कारगिल के दिन और रात
दुश्मनों के मनसूबे उखाड़ फैकने की बाते
क्या कारगिल के दिन होंगे क्या कारगिल के राते
शायद धमाको के बीच याद आती हो खिलखिलाहट
चोंका देने वाली होती होगी हर आहाट
कभी अकेले मे तस्वीर किसी अपने की
याद दिलाती होगी उनके नन्हें नन्हें सपनो की
उस वीराने मे शुकुन देती होंगी घर की यादे
क्या कारगिल के दिन होंगे क्या कारगिल की राते !
दुश्मनों के मनसूबे उखाड़ फैकने की बाते
क्या कारगिल के दिन होंगे क्या कारगिल के राते !
कभी प्यार कभी चेहरे से आग बरसती होगी
कभी बंदूक कभी हाथो मे कलम होती होगी
एक नजर डाली होगी उसने सपनो पर अरमानों पर
आंखे तर हो जाती होंगी लिखते हुए ख़त के उत्तर
लड़ते लड़ते ऐसे ही एक दिन रुक गई होंगी सांसे
क्या कारगिल के दिन होंगे क्या कारगिल की राते !
(ye kavita maine kargil ki ladai ke samay likhi thi. isiliye kavita mai utne maturity to nahi thi fir bhi feelings ke level per apko shayad pasand aye)