सूफी संतों की शान में गाई जा रही कव्वाली, रंग-बिरंगी कशीदाकारी से झिलमिलाती चादरें, लाल गुलाब की पंखुड़ियाँ और दुआ के लिए उठते हजारों हाथ. ये दृश्य शायद किसी भी दरगाह का हो सकता है लेकिन फर्क ये है कि हरिद्वार के पास कलियर शरीफ़ में दुआ माँगने वालों में सिर्फ़ अल्लाह के बंदे ही नहीं बल्कि राम की पूजा करने वाले और वाहे गुरू का नाम जपने वाले भी होते हैं.
कलियर शरीफ़ का इतिहास लगभग 850 साल पुराना है. महान सूफी संत बाबा फ़रीदुद्दीन गंजशंकरी ने अपने भांजे मख़दून अली अहमद को आदेश दिया था कि वो कलियर जाकर लोगों की ख़िदमत करें. कहा जाता है कि अली अहमद ने लगातार 12 साल तक लंगर पकाया और लोगों को खिलाया लेकिन ख़ुद उसमें से कुछ भी नहीं खाया. उनकी इस सेवा से प्रभावित होकर बाबा फ़रीद ने उन्हें साबिर (सब्र करने वाला) नाम दिया. यहाँ के एक सूफ़ी संत मंज़र एजाज़ के अनुसार, "साबिर साहब बहुत बड़े सूफी संत थे. इनकी बड़ी करामातें हैं. लोगों की मन्नतें यहाँ आकर पूरी हो जाती हैं.” कोई यहाँ अपनी फ़रियाद लेकर आता है तो कोई शुक्रिया अदा करने. अमृतसर से परिवार के साथ आए, सिर पर टोपी पहने रवींद्र कुमार बताते हैं, "कुछ समय पहले हमने अपने बेटे की नौकरी लग जाने की मन्नत मांगी थी और उसकी नौकरी लग गई इसलिए हम यहाँ चादर चढ़ाने आए हैं.”