पंकज दा का यह सन्देश अत्यन्त महत्वपूर्ण है, सब लोगों को समझ में आ जाये इसलिये इसका अनुवाद मैं कर देता हूं.
अनुवाद- मुझे भी याद है कि हमारे स्कूल में तब हरेला की छुट्टी नहीं होती थी, हमें स्कूल से एक-एक पौधा मुफ्त में मिलता था. हम उस पौधे को अपने घर में कहीं पर लगाते थे. मुझे याद है कि एक बार मुझे नींबू का एक पौधा मिला, वो बारमासी था (अर्थात साल भर फल देने वाला)अभी भी लगा हुआ है और अड़ोसी-पड़ोसी सभी कहते हैं कि- अहा! क्या गजब पौधा लगाया भाइ!साल भर फल देता है वो पौधा! अब सरकार को इसे एक संकल्प और एक आन्दोलन के रुप में शुरु करना चाहिये, ताकि हमारे आगे पीछे ह्यूमन फ्रेंडली और ईको फ्रेंडली पौधे लगें। मै आज सुबह सब से यह अनुरोध करना चाहता था कि आज आप सभी लोग एक-एक पौधा लगायें, लेकिन नौकरी के चक्कर में भूल गया। अब आप कल (यानि 17 जुलाई) को सभी लोग एक-एक पौधा लगायें, हमारे पहाड़ में कहते हैं कि "पितरे की कमै नातर खिने" (पुरखों की कमाई, अगली पीढियों के लिये होती है) तो यह उसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है - पौधा लगाना. हम एक पेड़ लगायेंगे तो हमारे नाती- पोते उसके फल खायेंगे। तो महाराज एक कोशिश करियेगा हां जरूर!!!