Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 326692 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                             साहित्य अकादमी क कुमाउनी भाषा सम्मान

       य भौत ख़ुशी कि बात छ कि कुमाउनी भाषा क द्वि ख्याति प्राप्त  साहित्यकारों कैं साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा २४ जून २०१५ हुणी वर्ष २०१४ क कुमाउनी भाषा सम्मान संयुक्त रूप ल घोषित करीगो.  यूं द्वि साहित्यकार छीं चारू चन्द्र पांडे और मथुरा दत मठपाल. दिल्ली क कएक दैनिक समाचार पत्रों में छपी य खबर कै पढ़ते ही यूं पंक्तियों  क लेखक ल तुरंत द्विये साहित्यकारों कैं फौन में बधाई दी.  द्विये साहित्यकारों ल ख़ुशी जतुनै बता कि ‘य हमरि मातृ-भाषा कुमाउनी क सम्मान छ, कुमाउनी क रचनाकारों क सामान छ और कुमाउनी पढ़णी और बलाणीयां क सम्मान छ’.  खबर क अनुसार यूं द्विये साहित्यकारों कैं य सम्मान एक समारोह में प्रशस्ति –पत्र क रूप में पचास –पचास हजार रुपै नकद धनराशि क दगाड दिई जाल.  पांडे ज्यू कि कुमाउनी रचनाओं में मुख्य “अंग्वाव” छ जबकि मठपाल ज्यू कि रचनाओं में मुख्य छीं “ आंग-आंग चिलैल हैगो, पै मैं क्याप क्याप कै बैठनू, फिर प्योलि हंसै, दुद्बोलि “आदि. कुमाउनी भाषा क आंखर- शब्द- छंद लेखण क बाट-सऊर बतूणी यूं द्विये वरिष्ठ रचनाकारों कैं भौत-भौत बधाई.  उम्मीद छ आब उत्तराखंड सरकार हमरि  भाषा कैं मान्यता दीण में देर नि करा.  बतूण चानू कि गढ़वाली भाषा क द्वि रचनाकारों क य सम्मान पैलीकै मिलिगो |

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
03.07.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                  बिरखांत- १ (शराब के यार )

   कुछ बातें कहने -बताने, सुनने-सुनाने की होती हैं जो हमें गिच  खोलने पर मजबूर करती हैं और साथ ही सबसे मंथन करने को कहती हैं |  हमारी अच्छी-बुरी हरकतों को बच्चे देखते हैं फिर अनुकरण करते हैं | आजकल बड़ी बिरखांत (कहानी) कोई नहीं सुनता, समय नहीं है. पेश हैं कुछ छोटी बिरखांतें | पहली  बिरखांत पेश है-

       कुछ वर्ष पहले मैं गांव (उत्तराखंड) में एक बरात  में गया | मैंने अपने झोले में पजामे के साथ टार्च लपेट रखी  थी | लोगों ने सोचा ‘बापसैप दिल्ली बै ऐ रईं, बोतल हुनलि ‘ | जब सच्चाई का उन्हें पता चला तो वे कहने लगे “एक नंबर का कंजूस है ये | इसके साथ मत जाओ | ये भाषण देकर मूड खराब कर देगा |”  दुल्हन के आंगन पहुंचने तक केवल दुल्हा, कुछ बच्चे और मैं दारू के दाग से दूर थे, बाकी बरात शराब में डूब चुकी थी | शराबी  बरेतियों ने उस गाँव में जो नाम कमाया  उसकी बिरखांत बताने लायक  नहीं है क्योंकि वह बहुत ही अमर्यादित, अशोभनीय और अनर्गल है | कएक बार झगड़े के बादल उठे और जैसे-तैसे उन बादलों को बरसने से रोका | ज्वात लागा लाग इज्जत रै गेइ | शराब से दूर रहने पर यदि आपको कोई कंजूस कहे तो यह आपका सम्मान है, ऐसा मैं सोचता हूं |  एक न एक दिन, कभी न कभी प्रत्येक शराब सेवनकर्ता, शराब को बुरी चीज बताएगा |  फिर उस दिन का इन्तजार क्यों ? आज ही, अभी से शराब को ‘ना’ कहो और उन पंडितों, मास्टरों (अध्यापकों),विद्यार्थियों, रिश्तेदारों, डंगरियों, जगरियों, रस्यारों, गिदारों, नेताओं, बाबुओं, बाबाओं, अफसरों, हेल्परों, डराइवरों, क्लीनरों, कवि- लेखक- साहित्यकारों आदि पूरी जमात की पोल खोलो जो कभी सरेआम तो कभी लुका-छिपा कर शराब गटक रहे हैं | बिरखांत लामि नि करन | निरबू रज कि कथै-कांथ | अघिल एपिसोड में एक और  बिरखांत सुणला... धन्यवाद |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.07.2015

Pooran Chandra Kandpal

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   ‘ लमथर ‘ और ‘ घौ ‘

       ‘लमथर’

आम क डाव आमों ल लूती रौ
औणी- जणीयां क लमथर खांरौ
लमथर खै बेर आंसु नि टपकूं रय
लमथरुणीयां लिजी आम टपकाते जांरौ |

      ‘ घौ ‘

कुल्याड़ा क घौ पुरी जानी
पुरी घौ भुली जानी
कुछ यास घौ लै हुनी
जनू कैं आपण लोग दिनी
भलेही यूं  घौ कभैं नि देखिन
पर यूं कभैं लै नि भुलिन
यूं कभैं लै नि पुरिन |

08.07.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                  दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै  (हमरि भाषा कि मान्यता)
 
          चनरदा कि चिठ्ठी मुख्य मंत्री ज्यू क नाम. “महाराज मुख्यमंत्री ज्यू नमस्कार. मी चनरी छ्यूं, प्रजातंत्र क एक वोटर, एक आम आदिम.  कुर्मांचल अखबार क य कॉलम में पिछाड़ि पांच वर्ष बटि चिठ्ठी लेखैं रयूं. मी आपूं कैं टी वी में देखनै रौनू और कएक ता आपूं दगै मुखामुखी भेट लै हैगे. जब लै आपूं दिल्ली औंछा, आपण कैं न कैं क्ये न क्ये कार्यक्रम जरूड़ हुंछ.  य चनरी लै वां कभतै पुजि जांछ.  तीनमूर्ती लेन में लै आपूं दगै भेट करी और भीड़ –भड़ाक में आपण बात लै सुणी.  आपूं कैं हमेशा सुणते रौनू.  टी वी में लै आपूं बेबाक और सटीक बलांछा.  जब आपूं जाठि पकड़ि बेर केदारनाथ हुणी बाट लागि रौछिया तब लै आपूं कैं देखौ.   एक फ़रवरी २०१४ हुणी जब आपूं ल मुख्यमंत्री कि गद्दी समाई तब जो लोग भौत ख़ुशी हईं उनुमें य चनरी लै छी.  उसी सांचि बात त य छ कि आपूं ल द्वि मार्च २००२  में मुख्यमंत्री बनण चैंछी पर क्ये करी जो, उनुकैं दुलैच में भटाइ दे जनरि दिल्ली दरवार में कुछ ज्यादै पकड़ छी.  दरवारि लोगों ल जनता उज्यां नि चाय. य ई गल्ती १० सितम्बर २०११ हुणी लै हैछ. चलो देर आयत दुरस्त आयत.  आपूं लागि रौछा और उम्मीदा क दी जगू रौछा.  सबै कूं रईं ‘अगर रावत ज्यू २००२ में गद्दी समाउना तो आज उत्तराखंड कि तस्वीर कुछ अलग हुनि’|”

         “महाराज मुख्यमंत्री ज्यू, य चनरिया क छाति में भटभटाट उठि रौ, उकैं भ्यार फोकण चानू.  आपूं मौक देखि अक्सर हमरि भाषा में बात करछा. उभत भौत भल लागूं.  उत्तराखंडी भाषाओं क सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लै आपूं हमरि भाषा क मिठास क भरपूर आनन्द ल्हीछा. चुनाव क टैम पर लै आपू हमेशा हमरि भाषा में बलांछा. आपूं दगै हात मिलूं हूं सबै ललचानी और आपण गिच बै द्वि आंखर सुणण क लिजी कएक ता लोग धक्का –मुक्की लै करि दिनी. अगर एक आंखर में कूं तो आपूं यांक एक जन-नेता छा.  यांक जन-नेता ल यांकि जन-भाषा क बार में लै चिंतन करण चैंछ जो आजि तक संविधान क आठूं अनुसूची में नि पुजि रइ.  उत्तराखंड कि मुख्य भाषा कुमाउनी और गढ़वाली कैं मान्यता दीण क लिजी आपण पास दर्जनों निवेदन पुजि रईं.  पिछाड़ि सात वर्ष बटि ‘पहरू’ पत्रिका, पांच वर्ष बटि ‘कुर्मांचल अखबार’ और द्वि वर्ष बटि ‘कुमगढ़’ पत्रिका आपूं हैं भाषा कि मान्यता दींण और ठण्ड (बाँज) पड़ीं उत्तराखंड भाषा संस्थान कैं आवाद करण कि फ़रियाद करैं रईं.  उत्तराखंड कि भाषा संबंधी य मांग राज्य बनण है भौत पैली बटि छ.  आश्वासन दी बेर सबूंल पुठ फरकै दे.  कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति, कसारदेवी, अल्मोड़ा क पास य बात कि सनाकत छ कि कत्यूरी और चंद राजाओं क टैम पर हमरि भाषा ‘राजभाषा’ छी.   उम्मीद छ कि आपूं इस्कूलों में हमरि भाषा पढ़ूंण क श्रीगणेश जरूर करला और भाषा कैं संविधान कि आठूँ अनुसूची में पुजूण कि पुरि कोशिश करला |”

         शुभ-कामनाओं क दगाड, भीड़ में बै आपूं कैं चै रौणी,
    चनरी, चनरराम, चंद्रमणि, चन्द्रदत्त, चनर सिंह, चंद्रकांत  (चनरदा )         
         
पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली

09.07.2015

Pooran Chandra Kandpal

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               बिरखांत – २ ( फेसबुक-वाटसैप में शराब)

      फेसबुक और वाट्सैप में कभी-कभार कुछ अजीबोगरीब दृश्य देखने को मिलते हैं | हाल ही में शराब के तीन ऐसे दृश्य देखने को मिले जहां शराब का ही बोलबाला था | पहले दृश्य में छै महिलाएं छै बोतल बीयर के साथ मस्त हैं | उनकी आँखें बता रही हैं कि वे सोमरस गटक चुकी हैं | दूसरे दृश्य में गौला नदी पर कुछ लडके ‘गौल’ की तरह पसर कर लुकै बेर सोमरस पान कर रहे हैं| मौकाए बारदात पर पड़े प्लास्टिक गिलास इस बिरखांत को बता रहे हैं |  तीसरे दृश्य में दो लडकियां (तरुणी) शराब की दुकान पर मुखड़ा छुपाए सोमरस खरीद रही  हैं |  शराब के ये दृश्य अब आम हो गए हैं |  १९५० के दसक तक उत्तराखंड में शराब कोई नहीं जानता था | साठ के दसक में सुरा-टिन्चरी ने पैर पसारे और जमाये भी | फिर गाँवों में अवैध शराब बनने लगी | जिस गाँव में शराब बनती थी उसी गाँव के ‘अमुक मार्का’ के नाम से सस्ते में मिलती थी | देखा-देखी शराब ने इतनी तरक्की करी कि आज महिलाएं ठेके की मालकिन हैं | बिना शराब के किसी भी काम की शुरुआत नहीं हो सकती | उत्तराखंड की चाय की दुकानें ‘ओपन बार’ बन गईं हैं | यहां शराब का सेवन शरूर या मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि नशे के तौर पर या डौन होने के लिए किया जाता है | ‘न पीने का सलीका, न पिलाने का सऊर’ | शराब का बोलबाला देश के अन्य क्षेत्रों में भी है परन्तु ऐसा नहीं जैसा ‘शराब भूमि’ बन गई  देवभूमि में हो रहा है | जब तक महिलाएं दारू के दानव से नहीं भिडेंगी तब तक देवभूमि दारू से मुक्त नहीं हो सकती | मैंने वर्ष २००३ में ‘शराब-धूम्रपान और आप’ पुस्तक लिखी | एक लम्बे शोध के बाद मुझे पता लगा कि शराब का सूक्ष्म सेवन कुछ इने-गिने खाश अवसरों पर किया जाता था, नशे के लिए कभी नहीं | बिरखांत ख़तम करता हूं| शराब में लतपती बेर वीकि फोटो सोसल मीडिया में फैलूण कि हुड्डपन्योई  नि करण चैनि |  डौन शराबी पर एक नजर - एक शराबी डौन होकर सड़क के किनारे बने नाले में गिर गया | कच्यार में लतपती बेर जब वह उठ न सका तो चिल्लाने लगा,“ पता नहीं ये सरकार रात के टैम सड़क को उठाकर नाले में क्यों घुसा देती है ? मैं इसकी रपोट दरोगा से करता हूं | कोई दरोगा को तो बुला दो| पता नहीं वो भी इस समय क्या कर रहा होगा ?”

 पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.07.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                            बिरखांत – ३ (बेडू पाको ‘बारा मासा’ नहीं ‘बारियो मासा’)

       कुमाउनी में गाया जाने वाला सुप्रसिद्ध गीत ‘बेडू पाको’ बारा मासा नहीं बल्कि ‘बारियो मासा’ है |  इस बात का रहस्य मुझे नवम्बर २०१४ में कुमाउनी भाषा सम्मलेन अल्मोड़ा में तब हुआ जब एक साहित्यकार (नाम विस्मृत) ने मुझे मेरि पुस्तक ‘उज्याव’ (उत्तराखंड सामान्य ज्ञान, कुमाउनी में) के पृष्ठ २८ पर छपी पंक्तियों पर विमर्श किया | मैंने ‘उज्याव’ में लिखा है “बेडू पाको के रचियता ब्रजेन्द्र लाल शाह और गायक मोहन उप्रेती हैं|”  वे बोले, “ आपने बहुत अच्छी किताब लिखी है और शायद यह इस प्रकार की पहली किताब है | जो पढ़ेगा उसे बहुत कुछ मिलेगा इस पुस्तक में | परन्तु आपके ‘बेडू पाको’ गीत पर में इत्तफाक नहीं रखता | यह एक लोक ग़ीत है और लोक में चलते आया है | पता नहीं कब और किसने लिखा और पहली बार किसने गाया ? लोक गीत पर कब्जा करना ठीक नहीं |”  उन्होंने एक पुस्तक के पृष्ठ दिखाते हुए पुन: कहा, ”महाराज जी यह ‘बेडू पाको बारा मासा’ नहीं बल्कि बारा मासा की जगह ‘बारियो मासा’ है |” मैंने पुस्तक का अनुच्छेद पढ़ा | कुछ इस तरह लिखा था, “बेडू बारह महीने नहीं पकता | लोग इस गीत को गलत गा रहे हैं | बेडू भादो महीने में पकता है जिसे ‘बारिय’, ‘बारियो’ या ‘काला’ महीना कहते हैं |” ‘बारिय’,  या ‘बारि’ का अर्थ है  ‘मना’ या ‘बंद’ | जैसे ‘उसने लहसुन-प्याज ‘बारि’  रखा है, ब्वारि ल भौ लिजी मर्च-खुश्याणी, खट-मिठ ‘बारि’ रौछ’ (बहू ने बच्चे की वजह से मिर्च, खट्टा-मीठा खाना बंद कर रखा है)| भादो महीने को काला या ‘बारिय’ महीना मानने के कारण लोग इस माह कोई शुभ कार्य भी नहीं करते थे| नव-विवाहिता को भादो महीने में मायके भेजा दिया जाता था | आषाड़-सावन में गुड़ाई पूरी हो जाने के कारण भादो में कुटला (कुटौव) ‘बारि’ दिया जाता था अर्थात कसि -कुटव पर महिलाएं हाथ नहीं लगाती थीं | भादो में फसल गबार (पूर्ण जवानी) आने से खेतों में जाने की मनाही होती थी | अत: यह बात मुझे स्पष्ट उचित लगती है कि यह गीत ‘बारियो मासा’ गाया जाना चाहिए क्योंकि भादो एक ‘बारिय’ महीना है |  हम सब जानते हैं कि बेडू बारहों महीने नहीं पकता, केवल भादो (अगस्त-सितम्बर) ‘बारिय’ महीने में ही पकता है | अगली बिरखांत में कुछ और... 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.07.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                       बिरखांत – ४ (ईमानदारी के पहरुओं को सलाम)

    कलम घिसते-घिसते चार दसक बीत गए हैं | लगभग सभी विधाओं, सभी समस्याओं और सभी कुप्रथाओं  पर लिखा | अन्याय, दुराचार, अंधविश्वास, भ्रष्टाचार, बेईमानी और ईमानदारी पर भी लिखा | ईमानदारी का पहरुआ बनना या आर टी आई कार्यकर्ता - व्हीसिल ब्लोवर बनना आसान काम नहीं है | सिर पर कफ़न बाँध कर चलना पड़ता है इस काम में |  इन बड़ा जिगरा रखने वालों के बारे में मैं एक दिन यों ही  सोच रहा था कि अखबार में छपी एक खबर ने मुझे झकझोर दिया | छपा था, ‘नेशनल हाइवे अथॉरिटी आफ इंडिया के इंजीनियर सत्येन्द्र दुबे, निर्माण में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने में (नवम्बर २००३) मारे गए’|  इसके बाद कई ईमानदारी के पहरुओं के मारे जाने के समाचार अखबारों में छपते रहे | ये थे, इंडियन आयल कारपोरशन के इंजीनियर मंजूनाथ जिन्होंने २००५ में उ.प्र. लखीमपुर में पेट्रोल में मिलावट करने का पर्दाफास किया था, बी डी ओ कलोल जिन्होंने २००८ में मिदिनापुर प.ब. में नरेगा में धांधली पकड़ी थी, सामाजिक कार्यकर्ता सतीश शेट्टी जिन्होंने २०१० में पुणे में भूमि घोटालों को उजागर किया था और सामाजिक कार्यकर्ता अमित जेठुआ जिन्होंने २०१० में अहमदाबाद में अवैध खनन की बखिया उधेड़ी थी | माफियाओं द्वारा मौत के घाट उतारे जाने वालों की यह संख्या आज सकैडों में पहुँच गयी है | संतो के नाम को कलंकित करने वाले कारागार में बंद बाप-बेटे के दुष्कर्म को उजागर करने वाले कई गवाह भी इसी क्रम में काल-कवलित हुए हैं | म.प्र. व्यापम घोटाले में चार दर्जन संदर्भित-गवाह भी इसी क्रम में बेमौत मारे गए हैं | इस घोटाले से लाखों अयोग्य व्यक्ति योग्य बनकर आज समाज को सजा दे रहे हैं  | अन्धविश्वास विरोधी आन्दोलन चलाने के कारण पुणे में नरेंद्र दाभोलकर को अगस्त २०१३ में  और सी पी आई नेता गोविन्द पंसारे को फरवरी २०१५ में अंधविश्वास के पोषकों ने गोली मरवा दी | इन सभी को मारने वाले आज तक कानूनी सिकंजे से दूर हैं | हमारे इर्द-गिर्द कुछ भी गलत हो रहा हो उस पर मुंह खोलना, उसे उजागर करना या गांधीगिरी के साथ उसका विरोध करना, जिन्दी लाश बनकर तमाशा देखने या मसमसा कर रह जाने से कहीं अच्छा है | हम जिन्दी लाश हैं या नहीं, यह हमें स्वयं से एक दिन अवश्य पूछना पड़ेगा, इतना मैं अवश्य जानता हूं | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.07.2015

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Pooran Chandra Kandpal

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                                                                       दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

    ‘बेडू पाको’ गीत पर चनरदा ल कुछ जानकारी दी | उनूल बता, “य गीत भौत पुराण और प्रसिद्द छ | आब कुछ लोगों ल यैक मिक्स –रिमिक्स लै करि है| डिस्को जास ठसैक –मसैक, लटैक- फटैक –झटैक लै कएक विडिओ य गीत में देखूं रईं  |  सांचि बात त य छ कि य गीता क आखर ‘बेडू पाको बारामासा’ न्हैति बलिक य ‘बेडू पाको बारियो मासा’ छ | नवम्बर २०१४ में कुमाउनी भाषा सम्मलेन अल्माड़ में म्येरि भेट एक सुप्रसिद्ध कुमाउनी साहित्यकार दगै हैछ |  उनूल बता, “महाराज ‘उज्याव’ किताब में (लेखक पूरन चन्द्र काण्डपाल) पृष्ठ २८ पर ‘बेडू पाको’ क रचनाकार  ब्रजेन्द्र लाल शाह और गायक मोहन उप्रेती लेखि रौछ | म्यार समझ ल य ठीक न्हैति | ‘बेडू पाको’ एक लोक गीत छ और कब बटि चलि रौछ क्ये पत् न्हैति | लोक गीतों क रचियता क पत् लागण मुश्किल छ | हाम ‘लोक’ पर कब्ज नि करि सकन |” उनूल मीकैं एक किताब देखै जमें लेखि रौछी, “बेडू बारों महैण नि पाकन | य सिरफ भादो (अगस्त-सितम्बर) में पाकूं | भादो हुणी ‘बारि’ या ‘बारिय’ या ‘बारियो’ या ‘काव’ महैण लै कौनी | ‘बारि, बारिय, बरियो और काव’ शब्दों क मतलब हुंछ ‘ना, मना, बंद या नक्’, जस कि ‘वील लासन-प्याज बारि रौछ’, या ‘भौ लिजी ब्वारि ल खट-मिठ, मर्च-लूण बारि रौछ’ | ‘बारियो’ महैण हुण क वजैल भादो में क्ये शुभ काम लै नि करन | हालों में ब्या हई ब्योलि कैं भादो में मैत भेजी दिनी | आषाड़-सौंण  में गोड़ाइ पुरि है जींछ | भादो में  स्यैणीय कुटव- कसि पर हात नि लगूं | कुटव – कसि बारि दिनी | भादो में फसल गबार ऐ जींछ, यैक वजैल खेतों में जाण कि मनाही है जींछ | य सब बातों ल पत् चलूं कि भादो ‘बारियो’ मास छ और बेडू भादो महैण में पाकूं, बारों महैण नि पाकन | लोगों ल ‘बेडू पाको’ गीता क बोल बिगाड़न-बिगाड़नै ‘बारियो मासा’ क जाग कैं ‘बारामासा’ बनै है | हाम सब जाणनूं और देखनूं लै कि बेडू केवल भादो में पाकूं फिर लै य कभैं नि सोचन कि हाम य ‘बारामासा’ कि बात क्यलै नि उठौन ? बात रै गेइ ब्रजेन्द्र लाल शाह और मोहन उप्रेती कि तो पूछ-गौंछ करण पर पत् च लौ कि यूं रंगकर्मियों ल य गीत कैं जन-जन तक पुजा और यै में नई –नई जोड़ जोणी जस कि अच्याल मिक्स-रिमिक्स करणी नई-नई जुगाड़ –जोड़-जंतर करैं रईं | आज य लोक गीत देश बटि विदेश लै पुजिगो और जां-तां उत्तराखंड क नाम सुर-लहरियों में लहरां रौ | तो आब बटि ‘बेडू पाको बारियो मासा’ कया, ‘बारामासा’ झन कया |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
१६.०७.२०१५


Pooran Chandra Kandpal

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                                                 हरेले की बधाई और एक पेड़

           आप सभी को हरेले की हार्दिक बधाई | आज आप जगह के अनुसार  एक पेड़ जरूर लगायें | सही मायने में यही शुभ हरेला होगा | सोसल मीडिया में हरेले की फोटो भी तभी सार्थक होगी और तभी हरियाली भी बढ़ेगी |

        हरेला काटने के बाद टोकरी, कंडी या पत्तलों को मिट्टी सहित चुपचाप किसी मंदिर, मकान के छत या धूरी पर नहीं रखें | किसी जल स्रोत जैसे पनेरा, नौला, धारा, नदी, नहर आदि  में भी नहीं डालें | किसी पेड़ के नीचे भी मत पटकें | इस पात्र का मिट्टी सहित भू-विसर्जन करें अर्थात घर के ही पास  किसी खेत, बगीचे या पार्क में थोड़ी जमीन खोद कर दबा दें | त्यौहार के दौरान या बाद में गन्दगी करना शर्म है | हरेला काटने के बाद टोकरी या पात्र को इधर-उधर पटक कर  या उसे जल-स्रोतों पर डाल कर उसका अपमान नहीं होना चाहिए और जल –स्रोत भी  प्रदूषित नहीं होने चाहिए  | विनम्रता से एक सीधा सवाल है यदि हम किसी जगह को गंदा ही नहीं करेंगे तो सफाई करने की जरवत ही कहां पड़ेगी ? पुन: बधाई एवं धन्यवाद |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.07.2015

 

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