Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 326689 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                            बिरखांत  -५ (चार दिन अपवित्र क्यों ?)

     नवभारत टाइम्स का विचार विंडोका कालम (१९ जुलाई २०१५) पढ़ लेते तो अच्छा होता | सूक्ष्म में बताता हूं, कालम की लेखिका कहती है, “गुहाटी (असम) के कामाख्या मंदिर की देवी को आषाढ़ के महीने में चार दिन तक राजोवृति होने से मंदिर चार दिन बंद कर दिया जाता है |  फिर चार दिन बात रक्त-स्रवित वस्त्र भक्तों में बांट दिया जाता है | बताया जाता है कि इस दौरान ब्रहमपुत्र भी लाल हो जाती जिसके पीछे अफवाहें हैं कि पानी  के लाल होने के पीछे पुजारियों का हात होता है |” लेखिका ने ‘ रजोवृति के दौरान देवी पवित्र और महिला अपवित्र क्यों’ इस बात पर सवाल उठाते हुए अपने बचपन की घटनाओं की चर्चा की है कि जब वे इस क्रिया से गुजरती थी तो उनकी मां उन्हें अछूत समझती थी | लेखिका ने लेख में कई सवाल पूछे हैं | कहना चाहूंगा कि यहां सवाल स्वच्छता का होना चाहिए न कि महिलाओं की अपवित्रता का | उत्तराखंड में यह स्तिथि होने पर महिलायें  पहले गोठ (पशु निवास) रहती थी | बाद में चाख के कोने (मकान का प्रथम तल में बाहर का कमरा) में रहने लगी, परन्तु रहती थी अछूत की तरह | शिक्षा के प्रसार से आज बदलाव आ गया है |  बेटियों का विवाह बीस  से पच्चीस या इससे भी अधिक उम्र में हो रहा है | अब न लोगों को छूत लगती है और न किसी महिला में ‘देवी’ या ‘देवता’ औंतरता (प्रकट) है | घर –मकान- वातावरण सब पहले जैसा ही है, सिर्फ अब  छूत नहीं लगती | सत्य तो यह है कि वहम (भ्रम),पाखण्ड, आडम्बर और अंधविश्वास के बेत से महिलाओं को दबा-डरा कर रखने की परम्परा का न आदि है न अंत | बात-बात में बहू को देख सास में ‘देवी’ औंतरना फिर गणतुओं, जगरियों, डंगरियों और बभूतियों द्वारा बहू को प्रताड़ित किया जाना एक सामान्य सी बात थी (है) | वे चार दिन न तो कोई छूत है और न अपवित्रता | यह एक प्रकृति प्रदत क्रिया है जो यौवन के आरम्भ होने या उससे पहले से उम्र के पैंतालीसवे पड़ाव तक सभी महिलाओं में होती है | इस दौरान स्वच्छता सर्वोपरि है बस | लेख की शब्दस: चर्चा करने से बिरखांत बड़ी हो जायेगी परन्तु अखबार में छपे लेख को पढ़ने से कई भ्रांतियों पर मंथन अवश्य होगा | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.07.2015


Pooran Chandra Kandpal

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दिया या झन दिया लिफ्ट  (birkhant-6)
 
टैम नि रैगोय आब अनजानकि मदद करण
जो देखूंरौ दया भाव वीक है जांरौ मरण |
एक न्यूतम बै रात दस बजी औं रौछी घर
देर है गेछी मणि तेज चलूं रौछी स्कूटर |
अचानक एक च्येलि ल म्यर स्कूटर रोकण क लिजी हात दे
रात क टैम स्यैणी जात देखि मील स्कूटर रोकि दे |
गणगणानै कूंफैटी मीकैं छोड़ि दियो अघिल तक
बस नि आइ भौत देर बटि चै रयूं एकटक |
अच्याल कि दुनिय देखि मी पैली डर गोयूं
वीकि डड़ाडड़ देखि फिर मी  तरसि गोयूं |
म्यर इशार पाते ही उ म्यार पिछाड़ि भैगे
स्कूटरम भैटते ही वीकि सकल बदलि गे |
जसै मील स्कूटर अघिल बड़ा, कूंण लागी रुपै निकाल
नतर हल्ल करनू मैंस आफी कराल त्यर हलाल |
क्ये करछी आपणी इज्जत बचूण क लिजी चणी रयूं
वील म्यार जेबम हात डावौ मी चुप पड़ी रयूं |
एक्कै पचास क नौट बचि रौछी उदिन म्यार पास
वील म्यार और जेब लै टटोईं, हैगे उदास |
थ्वाड़ देर बाद उ म्यार स्कूटरम बै उतरि गे
पचास क नौट ल्हिबेर जाते-जाते मीकैं धमकै गे |
‘चुप रे हल्ल झन करिए, त्येरि सांचि क्वे निमानाल’
‘मी कूल य मीकैं पकड़ि ल्याछ, सब म्यर यकीन कराल’ |
जनै-जनै उ मीकैं य कहावत याद दिलैगे
‘ज्वात लागा लाग, आज इज्जत बचिगे’ |
उदिन बटि मी भौत डरन है गोयूं
लिफ्ट दिण क लिजी कतरां फै गोयूं |
बचपन में पढी ‘बाबा भारती’ कि कहानि याद ऐगे
जो डाकु खड़क सिंह हूं ‘कहानि कैकं झन बतै’ कैगे |
पर मी मदद करणी मनखियाँ कैं बतूंण चानू
क्वे भल मानो या नक सांचि बात कै जानू |
कैकं लै  लिफ्ट दिण में खत्र भौत छ
‘आ बल्दा मीकैं मार’ जसि अचानक मौत छ |
तुमुकैं हिम्मत छ त लिफ्ट दीण क जोखिम उठौ
नतर अणदेखी करो, चुपचाप  आपण घर जौ |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.07.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                        ) स्यैणीयां कि बात

      स्यैणीयां कि जागरूकता, हक़ और हिम्मता क पक्षधर चनरदा फौरिनै बलाय, “ अंहो नवभारत टाइम्स (१९ जुलाई २०१५ )क ‘विचार विंडो’ कॉलम कि लेखिका स्वाति मिश्रा कैं मानि गोय जो वील गिच खोलण कि हिम्मत करी | वीक लेख ‘देवी पवित्र तो मैं अपवित्र क्यों’ जरूर पढो | वील लेखि रौछ, ‘गोहाटी कामाख्या मंदिर (असम) कि देवि क मंदिर अषाढ़ में चार दिन देवि कैं रजोवृति (भ्यार हुण या छूत या टड़ि ) हुण क वजैल बंद करी जांछ | चार दिन बाद रज लापोती (ल्वे लागी) वस्त्र भक्तों में बांटी जांछ | बताई जांछ कि य दौरान ब्रह्मपुत्र नदी लै लाल है जींछ | अफवाह य लै छ कि यैमें पुजारीं क हात हुंछ’| लेखिका ल आपण बचपन कि याद में बतै रौछ कि जब उ य चार दिन क दौर में गुजरछी तो वीकि मै उकैं अछूत -अपवित्र समझछी |” चनरदा बतूं रईं, “ यां सवाल स्वच्छता क हुण चैंछ न कि अपवित्रता क | आज लै उत्तराखंड क गौनूं में यूं चार दिन स्यैणीयां कैं भौत परेशानी में काटण पड़नी | पैली बै उनुकैं  य दौरान ‘छुतिय’ गोठ में रौण पड़छी |  आब चाख में एक कुण पर टडै दिनी | शिक्षा क वजैल आब थ्वाड़ बदलाव देखीं रौ | आब च्येलियां क ब्या २० बटि २५ बरस या यहै लै ज्यादै उम्र में हूंरौ | आब न परिवार में कैकं छूत लागनि, न कैक द्याप्त बिगड़न और न कैक आंख पाकन |  आब कैकं अघोर लै नि पिड़ान और नै कैमें ‘देवि’ या ‘द्याप्त’ औंतरन | घर- मकान- वातावरण- रहन सहन  सब पैली कै जस छ पर आब डगरियां कैं लै छूत नि लागनि | सांचि बात त य छ कि भैम, पाखण्ड, आडम्बर और अन्धविश्वास क सिकड़ ल स्यैणीयां कैं दबै –डरै बेर धरण कि परम्परा क न क्वे आदि छ न क्वे अंत | छोटि-छोटि बात में ब्वारि देखि सासु में ‘देवि’ क औंतरण और वीक बाद गणतु, दास, डंगरी और चुटुक –बभूत लगूणी कैं बलै  बेर ब्वारि कैं नड़कूण –झड़कूण और सतूण  एक आम बात छी (हइ) | ऊं असजा क चार दिन न क्वे छूत छ और न अपवित्रता  | य महैण में एक ता चार दिन कि कुदरती क्रिया छ जो स्यैणीयां में १०-१२ बरस कि उम्र बटि ४५ बरस तक चलायमान रैंछ |  य विषय में च्येलि  और ब्वारि कैं देखणी चशम लै अलग-अलग नि हुण चैन | य दौरान स्वच्छता धरण भौत जरूरी छ | य बात च्येलियां कैं सयाण हुण है पैली इज ल समझै दीण चैंछ | कुर्मांचल अखबार क पाठक अगर माथ लेखि अख़बार क लेख पढ़ि ल्याला तो कएक और लै भैम दूर है जाल |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
23.07.2015
 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                        बिरखांत – ७ (मसाण / जागर उद्योग )

          मैंने गांव में बचपन से ही कई बार ‘मसाण’ की जागर (जातुर या जागरि) देखी | मुझे याद है तब मैं मिडिल स्कूल का छात्र था |  मसाण अर्थात एक काल्पनिक भूत या डर या कुंठा जो झस्स करने (अचानक डर से उत्पन्न मानसिक दवाव) से किसी ब्वारि (बहू) पर जबरदस्ती वहम डाल कर गणतुवा –दास या डंगरिया द्वारा लगाया जाता था (है) जिसे सौंकार (सास या ससुर) मान लेने में देर नहीं लगाते थे | इस त्रिगुट द्वारा मसाण ज्यादातर उस ब्वारि पर लग गया बताया जाता है जो अभी मां न बनी हो या जिसका ‘लड़का’ न हुआ हो, भलेही लड़कियां हुईं हों | गांव या क्षेत्र में सभी लोग मसाण के बारे में जानते हैं क्योंकि जागर से इसका खूब प्रचार होता है | जागर भोजन के बाद (अब भोजन के साथ शराब भी दी जाती है ) रात को लगती थी (है)| डंगरिया दुलैंच (आसन) में बैठता था और भंगड़ी (सुल्पे में तम्बाकू) पीता था | दास ढोल बजाता था या हुड़का –थाली के साथ सुर में नृत्य गीत गाता था | ताल-सुर-लय से पंचकचहरी (अन्धश्रधा भीड़) के बीच सिर के बाल खोल कर ब्वारी को बैठे-बैठे या खड़े होकर दास द्वारा नाचने पर बाध्य किया जाता था | दास-डंगरिये द्वारा उस ब्वारी की बाल पकड़ना या उसकी पीठ ठोकना आदि उटपटांग हरकत और अनभिज्ञ भीड़ का मूक दर्शक बन कर देखे रहना मुझे बहुत दुख पहुंचाता था | उम्र बढ़ने के साथ मैंने इस तमाशे का विरोध करना शुरू कर दिया जिसकी परिणति ‘जागर’ उपन्यास के रूप में हुई | हिन्दी अकादमी दिल्ली सरकार द्वारा वर्ष १९९५ में यह उपन्यास प्रकाशित हो गया | अंधविश्वास के साधकों और उक्त त्रिगुटे की दुकान इस उपन्यास से हिलने लगी और मैं उनकी आंखों का घूण (आंख में पिड़ाने वाला तिनका या पत्थर का चूरा) बन गया | बिरखांत को छोटी करता हूं | मेरे गांव का दास अपने बेटे को भी दास बनाना चाहता था | मैंने उसे जबरदस्ती स्कूल भिजवाया | अपने बाप के साथ रौटी (ताशा) बजाते, ना-नुकुर करते, यदा-कदा पढ़ते हुए वह दस पास कर गया | उसे मैंने रिजर्व कोटे से सरकारी नौकरी की बात समझाई और वह सरकारी कलर्क बन गया | गांव में अब दास नहीं है परन्तु क्षेत्र में त्रिगुट द्वारा प्रायोजित जागर- मसाण –गणत उद्योग खूब चल रहा है | वैज्ञानिक सत्य की सोच के बजाय पढ़े-लिखे युवा अंधविश्वास के सांकलों में बंधकर क्यों लकीर के फ़कीर बने हैं, हमारे इर्द-गिर्द यह प्रश्न आज भी गूंज रहा है | आखिर ऐसी क्या बात थी जो मुझे अन्दर ही अन्दर कचोट रही थी?  मैं बचपन से ही इस त्रिगुट की मिलीभगत को सुनता था | वे मुझे बच्चा समझते थे और मेरे ही सामने जागर का टनटोफड़ा (प्लान) बनाते थे | मैं स्कूल से आकर ग्वाला बनता था और जंगल में ये सब कुछ इनकी संगोष्ठी में सुनता था | घर –गांव में सभी इनके समर्थक थे इसलिए डर के मारे चुप रहता था | ‘मसाण’ पूजने के बाद उस महिला की कोख में शिशु पनपने लगता था | इसका रहस्य जानने के लिए में पूने में चिकित्सकों एवं मनोवैज्ञानिकों से मिला | बाकी अगली बिरखांत में ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.07.2015

Pooran Chandra Kandpal

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विजय दिवस :शहीदों को श्रधांजलि और सेना को सलाम
 
वह आग से खेला वह शोलों में खेला
वह दुश्मन के बरसते गोलों से खेला,
जब दुशमन ने युद्ध उस पर थोप दिया था
उसने गोली का उत्तर तोप से दिया था |
 
हरित जमीन पर श्वेत बर्फ जमी थी
तीन रंगों में एक रंग की कमी थी ,
दुश्मन गिराया खून अपना बहाया
लाल पट्टी जोड़ के तिरंगा बनाया |
 
लिपट तिरंगे पर घर जब वो आया
वतन के लिए वह खुद को दे आया,
कुर्बानी पर तेरी कुर्बान सभी थे
आँखें थी नम मन में श्रधासुमन थे |
 
देश के लिए तुझे मां ने जना था
देश प्रेम तेरे रग-रग में भरा था,
जब तक चाँद सूरज चमकते रहेंगे
शहीदी पर गर्व तेरी करते रहेंगे |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
२६.०७.२०१५

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                  बिरखांत – ८ (जागर/मसाण उद्योग ..(ii))

       अब तक सात बिरखांतों पर अच्छी प्रतिक्रिया हुई है जिन पर कभी अलग से बिरखांत लिखूंगा | ‘मसाण’ पूजा को देव-पूजा से न जोड़ा जाय | घट-घट में डेरा डाले हुए देव की चर्चा एक अलग विषय है जबकि अंधविश्वास अज्ञानता की उपज का एक रूप हैं | अन्धविश्वासी लोग अनभिज्ञता या अज्ञानता के कारण विज्ञान, तथ्य और सत्य से दूरी बनाये रखते हुए पारम्परिक कट्टरवाद की डोर से बंधे रहते हैं और सत्य-तथ्य को जानने की चाह नहीं रखते अथवा अंधविश्वास के सम्मुख मुंह खोलने का साहस नहीं जुटा पाते | ‘जागर’ उपन्यास की रचना नागालैंड में १९७७ में पूरी हुई और १९७८ में मैं पूने आ गया | उपन्यास के बारे में कई प्रश्न मन-मस्तिष्क में घूम रहे थे | सबसे बड़ा प्रश्न था कि मसाण पूजने के बाद महिला वदिल (गर्भवती) कैसे हो जाती थी जिसका श्रेय त्रिगुट को मिल जाता था | मेडिकल कालेज पूने में स्वास्थ्य-शिक्षक प्रशिक्षण के दौरान मानव शरीर रचना और शरीर के अंगों का आपसी सम्बन्ध एवं उनके कार्य मेरे प्रशिक्षण का एक विषय भी था | स्त्री-पुरुष संसर्ग से शिशु उत्पति का रहस्य चिकित्सक प्रशिक्षण में बता चुके थे | महिला के ओवम (ऐग सैल या अण्डाणु) एवं पुरुष के स्पर्म (शुक्राणु ) के मिलन से महिला के गर्भ में भ्रूण (जीव) की संरचना होती है | इस उत्पति में शरीर के इंडोक्राइन सिस्टम (ग्रंथि तंत्र) का बहुत बड़ा योगदान है | इस बहुत ही संवेदनशील एवं नाजुक तंत्र पर डर, वहम (भ्रम) मानसिक तनाव, कुंठा, रोग आदि का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है जिससे ये ग्रंथियां कार्य करना छोड़ देती हैं अथवा निष्क्रीय या शिथिल पड़ जाती हैं | ऐसी ही हमारे मस्तिष्क के पृष्ठ भाग में स्थित एक ग्रंथि ‘पिट्यूटरी’ है जो हमारे प्रजनन के अंगो को नियंत्रित करती है | यदि किसी निःसंतान विवाहित महिला से कह दें कि उस पर मसाण (या छल,भूत,हवा) लगा है तो वह वहम का शिकार हो जाती है और उसमें प्रतिमाह एक बार उत्पन्न होने वाला ओवम बनना बंद हो जाता है | वहम जो एक लाइलाज रोग है, उसके दूर होते ही (मसाण पूजते ही) प्रजनन के अंग संक्रीय हो जाते हैं और संतान उत्पति की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं | संतान नहीं होने के कई अन्य कारण भी हैं परन्तु ग्रंथि तंत्र का तंदुरुस्त एवं संक्रीय नहीं होना एक प्रमुख कारण है | एक और उदाहरण  – बभूत (चुकुट) लगाते ही किसी बच्चे या महिला या व्यक्ति का ज्वर (बुखार) उतरने का भी यही कारण है क्योंकि ग्रसित व्यक्ति समझता है कि छल, झपट या भूत जिसका उसे वहम है उसे बभूत से भगा दिया गया है | कोई भी मनोवैज्ञानिक दवाव हमारे शरीर पर बहुत घातक (सार्थक भी) परिणाम देता है | मसाण उद्योग में पहले किसी निःसंतान महिला को मसाण लगे होने का  रोगी बनाया जाता है फिर मसाण पूजा से रोग को दूर (मसाण को भगाने) करने की बात कही जाती है | इस प्रक्रिया में भ्रामक शब्द-जाल का बहुत बड़ा पाखण्ड होता है | बाकी अगली बिरखांत में...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.08.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                      ‘ तीलै धारो बोला,

    ‘बेडू पाको बारियो मासा’ के शंका समाधान के बाद कुछ मित्रों  (गौरव मठपाल गुंजन कला केंद्र) ने ’तीलै धारो बोला’ गीत के बारे में पूछा है | ‘तीलै धारो बोला’ एक ‘तंज’ (कटाक्ष, बोली मारना) लोकगीत  है | जिज्ञासुओं को सुनकर हैरानी होगी कि जब उत्तराखंड में चंद  राजाओं का राज्य (लगभग १०५० से  १७९० ई. तक ) ढलान पर आया तो बताया जाता है कि उस दौरान एक चंद राजा द्वारा अपनी रिश्तेदारी में अभद्र/अनैतिक आचरण करने पर लोक गायकों ने यह गीत ‘तीलै धारो बोला’ तंज के बतौर गाया | आजकल यह गीत ‘जोड़’ या ‘बाजूबंद’ से पहले मुखड़े के तौर पर गाया जाता है | इस संदर्भ का साहित्य कुमाउनी भाषा पत्रिका ‘पहरू’ अल्मोड़ा, में प्रकाशित हुआ है | ‘पहरू’ पत्रिका के लिए संपादक से मोब. ०९४१२९२४८९७  पर संपर्क किया जा सकता है | आज भी उत्तराखंड में या अन्य कहीं  भी गलत अथवा सही जो भी घटता है उस पर गीतकार/लोकगायक चुप नहीं रहते | नया उदारहण ‘नौछमी नरैण ‘का है | इसी तरह का तंज रीति काल के सुप्रसिद्ध कवि बिहारी लाल (१५९५ से १६६३ ई.) ने राजा जय सिंह पर भी एक दोहे के माध्यम से कसा था -

नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यहि काल।
अली कली में ही बिन्ध्यो आगे कौन हवाल।।

पूरन चन्द्र काण्डपाल  ०९८७१३८८८१५
29.07.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                      बिरखांत – ९  (कां बै कां पुजीं डा. कलाम)

      हमार पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न, मिजाइल मैन, महान वैज्ञानिक और सबूं है ठुल प्रेरणादायी डा. अबुल पाकिर जैनुलब्दीन अब्दुल कलाम ज्यू ल ८४ वर्ष कि उम्र में २७ जुलाई २०१५ हुणी बिन क्ये दुःख-तक्लीबै ठड़-ठडै हिटि दे | शेरदा ‘अनपढ़’ कि बात याद ऐगे, “तू नि जागलै झिट शेरुवा दुनिय में, जब होली हिट-हिट शेरवा दुनिय में; तब पुछलि पराणी शेरुवा दुनिय में, क्ये छोड़ि गछै निशाणी शेरुवा दुनिय में’ | कलाम ज्यू भौत कुछ छोड़ि गईं | एक गरीब घर में १५ अक्टूबर १९३१ हुणी रामेश्वरम तमिलनाडु में ऊँ पैद हईं, अखबार बेचि बेर इस्कूल में पढ़ाई करी, ऐरोनौटिक इंजीनियर बनीं, डी आर डी ओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) में पुजीं, उपग्रह ल्ही जाणी प्रक्षेपण यान क डिजैन बना और नाग, त्रिशूल, आकाश, पृथ्वी, अग्नि जास कएक मिजाइल (प्रक्षेपास्त्र) बनाईं | १९७४ और १९९८ में पोकरण अणु परिक्षण में मुख्य भूमिका निभै | ऊँ प्रधानमंत्री क वैज्ञानिक सलाहकार बनी, पद्मभूषण –पद्मविभूषण, १९९७ में भारत रत्न बनीं और २५ जुलाई २००२ बटि २५ जुलाई २००७ तक देश क इग्यारूं राष्ट्रपति रईं | ऊँ राष्ट्रपति भवन में एक अटैची ल्ही बेर गईं और उई एक अटैची ल्ही बेर पांच वर्ष बाद जैहिंद कौनै भ्यार नसि आईं | डा. कलाम ज्यू एक महान वैज्ञानिक त छी, ऊँ एक लेखक एवं प्रोफ़ेसर लै छी | उनर धर्म भारतीयता और मानवता छी | उनूल एक अध्यापक कि चार जां-तां नान, ठुल, स्यैणी, मैंस और खाश कर नताओं कैं लै शिक्षा दी | उनूं में पढूण क जूनून छी | पढ़ूंन-पढ़ूंनै आई आई एम् शिलांग में उनूल चलि दे | ऊँ अध्यात्मिक परिवेश, मातृशक्ति, पारदर्शिता, स्वच्छता और हरियाली क पक्षधर छी | उनूल काम में व्यस्त हुण क वजैल ब्या लै नि कर | ऊँ निकाह में नि पुजि सक | मेहनत, लगन, दूरदृष्टि, ईमानदारी और कर्म- संस्कृति क खुटक्यण (पायदानों) में पौ धरनै ऊँ देश कि सर्वोच्च जागि पर पुजीं | उनुकैं अणगणत पुरस्कार लै मिलीं जमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार लै छ |  उनूल करीब पन्नर किताब लेखीं जमें ‘२०२० ए विजन फौर द न्यू मिलेनियम’  ‘इग्नाइटेड  माइंड’ आदि मुख्य छीं | ऊँ एक सात्विक एवं  शाकाहारी छी | उनूल राष्ट्रपति भवन क द्वार सबूं लिजी खोलीं | उनार कार्यकाल में २१ दया याचिका आईं जमें एक कैं फांसि हैछ बाकि २० पर फैसाल नि करण पर उनरि आलोचना लै हैछ | मी ल २००२ में उनार राष्ट्रपति बनण है पैली आपणी किताब ‘ये निराले’ में ‘मिजाइल मैन कलाम’ शीर्षक पर उनरि जीवनी लेखी | य किताब कलाम ज्यू क कौण पर राष्ट्रपति भवन क पुस्तकालय में धरीगे | ‘बुनैद’ और ‘लगुल’ किताब में लै उनार बार में निबंध लेखीं | ऊँ एक महामनखी छी तबै उनुहैं ‘जनता क राष्ट्रपति’ लै कई जांछ | ऊँ एक सच्च देशभक्त और राष्ट्र चिन्तक छी | सबै सोसल मीडिया क दगडियों क दगाड़ डा. कलाम ज्यू कैं चनरदा (गिच खोलणी सबै कलम घसीट) कि लै विनम्र श्रधांजलि अर्पित छ | 

अघिल बिरखांत में क्ये और...बिरखांत चलते रौलि ... 

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
29.07.2015


Pooran Chandra Kandpal

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                                                                      बिरखांत – १० ( बुरा आदमी )

             जब से यथार्थ बोलने और गिच खोलने की बीमारी लगी तब से मैं उनके लिए एक बुरा आदमी बन गया जो स्वच्छंद होकर भटक चुके थे, बिगडैल बन चुके थे, समाज- देश को भूल चुके थे | इस तरह के मेरे बैरियों की सूची बहुत लम्बी हो गई जिनकी आखों में मैं चुभने लगा | ये वे लोग हैं जिनके लिए मैं बुरा हूं परन्तु वे मेरे लिए बुरे नहीं हैं सिर्फ सत्य को समझने में झिझकते हैं | तांत्रिक, ज्योतिषी, अन्धविश्वास के पोषक – शास्त्री; पंडित; गुरु; ज्ञानी; बाबा, निठ्ठले (अकर्मण्य ) सरकारी वेतनभोगी, शराबी, नशेड़ी, दास-डंगरिये, स्टाफ रूम में बैठे रहने वाले एवं विद्यार्थियों से गुटका- बीडी -शराब मंगाने वाले गुरुजन, बिगडैल विद्यार्थी, भ्रष्ट कर्मचारी, यात्री बसों के अनुशासनहीन चालक- परिचालक, भ्रष्ट- अकर्मण्य पुलिस वाले, भाटगिरी करनेवाले कवि, बिके हुए चैनल –पत्रकार –लेखक, बदन उघाडू यौवनाएं, चूल्हे- चौके और झाडू- पोछे तक ही सिमित रहने वाली गृहणीयां, जलस्रोतों में विर्सजन के पक्षधर, नदी और मूर्तियों में दूध बहाने वाले, मंदिरों में शराब चढाने वाले, राहू-केतू –भूत-मसाण के नाम से लोगों को डराने वाले, वास्तु का भ्रम दिखाने वाले, नीबू-मिर्च लटकाने वाले, कन्याभ्रूण हत्यारे अल्ट्रासाउंड मशीन वाले, कन्या को परायाधन कहने वाले, संस्थाओं को अकर्मण्य बनाने वाले, सड़क-गली-पार्क में श्वान विचराने वाले,( और भी कई तत्व हैं)| ये सभी कहीं खुलकर तो कहीं नुक्कड़-कोने पर मुझे एक अवरोधक समझने लगे | ३ अगस्त २०१५ को मूर्तियों पर खूब दूध बहते हुए नाले में गया | किसी कुपोषित के मुंह में जाता तो कुछ पुण्य अवश्य होता | कावड़ यात्री यदि एक पौधे का जलाभिषेक कर उसकी परवरिश करते या क्षेत्र में स्तिथ स्कूल की सफाई करते तो क्या पुण्य नहीं होता ? वृक्षमित्र बन कर प्रचार कम मिलेगा परन्तु अपार पुण्य जरूर मिलेगा | आज हम उस दौर में गुजर रहे हैं जब हम किसी शंका का सत्य एवं वैज्ञानिक प्रमाण चाहते हैं तो जबाब मिलता है, “ श्रधा पर सवाल मत कर |” यही कारण है कि आज हम शोध में बहुत पीछे हैं | विश्व के प्रथम ५०० (पांच सौ) विश्वविद्यालयों में हमारा नाम नहीं है जबकि देश में सात सौ विश्वविद्यालय और छत्तीस हजार महाविद्यालय हैं जिनमें तीन करोड़ छात्रों का नामांकन है | दुःख तो तब होता है जब एक पंडित जी अपने जजमान से कहते हैं कि पूजा के लिए ‘एक आम की टहनी और एक बेलपत्री की टहनी’ जरूर लाना | काश ! वे जजमान से एक आम और एक बेल का पौधा रोपित कर उसकी परवरिश के लिए भी कहते | इनका भी मैं बुरा बन गया | बुरा आदमी हूं ना | कुछ अच्छे के लिए बुरा बन भी गए तो यह बुरा नहीं है | विवेकानंद जी कह गए, “ पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है | मैं आशावान हूं | बिरखांत जारी ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.08.2015

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                      दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

        कुर्मांचल अखबार क पांचू वर्ष में प्रवेश करण पर चनरदा भौत खुशि हुनै बलाय , “अं हो ! जब कुर्मांचल अखबार शुरू हौछ, कएक लोगों ल त हिम्मत बधै पर कयेकों ल निराशा भरी बात लै करीं | उनुकैं भरौस नि छी कि य अखबार चलते रौल, “ भलेही सम्पादक डा. फुलोरिया कैं कएक परेशानी है हुनलि पर उनूल भौत कुशलता और संयम क साथ निर्विघ्न एवं उरातार चार साल अखबार भली- भांत चला और उम्मीद छ कि य कुमाउनी साहित्य –समाचार –संस्कृति  कि गंगा बगनै रौलि | आज लोग ‘कुर्मांचल अखबार’ क इंतज़ार में रौनी, देर हुण पर पुछनीं कि ‘अखबार आ छ नि आय’ ? य मौक पर चनरदा कि लै सबै पाठकों एवं अखबार कि पुरि टीम कैं बधाई | बस.. लागि रौ..रुकिया झन, ठड़िया झन, चलते रौ, बढ़ते रौ और अखबार कैं रोचक बनूण क लिजी नई-नई तरकीब सोचते रौ |”
      विषय बदलि बैर चनरदा ल  उपटापि अध्यापकों कि एक शर्मसार करणी  अनाड़ि हरकत कि लै जिगर करी | उनूल बता, “ बतूण में लै शरम लागैं रै य बात | उत्तराखंड बै छपी एक अखबार क समाचार पढ़ि बेर क्ये कूण नि आय पर ज्यादै अचरज लै नि हय | शिक्षा क पवित्र व्यवसाय पर कलंक लगूणी मास्टरों ल आपण तरब बटि क्ये कमी नि धरि रइ | अल्माड़ जिल्ल क एक राजकीय इण्टर कालेज में मिड-डे मील कि रसोई में अभिभावक संघ क सदस्यों ल दिन-धोपरी शिकार क हंड चढ़ी देखौ | सदस्यों कैं कुछ कलंकी अध्यापक पी बेर तर ( डाउन ) लै मिलीं और कुछ टुन्न लै छी | वां इस्कूल क टैम (पढ़ाई क टैम) पर पार्टी चलि रैछी | सुणण  में ऐ रै कि अभिभावक संघ कि मांग पर शिक्षा विभाग जांच में जुटि रौछ | शिव दत सती कि कविता याद ऐगे, “कै हैं कौनू को सुण छ जंगला क हाल ?” यसि हालत में उत्तराखंड कि शिक्षा क क्ये स्तर रौल ? क्वे देखणी- सुणणी जै हुनौ आज य हाल नि हुन | तबै त यां कक्षा पांच पास विद्यार्थी कक्षा द्वी कि किताब धड़ा-धड़ी नि पढ़ि सकन | उत्तराखंड क विद्यार्थी कक्षा बार पास करि बेर जब नौकरी क चक्कर में शहरों में पुजनी तो ऊँ महसूस करनी कि ऊँ ‘जीरो’ छीं | शिक्षा विभाग क ठुल अपसर और मुखिया कां छीं ? क्वे उनुहैं पूछो त सही कि देवभूमि क शराबी मास्टरों पर शिकंज को कसल और कभणी कसल ?  अध्यापक व्यवसाय पर कालिख पोतणी यूं मास्टरों कि मुक्स्यार कभणी थमियली ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी दिल्ली
06.08.2015

 

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