Author Topic: Articles & Poem by Sunita Sharma Lakhera -सुनीता शर्मा लखेरा जी के कविताये  (Read 28795 times)

vj_v4u

  • Newbie
  • *
  • Posts: 5
  • Karma: +0/-0
पहाड़ी शब्दकोष
« Reply #70 on: May 18, 2013, 07:40:02 AM »
पे यो एक गुजारिश छू की हम किले नि पहाड़ी शब्दकोष शुरू कर्ने. इ वजल, जिनुकं पहाड़ी समझम नि औनी , उनर लिजी ले भौल है जाल ने. अप आप सब लोग सहयोग दिला तब के है सकूँ.

नमस्कार
http://thetpahadi.blogspot.com
http://www.facebook.com/ThetPahadi

Sunita Sharma Lakhera

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 135
  • Karma: +14/-0
बादल

आसमा में बादल होते आँसू धरती माँ की आँखों के,
उसकी सब्र का बंधन फटता देख बढ़ते अत्याचार को ,
वही प्रतिशोध बादल बनती विपदा बाढ़ इंसान पर ,
कुछ पलों में फिर देती वही सबक इंसान को ,
चारों तरफ पानी पानी का प्रलय दिखाती ,
घर बह जाते,जीवन मिट जाते,त्रासदी दिखाती इंसान को ,
फिर भी जारी है इंसान का प्रकृति से खिलवाड़ का खेल ,
वर्षों से सचेत कर रही प्रकृति मूढ़ अहंकारी इंसान को ,
अपने ही हाथो से नष्ठ कर रहा इंसान मानव सभ्यता का ,
खोखली धरती ले रही प्रतिशोध जिसे भोगना पड़ेगा इंसान को ... >:(.

Sunita Sharma Lakhera

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 135
  • Karma: +14/-0
[]मेरा पहाड़

मेरा पहाड़ ..
क्या छाययी ...
कण व्हेय  ग्यायी ....
रूणु  छ  ..
मेरो प्राण ..
निर्भागी प्राण ...
आज ही नि
सदैनी ..
रुंद  छयाई ...
पण  आज ..
इतका नि
रुलू .......
तौ  यात्रियु
कु  कारण
आज मेरो  डोऊ
भैर  वाल
भी देखणा छन
आह्ह .....
आज  तुम भी
समझ  गयी व्होला ..
मेरु  डोऊ
आखिर तुम्हर भी
 व्हाल एक
दिन .....यनी
खोयीं  जाला
सभी ......
 समा जौला
धरती  माँ की
 गोद मा  ........!
[/size]

Sunita Sharma Lakhera

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 135
  • Karma: +14/-0
आपदा के कारण व् निवारण

प्राकृतिक आपदा शाश्वत सत्य है ! इंसानी सभ्यता की शुरुआत के साथ इनका भी इतिहास रहा है ! ये तब भी कहर ढाती थी और आज भी बरपा रही हैं ! प्रकृति का विनाश ही आये दिन बढ़ रही आपदाओं का कारक है ! समय के साथ आपदाओं की संख्या और तीव्रता में बढ़ोतरी हुयी है ! उत्तराखंड में हाल में बादल फटने से आई प्रलयंकारी बाढ़ से हुयी जन जीवन की भयंकर तबाही कई प्रश्नचिंह छोड़ गयी है ! कुदरत के इस कहर की विनाशलीला बहुत भयावह व् पीड़ादायक है ! उत्तराखंड का करीब ८० फीसदी हिस्सा पहाड़ो से घिरा है ! उतराखंड हिमालय का पूरा क्षेत्र सवेदनशील ,कमजोर और जगह जगह पर भूस्खलन का शिकार होता रहता है !उत्तराखंड हिमालय की तिब्बत की सीमा से लगा हुआ है ! यह क्षेत्र जिसमें उत्तरकाशी ,टिहरी जिले का उत्तरी भाग ,चमोली ,रुद्रप्रयाग , बागेश्वर और पिथोरागढ़ जिले शामिल है !हिन्दुओं के महत्वपूर्ण तीर्थस्थल गंगोत्री ,यमनोत्री ,बद्रीनाथ ,केदारनाथ ,पंचप्रयाग ,पंचबदरी ,पंचकेदार व् हेमकुंड साहिब इसी क्षेत्र में स्थित है !
उत्तराखंड में जल प्रलय की ऐसी विनाशलीला कभी नहीं देखी गई जो बेहद भयावह है। राज्य का बड़ा हिस्सा तबाह हो चुका है। न जाने कितने हजार लोग पानी में बह गए, कितने मकानों, दुकानों, वाहनों, जानवरों को प्रलयंकारी धारा ने अपने में समाहित कर लिया। चारों ओर केवल बरबादी का आलम । एक दो नहीं हिमालय से निकलती लगभग सारी नदियाँ मंदाकिनी, अलकनंदा, भागीरथी, गौरी, काली, कोशी, गंगा, यमुना की धाराएं इतनी विकराल हो गईं कि लोगों के पास अपना सब कुछ स्वाहा होते और अपनों को खोने के अलावा कोई चारा ही नहीं रह गया। राज्य प्रशासन इसे यदि उत्तराखंड सुनामी का नाम दे रहा है तो इसे अतिशयोक्ति नहीं कहा जा सकता है। भारत में बाढ़ का प्रकोप कोई नई बात नहीं है। स्वयं उत्तराखंड को इसकी भयावहता का अनुभव है। वर्ष 2010 में उत्तरकाशी के बाढ़ ने भयानक विनाश लीला मचाई थी। इतने व्यापक पैमाने पर, एक साथ इतनी नदियों द्वारा विनाश के ऐसे दिल दहलाने वाले दृश्य पहले कभी नहीं दिखे। उत्तराखंड भारत के पारिस्थितिकी, पर्यावरण संतुलन और संरक्षण का सर्वप्रमुख आधार तो है ही, इस देश की आध्यात्मिक परंपरा, सभ्यता-संस्कृति का मुख्य स्रोत और इसकी पहचान का प्रमुख क्षेत्र भी रहा है। हिमालय की गोद, उससे निकलती नदियां, पहाड़, वनस्पति, सदियों से साधकों, रचनाकारों का वास, चिंतन-मनन और लेखन का स्थल रहा है।
उत्तराखंड को विकास के नाम पर जिस तरह तबाह-बर्बाद किया गया है उसमें विनाश की संभावनाएं कई गुणा बढ़ गईं हैं। पूरे राज्य में पहाड़ों पर, नदियों के किनारे बनाए गए रिसॉर्ट, होटलों, अपार्टमेंटों, आम मकानों को देखने से ही मन डर गया है। आखिर हिमालय जैसा कच्चा पहाड़ अपने ऊपर कितना वजन बर्दाश्त कर सकता था ! वहाँ प्राय: लकड़ियों के हल्के घर बनाए जाते थे। बाढ़ और तूफान आने पर भी तबाही सीमित होती थी और पुनर्निर्माण भी आसान होता था। धीरे-धीरे निर्माण कंपनियों ने प्रकृति के इस रमणीक स्थल को कमाई का ऐसा जरिया बनाया कि सरकारें और सरकारी महकमों ने विकास के नाम और लालच में उनको छूट दी, स्थानीय लोग कुछ विवश होकर सब कुछ बदलते देखते रहे या कुछ लालच में फंसकर स्वयं इसके अंग बन गए। यही हाल सड़कों और बांधों का है। यह ठीक है कि सड़कों ने हमारे लिए उन इलाकों में जाना सुगम बना दिया जहां पहुंचने की राह पहले दुष्कर थी ! सड़कों के लिए पहाड़ों की कटाई ने उन्हें स्थायी रूप से घायल किया। समय-समय पर वहां से दरकते पत्थर और मिट्टी इसका प्रमाण देती हैं। यह विनाश का कारण बनते हैं। सड़कों के विस्तार ने हिमालय पर्वतश्रृंखला के विघटन को तेजी दी है। इसमें तीर्थयात्रियों, पर्यटकों के आवागमन का मुख्य जरिया बने कार, जीप एवं टैक्सी की संख्या वर्ष 2005-06 करीब 4000 थी जो वर्ष 2012-13 में 40 हजार हो गई। यह दस गुना बढ़ोत्तरी है। जितनी संख्या में वाहन और लोग पहाड़ों को रौंदेंगे, भूस्खलन भी उतना ही ज्यादा बढेगा। जब उतनी ज्यादा संख्या में लोग वहां पहुंचने लगे तो उनके वास और सुख सुविधाओं की संरचनाएं फिर विकसित करनी पड़ीं और इन सबने संतुलन को नष्ट किया है। पेड़ों की कटाई और खनन माफिया द्वारा पहाड़ों के लिए दीवालों का काम करने वाले पत्थरों की कटाई ने मिट्टी, पानी रुकने और सोखने की प्रक्रिया भी नष्ट किया है। कृत्रिम बांधों से नदी और पहाड़ों का संतुलन चरमरा गया है। हम आपदा प्रबंधन, सरकार की अक्षमता और आपराधिक लापरवाही को निशाना बना सकते हैं बनाना भी चाहिए। राष्ट्रीय आपदा राहत बल या एनडीआएफ (नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स) की भूमिका विनाश से निपटने की है। सेना के जवान भी राहत बचाव करते हैं। विकास के नाम पर भारत के मस्तक उत्तराखंड को जिस तरह कुचल दिया गया है उसे दुरुस्त कौन करेगा? अलकनंदा, मंदाकिनी, भागीरथी, फिर आगे गंगा ने अपना रौद्र रूप पहले भी दिखाया है, लेकिन उस समय न इतने निर्माण थे, और न इतनी संख्या में यात्री। विनाश काफी कम होते थे। पहले इनके बीच 20 से 40 वर्ष का अंतर होता था। वर्ष 2008 के बाद हर वर्ष यानी 2009, 2010, 2011, 2012 और अब 2013 में भी छोटी-बड़ी बाढ़ आ रही है। संभव है कि इस प्रकोप के बाद इनकी संख्या और बढ़े। विस्थापितों को कहां और कैसे बसाया जाएगा? विकास के नाम पर हुए विनाश की बलि आखिर कितने गांव, शहर, लोग, पशु-पक्षी, वनस्पतियां चढ़ेंगी? खुद हमें ही ठहरकर सोचना होगा कि आखिर हम ऐसा विकास क्यों चाहते हैं और हमं कैसा विकास चाहिए? अगर यातायात से लेकर संचार, ऊर्जा, सारी सुख सुविधाओं से लैस चमचमाते भवन, भोग-विलास की सारी सामग्री चाहिएं तो फिर ऐसे ही विनाशलीला के सतत दुष्चक्र में फंसने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। यह तो विनाश लीला की शुरुआत है ,अगर पूरे हैड्रो प्रोजेक्ट बन गए तो समूचे पहाड़ी प्रदेश का विनाश निश्चित है ! अभी केदारनाथ , कल के दिन टिहरी बाँध में अगर ऐसी आपदा आ गयी तो तबाही की कल्पना भी नहीं की जा सकती ! अभी कुदरत सचेत होने का समय दिया है ! हमे प्रकृति से छेडछाड बंद करना होगा ! विकास कार्य हो किन्तु परिस्तिथि और पर्यावरण के अनुरूप क्यूंकि प्रकृति यदि करुना का प्रतीक है तो वह विध्वंशकारी भी है !
पूरे देश की ही तरह उत्तराखंड में भी पारिस्थितिकी और जैव विविधता को बचाने के नाम पर तमाम राष्ट्रीय पार्कों और वन्यजीव अभ्यारण्यों के दस किलोमीटर के क्षेत्र को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र यानि इको सेंसीटिव जोन बनाया जाना है! उत्तराखंड में पैंसठ प्रतिशत वन भूमि है और राष्ट्रीय पार्क और वन्यजीव अभ्यारण्यों का जाल भी लगभग पूरे राज्य में फैला हुआहै ! इस तरह उत्तराखंड का अधिकाँश हिस्सा इको सेंसिटिव जोन के दायरे में आएगा इसलिए इको सेंसिटिव ज़ोन घोषित होने की चर्चा होते ही विभिन्न स्थानों पर इसका विरोध शुरू हुआ ! लोगों में यह आशंका है कि पहले ही राष्ट्रीय पार्क और वन्यजीव अभ्यारण्य उनका जीना मुश्किल किये हुए हैं और उस पर इको सेंसिटिव ज़ोन तो उनका जीना लगभग नामुमकिन कर देगा ! कुल मिलाकर यह बात सामने आई है कि प्रदेश सरकार सहित जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वे इस ईको सेंसिटिव जोन में जमकर पर्यावरणीय छेड़छाड़ और माफियाओं को पनपाने के लिए इसका विरोध कर रहे हैं ।
उत्तराखंड के निवासियों की यह आशंका भी गलत नहीं है ! इको-सेंसिटिव जोन के सन्दर्भ में केंद्र सरकार द्वारा घोषित दिशा-निर्देशों को देखें तो समझ में आता है कि इन इको सेंसिटिव ज़ोन के निवासियों का जीवन बहुत पाबंदियों में घिरा रहेगा ! गंगोत्री-उत्तरकाशी इको ज़ोन के गजट को देख कर साफ़ समझ में आता है कि इको सेंसिटिव ज़ोन के क्षेत्र में रहने वाले मनुष्यों से लेकर सड़क,झरने,पहाड़ी ढलान से लेकर पर्यटन तक के लिए नियमों की लम्बी सूची तैयार किया जाएगा और सब कुछ किसी ना किसी नियम से बंधा होगा ! ऐसे में सुगमता से जीवन यापन कैसे होगा ? वैसे भी केवल भागीरथी को इको सेंसिटिव घोषित करने का क्या औचित्य है ! इको सेंसिटिव जोन का अर्थ यह नहीं कि हम इन प्रदेशों ऊँची इमारते खड़ी कर दें ! राजनीतिक चिन्तन से हटकर पर्यावरण की दृष्टि से विकास होना चाहिए क्यूंकि निजी स्वार्थ से जंगल उजड़े , जनजीवन विनाश हो तो ऐसा विकास किस काम का ! विस्थापन और प्रतिबंद से पर्यावरण नहीं बच पायेगा ! प्रकृति वार्षिक प्रलय लाने में सक्षम है !
आज उत्तराखंड में जो भयंकर तबाही हुयी है उसे देखते हुए आज सभी मानने लगे हैं कि इस भूभाग को इको सेंसिटिव घोषित किया गया होता और इसमें पूर्व आपदा सूचना केंद्र बने होते तो शायद हजारो जीवन बचा लिए गए होते ! सदियों से लोग इन पहाडों और घाटियों में जीवन यापन कर रहे हैं ! हजारों के लिए यहाँ जीविका के साधन भी थे ! तीर्थ भूमि उन्हें कठिनतम परिस्थिति में जीने को विवश करती है ! प्रत्येक वर्ष की आपदा के बावजूद यहाँ के स्थानीय निवासी विपरीत परिस्तिथियों में भी जीवन जीने का आधार ढूंढ लेते है ! प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा सामने आ ही चुका है ! पिछले वर्ष केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने आपदा की बकायदा अधिसूचना जारी कर दी थी लेकिन उत्तराखंड सरकार के विरोध के चलते और केंद्र सरकार की लापरवाही उत्तराखंड में कितनी भयावह स्थिति लायी वह सबके सामने है ! यदि उत्तराखंड में पर्वतीय हिस्से में आधुनिक डॉप्लर वेदर रडार होते तो समय रहते बादल फटने की चेतावनी देकर लाखो जीवन बच जाते ! हैरत की है कि कठोर कुदरत वाले उत्तर भारत के हिमालयी इलाके में एक भी ऐसा रडार नहीं है !
अब वक़्त आ गया है कि आने वाली त्रासदियों से बचने के लिए महत्वपूर्ण फैसले लेने होंगे ! आपदा से बचाव के उपाय स्थानीय निवासियों व् फ़ौज के जवानों को दिया जाना चाहिए ,विद्यालय के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया जाना चाहिए ! आपदा आकस्मिक होती है इसलिए इसका पूर्व प्रशिक्षण वहाँ पर समय समय पर दिया जाना चाहिए ! बादल फटने से कुछ घंटे पूर्व स्थानीय निवासियों और मवेशियों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए ! यही नहीं भूकंप से भी बचने की ट्रेनिग दी जानी चाहिए ! एक ऑफिस आपदा प्रबन्धन द्वारा हर क्षेत्र में हो और सब आपस में जुड़े हो ताकि बिना समय नष्ट किये जीवन बचाए जा सकें ! इसमें केन्द्रीय सरकार को राज्य सरकार को स्वतंत्र अधिकार दिए जाने चाहिए ! सभी मिलकर सजग रहे तो आपदा का निवारण कठिन नहीं !  आईए सभी पहाड़ी प्रदेशो के लिए स्वस्थ चिंतन को बढ़ावा दें !
***********************************************************************************************
[/color]

Sunita Sharma Lakhera

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 135
  • Karma: +14/-0
अंतहीन वेदनाएं

घनघोर घटाएँ
दुखियारा जीवन  ,
विभस्त  राहे ,
त्रस्त निगाहे
गिद्धों की नगरी ,
उफनती  नदी ,
अंतहीन वेदनाएं ,
मानव रहित ,
मानव जनित ,
सरांध से भरपूर ,
एकाकी  जीवन ,
पथरीले खेत
खाली  गाँव
मृत पाँव ,
चलने से मजबूर !

Sunita Sharma Lakhera

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 135
  • Karma: +14/-0
उत्तराखंडी किसान
_____________________

बादलों का रौद्र रूप देख , आँखे मेरी छलक रही हैं !
अपने उजड़े चमन को देख , घुमड़ घुमड़ कर बरस रही है !
जिस शिद्त से मैंने सपने देखे , धड धड करके सब चूर हो गए ,
सपनों को डुबोकर बदली अब भी ,दिल की धड़कन बढ़ा रही है !

वर्ष भर की कठोर मेहनत से , हम जीवन उजियारा करते थे !
कम अन्न और धन से भी ,मिलजुल कर गुजारा करते थे !!

प्रकृति को पूजते हम किसान , तूफानों से कभी न हारे थे !
फिर नव जीवन तलाशने  में ,ऐसी बर्बादी से भी न डरे थे !!

विकास की राह में बढे सभी ,हमको सब ने बर्बाद किया ,
अपना घर रौशन कर , उन लोगों ने हमे अन्धकार दिया ,
मुफलिस जीवन में रह रह कर जहर का घूँट हमे मिला ,
स्वार्थी लोगो पर विश्वास करने की ,सजा महादेव ने हमसे लिया !

बहुत दुःख सह लिया हमने , अब न बढ़ने देंगे दुखो को !
अपने जीवन के खार बाँट देंगे ,चमन से फूल चुनने वालो को !!

मिटटी के हम पुजारी , मिटटी की लेते आज सौगंध !
मातृभूमि के गद्दारों को , मिटटी में मिलाएंगे रहेगे प्रतिबद्ध !!
*********************************************************************************************

Sunita Sharma Lakhera

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 135
  • Karma: +14/-0
सुन सखी मौत ...
***********
तुम क्यों हो धरा क़ी सखी
करती निरंतर उससे वफा
शायद ,,,,,,
तभी तो निष्ठुर बन
मान लेती उसकी हर बात
और ,,,,,,,फिर
छीन लेती हो ,,,,,
अनमोल सांसे ,,,,
अबोध शिशु क़ी ....
या ममता क़ी छाँव क़ी
इतनी निर्ममता क्यों ?
कैसे कर लेती हो .....
महज पल भर में ......
क्यों नहीं दिखता तुम्हे
दर्द और आँसुओं का ,,,,,
अंतहीन सैलाब ,,,,
या शायद ये तो
हैं तुम्हारे खेल का हिस्सा
पॅलो में अंत करती तुम ,,,,
जीवन का किस्सा ,,,,,
युगों से तूने
धरा का साथ चुन
क्या सकूं पा लिया ?

अब जरा ठहर् ,,,,
ए मौत ,,,,,,
आज बन जा
मेरी सखी ...
क्योंकि तू तो है भोली
तुझे तो चाहिये
एक अटल प्रेरणा
जो तेरे नाम को
सँवारे युगों युगों तक
क्योंकि शायद सखी
तू अपना भला ,,,,
नहीं समझती ,,,,,
बस निश्छल सी
समय कठपुतली बन
लील जाती ....
मासूमो को भी ,,,,,,
एक बवंडर क़ी तरह ,,,,,
क्योंकि तेरे अंदर
सवेदनायें है ही नहीं ,,,,,
बस ... अब और नहीं
तुझे अपना वर्चस्व
कायम करना होगा
आज ही नहीं
कालांतर तक
अडिग ,,,,
न्याय मूर्ति बन
नष्ट करना होगा ,,,
संवेदनहीन अपराधियों को
जो निडर होकर
विचरण कर रहे
इस धरा पर ,,,,,,,
बेखौफ ......
तेरा पद छीन कर
तुझे ललकार रहे ...
आ अब जाग
ईश्वर क़ी पावन धरा
को अब तू संभाल
आ मेरी सखी आ
अपना नया इतिहास रच !

Sunita Sharma Lakhera

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 135
  • Karma: +14/-0
कलयुग में कान्हा
****************|
 देखो हर ओर हर आँखे रो रही है ,
शायद कान्हा तेरी रूह सो रही है !
कैसा ये अनिश्चितता का दौर है ,
चारो ओर अराजकता का शोर है !
दुखी सुदामा हर गली में बिलखता है ,
कंश राज का अब बोलबाला दिखता है !
बहिने आज हर क्षण् अपमानित होती हैं ,
पर कान्हा तेरी उदारता ना कही दिखती है !
भ्रष्टाचार दीमक देश को चाट रही है ,
अत्याचार का दंश दिलो को पाट रहा है !
आज हर ओर माँ का बँटवारा हो रहा है ,
कान्हा तेरे संस्कार को संसार भुला रहा है !
निरथक जात-पात का भेद बढ़ गया है ,
आज हैवानियत का क्रूर पद बढ़ रहा है !
पहाड़ो  पर  मेघो ने उजाड़ दिया जनजीवन है ,
कान्हा आज  सूना-सूना हर माँ का घर आँगन है !
वनप्रदेश   और जनजीवन हर दम कराहता है,
तेरी मधुर बाँसुरी धुन को  हर  घर तरसता है !
आज भी यहाँ दुर्योधन जैसे सत्ताधारी हैं ,
पांडव देख आज भी दर दर भटकते हैं !
कलयुग में भी इंसानियत का मोल नहीं है ,
हर चौराहे पर मासूम लहू बेमोल बहता है !
गीता ज्ञान किताबो में सिमट गयी है ,
रिश्तों के आडंबरों में दुनिया खो गयी है !
आज फिर कान्हा तुझको आना ही है ,
आज फिर एक अर्जुन को जगाना ही है !
जन्माष्टमी  के बहाने अब तुझे आना ही है ,
नए युग निर्माण के लिए फिर जन्म लेना ही है !


Sunita Sharma Lakhera

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 135
  • Karma: +14/-0
करुणं दास्तान
_____________
निर्जन पथरीले वीरानो में ,
अक्सर .......
अतृप्त रूहे बसती है ,
जिन्होने जीवन के ...
अनगिनत उतार चढ़ाव ...
देखे ,जिए और खोए ....
पर कठोर समय के ....,
निष्ठुर चट्टानो पर ....
मृत्यु संग्राम लड़ते हुए ..
दबे हुए हैं ,,,,
जाने कब से ..
इतिहास के पन्नो तक
सिमटी रहेगी .....,
उनकी अतृप्त ,
जिजीविषा की अंतहीन
करुणं दास्तान !

Sunita Sharma Lakhera

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 135
  • Karma: +14/-0
हिन्दी का दर्द
__________________
मैं हिन्दी …..
देश की धड़कन ,
सदियों से रच रही थी ,,,,,
तुम्हारा इतिहास ….
समृद्ध शब्दकोश बन ,
साहित्यकारों का विश्वास ,
संस्कारों का आधार ,
पर ………..आज ….
मैं अपना ….
अस्तित्व निरंतर ..
गिरते देख रही हूँ ,
आह …. लोगो के ….
अंग्रेजी मोह में ,
अपने शब्दों को …
निरंतर घुटते ,मिटते…
देख रही हूँ ,,,
मौखिक ‘औ’ लिखित ,
मेरी मीठी शब्दावली ……
नए युग में ……
अपनी शालीनता ….
अब खो रही है ,
अपने अंगों को ढाँपने के लिए,
मैली कुचैली तार तार होती…….
मेरी झिंगोली ,,,,
अपनी हालत पर रो रही है ,
मेरी आत्मा को…
छलनी करके ,
मुझे हाय… जाने क्यों …
अंग्रेजी जामा पहना दिया है ,,
इन विदेशी शब्दों ने …मेरा ,
स्वरूप खंडित कर मुझे ….
जीते जी
अंगारों में झोंक दिया है…
मैं सिसकती रहती हूँ ,
हर क्षेत्र में मुझे ….
पछाड़ा गया …
मेरे हिंद पर शाशन करने वालो ने ,
मेरे लोगों को …….
मानसिक बीमार बना दिया ,
उस गुलामी में आज भी….
सब जकड़े हुए हैं …
आधुनिकता ही होड़ में …
मुझे ठुकरा रहे हैं ,
विदेशी षड्यंत्र से अनजान ,
आम आदमी मुझसे …,
कतराने लगा है …
उसने मेरे वजूद को
तोड़ मरोड़ कर ,
अंग्रेज़ी में ढाल दिया है ,
और मैं ….. असहाय सी ..
मूक वेदनाओं में घिरी …
सिसकती हुई ….बाट निहार रही हूँ ,
अपनी दम्भित इच्छाओं में ही ,
सुगबुगा रही हूँ…..
इस पर भी …,क्या तुम्हे चैन नही आया
जो तुमने मेरी पुण्यतिथि को…
हिन्दी दिवस के रूप में मनाया
तुमने मुझको हिन्दी दिवस की…
बेडी में जकड दिया,
अपने भारतीय होने का स्वांग ,
तुम सबने रचना सीख लिया !!
पूरे वर्ष ठुकराने पर
१४ सितंबर पर ही क्यों ….
मेरी महिमा का गुणगान और
मेरे इतिहास खंगालते तुम
मेरे लिए समारोह ,संगोष्ठियों
पर समय नष्ठ कर ….
मेरे स्वाभिमान को …
अभिशापित कर रहे हो ,
कभी कभी मुझे ,
तुम सब पर दया आती है ,
अपने भविष्य को देख …
मेरी रूह थरथराती है ,
काश …तुम आज भी ..
संभल जाते ….
….और अपने,
भारतीय होने का …
सम्मान बचा पाते !

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22