चौथा चरण-गुरु की आरती
इस चरण में देवता द्वारा गुरु की आरती की जाती है, ऎसा माना जाता है कि हमारे सभी लोक देवता पवित्र आत्मायें हैं। गुरु गोरखनाथ इनके गुरु हैं और इन सभी देवताओं ने कभी न कभी हरिद्वार जाकर कनखल में गोरखनाथ जी से दीक्षा ली है। तभी इनको गुरुमुखी देवता कहा जाता है, इस प्रसंग का वर्णन जगरिया करता है।
यहां पर गंगनाथ जी की दीक्षा का वर्णन किया जा रहा है-
ए.......तै बखत का बीच में, हरिद्वार में बार बर्षक कुम्भ जो लागि रौ।
ए...... गांगू.....! हरिद्वार जै बेर गुरु की सेवा टहल जो करि दिनु कूंछे......!
अहा.... तै बखत का बीच में, कनखल में गुरु गोरखीनाथ जो भै रईं......!
ए...... गुरु कें सिरां ढोक जो दिना, पयां लोट जो लिना.....!
ए...... तै बखत में गुरु की आरती जो करण फैगो, म्यरा ठाकुर बाबा.....!
अहा.... गुरु धें कुना, गुरु......, म्यारा कान फाडि़ दियो, मून-मूनि दियो,
भगैलि चादर दि दियौ, मैं कें विद्या भार दी दियो,
मैं कें गुरुमुखी ज बणा दियो।
ओ... दो तारी को तार-ओ दो तारी को तार,
गुरु मैंकें दियो कूंछो, विद्या को भार,
बिद्या को भार जोगी, मांगता फकीर,
रमता रंगीला जोगी,मांगता फकीर।
इस समय नृत्य करते समय देवता के हाथ में थाली और थाली में चावल के दाने, राख, फूल और जली हुई घी की बाती दी जाती है, देवता नृत्य करते समय थाली पकड़्कर अपने गुरु की आरती करते हैं।