गुमानी जी कुमाऊँनी तथा नेपाली के प्रथम कवि तो थे ही, साथ ही हिन्दी तथा संस्कृत भाषा पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी. यह छन्द देखिये. चार पंक्तियों के छन्द की प्रत्येक पंक्ति में अलग भाषा का प्रयोग है.बाजे लोक त्रिलोक नाथ शिव की पूजा करें तो करें (हिन्दी)क्वे-क्वे भक्त गणेश का में बाजा हुनी तो हुनी (कुमाऊँनी)राम्रो ध्यान भवानी का चरण मा गर्दन कसैले गरन् (नेपाली)धन्यात्मातुलधाम्नीह रमते रामे गुमानी कवि (संस्कृत)
खड़ी बोली का उद्भव भारतेन्दु युग में माना जाता है, जोकि 1850 के आस-पास शुरू होता है. लेकिन निम्न पद गुमानी जी द्वारा 1816 में रचित है, इसमें खड़ी बोली का प्रयोग स्पष्ट है. इस तरह गुमानी जी को खड़ी बोली का प्रथम कवि माना जाना चाहिये. विष्णु देवाल उखाड़ा ऊपर बंगला बना खरामहराज का महल ढहाया बेड़ी खाना वहाँ धरा मल्ले महल उड़ाई नन्दा बंगलों से वहाँ भराअंग्रेजों ने अल्मोड़े का नक्शा औरी और करा
अति सुन्दर हेम दा,गुमानी जी वास्तव में हमारे गौरव हैं, मैंने कहीं पढा़ है कि वह बाद में काशीपुर आकर बस गये थे और उन्होंने काशीपुर के बारे में भी काफी लिखा है।