तिवारी/त्रिपाठी जाति के लोग सावन पूर्णमासी को राखी नहीं मनाते और ना ही जनेऊ बदलते बल्कि 15दिन बाद ये पर्व मनाते है।
इसकी वजह इस शाखा के लोगों का साम वेदों का अनुयायी होना है। इस समुदाय के बुजुर्ग पंडित हरिदत्त तिवारी का कहना है कि यज्ञोपवीत बदलने को हरताली तृतीया का दिन शुभ माना जाता है। इस कारण उनकी राखी मनाने का वक्त अलग होता है।
तिवारी समाज का राखी पर्व का ही नहीं, जनेऊ बदलने का ढंग भी अलग है। जनेऊ को धारण करने का वक्त और तरीका भी अलग है। पंडित भुवन चंद्र कुलेठा का कहना है कि तिवारी जाति में कोसमनि शाखा के तिवारी जनेऊ और राखी को सावन पूर्णिमासी को धारण नहीं करते। इसके बजाय भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही बदला जाता है।
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