Author Topic: Exclusive Poems of many Poets-उत्तराखंड के कई कवियों ये विशिष्ट कविताये  (Read 30983 times)

Bhishma Kukreti

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 निपल्टो :गढ़वाली गजल


              गजलकार- पूरण पन्त पथिक

[गढ़वाली गजल, उत्तराखंडी गजल, मध्य हिमालयी  क्षेत्रीय  भाषा की गजल; हिमालयी  क्षेत्रीय भाषा की गजल; उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषा की गजल; भारतीय क्षेत्रीय भाषा की गजल; दक्षिण  एशियाई क्षेत्रीय भाषा की गजल; एशियाई क्षेत्रीय भाषा की गजल; पूरबी देशों की क्षेत्रीय भाषा की गजल लेखमाला]


          जो बि गै वो बौडु  नी छ कनो निपल्टो ह्वैगी भैजी
          उत्ताराखंडौ  पाणि  निरसु ,कनो किलै यो ह्वैगी भैजी .

        पुंगड़ी  /पटळि ली/द्वाखरी बंजी ,कुडी  /तिबारी खंद्वार भैजी .
         पौ की घंट /ढुंगा निरस्याँ रस्वाडा को गालन बी भैजी .
 
       मोर/ बिंयारा/ संगाड रूणा,  ढ़ैपुरा निरसै गैन भैजी
       बल पहाडौ  पाणि/ज्वानि  ,ब्वग्दा रैग्ये सदनी भैजी .
       धुरपळिम खिरबोज निरभगी रून्दो नि ,न हँसदो भैजी
        ग्वरबटा का ढुंगा /गारा बाटो  ह्यर्दा रंदन भैजी .
 
       इनो  असगुन किलै हम खुणि  ,लाटा-काला रयां भैजी
       बिंडी खाण कमाण  पितरकूड़ी  बिसरी ग्याँ भैजी .


      @पूरण पन्त पथिक देहरादून

गढ़वाली गजल, उत्तराखंडी गजल, मध्य हिमालयी क्षेत्रीय भाषा की गजल; हिमालयी क्षेत्रीय भाषा की गजल; उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषा की गजल; भारतीय क्षेत्रीय भाषा की गजल; दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषा की गजल; एशियाई क्षेत्रीय भाषा की गजल; पूरबी देशों की क्षेत्रीय भाषा की गजल लेखमाला जारी .....

Bhishma Kukreti

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असली पछ्याण

कवि- पूरण पंत पथिक 


जै  मनखी  की नी अपणी बोली  -भाषा,
जै मनखी  की नी छ अपणी पछ्याण
वैको क्या ब्वन्न को होला ब्व़े-बाबा
वैकि  जिंदगी मां कुछ नी रस्याण .

ब्व़े कि  बोलि  ही छ दुधबोलि  हमारी
दुधबोली ही मातृभासा हमारी,
गढ़वाली  दुधबोली अर ब्व़े की बोली
ई  मातृभासा - पछ्याण हमारी .


सर्वाधिकार@ पूरण पंत पथिक,  देहरादून 9412936055

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता-*****अपणि पुट्गी भरिकी विधाता हमारा बण्या छन*******

    कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

ऊ रूप्या देकी वोट लीणाs
हम रूप्या लेकि वोट दीणाs
ऊ दारू देकी वोट लीणाs   
हम दारू पेकि वोट दीणाs
जात-पात धर्म- भेद
स्वार्थ देखि वोट दीणाs
लोकतंत्र को यु कनु मजाक ह्वै
जनतंत्र को यु कनु खंद्वार ह्वै

राजनीति कूटनीति
रोजगार ह्वैगे आज
समाज सेवा भूलिकी
स्वार्थ सिद्धि ह्वैगे आज
छल कपटी भ्रष्ट लोग
सफ़ेदपोश बण्या छन 
अपणि पुट्गी भरिकी
विधाता हमारा बण्या छन

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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असल्यात

(म्यार मनण च बल गढ़वळि व्यंग्य (चबो ड्या ) कविता मा द्वी धारा छन एक धारा  च डंडरियाळ वादी याने  जिकुडेळि  अर हैंक च बहुगुणावादी याने दिम्ग्या . डंडरियाळ वादी या जिकुडेळि चखन्योर्या कविता जिकुड़ी  या हृदय से निकळदन  जब कि दिम्ग्या या बहुगुणा वादी मा बुद्धि क आसरा जादा हूंद. बहुगुणावादी याने दिम्ग्या कवियुं मा कवि वौद्धिक  स्तर पर कवितौं तै लिजाण चाँद अर यां से कविता आम जनता से थ्वडा दूर बि ह्वाऊ त कवि फिर बि खुश च. पूरण पंत जी बि बौद्धिक व्यंग कवि च  अर कविता जन्माण मा बुद्धि तै जादा महत्व दींद. अर याँ से पंत की कवितौं तै समझणो बान बंचनेर  तै एक ख़ास बौद्धिक मानसिकता क स्तर पर जाण जरूरी च. अलंकारों से सजीं तौळै  कविता म्यार गढ़वळि व्यंग्यात्मक कवितौं भेद कु सबूत  च. -भीष्म कुकरेती] 


कवि -पूरण पंत पथिक
                -------------
 हमारा घार ऐल्या दगडम   हम कुणि क्या  ल्हैल्या जी
 तुम्हारा घार  औंला तब तुम हम सणि  क्या देल्या जी .
                             
 अपनों तमखू -साफी दगडम  अग्यल  पट्टा   लौंला जी
   एक अद्धा ठर्रा खीसाउन्द तुमारा उबरम  प्योंला जी .

   छुयुंक   की  कचबोळि बणौला  चटणी होलि हैकै निंदा कि जी

         ठुंगार कैतैं नंगी करला हम्वी सच्चा बन्दा

       लगढ़या हम छां दगड्या   वैका भूढ़ा-पकोढ़ा-स्वाळा  जी
    जो न हमसणि  सेवा लगालो वेका बल्द ख्वाला जी .

    हमारी भैंसी पक्वाडी हग्दन तुमारी भैंसी मोळ  जी
  जब तक  हम वित्वळदा  माछ  तब तक  तुम लगावा झौळ  जी .               
              @ पूरण पन्त पथिक देहरादून 

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता-*****जुगराज रयाँ भग्यान****

       कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जुगराज रयाँ भग्यान
ऊ सबि, जु अबी बि   
गौं मा रैकि
खेती-पाती कना छन
हैळ लगैकी
पहाडे धरती तै
हैरी-भैरी रखणा छन
 नवल़ा-धारों बिटि
पाणि ल्याणा छन
बणों मा गोर-बखरा चरांद
बंसुली बजाणा छन 
छ्वै लगैकी
लारा धूणा छन
भ्यूंल कु गाळण बणेकि
मुंड धूणा छन
जु दाना-दीवाना
अग्यलु जल़ेकि
आग पळचाणा छन
भैयाँ चिलम बणाणा छन
 कुटणा छन पिसणा छन
गोर-गोठ करणा छन
नौना पिट्ठू-गुलीडंडा ख्यलणा छन
नौनि बट्टा-गिट्टा ख्यलणा छन

जु बैद अबी बि
जड़ी-बूटी,चूरण-काढ़ा दीणा छन
जु औजी अबी बि
लारा सिलणा छन
ढोल बजाणा छन,चैत मंगणा छन
 जु रुडिया अबी बि
बांस-रिंगाळ कि कंडी
सुप्पी-ड्वलणि बणाणा छन
जु कोळी अबी बि
क्वलड़ा मा राडू-लया अटेरणा छन
जु लुहार अबी बि
अणसेल़ा मा कुटल़ा-दथड़ा पल्य़ाणा छन
जु नौनि-नौना
फुल संगरांद का दिन फूल ख्यलणा छन
 जें दादी का कंदुड़ा मा
मुरख्ला-मुंदड़ा छन
जें ब्वे का गौलुन्द हंसूळी
हाथों मा चांदी का धगुला छन
जें तिबारी मा अबी बि
बीरा भैणि अर सात भयों कि कथा लगणी छन
जु अबी बि थड्या-चौफुला लगाणा छन
जु अबी बि कंडाळी कु साग
मंडुवा कु टिक्कड़ खाणा छन 
जु प्रवासी रिटैर हूणा का बाद हर्बि
अपणी मातृभूमि पहाड़ मा आणा छन

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल .सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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अपणा घार मां  ठगेंदा  रै गयां


चबोड्या कवि - पूरण पंत पथिक


 हम त भैजी ,अपणा घार मां  ठगेंदा ही रै गयां
कोरी -काची गप्प दाज्यू ,हम लुट्येंदा रै गयां.

राजनीति ,धर्म ,जाति,क्षेत्रवाद का वाद मां
मवासी घाम,तुम त लमसट,हम थिन्चेंदा रै गयां .

तुंड तुम क्याजी करां,हम त खौल्याँ रै गयां
 तुम्हारी खेत्युं सोनू,हमारी जख्या  बौळे गयां .

तुम्हारी कूड़ी चम्म चमाचम हमारी ह्वै खन्द्वार स्या
 हंसणा  मुल-मुल्कै भैजी ,हमत रून्दा रै गयां .

 कैको ह्वै निर्बिज्जो राजनीत नी पछ्याणि  साकी रै
उप्पन,चिलगट ,झौडा संगुळ  मनखी कख हम रै गयां


@ पूरण पंत पथिक

Bhishma Kukreti

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एक गढ़वाळी कविता -*******धाद*******

    कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जागि जा
उठि जा
रात पुरेगे
बियण्या ऐगे
उज्यल़ू ह्वैगे
जु उठिगे
वैन पै
जु सियूँ रैगे
वैन ख्वै
सियाँ रैकि
सिर्फ
स्वीणा नि द्याखा 
जागि जा
उठि जा
अपणु हक़ ल्या
हैंका हक़ द्या

बुरा कि ना
भला कि हाँ
अत्याचार कु विरोध
सदाचार कु समर्थन
संगठन कि ताकत
अभ्यास कि योग्यता
लगन कि क्षमता
एकटक ध्यान कि सफलता

लगि जा
काम-धंधा पर
उठि जा
जागि जा
यी च रैबार
यी च फ़रियाद
यी च सौगात
यी च धाद
  डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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***********जै भारत जै उत्तराखंड ********

             कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

जै भारत जै उत्तराखंड,
चोरों का राज मा डंड ही डंड.
नौकरी-चाकरी फुंड ही फुंड,
लगी भली बि उतणदंड.

बात विकास की दूर ही दूर,
तुष्टिकरण मा हुयाँ छें चूर.
भ्रष्टाचार मा घुंडा-घुंड,
सत्ता मद मा हुयाँ छें टुन्ड.

हाथी का दांत दिखाणा का,
भितर वल़ा छें खाणा का.
आतंकी घुसेणा झुंडा-झुंड,
लड़दा-भिड़दा फ़्वड़दा मुंड.

घुसपैठी विदेशी आणा छन,
कमजोर देश तै करणा छन.
भितर घुस्यां छन कूणा-कूण,
अपणा धर्याँ छन बूणा-बूण.

कबी जात-पात की बात कना,
कबी सम्प्रदाय की बात कना.
समाज च हूणू डुंडा-डुन्ड,
राष्ट्रवाद ह्वै फुंडा-फुंड. 

कबी देश मा आलो रामराज,
धर्मी मन्खी तै मीललो ताज.
दुश्मन भाजला फुंड ही फुंड,
मारि की खतला मुंड ही मुंड.  जै भारत० 

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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अपसंस्कृति क परेशानी दर्शांदी बालेन्दु बडोला कि गढ़वळि कविता

     बालेन्दु बडोला गढ़वळि साहित्य मा आधुनिक कथौं अर लोक कथों संकलनऔ बान जादा जणे जान्दन. ओबालेंदु जीन कविता बि गंठेन. ईं कविता मा बडोला जे सांस्कृतिक  गिरावट कि बात करणा छन अर कविता मजक्या अर चबोड्या  भौण  मा च. एकी शब्द का द्वी अर्थ वळी या कविता चिरडांदि बि च, हसांदि  बि च अर ए मेरा बुबा सिखांदी बि च . या च बडोला जी की करामत. कविता छन्दहीन  भौण मा च 


लवलीन

कवि: बालेन्दु बडोला


बुबा निकज्जू पहाड़ पर

भगती मा लवलीन,

अर छोरा देहरादून मां,

कै छोरी का लव-लीन

गहर- गिरस्ती , संस्कृति समाज -

देस, फर्ज भूल गीन

इन म्वार यूँ 'लवलीन' कु

कि कख जाणा अब मीन   

Copyright @ Balendu Badola, Ghimndpur, Bhabhar, Kotdwaar

हिलांस , अक्तूबर १९८५ से साभार

Bhishma Kukreti

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*********जागो !जल्दी जागो!!अभी जागो!!!*******

                    कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

मै कौन हूँ
तुम कौन हो
हम कौन हैं
सब बंधे हैं
माया जाल से
फिर भी हर एक का
अपना वजूद

तुम भी जानो
खुद को पहचानो
ढूंढो अपना अस्तित्व
इस बेकाबू भीड़ में
मत भागो
पागलों की तरह
खुद के लिए
बेहतर लक्ष्य
सही मार्ग
तलाश करो

इस रंग-बिरंगी
सुवर्णी
बदरंग
दुनिया में
तुम कहाँ खड़े हो
 किस रंग में
रंग रहे हो
इसकी फ़िक्र करो
हकीकत जानने पर
पागलपन खुद ही
ख़त्म हो जायेगा
मगर तब तक
बहुत देर हो चुकी होगी
जागो !
जल्दी जागो !!
अभी जागो.!!!

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित .narendragauniyal@gmail.com

 

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