Author Topic: Exclusive Poems of many Poets-उत्तराखंड के कई कवियों ये विशिष्ट कविताये  (Read 57270 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*********अब क्य होलू हे दिदा ********

                      कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

भारत भूमि आज मेरि,कनि किराणी हे दिदा.
ह्वैगे मुश्किल अब त ज्यादा,अब क्य होलू हे दिदा.

जौंमा सौंप्यूं राज-पाट,ह्वैगीं निख्वर्या हे दिदा.
खांदा-पींदा कन भुखारा,ह्वैगीं यूं तै हे दिदा.

लद्वड़ी दणसट कैरिकै बि,ल्यावा-ल्यावा छन बुना.
माटु बि भसगे यालि यूँन,अब क्य होलू हे दिदा.

स्याळ मारो बाघ मारो,यूंकि पुटगी भ्वारा तुम.
रोग भस्मक लगी गे यूँतै,अब क्य होलू हे दिदा.

ननु पदान ठुलू पदान,सबि मिस्याँ छन हे दिदा.
सबसे निंगुरू बुड्या पदान,अब क्य होलू हे दिदा. 

अब इलाज यूँ सब्युं को, कन पडलो हे दिदा.
घोटि कै जमालघोटा, दीण पडलो हे दिदा.

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल .सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal @gmail.com

Garhwali poems, garhwali songs, garhwali verses

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*******गढ़वाळी छिटगा *********
                                  कवि - डॉ नरेन्द्र गौनियाल

*******ख़ित्त हैंसि*******

चरि तरफ
भ्रष्ट लोगोँ तै
फलदा-फुलदा
देखि कै 
त्याग,सदाचार
मर्यादा की बात
सूणि कै
ऐ जांद
ख़ित्त हैंसि.


*******शंका******

क्वी भरोसो
नि छा
नौनि कब
ऐ जांद
सौरास बिटि
भाजि कै
खैकि मार
य फिर
चुला पर ही
कुरमुरी ह्वै जांद.

***********कख च कुर्सी....?*********

उंकी जिकुड़ी
जु करणी छै
 सक सक सक
बाच सांस बंद
आंखि भटगा बंद
इकहरो सोर
कैका बुन पर कि
भौत खैरि च औणी
थ्वड़ीसि देर
धैरी द्या
कुर्सी मा       
सूणि कै
उंकी जिकुड़ी
धड़कण लगी गे
धक् धक् धक्
चट्ट खोली आंखि
इना फुना देखि
अर पुछदिन
कख च कुर्सी ..?

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित...narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*******पकड़ पकड़ पकड़ ले गुंठा********

                    कवि -डॉ नरेन्द्र गौनियाल

दिदा !
तिन हमतै
भौत ठगै याळी
द्यून्लू  त मि द्यून्लू
क्वी हैंकु नि दे सकदु
जु बि कन
मिन कन
इनु बोलि कै तिन
हम तै भौत लले यालि
पैलिदा कौथिग मा हमन
झुमैलो
तेरा ही दगड़ ल़गै
पण अबरी दा
सोचि-समझी
लगौंला गीत
तू बींगी गे होलू
हमरि धीत
समझी ले
हमारो मन
निथर हैंकिदा
हमन बि
इनी कन
पकड़ पकड़ पकड़ ले गुंठा..   

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*********गढ़वाळी कविता--******नेता ******

             कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

गौं,समाज
अर
मुल्क का वास्त
संघर्ष मा
अपणी जिंदगी
लगाण वल़ा
एक छवाड़ पर
बैठ्याँ छन
तिकड़म बाज
भ्रष्ट,चोर
गुंडा बदमाश
आज
नेता बण्या छन.
अपणि लद्वड़ी
भवरणा छन
लोगोँ तै
दारू पिलैकी
चित्त करणा छन
अर   
अपणो उल्लू
सीधो करणा छन.

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
*********गढ़वाली गीत-कविता***दुखियारी नारी *******

                       कवि -डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

मेरि बात सूणा मि,दुखियारी नारी.
रूणों छौं मि अजकाल,दिनरात भारी.

पति ह्वैगे मेरो आज,जुवारी शराबी.
कसि कैकि होलि अब,दूर या खराबी

रूंदा दिन कटदू,मि निरभगी आज.
कनु ऐ गैनी आज,यु रागस राज.

पतिजिन मेरा रोज,सुबेर चलि जाण.
लटगिंदा-फरकिंदा,पछि घौर आण.

गाळी-ढाळी तौंकी मिन,रोज सुणोंण.
नौनि-नौनों तै बि, रोज भारी डरौण. 

दलकणि मारि-मारि,तौन खाणु खाण.
नौन्यालोंन डैरिकी, भुखी सेई जाण.

छैंदो साग कबी,भुयां मा ठुप्याण.
दाळी की कटोरी,मी उंदा चुटाण.

इस्कोल्या नौनों की,फीस नि दियीन्दा.
टैम पर लैरी-लत्ती,भली नि करिन्दा.

रूणों रैन्द मन मेरो,यी हाल देखिकी.
मनाणु रैन्दू  मि रोज,हाथ जोड़ीकी.

कब मेरा पति तुम,होश मा ऐला.
कब ईं बुराई से,छुटकारा पैला.

         डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com       

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
उत्तराखंड राज्य कि नाकामी  पर भंयकर निराशा की कविता
                         भीष्म कुकरेती
  निराशा  एक भयंकर  अर नकारात्मक भाव च जु असला मा विरोध पैदा करदू. निराशा गुसा, रोष, क्रोध से सम्बन्धित भाव च अर यू तब होंद जब कै ण कवी सुपिन देखी ह्वाओ या सोची ह्वाओ अर यि सुपिन या सुच ण सही साबित ह्व़े सकद छ्या पण जब कवी बदजात कार णो से यि सुपिन या सोच पूरा नि ह्वावान त रोष आन्द , निराशा आन्द.
   उत्ताराखं द्यूं ण उत्तराखंड कि मांग एक सजीव उत्तराखंड राजू क बान शुरू करी छौ अर त्याग करी छौ कि जब हम तै अपण राज मिलल त हम अपण हिसाब से विकास करला पण इन नि ह्वाई .
आज साख्यिकी  गवाह च कि उत्तराखंड बणणो परांत पलायन मा बढ़ोतरी ह्व़े. युवाओं तै रोजगार नि मील. मुख्यमंत्री कि कुर्सी पैल पैल एक गैर उत्तराखंडी तै दिए गे, एक मुख्यमंत्री त इन बौण जु उत्तराखंड राज्य कु विरोधी छौ . जु मुख्यमंत्री  कुछ करण चाणो छौ वै तै भगाणो बान   राजनैतिक पैंतराबाजी चौल अर आज कु मुख्यमंत्री नामौ उत्तराखंडी च. वैमा ना त उत्तराखंडी सांस्कृतिक धरोहर च ना वै तै पहाड़ कु  क्वी ज्ञान च
  फिर आज चीमा सरीखा लोग प्रश्न उठाणा छन कि उधम सिंह नगर मा पहाड़ियों से बबाल होणु च . मदन कौशिक कि धान्धलेबाजि सब्यून देखी कि कन गढ़वाली अर कुमाउनी भाषा तै पैथर धके ल़े ग्याई . आज इन लगणु च जन बुल्यां हम इ गैर उत्तराखंडी ह्व़े गेवां धौं !
 इन मा गढ़वाली भाषा कि अति सवेंदन शील कवित्री बीना बेंजवाल इन कविता ल्याखली त खौंळ्याणै बात नी च
कवित्री ण अलंकृत भाषा मा जनता मा निराशा किलै च की पूरी व्यख्या कम शब्दों मा कार .
राज मिलण पर
कवित्री- बीना बेंजवाल (१९६९)

अपणा राज मिलण पर
जंदर्यों का बांठा नाज
ह्वेगी मूसों  का हवाला
बाड़ी खैंडण ड्वीला 
मजा मा चटणा बिराळा
बिसरी ज्ञान चुल्ला मा धरीं
अपण परथों की बार I 
अजा ण हाथों मा पोड़ीगे
हमारू घर बार इ I
बौल्या भुर्त्या बण्या हम 
नवाद कुर्सी ह्वेगे गुसैण
मासांत  तैं पुछ्ड़ी रैगि हमारि मकरैण
बगत तैं बि नी च बगत
नेतौं कु चलणु कारोबार I
पढया लिख्यां  खाणा ठोकरी
नौकरी जख होली सुनिंद पवड़ी
रोजगारै   स्यां लम्बी रेल
सैणै  फुंड छन अबि दनकणि
निरस्येगे प्राण
कुज्यणि कैपर लगली असगार
अपणा राज मिलण पर
Copyright@ reserved with poet and commentator 3/9/2012
 

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
********गढ़वाळी कविता---********* ये पहाड़ मा मुश्किल जिंदगी पहाड़ जनि********

                               कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

पहाड़
जनि सुणेण मा
तनि दिखेण मा
भोगणा मा 
दुन्य की गैळी
कर्दिन हैरी
यख बिटि
फुटीं 
छोया गदेरी
पण अफु
रैगैनी
निरपट सूखा
बीरान
यु पहाड़
ये पहाड़ मा
मुश्किल जिंदगी
पहाड़ जनि.

ऊबड़-खाबड़ धरती
उकाळ-उंदार
पैदल बाटों मा
खुटों मा
बिनांदा कांडा
पिडांदा
गारा-ढुंगा     
सीढ़ी जना
छवटा-छवटा 
डुंडा-बिंगड़ा
रूखा-सूखा पुंगडा मा
घर्या बल्द अर
हल्य़ा ब्वाडा
दगड़ मा डळफ़ोडा   
घुसणा रंदीन
अपणा सुक्याँ हड्गा
बगत कु बगत
बरखण वल़ा बादळ 
कबी कबी
छुमछे जन्दिन पाणि
कखिम कखिम
या रै जन्दिन
तरसणा
चोळी जना
अर कबी
अति बरखा
कैरि जांद
सब कुछ चौपट
घर कूड़ी 
बोगै जांद
ये पहाड़ मा
मुश्किल जिंदगी
पहाड़ जनि

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल...सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
गढ़वाळी कविता*****सपोड़ा सपोड़*****

            कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

 राज काज 
कनु ह्वैगे आज
ठेकेदार ह्वैगीं नेता
अर
नेता ह्वैगीं ठेकेदार
परसेंटेज की मार
कसि कै होलू
विकास
मथि बिटि ताळ तक
एक ही बात
पैलि द्यो
तब ल्यो
जु द्यालू
ऊ पालू
जु नि द्यालू
ऊ उनि रालू

शर्म न लाज
सबि जगा
कमीशन बाज
बढ़दू मर्ज
कपळी मा पकदु
विश्व बैंक कु कर्ज
काम काज
हो न हो
सपोड़ा सपोड़
द्वीई हथोंन
गबदाणा छन
ठेकेदार
नेता
अधिकारी
अन्ध्यर कूण पर
बैठ्याँ छन
खिसयाँ
बेरोजगार
आन्दोलनकारी.

           डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
********गढ़वाळी कविता -ब्वल्याँ कु असर********

         कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

ब्वल्याँ कु असर
दुधिया पर हूंद
बोलिकि पाणि
कुछ कम कैरि दींद

ब्वल्याँ कु असर
दुकानदार पर हूंद
बोलिकि कीमत
कुछ कम कैरि दींद

ब्वल्याँ कु असर
इस्क्वल्या पर हूंद
बोलिकि पढे पर
कुछ ध्यान दींद

ब्वल्याँ कु असर
सासु पर हूंद
बोलिकि ब्वारी खुणि
ककड़ाट कुछ
कम कैरि दींद

ब्वल्याँ कु असर
गूणि बंदरों
सुंगरों पर बि हूंद
हो हल्ला कैरिकी
भाजि जन्दिन

ब्वल्याँ कु असर
फसल मा बैठ्याँ
चखुलों पर बि हूंद   
ह्व़ा-ह्व़ा करण पर
फ्वाँ उडी जन्दिन

ब्वल्याँ कु असर
दूध कु भितर जांद
बिराल़ा पर बि हूंद
सिर-सिर बोलिकि
सुर्र भैर चलि जांद

ब्वल्याँ कु असर
देळी का भितर
खुटू धरद
कुकर पर बि हूंद
बोलिकि सर्र
भैर ऐ जांद

ब्वल्याँ कु असर
सिर्फ
नेता पर नि हूंदू
एकदा ना
कतगै दा बोलिकि बि
क्वी ध्यान नि दींदु
कुछ काम नि करदु

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित .narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
   हे  निर्मोही

                         कवि: पूरण पन्त पथिक
                           

                             हे निर्मोही /
                              तू कख अलोप ह्वैगे /
                              त्त्वैन मेरो खंडेला लफाई/
                              मी पर अंग्वाळ  बोटी -
                              छड्येंनै कोशिश कन्नू रौं मी /
                              हे रांडा छवारा/
                              मेरा अण छुयाँ  हाथ पकड़ी कै/
                              त्त्वैन मेरी भुक्की पे /
                              मेरी कुंगळि  जिकुड़ी मां/
                               धधकार मचैदे/  तू कख लापता  ह्वैगे /
                               जोगी ह्वैगे?
                              मेरी धमेली थामी कै /मलासिकै/ मी जुट्ठे द्यूं त्त्वैन /
                              कनी गीज पोडिगे छै त्वे तैं हैं /
                              झम्झ्यात कैरिगे  /
                              मेरी मवासी घाम लगैकी/ भ्याळुन्द लमदैकी/
                              कख ह्वै तेरी पछिंडी/
                               मेरी चौन्ट्ठी का तिल /गल्वाड्यू  का पिल परैं/
                               दाग लगें त्त्वैन /चकर्चाल /भत्त्याभंग कैरिग्ये तू /
                               चान्ठों पर बन्नांग लगैकी /
                               हर्चिग्ये /कख चक्च्येगे /तू कनो खल्चत्त रै/
                                कख ह्वै तेरो निपल्टो /
                               खबेश ता नि बन्निगे /
                               हे निर्मोही/


               @पूरण पन्त पथिक देहरादून 

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22