Author Topic: नन्दादेवी राजजात 2012 : Nanda Devi Raaj Jaat 2012  (Read 7033 times)

हेम पन्त

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इस टापिक का उद्देश्य 2012 में आयोजित होने जा रही नन्दादेवी राजजात के बारे में जानकारी उपलब्ध कराना है.

लोकमान्यताओं के अनुसार माता पार्वती का मायका हिमालय के गांवों में माना जाता है. माँ पार्वती का एक स्वरूप माँ नन्दादेवी भी हैं जो पूरे उत्तराखण्ड में पूज्यनीय हैं. हर बारह साल के बाद उत्तराखण्ड के गढवाल व कुमाऊँ क्षेत्र से लोग माँ नन्दादेवी के प्रतीक "चौसिंग्या खाड़ू" व रिंगाल की छतरी को हिमालय की तलहटी तक छोड़ने जाते हैं. लगभग 3 हफ़्ते की यह आध्यात्मिक व साहसिक यात्रा पैदल ही तय की जाती है.

इस यात्रा के विषय में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी हमारे फोरम के निम्नलिखित टापिक पर संग्रहीत है.

http://www.merapahadforum.com/religious-places-of-uttarakhand/nanda-raj-jat-story/


हेम पन्त

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13 June 2010 दैनिक जागरण से साभार-
 
देहरादून। दुनिया की सबसे ऊंचाई पर और सबसे दुर्गम धार्मिक यात्रा राज जात की तैयारियां शुरू हो गई हैं। महाकुंभ की तरह 12 वर्षो के अंतराल में होने वाली यह यात्रा अब 2012 में होनी है। इसी यात्रा मार्ग पर रहस्यमय रूपकुंड भी है जिसमें सैंकड़ों साल पुराने नरकंकाल आज भी दुनिया के मानव विज्ञानियों के कौतूहल के विषय बने हुए हैं।
नंदा देवी राज जात समिति के महामंत्री भुवन नौटियाल के अनुसार नवीं सदी से हर 12 वर्षो के अंतराल में होने वाली राज जात यात्रा अब 2012 में आयोजित हो रही है और समिति ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस सिलसिले में समिति के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से भेंट कर सरकारी स्तर पर भी तैयारियां शुरू करने का अनुरोध किया है।
नौटियाल के अनुसार समिति के अनुरोध के बाद उत्तराखंड सरकार राजजात यात्रा के लिए अवस्थापना सुविधाओं के विकास हेतु प्राधिकरण के गठन की पहल कर रहा है। इस संबंध में शीघ्र अंतिम निर्णय लिए जाने की संभावना है।
नौटियाल के अनुसार 19 पड़ावों और 280 किलोमीटर लंबी समुद्रतल से 17,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित ज्यूरागली को पार करने वाली दुनिया की इस सबसे दुर्गम पैदल यात्रा के मार्गो के निर्माण के अलावा आवश्यक सुविधाओं का विकास अभी से शुरू कराने का अनुरोध भी सरकार से किया गया है। इसके अलावा पड़ाव स्थलों पर ठहरने की व्यवस्था के अलावा चिकित्सा, पेयजल आदि की व्यवस्था कराने की सलाह भी दी गई है।
 
यात्रा मार्गो के पड़ावों पर विद्युत की व्यवस्था, पैदल मार्गो के अनुरक्षण एवं चौड़ीकरण, पड़ावों पर वनों व पुष्प वाटिकाओं के निर्माण का अनुरोध भी समिति ने किया है।

हेम पन्त

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Last Nanda Raj Jaat was held in year 2010. Complete recording of this Yatra was made available in a Video CD with the traditional Nanda Devi songs and Jagar sung by Narendra Singh Negi ji, Meena Rana and Anuradha Nirala. This CD was a BIG HIT. Above 1 lakh copies have been sold by now.


vipin gaur

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नन्दा देवी राजजात जो कि दुनिया की सबसे लम्बी पैदल यात्रा है। जिसमेँ कि सर्वप्रथम चमोली जनपद के घाट(नन्दप्रयाग से मात्र 18 किमी आगे) मेँ नन्दाकिनी नदी की आँचल मेँ बसेँ "कुरुड़" गाँव से बाजे भुंकारे के साथ नन्दादेवी की नवीँ सदी पूर्व राजराजेश्वरी नन्दा देवी तथा दशौली क्षेत्र की ईष्ट साक्षात नन्दा भगवती की दो स्वर्णमयी डोलियाँ जाती हैँ
इसके पीछे से चौसिँग्योँ को ले जाया जाता है तथा उसके बाद काँसुवा के कुँवर अपनी छँतोली लेकर चलते हैँ ।

नन्दा देवी की डोलियोँ के साथ कन्नौजी गौड़ (कुरुड़ के पुजारी) चलते हैँ।

राजजात की शुरुआत तब होती है जब नन्दा के क्षेत्र मेँ दुर्भिक्ष(अपशगुन) पैदा होता है।
यह अपशगुन चौसिँग्या खाड़ू के रुप मेँ होते हैँ

2013 मेँ नन्दा देवी धाम कुरुड़ के सामने लुन्तरा गाँव मे तथा एक चौसिँग्या खाड़ू कुरुड़ गाँव के ही अनुसूचित जाति के नन्दा देवी के ओजी पुष्कर लाल के यहाँ तथा हाल ही मेँ एक चौसिँग्या कुरुड़ के समीप सुंग गाँव मे भी हुआ है।
सन 2000 मेँ ये चरबंग मेँ पैदा हुआ था
और इस बार 3 चौसिँग्या कुरुड़ क्षेत्र मे पैदा होने के कारण लोगोँ को परम विश्वास हो गया कि कुरुड़ ही नन्दा राजजात का मुख्य थान है।

नन्दा देवी राजजात के मुख्य दो मुख्य रास्ते हैँ
1--प्रथम रास्ता कुरुड़ से  चरबंग,कुण्डबगड़,धरगाँव, फाली उस्तोली सरपाणी लॉखी भेँटी स्यारी,बंगाली बूंगा डुंग्री कैरा-मैना सूनाथराली, राडीबगड़  चेपड़यू कोटि, रात्रि नन्दकेशरी इच्छोली हाट रात्रि फल्दियागाँव काण्डई,लब्बू ,पिलखड़ा ,ल्वाणी ,बगरीगाड रात्रि मुन्दोली लोहाजंग,कार्चबगड़ रात्रि वाण लाटू देवता तथावाण से होमकुण्ड ।
नन्दकेशरी मेँ अद्भुत नजारा रहता है यहाँ पर काँसुवा तथा नौटी की राजछतोली का मिलन कुरुड़ बधाण की नन्दा राजराजेश्वरी से होता है यहीँ से राजजात का प्रारम्भिक बिन्दु शुरु होता है यहाँ पर कुमाउँ की जात भी अपनी छंतोलियोँ के साथ शामिल होती है तथा यहाँ से यात्रा कई पड़ावोँ से  होकर वाण पहुँचती है।

तथा नन्दा देवी राजजात का दूसरा रास्ता
2--नन्दा देवी दशोली की डोली का कुरुड़ से धरगाँव कुमजुग
से कुण्डबगड़, लुणतरा,कांडा मल्ला,खुनाना,लामसोड़ा लाटू मन्दिर माणखी,चोपड़ा कोट.चॉरी  काण्डई
खलतरा,मोठा  चाका,सेमा बैराशकुण्ड
 बैरो,इतमोली,मटई, दाणू मन्दिर
पगना देवी मन्दिर भौदार,चरबंग ल्वाणी
 सुंग,बोटाखला रामणी आला,जोखना, कनोल से वाण लाटू देवता। ये रास्ता नन्दाकिनी के साथ साथ चलता है ।रामणी में  विशाल भव्य मेला लगता है रामणी मेँ आते आते कुरुड़  नन्दा देवी डोली के साथ कुरुड़ कीनन्दामय लाटू, हिण्डोली, दशमद्वार की नन्दामय लाटू, मोठा का लाटू, केदारु पौल्यां, नौना दशोली की नन्दादेवी, नौली का लाटू, बालम्पा देवी, कुमजुग से ज्वाल्पा देवी की डोली, ल्वाणी से लासी का जाख, खैनुरी का जाख, मझौटी की नन्दा, फर्सवाण फाट के जाख, जैसिंग देवता, काण्डई लांखी का रुप दानू, बूरा का द्यौसिंह, जस्यारा, कनखुल, कपीरी, बदरीश पंचायत, बदरीनाथ की छतोली, उमट्टा, डिम्मर, द्यौसिंह, सुतोल, स्यारी, भेंटी की भगवती, बूरा की नन्दा, रामणी का त्यूण, रजकोटी, लाटू, चन्दनिय्यां, पैनखण्डा लाटा की भगवती आदि २०० से अधिक देवी-देवताओं का मिलन होता है।अतः रामणी एक पवित्र स्थल है ।रामणी मेँ जाख देवता का अद्भुत कटार भेद दर्शन भी होता है।यहां से आगे कुरुड़ की नन्दा के पीछे पीछे चलते वाण पहुँचते हैँ जहाँ पर राजजता के दोनो रास्ते मिलकर एक हो जाते हैँ  वाण मेँ स्वर्का का केदारु, मैखुरा की चण्डिका, घाट कनोल होकर तथा रैंस असेड़ सिमली, डुंगरी, सणकोट, नाखाली व जुनेर की छलोलियां चार ताल व चार बुग्यालों को पार करके वाण में राजजात में शामिल होती हैं।।

वाण राजजात का आखिरी गाँव है। यहाँ से आगे वीरान है।
वाण गाँव के बाद गेरोली पातळ में रण की धार नामक जगह पर देवी नंदा ने आखिरी राक्षस को मार गिराया था। लाटू की वीरता से प्रसन्न होकर देवी ने आदेश दिया कि आगे से वो ही यात्रा की अगुवाई करेंगे। रण की धार के बाद यात्री कालीगंगा में स्नान कर तिलपत्र आदि चढाते हैं!
रास्ते मेँ वेदिनी बुग्याल है।
बेदिनी  बुग्याल उत्तराखंड का सबसे बड़ा और सुंदर बुग्याल माना जाता है। यहाँ पर यात्री वैतरणी  कुंड  में स्नान करते हैं। राजकुंवर यहाँ पर अपने पित्तरों की पूजा करते हैं। एक बांस पर धागा बाँधा जाता है। श्रद्धालु धागा थामकर अपनें पित्तरों का तर्पण करते हैं। हर साल यहाँ पर नन्दा धाम कुरुड़ की नन्दा देवी की जात होती है।रास्ते मेँ
पातर  नचौणिया है। कहा जाता है कि यहाँ पर कन्नौज के रजा यशधवल ने पात्तर यानि नाचने-गाने वालियों का नाच गाना देखा। यशधवल के इस कृत्य से नंदा कुपित हो गयी और देवी के श्राप से नाचने-गाने वालियां शिलाओं में परिवर्तित हो गयी!
आगे कैलवा विनायक है।यहाँ से हिमालय का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखता है। यहाँ से बेदिनी, आली और भूना बुग्याल देखते ही बनते हैं।
इस जगह  कन्नौज के राजा की गर्भवती रानी वल्लभा ने गर्भ की पीड़ा के समय विश्राम किया था। यहीं पर उसने एक शिशु को जन्म भी दिया था। इस दौरान राजा का लाव-लश्कर रूपकुंड में डेरा डाले रहा। गर्भवती रानी की छूत से कुपित होकर देवी के श्राप से ऐसी हिम की आंधी चली कि राजा के सारे सिपाही और दरबारी मारे गए।चेरिनाग से  रूपकुंड के लिए यात्रा बहुत ही खतरनाक रास्तों से गुजरती है। चट्टानों को काटकर बनायीं गयी बेतरतीब सीढ़ियां यात्रा को और मुश्किल बना देती हैं।रूपकुंड का  निर्माण भगवान् शिव ने नंदा की प्यास बुझाने के लिए किया था। मौसम के अनुसार अपना रूप और आकार बदलने के लिए विख्यात रूपकुंड बहुत ही सुंदर दिखता  है।खतरनाक  उतार-चढ़ाव के कारण ज्युरांगली को मौत की घाटी भी कहा जाता है।ज्युरांगली  के खतरनाक उतार-चढ़ाव के बाद यात्री शिला समुद्र में विश्राम के लिए रुकते हैं।
शिला समुद्र  में रात्रि विश्राम के बाद होमकुंड के लिए प्रस्थान करते हैं। होमकुंड पहुंचकर यात्री पूजा-अर्चना करते हैं। यहाँ पर चौसिँग्या खाड़ू को छोड़ दिया जाता है।
vipin gaur

 

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