Author Topic: Mera Pahad Photo Gallery : मेरा पहाड़ फोटो गैलरी  (Read 83983 times)

पंकज सिंह महर

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मुझमें भी बसावट थी, मुझमें भी किसी का बसेरा था, 
यहां भी बच्चे उछलते-कूदते, रोते-गाते थे,
मैं गवाह हूं, लोरियों का, प्रसव पीड़ा का,
नामकरण का, चूड़ाकर्म का, विवाह का और मौत का भी,
मैं साथी रहा, मुझमें रह रहे परिवारों के सुख-दुःख का,
लेकिन आज इस दुःख की घड़ी में, मैं अकेला हूं,
उजाड़ सा, सुनसान सा,   
राहें तकूं, तो किसकी,
क्या कोई सुन पायेगा मेरी सिसकी?   

पंकज सिंह महर

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दिल की बात दुकान पर


पंकज सिंह महर

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नदी किनारे के पत्थरों को पहले कोई खास अहमियत नहीं दी जाती थी, लेकिन जगह-जगह की बात है। अगर जगह प्रसिद्ध पर्यटक स्थल हो तो नदी किनारे के पत्थरों का भी महत्व बढ़ जाता है। मार्केटिंग का जलवा देखिये-कैम्पटी फाल में पत्थरों पर विज्ञापन


Raje Singh Karakoti

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Excellent camera work Pankaj da.
Please send some more.
 
 
नदी किनारे के पत्थरों को पहले कोई खास अहमियत नहीं दी जाती थी, लेकिन जगह-जगह की बात है। अगर जगह प्रसिद्ध पर्यटक स्थल हो तो नदी किनारे के पत्थरों का भी महत्व बढ़ जाता है। मार्केटिंग का जलवा देखिये-कैम्पटी फाल में पत्थरों पर विज्ञापन



पंकज सिंह महर

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Highcourt nainital


पंकज सिंह महर

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लहियो महाराज गदुवा को फूल


विनोद सिंह गढ़िया

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यह तस्वीर है बेलंग गाड़ ( बेलंग नदी ) की, जो पोथिंग (कपकोट) बागेश्वर में है, यह एक छोटी सी नदी है, कपकोट में इस नदी का जल पेयजल एवं सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है |


हेम पन्त

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Photo by Kavi Mainali (Dwarahat)

दाड़िम का फूल-


विनोद सिंह गढ़िया

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"बेडू पाको बारामासा, ओ नरैन काफल पाको चैता मेरी छैला"

आपने उत्तराखंड का यह गीत हर वक्त सुना होगा, काफल का स्वाद भी लिया या फोटो में तो जरुर देखा होगा लेकिन बेडू देखा ...............? शायद कम ही लोगों ने देखा होगा ...........तो लीजिये बेडू की तस्वीर ................


 
BEDU
 

 
KAFAL

दीपक पनेरू

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पंकज सर कैमरा के साथ साथ जो हकीकत बयां करती दर्द भरी पंकियां लिखी है...कोई भी सुन कर गर्स (हिया भर जाना) से भर जायेगा.....बहुत ही बढ़िया फोटो है सारे के सारे फोटो बहुत ही अच्छे है......



मुझमें भी बसावट थी, मुझमें भी किसी का बसेरा था, 
यहां भी बच्चे उछलते-कूदते, रोते-गाते थे,
मैं गवाह हूं, लोरियों का, प्रसव पीड़ा का,
नामकरण का, चूड़ाकर्म का, विवाह का और मौत का भी,
मैं साथी रहा, मुझमें रह रहे परिवारों के सुख-दुःख का,
लेकिन आज इस दुःख की घड़ी में, मैं अकेला हूं,
उजाड़ सा, सुनसान सा,   
राहें तकूं, तो किसकी,
क्या कोई सुन पायेगा मेरी सिसकी?   

 

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