चन्द्रशेखर करगेती17 minutes ago
खदान और चुगान की बहस में खुद गया पहाड़
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टीवी चैनलों में अवैध खनन और उनको ढोने के लिए नदियों के पाटों में खड़े जेसीबी डंपरों, ट्रकों, ट्रैक्टरों की तस्वीरें दिखाई जा रहीं हैं। अधिकारी, कर्मचारी, मंत्री, हाई-वे पर आते-जाते नदियों में होते हुए खनन देख रहें हैं। लेकिन वे सब चुप हैं। जंगलात विभाग तो बिल्कुल निष्क्रिय बना रहता है। उत्तराखंड में पहले जो अवैध खनन रात के अंधेरे में किया जाता था, अब वह दिन दिहाड़े किया जा रहा है ।
इसके साथ ही खनन माफियाओं का दुस्साहस देखिए, वे बाधा बन रहे अधिकारियों को कुचल देने तक में नहीं हिचक रहें हैं । खनन माफियाओं के प्रति दिखाई गई कमजोरी का खामियाजा सरकारी अधिकारी या कर्मचारी ही नहीं भुगत रहें हैं, आम जनता भी भुगत रही है। खदान से छोड़े गड्ढों में बच्चे डूबे हैं, पुलिया, पुलों के पाए ढहे हैं, निजी मकानों, भवनों की नीवें चरमराई हैं, सड़कों को नुकसान हुआ है, वाहन चालक दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं । कई पहाड़ी गांवों से लगातार शिकायतें आ रहीं हैं कि अवैध खनन से उनके गांवों को खतरा है। हाल में ही ऐसी पुकार उत्तरकाशी की यमुना घाटी के कई गांवों से आई हैं ।
दूसरी ओर, सरकार की तरफ से भी इसे वैध बताया जा रहा है । खदान को चुगान बताकर जायज ठहराया जा रहा है । न इसे केंद्र सरकार रोक पा रही है और न ही राज्य सरकार । दो साल पहले पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का नदियों में खदान हो रहा है या चुगान, इस पर राज्य सरकार से टकराव हुआ था । केंद्र इसे चुगान मानता रहा है । उसने नदियों में खदान न होने देने की अपनी नीति के अनुरूप 2010 में लगभग पूरे साल ही राज्य की नदियों से रेत-बजरी निकालना रोक दिया था । न्यायालय भी सरकार की चुगान होने की दलीलों से ज्यादा सहमत नहीं लगते हैं । कुछ एक सरकारी वैज्ञानिकों के तर्कों को छोड़ दें, तो वैज्ञानिक परिभाषा में जो हो रहा है, उसे चुगान नहीं कहा जा सकता है ? जो खनिज नदी सतह से निकाल कर लादे जा रहें हैं, वे चुगे जा रहें हैं, खोदे नहीं जा रहे, इस बात को वैज्ञानिक और कानूनी दृष्टि से सिद्ध करने के लिए जो काम करना चाहिए, वह हो नहीं रहा है ।
न वैज्ञानिक, न अधिकारी और न सरकार किसी की भी इसमें दिलचस्पी नहीं है । वैसे इसे अब भी किया जा सकता है । इसके लिए नदियों में पिछले वर्षों की रेत-बजरी की सतह व अगले साल की सतह की मोटाई भी नापनी होगी । कुल अंतर ही सच बता देगा ।
स्थानीय लोग भी अब नदियों में अवैध खनन का विरोध कर रहे हैं । इससे क्षेत्र में असामाजिक तत्वों की बढ़ोतरी के अलावा, स्थानीय खेतों, रास्तों और पुलों को भी नुकसान हो रहा है । हमें यह भी समझना होगा कि नदियों में ज्यादा बजरी-पत्थर आना चिंता का विषय होना चाहिए । यह बताता है कि पहाड़ों में जलागम क्षेत्रों की स्थिति खराब होती जा रही है । इससे खेती और आवासीय क्षेत्रों को भी खतरा हो सकता है ।
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(आभार: वीरेन्द्र पैन्यूली, सामाजिक कार्यकर्ता)