इस तरह के बोल मुख्यतः "न्यौली" नामक लोकगीतों में होते हैं. यथा
काट्ना-काट्ना पलि औँछ, चौमासी को बन,
बगन्या पानी थामी जांछ, ने थामीनु मन
अनु. - काटते रहने पर भी चतुर्मास का वन पनप जाता है.
बहते हुए पानी को रोक पाना संभव है लेकिन इस मन को रोकना संभव नहीं
पहली और दोनों पंक्तियां एक दूसरे की पूरक नहीं हैं, इनका प्रयोग केवल तुक मिलाने के लिये हुआ है. तथापि दोनों पंक्तियों का स्वतंत्र रूप में जो अर्थ निकलता है वह बहुत सुन्दर है.