राजेन्द्र जोशी
देहरादून-: राज्य आन्दोलन में कई आन्दोलनकारियों की शहादत के बाद हमें उत्तराखण्ड राज्य मिला। लेकिन क्या वह यही राज्य है जिसकी हमने कल्पना की थीï? नहीं यह राज्य तो वह नहीं हो सकता। राज्य के लिए अपने अमूल्य प्राणों को न्यौछावर करने वाले शहीदों तथा राज्य आन्दोनकारियों ने कल्पना की थी भ्रष्टïाचार मुक्त, शोषण मुक्त, भयमुक्त, तथा पलायन मुक्त राज्य की लेकिन आज जो राज्य दिखाई दे रहा है उसका चेहरा तो और भी भयावह नजर आता है। चारों ओर लूट खसोट जारी है, अपराध दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है, राज्य आन्दोलनकारियों तथा उनके आश्रितों तक को नौकरी नहीं है, रोजगार की तलाश में युवा राज्य से पलायन करने को मजबूर हैं, राज्य से जल,जंगल तथा जमीन से जुड़े संसाधनों को बेचने की तैयारी चल रही है। कहने को तो ईमानदार मुख्यमंत्री राज्य की सत्ता चला रहा है लेकिन दीपक तले अंधेरा की कहावत तो आपने सुनी ही होगी। आज आम पर्वतीय जनमानस आज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है। रोजगार की तलाश में फिर वही दिल्ली, मुम्बई तथा पंजाब की ओर यहां के लोगों का रूख तो कम से कम यही साबित करता है कि यहां बाहरी प्रदेशों के बेरोजगारों को तो रोजगार है लेकिन यहां पैदा होने वाले बच्चों के लिए रोजगार नहीं। जहां तक आन्दोलनकारियों का मामला है राज्य को कई जातियों तथा उप जातियों , क्षेत्रों तथा भाषा तक में सत्ता के दलालों ने बांट दिया है। क्या वे व्यवसायी राज्य आन्दोलनकारी नहीं है जिन्होने तीन-तीन चार-चार महीनों तक अपनी दुकानें तथा व्यवसायिक प्रतिष्ठïानों को राज्य आन्दोलन के चलते बन्द रखा। क्या वे छोटे दुकानदार राज्य आन्दोलनकारी नहीं है जिन्होने तीन-तीन महीने से लेकर छह-छह महीने तक वेतन न मिलने पर राज्य में कार्यरत कर्मचारियों को उधार में राशन आदि की भरपाई की। लेकिन आज वे व्यवसायी भी राज्य में दरकिनार कर दिये गये हैं। उनके स्थान पर दिल्ली,मुम्बई ,गुडग़ांव तथा आसपास के क्षेत्रों के बड़े-बड़े व्यवसाईयों ने इनके व्यवसाय पर कुठाराघात किया है। राज्य के निवासियों की तरह ही इनके भी हालात है। अस्थाई राजधानी भले ही देहरादून में बनी है लेकिन इसका लाभ बाहरी राज्यों के व्यवसाईयों को मिल रहा है। राज्य में भ्रष्टïाचार की पराकाष्ठïा भी पार हो चुकी है। जिन कार्यों को राज्य बनने से पूर्व लोग यूं ही करा दिया करते थे आज उन कार्योंं के मुहं मांगे पैसे कर्मचारी वसूल रहे हैं। सभी पैसे के पीछे भाग रहे हैं। राज्य बनने के दौरान से अब तक यहां कई ऐसे-ऐसे प्रशासनिक अधिकारी आए जिनकी गिनती कभी उत्तरप्रदेश के भ्रष्टïतम अधिकारियों में होती थी। जो यहां के लोगों का शोषण कर अपनी जेबें ही नहीं बल्कि संदूक तक काली कमाई से भरकर राज्य से निकल चुके हैं। इनकी कमाई करोड़ों नहीं बल्कि अरबों तक में जा पहुंची है। प्रदेश की अस्थाई राजधानी देहरादून तथा आस पास के क्षेत्रों में इन्होने करोड़ों की जमीनों पर निवेश तक किया हुआ है। अस्थाई राजधानी में नैतिकता तथा मानवता को सभी ने गिरवी रख दिया है। यह सब क्यों हो रहा है। इसका जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा हूंं। लेकिन मोटे-मोटे तौर पर यह कह सकता हूं कि इस राज्य तथा यहां के निवासियों का तब तक शोषण होता रहेगा जब तक यहां के लोगों की अपनी सरकारें नहीं बन जाती। उत्तराखण्ड क्रांति दल जिसे यहां के लोगों ने अपना समझा था वह भी सत्ता सुख पाने के कारण कभी कांग्रेस की गोद में तो अब भाजपा की सहयोगी बनकर सो रही है। ऐसे में राज्य में एक और नये राजनीतिक दल की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। जिसका सरोकार राज्य से हो राज्यवासियों से हो। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी ठीक इसी तरह की घटनाएं हुई थी तभी तो वहां आज अशांति है लेकिन यह क्षेत्र देशरक्षक,देशभक्त लोगों का है। सरकारों को यहां के लोगों के धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए अन्यथा यहां एक और आन्दोलन जन्म ले सकता है। राज्य में काबिज राष्टï्रीय दल अपनी-अपनी सरकारों को बचाने के लिए प्रति माह करोड़ों रूपया अपने दिल्ली में बैठे आकाओं तक पहुंचा रहे हैं और ये यहां जनता का खून चूस रहे हैं लेकिन अभी तक इनका पेट नहीं भरा है और यह न जाने कब भरेगा।
राज्य वासियों को भी चाहिए कि वे जो लोग अपने गांवों को छेाड़ बाहर निकल गये हैं उन्हे वापस आकर राज्य के विकास में शामिल होना चाहिए। यही कारण है कि आज रोजगार की तलाश में प्रदेश की 12 लाख से भी ज्यादा की जनसंख्या ने बीते 20 सालों में इस राज्य से पलायन किया है। जिसका परिणाम हमें अपनी विधानसभा में आठ विधानसभा सीटों को गंवाने के रूप में मिला। मेरा तो अप्रवासी उत्तराखण्डियों से विनम्र अनुरोध होगा कि वे 2011 में होने वाले जनसंख्या आकलन के दौरान अपने-अपने गांवों में आकर रहे ताकि राज्य का समुचित विकास हो सके और इस पर्वतीय राज्य की परिकल्पना को पूरा किया जा सके।