Dosto,
Char Dham Yatra 2011 commencing from 06 May 2011:
- Gangotri Dham will open on 06 May 2011
- Yamnotri Dham will open on 06 May 2011
- Kedranath - 08 May 2011
- Badrinath - 09 May 2011
छह मई को यमुनोत्रीधाम के कपाट खुलेंगे और इसी के साथ आरंभ हो जाएगी आस्था में पगीचारधामयात्रा। उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्रीसे शुरू होने वाली यह यात्रा गंगोत्री से केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ पहुंचकर विराम लेती है, जिसे श्रद्धालु भू-वैकुंठ यानी धरती का स्वर्ग भी कहते हैं.।
जब आने-जाने के साधन इतने उन्नत नहीं थे, तब गृहस्थी की जिम्मेदारियों से निवृत्त होकर दंपति पैदल चार धाम यात्रा किया करते थे। जो दंपति सकुशल वापस लौट आते, उनके आने की खुशी में पूरा गांव उत्सव मनाता था। इस मौके पर पूरे गांव को भोज कराने का भी आयोजन होता था। माना जाता था कि चार धाम यात्रा से उन्होंने जो पुण्य अर्जित किया है, उसका अंश पूरे गांव को प्राप्त होगा। कालांतर में सुविधाओं के विकास से चार धाम यात्रा को पूरी दुनिया में ख्याति मिली और श्रद्धालुओं के लिए यह देवभूमि पुण्यभूमि बन गई।
यात्रा का श्रीगणेश गंगाद्वार से
चारधामयात्रा की शुरुआत हरिद्वार से मानी गई है। हरिद्वार को श्रीविष्णुके साथ-साथ शिव का द्वार भी माना जाता है। पहाड की कंदराओंसे उतरकर गंगाजीयहीं मैदान में प्रवेश करती हैं। इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वारभी कहा गया है। यहीं देवभूमि के प्रथम दर्शन भी होते हैं। मान्यता है कि यहां गंगाजीमें डुबकी लगाने के बाद शुरू की गई यात्रा पुण्यदायीहोती है।
भक्ति से मोक्ष तक का पथ
जीवन में भक्ति का विशेष महत्व है। इसीलिए धर्मग्रंथ सर्वप्रथम यमुनाजीके दर्शन की सलाह देते हैं। यमुनाजीको भक्ति का उद्गम माना गया है, जबकि गंगाजीको ज्ञान की अधिष्ठात्री। यानी गंगा साक्षात सरस्वती स्वरूपाहैं। माना गया है कि ज्ञान जीव में वैराग्य का भाव जगाता है, जिसकी प्राप्ति भगवान केदारनाथ के दर्शनों से ही संभव है।
यमुनोत्रीधाम मंदिर के पुजारी आचार्य पवन उनियालकहते हैं, सूर्य पुत्री एवं शनि व यम की बहन देवी यमुना भक्ति का स्त्रोत हैं। इसी कारण यमुनोत्रीधाम चार धाम यात्रा का प्रथम पडाव है। कहा गया है कि चैत्र शुक्ल, अक्षय तृतीया, रक्षा बंधन, जन्माष्टमी व भैयादूज के दिन यमुना के पावन जल में स्नान करने से जीव को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
यमुनोत्रीधाम के बाद गंगोत्री की ओर प्रस्थान करने का विधान है। गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष पं.संजीव सेमवालकहते हैं कि गंगोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया को खुलते हैं। इस दिन गंगोत्री धाम पहुंचने वाले श्रद्धालु गंगा स्नान के साथ ही मंदिर के गर्भगृह में पाषाण मूर्ति एवं अखंड जोत के दर्शन करते हैं। यह क्रम गंगा सप्तमी यानी गंगा अवतरण दिवस तक जारी रहता है, जिसे निर्वाण दर्शन कहा गया है। स्कंद पुराण सहित अन्य धर्मग्रंथों में इसका माहात्म्य बताया गया है। गंगोत्री के बाद यात्रा केदारनाथ धाम की ओर प्रस्थान करती है। इस धाम के मंदिर पुजारी शिवशंकर लिंग कहते हैं, सदियों से चली आ रही परंपरा और केदार खंड में चार धाम यात्रा का विशेष उल्लेख हुआ है। चार धाम यात्रा मनुष्य को अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति दिलाकर पुण्य देती है। भगवान केदारनाथ का मंदिर पूरी दुनिया में अनूठा है। देश के बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक इस पावन धाम के दर्शन मात्र से करोडों पुण्यों का फल प्राप्त हो जाता है।
जीवन का अंतिम सोपान है मोक्ष और वह श्रीहरिके चरणों में है। शास्त्रों में कहा गया है कि जीवन में जब कुछ पाने की चाह शेष न रह जाए, तब भगवान बद्रीविशालकी शरण में जाना चाहिए। यह भी मान्यता है कि यहां ब्रहकपालीमें पिंडदान करने से मनुष्य भव-बाधाओं से तर जाता है। इसीलिए बद्रिकाश्रमको भू-वैकुंठ कहा गया है। लेकिन, यह विधान उनके लिए है, जो चारों धाम की यात्रा करते हैं। श्रीबद्रीनाथधाम के धर्माधिकारी जेपीसती कहते हैं, अध्यात्म की दृष्टि से बद्रीपुरीमुक्ति का धाम है और मुक्ति से पूर्व पात्रता के लिए भक्ति, ज्ञान व वैराग्य का होना जरूरी है। मन में अनुराग हो, तो जीवात्मा बंधन में रहकर मुक्त नहीं हो सकती। इसलिए भक्ति, ज्ञान व वैराग्य के लिए यमुनोत्री,गंगोत्री व केदारनाथ के दर्शन के बाद बद्रीनारायण के दर्शन करने से सांसारिक बंधनों से मुक्ति प्राप्त होती है। मिलता है पुण्यों का फल
चारधामयात्रा का पहला दिन करोडों पुण्यों का फल देने वाला माना गया है। इसी दिन चारों तीथरें में अखंड जोत के दर्शन होते हैं। कहते हैं कि निरपेक्ष भाव से इस पवित्र ज्योति के दर्शन किए जाएं, तो समस्त पाप मिट जाते हैं। व्यावहारिक रूप से भी देखें, तो सूर्य की पहली किरण, वर्षा की पहली फुहार, स्नेह का पहला स्पर्श भला किसे नहीं सुहाते।
कब खुलेंगे कपाट
यमुनोत्री:6मई
गंगोत्री: 6मई
केदारनाथ: 8मई
बद्रीनाथ: 9मई
यमुनोत्री
चारधामयात्रा का प्रथम पडाव है यमुनोत्रीधाम। यहां सूर्यपुत्री एवं शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना की जाती है। यह स्थल समुद्रतल से लगभग 3165मीटर की ऊंचाई पर अवस्थितहै। यमुनोत्रीधाम से एक किमी की दूरी पर चंपासरग्लेशियर है, जो यमुना जी का मूल उद्गम है। समुद्रतल से इस ग्लेशियर की ऊंचाई लगभग 4421मीटर है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह पवित्र स्थान कभी एक ऋषि असित मुनि का निवास स्थल था। मान्यता है कि असित मुनि ने यहां देवी यमुना की कठोर आराधना की थी, जिससे प्रसन्न होकर यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए थे। गंगोत्री
पौराणिक कथा है कि देवी गंगा ने राजा भगीरथ के पुरखों को पापों से तारने के लिए नदी का रूप धारण किया था। भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर वह धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री धाम में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है, जो कि समुद्रतल से 3140मीटर की ऊंचाई पर अवस्थितहै। स्वर्ग से उतरकर गंगाजीने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजीके मंदिर का निर्माण 18वींसदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजीका वास्तविक उद्गम गंगोत्री से 19किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थितहै। लेकिन, श्रद्धालु गंगोत्री में ही गंगाजीके दर्शन करते हैं।
केदारनाथ
रुद्रप्रयागजनपद में समुद्र तल से लगभग 3581मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के आंचल में अवस्थितकेदारनाथ धाम का देश के बारह ज्योतिर्लिगोंमें विशिष्ट स्थान माना गया है। श्रीमद्भागवत महापुराणमें भी केदारनाथ धाम का जिक्र मिलता है। पुराणों में एक कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों का प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे थे और उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल के रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती चली आ रही है।
बद्रीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि स्वर्ग और धरती पर असंख्य तीर्थ हैं, लेकिन बद्रिकाश्रमसरीखा तीर्थ न तो कोई है, न होगा। मान्यता है कि गंगाजीने जब स्वर्ग से धरती के लिए प्रस्थान किया, तो उनका वेग इतना तेज था कि संपूर्ण मानवता खतरे में पड जाती। इसलिए गंगाजी12पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा,जिसके तट पर बद्रिकाश्रमस्थित है। समुद्र तल से लगभग 3133मीटर की ऊंचाई पर चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण 8वींसदी में आद्यगुरुशंकराचार्य ने करवाया था। (Source Dainik Jagran)
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Regards.
M S Mehta