रस व भाव समीक्षा - 22
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद शास्त्री  – भीष्म कुकरेती
s =आधी अ
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अस्य विकृष्टनासापुटोद्वृत्तनयनसंदाष्टोष्ठपुटगंडस्फुरणादिभिरनुभावैरभिनय: प्रयोक्तव्य:
 I  7. 14 की परवर्ती कारिका )
अनुवाद/व्याख्या  -
क्रोध (रोष, रुस्याणौ ) कs  पाठ खिAngry लणौ कुण  फुल्यां नकध्वड़ (नथुने ), पसरीं आँख (फैली आँख), गोळ -गोळ आंख  करण से  , हिल्दा ऊंठ या कनपट्टी  क हिलण -डुलण  का करतब/क्रिया  करे जांदन।  मख विकृत करण, ऊंठ कटण , लात -घूंसा चलाण, दांत किटण   से बि रोष भावौ पाठ खिले जांद।   
( कैक द्वारा अपमानित हूण पर , इच्छा /गाणी -स्याणी विरुद्ध फल प्राप्ति , बोल -चाल म कै से हार से , प्रतिपक्ष से हरण आदि से रोष भाव उतपन्न हूंद )

भीष्म कुकरेती द्वारा गढवाली लोक नाटकों का काव्य शास्त्रीय  विश्लेष्ण मे दिया गया  एक उदाहरण
-
हम जब पढ़ते थे तो हमने एक बार गोर चारागाह में एक नाटक खेला था। इसमें हमने फेल होने पर किस प्रकार हमारे संरक्षक हमारे साथ क्रोध कर
वर्ताव करेंगे का नाटक खेला था।
एक संरक्षक (ताली पीट पीटकर )- ये हराम का बच्चा ! ये साल बी फेलह्वे ग्ये हैं ? कन बत्वार आयि तेरी …
दूसरा संरक्षक (अपने लडके के बाल झिंझोड़ते हुए, दांत किटद  ) -हूँ ! हूँ ! बाळु पर तरोज तेल इन लगांदु छौ जन बुल्यां कै सौकारौ नौनु ह्वेलु। अर पास हूंद दैं … पास हूंद दैं ब्वे मरी गे छे तेरी ? हैं ! आज जिंदु हि खड्यारण मीन तू !
तीसरा संरक्षक (अलग अलग ढंग से अपने फेल हुए पुत्र को लात मारते हुए)- हूँ ! जब मि बुल्दु छौ बल बुबा किताब पौढ़ी लेदि त तू चट कबि गुच्छीखिलणो भाजि जांदि छे , त कबि नाचणों भाग जांदि छौ अर कबि रामलीला दिखणो तेरी टुटकी लग जांदि छे। अर पास हूंद दैं … तेरी डंडलि सजे
गे हैं ?
भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
raptures emotions in Garhwali dramas and Poetries and in miscellaneous  Garhwali  Literature
गढ़वाली नाटकों /काव्य में क्रोध भाव का उदाहरण

Bhishma Kukreti:


उत्साह भाव अभिनय : उच्छाह भावौ पाठ खिलण [/color][/size]
 
 Performing Zeal Emotion in Dramas 
 भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 7: रस व भाव समीक्षा
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद शास्त्री  – भीष्म कुकरेती - 23
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असम्मोहदिभिर्व्यको  व्यवसायनयात्मक: I
उत्साहस्त्वभिनेय: स्यादप्रमोदोत्थितादिभि : । 7.21
उत्साह भावौ पाठ खिलणौ कुण इन भावों करतब
दिखाण  पोड़द जां से मुख पर तेज , कार्य व्यवहारम
 ओज्वसिता अर परवाण बणनो  (नेतृत्व ) जन
कार्यों अनुकरण ह्वावो।
      गढवाली लोक नाटकों में उत्साह   भाव
मुझे बादियों द्वारा खेले गए एक लोक नाटक (स्वांग ) नाटक याद आता है।  जिसमे दो भाई  प्रसन्न मुद्रा में और गर्व के साथ कहीं जा रहे हैं  और रास्ते  में एक पहचान वाला मिलता है।  वह पूछता  है
वह मनुष्य - हे जी ! आज द्वी भैयुं दौड़।  क्या बात कतिकु जी! आज तुमर मुख तेल लगायुं मुख जन  चलकणु च अर खुट इन चलणा छन जन बुल्यां उड़णा ह्वेल्या !
कतिकु - हाँ ज़रा नौनौ चिट्ठी रूप्या रळणा जाणा छंवाँ।
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
Rraptures emotions in Garhwali Dramas and Poetries and in miscellaneous  Garhwali  Literature
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Bhishma Kukreti:

भय भाव अभिनय : भय /डौर भावौ पाठ खिलण 

Performing Awe Sentiment in a Drama
 भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 7, : रस व भाव समीक्षा -24
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद शास्त्री  – भीष्म कुकरेती
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अनुवाद शास्त्री  – भीष्म कुकरेती   
गात्रकम्पनवित्रासैर्वक्त्रिशोषणसम्भ्रमै: I
विस्फारितेक्षणै: कार्यमभिनेयक्रियागुणे: । ७, २३ ।  भय  भाव कु पाठ खिलणौ कुण सरैलौ कमण , त्रास , मुक सुकण , ऊंठ चटण , भरमम जाण , चौड़ा चौड़ा आँखुंन दिखण , जन करतब करे जांदन। 

गढ़वाली लोक नाटकों/गीतों /जागरों  में भय भाव
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वायु मसाण को भयो वर्ण मसाण
वर्ण मसाण को भयो बहतरी मसाण
बहतरी मसाण को भयो चौडिया मसाण
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वीर मसाण , अधो मसाण मन्त्र दानौ मसाण
तन्त्र दानौ मसाण
बलुआ मसाण , कलुआ मसाण , तालू मसाण
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डैणी जोगणी को लेषवार , नाटक चेटको फेरवार
मण भर खेँतड़ी , मण भर गुदड़ी , लुव्वाकी टोपी बज्र की खंता
(रौख्वाळी गीत)
इकबटोळ करण वाळ : डा शिवानन्द नौटियाल
 
भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
Raptures, Emotions in Garhwali Dramas and Poetries and in miscellaneous Garhwali Literature
Emotions in Garhwali Poetries, Emotions in Garhwali Proses

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