kal mujhe bhi ye mail mili thi, jiska jabab maine ye diya tha---------
आप कभी ऐसी मेल करेंगे, सोचा भी न था, क्या पहाड़ों में एक नया शहर नहीं बसना चाहिये, क्या उत्तराखण्ड देहरादून, नैनीताल, ह्ल्द्वानी, कोटद्वार जैसे शहरों पर ही डिपेण्ड रहे। क्या आज के युग में भी हम गैरसैंण, जखोली, मोरी, त्यूणी, धारचूला को नये शहर के रुप में डेवलप नहीं कर सकते। आखित क्यों हम इन दो-चार शहरों पर ही जनदबाव डाल रहे हैं, हम क्यों नहीं सम्भावनायें ढूंढते, हम पहाड़ पर शहर क्यों नहीं बना रहे?
फिर आप यह क्यों भूल जाते हैं, कि उत्तराखण्ड राज्य ऐसे ही नहीं मिला वह २०० साल के संघार्ष के बाद मिला जिसमें ५२ शहादतें हुई और हमारी अस्मिता सडकों पर तार-तार हुई, इन लोगों का सपना और पूरे उत्तराखण्ड की भावना थी कि हमारा उत्तराखण्ड राज्य होगा और उसकी राजधानी गैरसैंण होगी।
क्या अब हम इतने अहसान फरामोश हो गये कि अपने आराम के लिये इनके बलिदान को भूल जांय और ब्यूरोक्रेट और नेताओं की सुख सुविधा के लिये जहां वे लोग कहें, वहीं राजधानी बना दें और राजधानी भी ऐसी जगह जो पूरे उत्तराखण्ड से औसतन ३०० कि०मी० दूर है।