नदियों की गलती क्या है?
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नदियों को हमारे देश में मां का दर्जा दिया जाता है। गंगा, यमुना और भी कितनी ही जीवनदायिनी नदियां हैं जो जहां से भी गुजरती हैं सम्मान से पूजी जाती हैं। उन्हें मां स्वरूपा मानते हुए लोग उनकी आरती करते हैं और हो भी क्यों न? वे जहां से भी गुजरती हैं, लोगों का आसरा बनती हैं। तट पर रहने वाले लोग इन जीवनदायिनी नदियों के सहारे अपनी जीविका पाते हैं। मल्लाह इन नदियों में अपनी नाव चलाकर जीवन की नैया खेते हैं तो मछुआरे इनमें पलने वाली मछलियों को अपने जीवन का पालनहार बनाते हैं। इन्हीं नदियों से निकली नहरों के सहारे किसान अपने खेतों की सिंचाई करता है।
और अपनी श्रमसीकरों की बूंद बहाकर खेतों से सोना उपजाता है जिससे उसका पेट पलता है, उसके परिवार का पेट पलता है, और अंततः पूरे देश का पेट पलता है। लेकिन इन दिनों देश की महानतम नदियों (धार्मिक रूप से भी और सांस्कृतिक रूप से) का अस्तित्व ही खतरे में हैं। उत्तराखंड से निकली यमुना करीब पांच सौ किलोमीटर बाद देश की राजधानी दिल्ली में इतनी प्रदूषित हो जाती है कि उसकी ओर आंख उठाकर देखना भी मुश्किल हो जाता है, उसमें स्नान करके पाप धोने की बात तो दूर की बात है।
महज पांच सौ किलोमीटर की दूरी तय करने के दौरान यमुना को भारी यातना से गुजरना पड़ता है, काफी तकलीफ सहनी पड़ती है। इस स्वच्छंद बहती नदी के निर्मल शरीर पर इतने जख्म लगते हैं कि मलहम लगाने वाले भी मलहम लगाने की जगह तलाशते दिखायी पड़ते हैं।
इस छोटी से दूरी में इस सरस सलीला नदी में इतने उद्योगों, कल-कारखानों का गंदा रसायनिक अपशिष्ट पदार्थ गिरता है, जिसे ये झेल नहीं पाती, और धीरे-धीरे गंदली होती हुई खुद ही स्याह काली हो जाती है। कुछ ऐसा ही हाल पतित पावनी गंगा का भी है। वाराणसी या पटना में नहीं, बल्कि अपने ही उद्गम स्थल पर।
गंगोत्री पर। यहां भी गंगा की पवित्रता, उसकी स्वच्छता अब अक्षुण्ण नहीं रह गयी है। उसका निर्मल ठंडा जल बहता तो अब भी उसी रफ्तार से है, लेकिन अब गंगोत्री पर भी गंगा उतनी पवित्र नहीं रह गयी है, जितना उसे माना जाता है। अब वहां भी चारों ओर कूड़ा और गंदगी का अंबार दिखायी देता है। मन्दाकनी और अलकनन्दा की हालत भी इन नदियों से ज्यादा अच्छी नहीं है।
क्रमशः केदारनाथ धाम और बद्रीनाथ धाम से निकलने वाली इन नदियों की हालत भी अपने मुहाने पर ही खराब हो जाती है, जो नीचे तक आते आते ऐसी हो जाती है कि इन नदियों के शीतल जल की जगह हमारा ध्यान इनके गंदेपन की ओर ही जाता है। आखिर नदियों के मुहाने पर ही इतनी गन्दगी की वजह क्या है? आखिर किसने किया इन्हें गन्दा? किसने लगाया इनके दामन पर बदनुमा दाग? इस गन्दगी के पीछे कसूर किसका है? इन नदियों की इस हालत के लिए क्या सिपर्फ कल-कारखाने जिम्मेदार हैं? क्या सिर्फ सरकारें जिम्मेदार हैं? नहीं।
इन सवालों के जवाब आपको स्वतः मिल जाएंगे। ज्यादा सोचने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर आप नहीं सोच पाए हों तो एक ब्रह्म सत्य जान लीजिए, वो इंसान ही है, जिसने कल-कल बहती इन नदियों की सुंदरता, उनकी निर्झरता और उनकी पवित्रता को नुकसान पहुंचाया है। कहते हैं इंसान जहां पहुंच जाता है, कुछ करे या न करे, गंदगी जरूर फैलाता है। कुछ ऐसा ही इन नदियों के साथ भी हो रहा है। कुछ लोग पर्यटन के बहाने इन पवित्र नदियों के मुहानों पर पहुंच रहे हैं तो कुछ भक्ति के सागर में गोता लगाने के लिए।
लोग इन जगहों पर दो-तीन दिन ठहर कर यहां की प्राकृतिक सुंदरता को निहार कर अपना दिल खुश करते हैं, यहां की तारीफ करते हैं, तो कुछ लोग गंगोत्री और यमुनोत्री में स्नान कर अपना और अपने पूर्वजों का भूत और भविष्य सुधारने की आशा करते हैं। चाहते हैं कि उनके पूर्वजों को मोक्ष मिल जाए। कामना मोक्ष पाने की है, लेकिन किन शर्तों पर? गंगोत्री और यमुनोत्री में स्नान करने के बाद लोग क्या करते हैं? ये बताने के लिए सिर्फ ये तस्वीरें ही काफी हैं।