कहानी संग्रह मटियानी जी में बचपन से ही एक लेखक बनने की धुन थी जो विकट से विकटतर परिस्थितियों के बावजूद न टूटी। १९५० से ही उन्होंने कविताएं, कहानियां लिखनी शुरू कर दीं, परंतु अल्मोड़ा में उन्हें उपेक्षा ही मिली। हालांकि मटियानी जी नेे आरंभिक वर्षों में कुछ कविताएं भी लिखी, परंतु वे मूलतः एक कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए। अगर विश्वस्तरीय प्रमुख कहानियों की सूची बनाई जाए तो उनकी दस से ज्यादा कहानियां सूची में शामिल होंगी।
उनकी आरंभिक पंद्रह-बीस कहानियां 'रंगमहल' और 'अमर कहानी' पत्रिका में छपी थी। उनका पहला कहानी संग्रह 'मेरी तैंतीस कहानियां'(
१९६१) के नाम से संग्रहित हैं। मटियानी जी की कालजयी कहानियां में 'डब्बू मलंग', 'रहमतुल्ला', 'पोस्टमैन', 'प्यास और पत्थर', 'दो दुखों का एक सुख', 'चील', 'अर्द्धांगिनी', ' जुलूस', 'महाभोज', 'भविष्य', और 'मिट्टी' आदि प्रमुख हैं। 'डब्बू मलंग' एक दीन-हीन व्यक्ति की कथा है जिसे कुछ गुंडे पीर घोषित कर लोगों को ठगते हैं। 'रहमतुल्ला' कहानी सांप्रदायिक स्थितियों पर कठोर व्यंग्य है। 'चील' मटियानी जी की आत्मकथात्मक कहानी है जिसमें भूख की दारूण स्थितियों का चित्रण है। 'दो दुखों का एक सुख' मैले-कुचैले भिखाड़ियों की जीवन की विलक्षण कथा है। 'अर्द्धांगिनी' दांपत्य सुख की बेजोड़ कहानी है। एक कहानीकार के रूप में वे नई कहानी आंदोल के सबसे प्रतिबद्ध कहानीकार हैं। जिन्होंने बजाय किसी विदेशी प्रभाव के अपने मिट्टी की गंध और विशाल जीवन अनुभव पर अपनी कहानी रची है। 'दो दुखों का एक सुख'(
१९६६), 'नाच जमूरे नाच', 'हारा हुआ', 'जंगल में मंगल'(
१९७५), 'महाभोज'(
१९७५), 'चील' (
१९७६), 'प्यास और पत्थर'(
१९८२), एवं 'बर्फ की चट्टानें'(
१९९०) उनके महत्वपूर्ण कहानी संग्रह हैं। 'सुहागिनी तथा अन्य कहानियां'(
१९६७), 'पाप मुक्ति तथा अन्य कहानियां'(
१९७३), 'माता तथा अन्य कहानियां'(
१९९३), 'अतीत तथा अन्य कहानियां', 'भविष्य तथा अन्य कहानियां', 'अहिंसा तथा अन्य कहानियां', 'भेंड़े और गड़ेरिए' उनका अन्य कहानी संग्रह है।
http://en.wikipedia.org/wiki/Shailesh_Matiyani