Author Topic: REMARKABLE ACHIEVEMENTS BY UTTARAKHANDI - उत्तराखंड के लोगों की उपलब्धियाँ  (Read 76845 times)

हेम पन्त

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राठोड जी के बारे में कुछ बातें मैं भी बताना चाहता हूँ.... वह उत्तराखंड के एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत सरकार ने "वृक्ष मित्र पुरस्कार" से सम्मानित किया है...
वह सेना में भी कार्य कर चुके हैं.. अब डीडीहाट के पास भनाडा, सानदेव गाँव में रहते हैं... बहुत ही सीधे-साधे, मदुभाषी व्यक्ति हैं.. उनके वृक्षारोपण के भागीरथ प्रयास से डीडीहाट के आस-पास कई नए जलस्रोत पैदा हो गए हैं...


84 साल की उम्र में दामोदर राठौर अगर कुछ और साल जीने की ख्वाहिश रखते हैं तो सिर्फ इसलिए कि वह कुछ और पेड़ लगा सकें। वह अब तक 3 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगा चुके हैं। उनका लक्ष्य 5 करोड़ पेड़ लगाने का है। कुछ साल पहले उन्हें वृक्ष मित्र के अवॉर्ड से नवाजा गया, लेकिन इसके अलावा उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिली। वैसे उन्हें इस बारे में किसी से कोई शिकवा भी नहीं है। वह तो बस इस बात से खुश हैं कि कम से कम अब लोग उनकी बात सुनने लगे हैं और उसे मानकर पेड़ काटने से बचते हैं।

उत्तराखंड में सीमांत जिले पिथौरागढ़ से लेकर राजधानी देहरादून तक दामोदर राठौर पेड़ लगा चुके हैं। फिर चाहे वह दूर-दराज के डीडीहाट व चंपावत हों या मैदानी इलाके हल्द्वानी और बरेली हों। पेड़ों से उनके लगाव की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। इंटर तक पढ़े दामोदर राठौर ने 1950 में ग्रामसेवक के तौर पर काम करना शुरू किया। सरकारी अधिकारियों के आदेश पर वह पेड़ लगाते और उनकी देखभाल करते थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि पेड़ लगाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। लगाने के लिए जो पौधे आते हैं वे आधे सूखे होते हैं। एक बार पौधा लगाने के बाद सिर्फ कागजों पर ही उस ओर ध्यान दिया जाता है।

सरकार की तरफ से इस फंड में आए धन का पूरा दुरुपयोग हो रहा है। दामोदर कहते हैं, 'यह सब बातें मुझे बहुत परेशान करती थीं। मैंने फैसला किया कि अब अपने बूते पेड़ लगाकर दिखाऊंगा और साबित करूंगा कि अगर इच्छाशक्ति हो तो सब कुछ मुमकिन है।' उन्होंने ग्राम सेवक का काम छोड़ दिया। 1952 से पेड़ लगाने की यह तपस्या अब तक अनवरत जारी है।

वह कुल 3 करोड़ 15 लाख 10 हजार 705 पेड़ लगा चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहाड़ों में ज्यादातर पेड़ सिलिंग, उतीश और बाज के लगाए हैं। सिलिंग जल स्त्रोत के लिए वरदान होता है और उन्हें नया जीवन देता है। अब वह मेडिसन प्लांट भी लगा रहे हैं। ज्यादातर पेड़ ग्राम पंचायत की जमीन पर और कुछ व्यक्तिगत जमीन पर भी लगाए हैं। उन्होंने कहा कि पेड़ लगाने के लिए इजाजत लेना बड़ा पेचीदगी भरा काम हैं। मैंने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि मुझे जहां भी वृक्ष विहीन जमीन मिलेगी वहां पेड़ लगा लूंगा। पौधों के लिए उन्होंने एक नर्सरी बनाई है।

बागवानी की किसी डिग्री के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि मैंने प्रकृति से सीखा है। प्रकृति ही मेरी पाठशाला है। परिवार में उनकी बीबी और 17 साल की एक बेटी है। लेकिन दामोदर कहते हैं कि उनके 3 करोड़ से ज्यादा बच्चे हैं। लगाए गए पेड़ों को वह अपने बच्चे ही मानते हैं और उसी तरह उनकी देखभाल भी करते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर उनकी तबीयत खराब ही रहती है, लेकिन 5 करोड़ पेड़ लगाने का जुनून उनमें नया जोश भरता है। वह डीडीहाट के पास 6900 फुट की ऊंचाई पर जंगलों के बीच कुटिया बना कर रहते हैं। घर का खर्च जुटाने के लिए उनकी पत्नी एक स्कूल में पढ़ाती हैं। वह प्रार्थना भी करते हैं तो यही मांगते हैं कि उनका लक्ष्य पूरा होने से पहले भगवान उन्हें अपने पास न बुलाए।



पंकज सिंह महर

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राठोड जी के बारे में कुछ बातें मैं भी बताना चाहता हूँ.... वह उत्तराखंड के एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत सरकार ने "वृक्ष मित्र पुरस्कार" से सम्मानित किया है...
वह सेना में भी कार्य कर चुके हैं.. अब डीडीहाट के पास भनाडा, सानदेव गाँव में रहते हैं... बहुत ही सीधे-साधे, मदुभाषी व्यक्ति हैं.. उनके वृक्षारोपण के भागीरथ प्रयास से डीडीहाट के आस-पास कई नए जलस्रोत पैदा हो गए हैं...

धन्यवाद हेम दा, इस विभूति का परिचय कराने के लिये, राठौड़ जी का यह प्रयास बहुत सराहनीय है, मेरा पहाड़ परिवार ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वे उन्हें दीर्घायु औए निरोगी रखें। ताकि वे प्रर्यावरण संरक्षण में अपना पूर्ण योगदान दे सकें। वास्तव में राठौड़ जी हमारे लिये प्रेरणास्रोत हैं, मैती आन्दोलन को भी बढ़ावा देना चाहिये कि हर व्यक्ति अपनी शादी की याद में एक पेड़ ससुराल में और एक पेड़ अपने घर में लगाये।

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण संवाददाता: इंडियन एयरफोर्स एकेडमी हैदराबाद से पास आउट दून निवासी फ्लाइंग ऑफीसर अभिजीत सिंह ने उत्तराखंड का गौरव बढ़ाया है। राजधानी निवासी होटल व्यवसायी अशोक कुमार सिंह के बड़े पुत्र अभिजीत सिंह को इंडियन एयरफोर्स एकेडमी से पास आउट होने के बाद हैदराबाद स्थित राजभवन में राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी द्वारा स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। उन्होंने फ्लाइंग ऑफीसर अभिजीत को उनके शानदार कैरियर के लिए शुभकामनाएं दीं। अभिजीत ने स्कूली शिक्षा देहरादून के सेंट थॉमस स्कूल से प्राप्त की। इसके उपरांत एनडीए में उत्तीर्ण होकर उन्होंने हैदराबाद में एयरफोर्स एकेडमी ज्वाइन की। अभिजीत की माता गृहणी हैं।

पंकज सिंह महर

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सुरेन्द्र नेगी, नैनीताल: उत्तरी धु्रव में स्थित आर्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक अध्ययन के लिए पहुंचे भारतीय वैज्ञानिक दल में शामिल होने का गौरव नैनीताल निवासी डा.विनीता फत्र्याल को भी हासिल हुआ है। उत्तरी धु्रव में भारत का स्थायी वैज्ञानिक केंद्र हिमाद्री हाल ही में स्थापित किया गया है। हिमाद्री का उद्घाटन विगत दिनों केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा न्योलसुड (नार्वे) में किया गया। इसी के साथ भारत उत्तरी धु्रव में स्थायी वैज्ञानिक केंद्र स्थापित करने वाला दुनिया का दसवां देश बन गया। इसी वैज्ञानिक केंद्र में डा.विनीता फत्र्याल शोध के लिए भारतीय दल के साथ उत्तरी धु्रव की जटिल यात्रा पर गयी हैं। इससे पूर्व डा.फत्र्याल भारत के 25वें अन्टार्टिका अभियान की सदस्यता के रूप में वर्ष 2005-06 में दक्षिणी धु्रव में शोध कर उत्तराखंड का नाम रोशन कर चुकी हंै। इस तरह अन्टार्टिका में भारतीय वैज्ञानिक केंद्र मैत्री और उत्तरी धु्रव में स्थापित केंद्र हिमाद्री में शोध का अवसर पाने वाली वह पहली भारतीय महिला बन गई हैं। नैनीताल के सेंट मेरी कालेज में पढ़ने के बाद उन्होंने कुमाऊं विवि नैनीताल से भूविज्ञान से एमएससी तथा पीएचडी उपाधि हासिल की। इसके बाद उन्होंने जर्मनी के ट्यूबिंगन विवि में जर्मन एकेडमिक एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत शोध अध्यता के रूप में कार्य किया। गत 8 वर्षो से डा.फत्र्याल बीरबल साहनी इंस्टीटयूट लखनऊ में बतौर साइंटिस्ट कार्यरत हैं। उनका शोध कार्य जलवायु परिवर्तन पर केन्दि्रत है। डा.फत्र्याल अपने शोध दल के साथ दक्षिणी धु्रव में क्वाटरनरी होने वाली पेलियोक्लाइमेटिक अध्ययन करने के उपरांत उत्तरी धु्रव का अध्ययन करने का प्रयास किया है। उल्लेखनीय है आइस ऐज (बर्फीले युग) के बारे में अभी भी पूर्ण वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। समुद्र विज्ञान तथा भूविज्ञान संबंधी अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों के बीच अन्तर-संबंधों के बारे में और अधिक जानकारियां जुटाने के लिए वैज्ञानिक अध्ययनों की आवश्यकता है। उत्तरी ध्रुव पर गए भारतीय शोध दल द्वारा किए जा रहे अध्ययनों से इस दिशा में महत्वपूर्ण सहायता मिल सकेगी। डा.फल्र्याल की इस उपलब्धि पर गढ़वाल विवि के निवर्तमान कुलपति प्रो.एसपी सिंह, भू विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो.सीसी पंत, यूजीसी साइंटिस्ट डा.बीएस कोटलिया आदि ने हर्ष व्यक्त किया है।
 

हेम पन्त

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रानीखेत (अल्मोड़ा)। अगर मेहनत और लगन हो तो उम्र की कोई सीमा नही होती। इसी की मिसाल भड़गांव के लक्ष्मी दत्त बेलवाल है जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम से बागान तैयार किया और किसानों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बने। भड़गांव निवासी 70 वर्षीय ने बिना किसी सरकारी सहायता से बागवानी में मिसाल कायम की है। उन्होंने देशी-विदेशी प्रजाति के कई पौध तैयार किए है जो उनकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन बना हुआ है। अपने बागान में उन्होंने आलू, गोभी, बीन सब्जी सहित कन्धारी अनार के पेड़, सेब, पूलम, खुमानी आदि के फल भी तैयार किए है। प्रगतिशील काश्तकार लक्ष्मी दत्त बेलवाल का कहना है कि कन्धारी अनार की काफी मांग है, अभी इस प्रजाति के लगभग तीन सौ पेड़ अपने बागान में लगाया है। इस वर्ष लगभग 8 कुंतल उत्पादन हुआ है। इसके अलावा तीस कुंतल पूलम बेचा साथ ही मौसमी सब्जी का व्यवसाय भी किया। सरकारी उपेक्षा से श्री बेलवाल काफी आहत दिखे। उन्होंने बताया कि उद्यान विभाग से अभी तक उन्हे कोई सहायता नही मिली। न ही आर्थिक न ही कोई तकनीकी का ज्ञान। पेड़-पौधों में लगने वाले कीड़े मारने की दवाई भी बाजार से खरीदनी पड़ती है।

हेम पन्त

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नई दिल्ली। साहित्यकार एवं उत्तराखंड के आयुष चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री रमेश पोखरियाल (निशंक) की जर्मन भाषा में अनूदित दो पुस्तकों को हम्बर्ग विश्वविद्यालय के पाठयक्रम में शामिल किया जाएगा।

यह जानकारी डा. निशंक ने बृहस्पतिवार को संवाददाताओं को दी। जर्मनी की यात्रा से लौटकर उन्होंने बताया कि उनकी पुस्तक तुम और मैं तथा बस एक ही इच्छा का जर्मन भाषा में द उन्द इक तथा नूर इनविंच नाम से अनुवाद हुआ है। जिनका उनकी इस यात्रा के दौरान हम्बर्ग विश्वविद्यालय में लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर वहां के एक्रोएशियन इंस्टीटयूट के उपाध्यक्ष प्रोफेसर ततानियां आरेंसकाया ने उन्हें पाठयक्रम में शामिल करने की घोषणा की।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Great news.   This is what required in UK.

रानीखेत (अल्मोड़ा)। अगर मेहनत और लगन हो तो उम्र की कोई सीमा नही होती। इसी की मिसाल भड़गांव के लक्ष्मी दत्त बेलवाल है जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम से बागान तैयार किया और किसानों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बने। भड़गांव निवासी 70 वर्षीय ने बिना किसी सरकारी सहायता से बागवानी में मिसाल कायम की है। उन्होंने देशी-विदेशी प्रजाति के कई पौध तैयार किए है जो उनकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन बना हुआ है। अपने बागान में उन्होंने आलू, गोभी, बीन सब्जी सहित कन्धारी अनार के पेड़, सेब, पूलम, खुमानी आदि के फल भी तैयार किए है। प्रगतिशील काश्तकार लक्ष्मी दत्त बेलवाल का कहना है कि कन्धारी अनार की काफी मांग है, अभी इस प्रजाति के लगभग तीन सौ पेड़ अपने बागान में लगाया है। इस वर्ष लगभग 8 कुंतल उत्पादन हुआ है। इसके अलावा तीस कुंतल पूलम बेचा साथ ही मौसमी सब्जी का व्यवसाय भी किया। सरकारी उपेक्षा से श्री बेलवाल काफी आहत दिखे। उन्होंने बताया कि उद्यान विभाग से अभी तक उन्हे कोई सहायता नही मिली। न ही आर्थिक न ही कोई तकनीकी का ज्ञान। पेड़-पौधों में लगने वाले कीड़े मारने की दवाई भी बाजार से खरीदनी पड़ती है।


hem

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रानीखेत (अल्मोड़ा)। अगर मेहनत और लगन हो तो उम्र की कोई सीमा नही होती। इसी की मिसाल भड़गांव के लक्ष्मी दत्त बेलवाल है जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम से बागान तैयार किया और किसानों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बने। भड़गांव निवासी 70 वर्षीय ने बिना किसी सरकारी सहायता से बागवानी में मिसाल कायम की है। उन्होंने देशी-विदेशी प्रजाति के कई पौध तैयार किए है जो उनकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन बना हुआ है। अपने बागान में उन्होंने आलू, गोभी, बीन सब्जी सहित कन्धारी अनार के पेड़, सेब, पूलम, खुमानी आदि के फल भी तैयार किए है। प्रगतिशील काश्तकार लक्ष्मी दत्त बेलवाल का कहना है कि कन्धारी अनार की काफी मांग है, अभी इस प्रजाति के लगभग तीन सौ पेड़ अपने बागान में लगाया है। इस वर्ष लगभग 8 कुंतल उत्पादन हुआ है। इसके अलावा तीस कुंतल पूलम बेचा साथ ही मौसमी सब्जी का व्यवसाय भी किया। सरकारी उपेक्षा से श्री बेलवाल काफी आहत दिखे। उन्होंने बताया कि उद्यान विभाग से अभी तक उन्हे कोई सहायता नही मिली। न ही आर्थिक न ही कोई तकनीकी का ज्ञान। पेड़-पौधों में लगने वाले कीड़े मारने की दवाई भी बाजार से खरीदनी पड़ती है।

मेरे  विचार से उत्तराखंड में खेती के स्थान पर फलों  के वृक्ष लगा कर फलों का विक्रय करना अधिक लाभ दायक हो  सकता है | उत्तराखंड सरकार गाँव गाँव से फल इक्कठा  कर उसे बाज़ार तक पहुंचाने की व्यवस्था करे | उत्तराखंड में फल उत्पादन और पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए |   

पंकज सिंह महर

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  मुकेश (दाएँ), दो विदेशी पर्यटकों को 'डिज़री डू' बजाना सिखाते हुए

उत्तरांचल राज्य के ऋषिकेश में रहनेवाले ये गुमनाम कलाकार ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के परंपरागत संगीत के साज़ बनाते हैं. यहाँ आनेवाले विदेशी न सिर्फ इन्हें खरीदते हैं बल्कि मुकेश के पास रहकर इन्हें बनाना भी सीखते हैं.

करीब आठ फुट लंबे और दो फुट चौड़े इस साज़ का नाम है 'डिज़री डू.' इसे देखकर यकीन नहीं होता कि इससे ऐसी गंभीर आवाज़ निकलती होगी जैसे कोई आसमानी नाद बज रहा हो.

घुमावदार तुरही की तरह ये साज़ लकड़ी से बनाया जाता है और इसके अंदर से सुरीली आवाज़ उत्पन्न करने के लिए शुरू से अंत तक लंबा सूराख किया जाता है. लकड़ी के भीतर ये मानो संगीत की एक अंधेरी रहस्यभरी सुरंग है. इसी तरह मुकेश एक अन्य भारीभरकम साज़ बनाते हैं जिसका नाम है - 'जेंडे.' ये दरअसल एक अफ्रीकी ड्रम है और पियानो की तरह बजाया जाता है. जब इन पर सुर छेड़ा जाता है तो इनकी निराली धुनों से ऐसा लगता है मानो कई साज़ एक साथ बज रहे हों. मुकेश पिछले 18 साल से ये साज़ बना रहे हैं. उन्होने ये कला अपने पिता से सीखी. और उन्हें ऋषिकेश में आकर बस गए एक ऑस्ट्रेलियाई दंपत्ति ने ये साज़ बनाने सिखाए. यहां मुकेश भले ही गुमनाम हों लेकिन उनके बनाए साज़ों की सात समंदर पार बड़ी पूछ है.

ऑस्ट्रेलिया से आई लीरा कहती हैं, "मैने अपने एक मित्र के घर ये देखा था. मुझे बहुत पसंद आया. फिर मैं इन्हें सीखने के लिए मुकेश के पास आई. सच तो यह है कि ऑस्ट्रेलिया में भी इन्हें बनाने वाले मुश्किल से ही मिलते हैं." स्वीडन से आए मैटियस अफ्रीका की जनजातीय संस्कृतियों और उनके साज़ों पर शोध कर रहे हैं. उन्हें ये देखकर बड़ा अचरज हुआ कि ये साज़ भारत की धरती पर भी बन रहे होंगे. वे तीन महीने से मुकेश के पास रहकर मैतियस इन्हें बजाना सीख रहे हैं. मुकेश अपने घर के पास अपने 'स्टूडियो' में विदेशी शार्गिदों को ये साज़ बनाना और बजाना सिखाते हैं. हर साज़ की कीमत पांच से दस हज़ार रुपये के बीच है. मुकेश का मानना है कि इन्हें बजाने से बड़ी आत्मिक शांति मिलती है. अब तो भारतीय लोग भी इन्हें खरीदने लगे हैं और इस तरह मुकेश का ये 'आदिम कारखाना' चल रहा है.


     

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hamburg University honours Dr Nishank
« Reply #129 on: July 29, 2008, 02:46:18 PM »
Reports

Hamburg University honours Dr Nishank
By Ravindra Saini in Dehradun

Health Minister of Uttarakhand and noted Hindi writer and poet Dr Ramesh Pokhriyal “Nishank” was honoured by Hamburg University of Germany for his commendable work in the field of literature as well as propagation of Ayurveda. The German translation of his story collection, Tum Aur Main was also released under the German title, Du und Ich, on this occasion. Dr Nishank was also honoured at a function in Berlin. English translation of his book was also released at a function held in Berlin.

The function at Hamburg was organised by the Afro-Asian Institute, University of Hamburg. After felicitating Dr Nishank, Professor Tapania Aarkaya of the University said Du und Ich and Nur Ein Wunsch were German translations of two fine Hindi books authored by Dr Nishank. She said Dr Nishank always wrote about human sensibilities and, therefore, attracted a good readership. Prof. Aarkaya stated that the other books written by Dr Nishank would also be translated into German language and the Hamburg University would help set up an International Hindi Research Centre in Uttarakhand. This would attract scholars from across the world to Uttarakhand for research. The Centre would serve as an institute not only for Hindi but also for several major world languages.

The English version of a collection of stories authored by Dr Ramesh Pokhriyal “Nishank” titled, the Crowd Bears Witness, was released by renowned Ayurvedic and Vedic scholar Dr David Frawley. The book is an English translation of his Hindi book, Bheed Sakshi Hai.

Speaking on the occasion, Dr Frawley noted that literature and politics rarely mingled but Dr Nishank was an exception to the rule. Dr Nishank was a well-known author and poet too besides being a politician. He also reiterated that Dr Nishank had been awarded and honoured by three Presidents of India.

During his six-day foreign trip, Dr Nishank visited Hamburg University, Norway and Holland. After returning from the foreign trip he was accorded a warm welcome at various places in Uttarakhand. He was received at the airport in New Delhi by senior party leaders and MLAs including Shri Vijay Panwar, Shri Om Gopal, Shri Brijmohan Kotwal, Smt. Asha Nautiyal, Shri Ganesh Joshi, Shri Rajkumar, Shri Balwant Singh Bhoryal, Shri Anil Nautiyal, Shri Shailendra Rawat, Shri Suresh Jain, Shri Teerath Singh Rawat, Shri Ajay Bhatt, Shri Ravindra Jugran, Smt. Neelam Sehgal and Shri Chaman Lai Balmiki. After being honoured in four countries including Germany, Dr Nishank was accorded a rousing welcome on reaching Dehradun at Jogiwala Chowk, where state party president Shri Bachi Singh Rawat felicitated him.

 

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