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उत्तराखंड मे बन रहे हाड्रो प्रोजेक्ट वरदान या अभिशाप ?

अभिशाप
21 (56.8%)
वरदान
10 (27%)
कह नहीं सकते
6 (16.2%)

Total Members Voted: 37

Voting closes: October 10, 2037, 04:59:09 PM

Author Topic: Hydro Projects In Uttarakhand - उत्तराखंड मे बन रहे हाड्रो प्रोजेक्ट  (Read 49701 times)

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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I think they should be fully utilized with keeping in mind that the people who are relocated should be given full compensation and adequate options of earning. It is quite difficult to leave the place where u have been from generations but developement has its own shortcomings.

हेम पन्त

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villagers of Chai marooned for over two years
« Reply #61 on: August 22, 2009, 10:01:59 AM »
Source : http://www.newstrackindia.com/newsdetails/118334

Chai (Uttarakhand), Aug 21 (ANI): Residents of Chai village in Uttarakhand are still struggling to cope up with the predicament, which they encountered nearly two years ago when water from a tunnel of a powerhouse project gushed into their homes.

 
It was on October 25, 2007 that a massive leakage in the tunnel of the 400 MW powerhouse project constructed by the Jaiprakash Power Ventures Limited, a subsidiary of Jaypee Group of Industries resulted in the entire Chai village being inundated.

 
Only couple of families out of 25 were compensated.

 
With no roof over their heads and facing Herculean task to travel to the nearby villages or other places for their work, these families have reached the limit of their patience.

 
"When the tunnel built by JP Company (Jaiprakash Power Ventures Limited) poured out two years ago, our complete village was wiped out. Every day we are living under the fear of losing our lives. All our homes have been destroyed. We face a lot of problems while commuting from one place to another, as there are no roads," said Yashoda Devi, a villager.

 
She also complained that many families are living in shacks and tents since the government has not rehabilitated them even after two years.

 
Despite repeated appeals, the government has rehabilitated just seven to eight families out of the 25 gravely affected households.

 
So much so, relief if any seems to have become a mirage for these families.

 
"We took our problem to the Chief Minister and the District Magistrate and every authority concerned, but so far they have provided houses to just seven to eight families. Those families who were severely affected by the leakage were promised a compensation of 365,000 rupees.

But the villagers were not in favour of the compensation but wished to move to some safer place," said Pratap Lal, former Pradhan (headman) of Chai village.

 
Reacting to all the plight of the villagers, the government of Uttarakhand has contended that the grievances of the affected villagers are being looked into and that the District Magistrate is being instructed to address the problems of Chai village.

 
"This problem is now under consideration. We will be referring the matter to the District Magistrate and strict instructions will be issued to him. The problem is very grave in the village ever since the tunnel had leaked.After that commuting has been very dangerous for the villagers.

 
The District Magistrate will be looking into the matter at the earliest," asserted Khajan Das, Minister of Disaster Management, Uttarakhand. (ANI)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Please go through the news.

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पहाड़ों लिए घातक हैं जल विद्युत परियोजनाएंSep 13, 10:52 pmबताएं
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नई टिहरी गढ़वाल। उत्तराखंड की नदियों पर निर्माणाधीन व प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं पर पुनर्विचार की मांग को लेकर नदी बचाओ आंदोलन कार्यकर्ताओं का यात्रा दल नई टिहरी पहुंचे। उन्होंने परियोजनाओं को जल, जंगल व जमीन के लिए खतरा बताया।

11 सितंबर को मोरी उत्तरकाशी से शुरू हुई नदी बचाओ आंदोलन की जल यात्रा रविवार को नई टिहरी पहुंची। इस अवसर पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए आंदोलन के बिहारीलाल ने कहा कि विज्ञान व तकनीकी के युग में ऊर्जा के बहुत सारे विकल्प हो सकते हैं। लेकिन सरकार उस दिशा की ओर सोच ही नहीं रही है। उन्होंने कहा कि बायोमास, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा व घराटों से बिजली पैदा कर ऊर्जा की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। सुरेश भाई ने कहा कि नदियों को सुरंगों व झीलों में कैद कर उनके प्राकृतिक स्वरूप से बिगाड़ा जा रहा है। सुरंग बनाने के लिए होने वाले विस्फोटों से गांवों के पेयजल स्रोत सूख रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार प्रदेश में 40 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन की बात कर रही है, लेकिन पर्यावरणीय असंतुलन पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बांध निर्माण करने वाली बाहरी कम्पनियां स्थानीय निवासियों के हक-हकूकों को छीन रही है। बाहरी मजदूरों को गांव में वोटर बनाकर स्थानीय लोगों को हाशिए पर धकेलने की साजिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि यात्रा का उद्देश्य स्थानीय जनता में नदियों के प्रति जागरूकता पैदा करना है। इस अवसर पर यात्रा संयोजक नागेद्र दत्त, बार एसोसिएशन के महामंत्री सुखदेव बहुगुणा, पंकज, मोनिका उपस्थित थे।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5787378.html

हेम पन्त

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Source : Dainik Hindustan
 
टिहरी बांध की उम्र को समय से पहले ग्रहण लग सकता है। बारिश व भूस्खलन से हर साल कई टन मिट्टी इसकी झील में जमा हो रही है। इसके चलते 150 साल तक चलने की टिहरी बांध की परियोजना समय से पहले ही बंद हो सकती है। केंद्रीय भूमि एवं जल संरक्षण अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान देहरादून ने इस समस्या से टिहरी बांध की तकनीकी समिति को अभी से चेता दिया है। साथ ही समस्या से निदान के उपाय उठाने के जरूरी सुझाव भी दिए हैं।

केंद्रीय भूमि एवं जल संरक्षण अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक डॉ. वीएन शारदा ने मंगलवार को ‘हिन्दुस्तान’ से खास बातचीत में कहा कि देश में हर साल करीब 534 करोड़ टन मृदा क्षरण हो रहा है। इसमें 29 फीसदी मिट्टी तो देश से बाहर समुद्र में बह जाती है, जबकि 10 फीसदी मिट्टी जलाशयों में जमा हो रही है। डॉ. शारदा के अनुसार यही कारण है कि भांखड़ा नांग्ल बांध की उम्र पहले 403 साल आंकी गई थी, आज उसकी उम्र 290 साल मानी जा रही है।

ऐसा ही उत्तराखंड में स्थापित बहुआयामी टिहरी बांध परियोजना के साथ भी होने वाला है। डॉ. शारदा जो टिहरी बांध परियोजना की तकनीकी समिति के सदस्य भी हैं, उन्होंने इस समिति के अन्य सदस्यों को इस चिंता से अवगत करा दिया है। साथ ही टिहरी बांध में जलागम विकास व प्रबंधन पर ध्यान देने का सुझाव दिया है, ताकि टिहरी ङील में पानी छन-छनकर पहुंचे और बांध की उम्र बढ़ सके।

हेम पन्त

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Avdhash Kaushal to return Padma Shree
« Reply #64 on: October 01, 2009, 10:19:59 AM »


Source : PTI

Dehradun, Sept 30 (PTI) Padma Shri awardee Avdhash Kaushal has decided to return the honour to the government to protest against stalling work at two power projects in Uttarakhand in the name of protecting environment.

Uttarakhand Government has stopped work on 480 watt Maneri Bhali power project, situated on the banks of river Ganga, and on 381 mega watt Bhaironghati power project after environmentalist Dr Guru Das Agarwal sat on a fast unto death, protesting against the two projects.

Demanding resumption of work at the two sites, Kaushal today told reporters that he will return his Padma Shri , presented to him by the government in 1986 for his contribution towards conserving environment, if work on the two projects is not resumed immediately.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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There seems to be some contradiction between Agarwal Ji and Kaushal Ji.

The whole game is not understood.

waise Sach kahoon.

aane waale 10 saal me, uttarakhand ke 90% gaav ya too Tunnel ke neeche ya upar honge..

Earthquake me ek 5 second me sab maha vinash.. We can not imagine that.. There should be some limits of constructions of Dam. Environment should also be kept in mind.

Neta log.. apna to bus gaye hai maidani eelao me, Uttarakhand ki janta ki jaan daali dee khatre me.

Source : PTI

Dehradun, Sept 30 (PTI) Padma Shri awardee Avdhash Kaushal has decided to return the honour to the government to protest against stalling work at two power projects in Uttarakhand in the name of protecting environment.

Uttarakhand Government has stopped work on 480 watt Maneri Bhali power project, situated on the banks of river Ganga, and on 381 mega watt Bhaironghati power project after environmentalist Dr Guru Das Agarwal sat on a fast unto death, protesting against the two projects.

Demanding resumption of work at the two sites, Kaushal today told reporters that he will return his Padma Shri , presented to him by the government in 1986 for his contribution towards conserving environment, if work on the two projects is not resumed immediately.


हेम पन्त

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पारम्परिक वेशभूषा पहने उत्तरकाशी की महिलाएं। ‘बिजली दो-पानी दो’ की बुलंद आवाज। बीच-बीच में नाच-गाने का दौर। फिर एकाएक जोरदार नारेबाजी। गांधी पार्क के मुख्य द्वार पर शुक्रवार को दिनभर कुछ ऐसा ही नजारा रहा। उत्तरकाशी से सैकड़ों महिलाएं यहां धरना देने पहुंची थीं। वो भैरो घाटी, लोहारी-नागपाला व पाला मनेरी जल विद्युत परियोजनाओं को बंद किए जाने से नाराज थीं। इन परियोजनाओं से जुड़े बेरोजगार युवकों ने भी धरने में उनका साथ दिया। रुलक संस्था ने इस धरने का आयोजन किया था।

गांधी जयंती के मौके पर गढ़वाली महिलाएं सुबह करीब 10 बजे धरने पर बैठीं। वो जल विद्युत परियोजनाओं को बंद किए जाने पर अपना विरोध व्यक्त कर रही थीं। उन्होंने अपने हाथों में ‘बिजली की खानापूर्ति नहीं आपूर्ति चाहिए, हम सबका एक ही है सपना रोशनी भरा हो गांव अपना, गोमुख से हरिद्वार नहीं सिंचती गंगा एक भी खेत, बंद जल विद्युत बिजली परियोजनाओं को तत्काल चालू करो’ आदि नारे लिखे हुए बैनर ले रखे थे।

धरने पर बैठी मोरी ब्लाक के धारा गांव की चुम्मी का कहना था कि बिजली परियोजनाएं बंद होने से उनके परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। गांव में शिक्षा, पानी व चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं है। चुम्मी का कहना था कि राज्य सरकार ने अगर इन समस्याओं का शीघ्र निदान नहीं किया तो अगले चुनाव में वो वोट नहीं डालेगी।

धरने में शामिल भटवाड़ी मंजदूर संगठन के अध्यक्ष सुनील रौतेला का कहना था कि बंद की गईं तीनों जल विद्युत परियोजनाओं से गंगा नदी को कोई नुकसान नहीं हो रहा है, लेकिन केंद्र व राज्य सरकारों ने इन्हें बंद कर दिया। उत्तरकाशी से ही आए सुनील रावत का कहना था कि परियोजनाओं के बंद होने से क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ गई है।


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गंगा की हत्या की कीमत पर रोटी नहीं चाहते हिंदू

उत्तरकाशी। विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल और उनके साथ आए संतों के दल ने शनिवार को उत्तरकाशी में निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं का जायजा लिया। इस दौरान संतों ने परियोजना के कारण गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण और गंगा के प्रवाह को रोकने पर कड़ा ऐतराज जताया। उन्होंने आरोप लगाया कि परियोजनाओं के निर्माण के जरिए गंगा की हत्या का षड्यंत्र रचा जा रहा है और कोई भी हिंदू गंगा की कीमत पर रोटी नहीं चाहेगा।

उल्लेखनीय है कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत विहिप के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सिंघल समेत संतों का दल शुक्रवार को ही उत्तरकाशी पहुंच गया था। इसका उद्देश्य गंगा नदी में विभिन्न निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं के कारण बढ़ रहे प्रदूषण और प्रवाह बाधित होने से पड़ रहे दुष्प्रभावों का जायजा लेना था। शनिवार को श्री सिंघल व संतों के दल ने लोहारीनाग- पाला परियोजना का भ्रमण कर निर्माण कार्यो का निरीक्षण किया।

पत्रकारों से बातचीत के दौरान संतों ने सरकार व परियोजना निर्माण कर रही संस्थाओं के प्रति अपनी नाराजगी तल्ख तेवरों में जाहिर भी की । श्री सिंघल व अखाड़ा परिषद के महंत ज्ञानदास ने स्पष्ट किया कि गंगा भारतीय धार्मिक, सामाजिक व आर्थिक जीवन में विशेष स्थान रखती है और इसके उद्गम से ही बांध बनाने की योजनाओं ने इसे खासा नुकसान पहुंचाया है। भ्रमण व वार्ता के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी, डा. भरत झुनझुनवाला, हरिगिरी महाराज, स्वामी परमानंद सरस्वती, निर्वाणी अखाड़े के महंत धर्मदास, शिवशंकर गिरी, दर्शन सिंह आदि उपस्थित रहे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5854260.html

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ग्रामीणों ने डेम साइट पर कार्य रोका  DAINIK JAGRAN

श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। भूमि का मुआवजा और रोजगार देने की मांग को लेकर स्वीत लगा चोपड़ियों के ग्रामीणों ने शुक्रवार को एएचपीसी के कार्यालय में तालाबंदी कर डैम साइट पर भी काम रुकवा दिया।

स्वीत लगा चोपड़ियों की आंदोलनकारी जनता ने कंपनी के कार्यालय स्थल को जाने वाले बैरियर को भी बंद करने के उपरांत डैम साइट स्थल के बैरियर पर धरना दिया। आंदोलित जनता का कहना है कि उनकी मांग को टाला नहीं जाय।

देर सांय तक एएचपीसी कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संतोष रेड्डी और उपजिलाधिकारी बीके मिश्रा के साथ आंदोलनकारियों की वार्ता चल रही थी। श्याम सिंह रावत, संजय रावत, बीना देवी आदि के नेतृत्व में महिलाओं ने मांग नहीं मानने पर आक्रोश व्यक्त किया। उपजिलाधिकारी ने बताया कि मुआवजे के सम्बन्ध में पौड़ी बंदोबस्त से आवश्यक रिकार्ड भी मंगवाया जा रहा है।

एएचपीसी कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संतोष रेड्डी का कहना था कि अन्य मांगों पर कंपनी के निदेशक के आने पर वार्ता हो जाएगी और भूमि मुआवजे के सम्बन्ध में प्रशासन की उपस्थिति में वार्ता होगी। दूसरी ओर आंदोलनकारी जनता का कहना है कि उनकी लगभग 800 नाली भूमि श्रीनगर जलविद्युत परियोजना में आ गयी है। उन्हें इस भूमि का मुआवजा और रोजगार भी चाहिए। इस मुद्दे पर तुरंत निर्णय होना चाहिए।

Devbhoomi,Uttarakhand

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YE DAAM UTTARAKHAND KE CHHATI MAIN DAAM  LGAANE KE KARY KAR RAHE HAIN OR IN DAMON NE TO KAI GAANVON KA BHI APNE ANDAR SAMET LIYA HAI


विकास को गांवों का सफाया मंजूर नहीं

देवाल (चमोली)। प्रस्तावित 252 मेगावाट देवसारी विद्युत परियोजना को रद्द करने व ग्रामीणों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की मांग को लेकर ग्रामीणों का धरना आज नवें दिन भी जारी रहा।

मंगलवार को ब्लाक मुख्यालय में धरना प्रदर्शन पूर्व प्रधान महिपत सिंह की अध्यक्षता में हुआ। इसमें वक्ताओं ने आरोप लगाया कि सरकार क्षेत्र की जनता की आवाज दबा रही है, जिसे कतई बर्दाश्त नही किया जाएगा। मातृभूमि बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष गबर सिंह ने कहा प्रशासन नौ दिन बाद भी धरना प्रदर्शन को अनदेखा कर रहा है, इससे सरकार की नकारात्मक नीति का पता चलता है। उन्होंने कंपनी की डीपीआर रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए कहा किसी भी दशा में डैम निर्माण नही होने दिया जायेगा।
धरने पर दिनेश मिश्रा, तारा सिंह परिहार, हिम्मत सिंह रावल, सुदर्शन गडि़या, गोविन्द सिंह कठैत, राम सिंह, ज्येष्ठ प्रमुख मोहनराम, धर्मराम, कुंवर राम, लीलाधर जोशी, हरिराम, भाजपा महामंत्री पुष्कर सिंह, नरेन्द्र बिष्ट, केदार सिंह नेगी, हेमंत चंदोला, मदन राम, मंजू देवी, मालती देवी, क्षेपं सदस्य वीरप्पन गडि़या, ब्लाक प्रमुख डीडी कुनियाल, बालीराम, जगदीश राम, लीला राम बैठे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5892734.html

 

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