राणा जी,
उत्तराखण्डी वाद्य यंत्र विलुप्ति की कगार पर हैं, आप जैसे लोक कलाकारों को उसके संरक्षण के लिये कुछ करना चाहिये, क्योंकि इनका संरक्षण आप लोग अपने गीतों में प्रयोग करके कर सकते हैं। मेरा अनुरोध है कि हुड़का, डौंर, मुरुली, भोंकर, तुतुरी, नारसिंग, मशकबीन आदि वाद्य यंत्रों के साथ आप अपने गीतों का फिल्मांकन करें।
यदि ये वाद्य यंत्र विलुप्त हो गये तो शादी-ब्याह में तो हम बैंड-बाजे से काम चला लेंगे, लेकिन फिर जागर कैसे लगायेंगे?.........जागर गायेगा कौन? क्योंकि उसे तो औजी/जगरिया ही गा सकता है।