गिर्दा के स्नेहिल वात्सल्य से अब हम कभी भी आच्छादिन नहीं हो पायेंगे, फोन पर गिर्दा से बात होती थी पर रुबरु होने का मौका विगत १४ अगस्त को ही मिला। जितनी आत्मीयता से गिर्दा मिलते थे, बोलते थे.....अब वह सुनने को नहीं मिलेगा। उनका जाना उत्तराखण्ड के सरोकारों से सरोकार रखने वालों के लिये अपूरणीय क्षति है, वह ऐसा स्थान रिक्त कर गये, जिसे भर पाना नामुमकिन है।
जाना तो सबको होता है एक दिन,
पर यूं ही चले जाओगे गिर्दा,
सोचा भी न था,
यूं ही मुंह मोड़ के चले गए,
इतनी निष्ठुरता क्यों गिर्दा ?
पर दिल में, जज्बातों में हमेशा,
याद तुम्हारी संजोये रखेंगे हम गिर्दा|
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि|