Author Topic: Gangotri, the Source of the River Ganga,गंगोत्री गंगा नदी का उद्गगम स्थान  (Read 62595 times)

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गंगोत्री धाम की विश्व में है अलग पहचान
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केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय ने कहा कि गंगोत्री धाम की पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान है। निर्मल गंगा मेगा प्रोजेक्ट के जरिये इसे श्रद्धालुओं के साथ ही देशी विदेशी पर्यटकों के लिये दर्शनीय बनाया जाएगा। जिसके लियेकेंद्र और राज्य सरकार मिलकर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने ईको सेंसेटिव जोन को पर्यटन के लिये लाभदायक बताया।

निर्मल गंगा प्रोजेक्ट की तैयारियों की बाबत हर्षिल पहुंचे केंद्रीय पर्यटन मंत्री ने कहा कि गंगोत्री धाम और इसके आस पास के क्षेत्र पर्यटन के लिहाज से काफी संभावनाशील हैं। इन संभावनाओं को साकार रूप देने के लिये ही निर्मल गंगा प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा है। गंगोत्री क्षेत्र में तीर्थाटन के साथ ही पर्यटन के विकास की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है। केंद्र सरकार उत्तराखंड को पर्यटन के एक मॉडल स्टेट के रूप में देखना चाहती है। निर्मल गंगा प्रोजेक्ट इस दिशा में एक शुरुआत है। उन्होंने ईको सेंसेटिव जोन को जरूरी मानते हुए कहा कि इसका पर्यटन की गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उत्तराखंड पर्यटन मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि चारों धामों में इस तरह के मेगा प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना है। जिसकी शुरुआत गंगोत्री धाम से की जा रही है। इससे पूर्व केंद्रीय पर्यटन मंत्री का हर्षिल हैलीपैड पर पर्यटन विभाग तथा जिला स्तरीय अधिकारियों ने स्वागत किया। इसके उपरांत हर्षिल में सेना के अतिथि गृह में आर्किटेक्ट ब्रिज पंजवानी ने निर्मल गंगा प्रोजेक्ट का प्रेजेंटेशन दिया। इस दौरान केंद्रीय पर्यटन मंत्री के साथ परमार्थ निकेतन के प्रमुख स्वामी चिदानंद मुनि ने प्रोजेक्ट के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। इस मौके पर भारत सरकार के अपर सचिव पर्यटन देवेश चतुर्वेदी, राज्य के प्रमुख सचिव पर्यटन राकेश शर्मा, संयुक्त निदेशक एके द्विवेदी, अपर सचिव नितेश झा, सीडीओ एमएस कुटियाल, एसडीएम सीएस धर्मशक्तु भी मौजूद रहे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7621077.html

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मायका पोछेगा मोक्षदायिनी के आंसू
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पतितपावनी और जीवनदायिनी गंगा पापियों के पाप के साथ गंदगी ढोते-ढोते मैली हो चुकी है। गंगा का मायका उत्तराखंड सिसक रही 'मोक्षदायिनी' के आंसू पोछने में जुटा है। राज्य की कोशिश कामयाब रही तो गंगा और उसकी सहायक नदियों में हर दिन 400 मिलियन लीटर गंदगी को घुलने से रोका जाएगा। इसके लिए 225 किमी नदी तटों और उससे सटे 17 नगरीय क्षेत्रों को प्रदूषण शून्य किया जाएगा। हालांकि, इसके लिए राज्य को 2644 करोड़ धनराशि की दरकार होगी।

उत्तराखंड यह प्रयास कर रहा है कि गंगा राज्य की सीमा से पूरी तरह प्रदूषणमुक्त और निर्मल बहे। पर्यावरण सुरक्षा और पारिस्थितिकीय संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे प्रदेश का देश को यह दूसरा सबसे बड़ा योगदान होगा। इसके लिए स्पर्श गंगा के जरिए जनजागरण की मुहिम छेड़ी जा चुकी है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7657321.html

हेम पन्त

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गंगा नदी के भूमि पर आने के विषय में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार राजा भगीरथ माता गंगा को अपनी प्रजा के सुख हेतू धरती पर लाना चाहता था. इसी उद्देश्य से उन्होनें अई वर्षों तक कठोर तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न होकर, देव ब्रह्माजी ने राजा को उनकी मनोकामना पूरी होने का आश्वासन दिया.

इस कामना के पूरे होने के मार्ग में सबसे बडी बाधा थी. की गंगा जी का वेग अत्यधिक है. उनके धरती पर अवतरण से भूमि फट जायेगी. और गंगा पाताल में समा जायेगी. ऎसे में गंगा का धरती पर आना व्यर्थ होगा. सभी देवों में इस विषय में गहन विचार कर यह निर्णय लिया कि गंगा का वेग केवल भगवान शिव ही संभाल सकते है.

समस्या का समाधान करते हुए, 'हे भागीरथ तुम्हें भगवान भोलेनाथ की तपस्या करनी चाहिए. भगवान रुद्र प्रसन्न हों, जाएं, तो इस समस्या का समाधान सरलता से हो जायेगा.     

ब्रह्माजी के वचन सुनकर भगीरथ ने प्रभु भोलेनाथ की कठोर तपस्या की. भागीरथ की तपस्या से देव शिव प्रसन्न हुए और उन्होने कहा की मैं गंगे को अपने मस्तक पर धारण करके, सभी प्राणियों के कल्याण कार्य में तुम्हारी मदद करूंगा.  देवी गंगा हिमालय राज की ज्येष्ठ पुत्री है.

 गंगा को अपने वेग का अंहकार था. उन्होंने सोचा कि वे भगवान शंकर के मस्तक पर गिर, भगवान शंकर को लेकर सदैव के लिये पाताल लोक चली जायेगी. इस छुपी हुई दुर्भावना में कहीं न कहीं देवी का प्रेम भी था जो देवी गंगा मन ही मन भगवान शिव से करती थी.

 

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