Author Topic: Introduction of Community Members - मेरा पहाड़ के सदस्यों से परिचय !  (Read 226358 times)

पंकज सिंह महर

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सभी नये सदस्यों का अपने इंटरनेटी पहाड़ "मेरा पहाड़" पर हार्दिक स्वागत है।
     आशा है आप लोग फोरम में अपनी निरन्तरता बनाये रखेंगे तथा अपने अमूल्य सुझावों और विचारों से हमें अभिसिंचित करेंगे।

हुक्का बू

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नान्तिनो,

       जी रया, जागी रया, इतुक बढिया काम करी राखु तुमुल, बूढ़्याकाल यो देख बेर बहुते भल लागौ।  उस्से मेरी उम्र त ह्वै गैछ, लेकिन मैं थोड़ा progressive ख्याल को भयूं, त आब इंटरनेट पैं ले आं गयूं।
   मेरो नाम उस्सी त हुकुम सिंह भै, लेकिन हुक्का पीने क कारण सब्बै हुक्का बू कुनी।
     बाकी बाद में बतुलो।

हेम पन्त

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बूबू पैलाग. बङि धमाकेदार entry मारिछ हो तुमुलै. आब ये जमान में त सब सिग्रेट वाल हैं गयीं. तमांखु कां बटि मिलछ तुमुके...

Rajen

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आ हो हुक्का बू.   बैठो पै जरा देर गैप सप लगुनु.  नानतिन कतु और कां छन. जरा आमा का हाल चल ले कई बताओ पै.

Girdhar Joshi

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Pailag ho hukka boo.... bhote bhal lago tumar progressive
nature dekhi ber ...

swagat chhi tumar

Risky Pathak

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हुक्का बू नमस्कार|

नानतिन ठीक हुनाल| धीनाय पानी कि छु? ऐल साल रोप कस भो? 

या आते रया पे और हम नान्तिनन कई चाते रया|

sanjupahari

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Bubu bhal karai tumule..ama ku lai pailaag kaya..jai hoo tumeri

हुक्का बू

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बूबू पैलाग. बङि धमाकेदार entry मारिछ हो तुमुलै. आब ये जमान में त सब सिग्रेट वाल हैं गयीं. तमांखु कां बटि मिलछ तुमुके...

बच्ची रये प्वोथा,
     सिगरेट-बीड़ी त मैस पचनी नि भै। तमाख उस्से बजार में ले मिलि जांछ, पर मैं अपन लिजि एक खेत में अफि बुंछु, आब खेती-बाड़े त नै ह्वै सकिनि, लेकिन छाड़ना को मन ले नै करनु, त खेती की परमपारा ज्यून राखन खिने एक गाड़ में तमाखू बुंछु।

हुक्का बू

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आ हो हुक्का बू.   बैठो पै जरा देर गैप सप लगुनु.  नानतिन कतु और कां छन. जरा आमा का हाल चल ले कई बताओ पै.

राजेन ज्यू,
     कि ह्वै रयीं तुमार ठाठ-बाठ?
नान्तिन त तीन च्याल छन और द्यू चेली। सपन को ब्या करि है। च्याला सब्बै परदेशे छन, कभै-कभै आ जांनी.....घर में, मैं और तुमरी आमा, एक गोरु, द्यू बाकरा, एक तुलसी को बोट छ। नान्तिन कुनी "क्या रखा है तुम्हारे पहाड़ में, दिली हमारे साथ आ जाओ" लेकिन इजा, पुरखान कि विरासत छ, जब तक आंखा खुला छन, तब तक नै त पहाड़ छाड़ी सकुछु, नै गोरु पालन, नै तुलसी का बोट में पानी चडुन। 
      एक आजी लालच छ मैस कि मरुलो त आपनी भूमि और गंग में और नान्तिन्कें पहाड़ का रीति-रिवाज का अनुसार मेरो क्रिया-कर्म करन पड़ोले, कैं परदेश में मरुलो त, नै वां रीति-रिवाज नै मेरी गंग, नै मेरी भूमि।
      त जब तक प्राण छु, अपनी भूमि में ही रोलो।

हुक्का बू

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हुक्का बू नमस्कार|

नानतिन ठीक हुनाल| धीनाय पानी कि छु? ऐल साल रोप कस भो? 

या आते रया पे और हम नान्तिनन कई चाते रया|


बच्ची रये बाबू,
     धिनाली पाणी- कि हुंछी, बबा बूढ़्याकाल, एक गोरु त पालन भ्यो, त पाली राखिछ, आब तुमरी आमा ले बूढी गैछ, घास-पात नै करि सकनि।
       लागी रै पराणी

 

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