Author Topic: Exclusive Poems of many Poets-उत्तराखंड के कई कवियों ये विशिष्ट कविताये  (Read 30981 times)

Bhishma Kukreti

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खुज्यांदा रैग्याँ

कवि : पूरण पन्त पथिक देरादून

(गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं  में राजनैतिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक  गीत में राजनैतिक व्यंग्य ,  गढ़वाली में आधुनिक कविताओं सामाजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक  गीत में सामजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं  में शिक्षा  पर  व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में शिक्षा पर व्यंग्य,  गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं  कृषी नीति पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में कृषि नीति पर व्यंग्य   लेखमाला ) 



हमत भैजी तुम्हारी सांग ब्वक्दा ही रैग्याँ ,
तुम बडादिम,झर्रा-फ़र्रा, दिखदा ही रैग्याँ .
 साढ़े तीन बरस ,लाटा-काला  बण्या रां
तुम्हारी कोठी भूला-भटका दिखदा ही रैग्याँ .
तुम्हारो झंडा -लट्ठा -दरी ,ब्वाक्दा ही रैग्याँ
कूड़ी खंद्वार,हमरी,हम निगुसैं का रैग्याँ .
पित्रकुडी छोडी कना, फुन्द्या तुम बण्या ,
 ब्वे को दूद बिसरी बिंडी बड़ा किले बण्या
लटमुंडळया ढुंगा हमत लमडणा लग्यां
शर्म झिझक अपण्यास  शब्द बिसरिग्यां.
धुर्पळिम  खिरबोज खांसे ,बिसरदा रयां
सिल्ल मां वो मूळा  हैंसी ,सड़दा  ही रयां .
चौड़ा गिच्चा कैरी-कैरि बडादिम बण्या
लीगैन चोर लूटी ,हम जग्वल्दा रयां .
एको-वेको -कैको क्या बल गणत करदा रयां
अपणी कूड़ी आग लगे ,द्यखदा ही रैग्याँ.
कचम्वाली खै,डंकार  लें ,लेन ही लग्यां
सिल्ल  चुल्ला परैं 'पथिक'आग खुज्यान्द रैग्यां.
 
 


@पूरण पन्त पथिक देरादून ४-अक्तूबर२०१२

गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य कि कविता ,गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में राजनैतिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में राजनैतिक व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं सामाजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में सामजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में शिक्षा पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में शिक्षा पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं कृषी नीति पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में कृषि नीति पर व्यंग्य   लेखमाला  जारी ...


 

Bhishma Kukreti

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तिन क्य जणण मेरि पीड़ : गढ़वाली  व्यंग्य कविता,

      कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल


(गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में राजनैतिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में राजनैतिक व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं सामाजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में सामजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में शिक्षा पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में शिक्षा पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं कृषी नीति पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में कृषि नीति पर व्यंग्य लेखमाला ) 

तिन क्य जणण मेरि पीड़
मी पर पैलि क्य-क्य बीत
तू रिंगणू छै देळी-देळी आज
त्वे चैंद सिर्फ अपणी जीत

मेरि त कूड़ी पुंगड़ी बोगीगे
 ख़तम ह्वैगे सब घर परिवार
तू उड़णू छै सर्र इनै सर्र फुनै
त्यारा त क्य मजा हुयाँ छें

म्यारा खुटों मा त रोज
इनी हूणी रैंद खांदी कटदी
दिन रात काम का बोझ से
थक्युं पल़ेख्युं छौं

तू भागवान खै पेकि
दणसट लग्युं छै जुगार
मि अपण गुजर बसर का
जुगाड़ मा लग्युं छौं

मै तै भौत खैरि खाण पड़द
एक एक बीं टिपण मा
तू इनु खर्च करदी जनु कि
त्यारा खीसा चिर्याँ ह्वीं

कुछ बि पाण त मि तै कन पड़द
अपणी हड्ग्युं कि रसि
 त्यारू त क्या च
फ़ोकट मा काम बणि जांद
 
डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com


(गढ़वाली कविता, गढ़वाली गजल, गढ़वाली गीत, , गढ़वाली पुराने गीत, गढ़वाली नये- पुराने गीत, गढ़वाली में आधुनिक गीत, गढ़वाली में अति आधुनिक गीत, गढ़वाली लोक गीत आधारित गीत, , गढ़वाली लोक गीत आधारित गढ़वाली नई कविता, गढ़वाली पद्य, गढ़वाली में व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक व्यंग्य गीत, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं ने व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में राजनैतिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में राजनैतिक व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं सामाजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में सामजिक व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में शिक्षा पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में शिक्षा पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक कविताओं में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक गीत में स्त्री प्रताडन पर व्यंग्य , गढ़वाली में आधुनिक कविताओं कृषी नीति पर व्यंग्य, गढ़वाली में आधुनिक गीत में कृषि नीति पर व्यंग्य लेखमाला   जारी )

दीपक पनेरू

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तेरी दुखी मुखडी देखि, हिया भेरी गे,
मेरी प्यारी सुनीता, मुखुड़ी सुखी गे..

Bhishma Kukreti

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****** केका बाना फ्वडी हमन घुंडा मुंड *****?


-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

केका बाना फ्वडी हमन घुंडा-मुंड
केका बाना करी छै हमन रैली
केका बाना करी छौ हमन धरना-प्रदर्शन
केका बाना गै छाया दिल्ली
केका बाना खैनी हमन गोळी

गौं खाली
कूड़ी उजडी
पुंगडी बांजी
गौ बिटि
भाजि गैनी लोग
एक हैंका सिकासेरी
एक हैंका देखा देखी

गौ मा रैगेनी
कुछ बीमार
कुछ बेरोजगार
कुछ कूड़ी जग्वल्दा
दाना-दीवना लाचार

पहाड़ों मा
विकास कि बात पर
मांगी छौ अलग राज
न्यार ह्वैकि बि
क्य पै
राज्य लेकी बि
क्य ह्वै

शहरों मा
झर फर
गौं की दशा
जर जर
मैदानों मा
चक्रचाळ
पहाड़ों मा
सुनताळ।

 डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित narendragauniyal@gmail.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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त्वे सि दूर एकि खुद क्या होंदी
आज मैन जाणी !
अपड़ा मन अप्वे जब समझे निपै
फिर त्वेतें माणी !!

तू मेरी सदानि हि रै पर मै कभि
तेरु ह्व़े नि पाई!
आज जब तेरा ओणा आस नि रै
अपडु भरोषु नि राई !!

मेरी हर बात तें भलू-भलू बताणु
याद आज फिर आणु !
मेरा हर राग तें बार-बार सुनाणु
अभिबी मै भूली नि पाणु !!

मेरा खातिर दुनियां छोड़ी जाणकि
करीं सों अर करार !
आज फिर मैतेनं याद आणु अपडुनि
विंकू सचु स्यु प्यार .!!

प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालापन की माया ज्वनी तक राया।
तैरा बगैर कुछ भी याद नी आया।
व हैँसदी मुखडी ऊ सरम्याली आँखी।
अज्यौँ तक भी ह्यै सँग्गी मेथै भरमाँदी.,.........,.2
बालापन की माया..,......

ऊ स्कूल्या क दिन जोँ दिन रव्वाँ दगडै हम।
तरसी गयोँ मैँ सुणणू तेरी चुडयूँकी छम छम।
कभी भरमणोँमा तू मेरा पैजी बजाँदी.,...............
अज्योँ तक भी ह्ये सँग्गी मेथै भरमाँदी...............
बालापन की माया........

ऊँ कौथग्यौँ की याद अज्योँ भी छन संग-संग।
कभी मिल करी ते तंग कभी तिल करी मेँ तंग।
कौथग्योँ की भीडा बीच दुयी आँखी ते खुज्यांदी..
अज्योँ तक भी हे संग्गी मेथै भरमाँदी..............
बालापन की माया........

समलौण्या च तेरी तस्वीर समलौण्य रै गैना।
सौँ करार टुटगैन सब्बी सुपन्या सच नी व्यैना।
तैरी चाँद सी मुखडी आँख्यूं रिटणी राँदी.......
अज्योँ तक भी है संग्गी मेथै भरमांदी...............
बालापन की माया........

लटुली बडी कयैन मैन जू तेथै छा छुट्टी प्यारी।
एक अधूरी कथ्था बणिगे तेरी मेरी य्यारी।
खुद तेरी आँसू मेथै भारी दै जाँदी...............
अज्योँ तक भी है संग्गी मेथै भरमांदी................
बालापन की माया ज्वनी तक राया.....

मनोज सिँह रावत (बौल्या)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"
 
दादू मेरी उल्यारू जिकुड़ी दादू मी पर्वतों को वासी
दादू मेरी सोंज्यड़या च काकू दादू मेरी गेल्या च हिलांसी !
छायो मी बाजी को पियारो छायो मी मांजी को लाडूलो
छो मेरा गोला को हंसुलो दादू रे बोजी को बिटूलो !
दादू मिन रोसल्युन का बीच बैठी की बांसुली बजैनी
... दादू मिन चैरी की चुलाखूयूँ चलखदा हुंयु चुला देखिनी !
देखि मिन म्वआरयूँ को रुनाट दादू रे कौथिग का थाल
दादू रे बे पोतली देखिनी लेन मिन रेशमी रुमाल !
दा
दू वो रूडी का कौथिग सुयुन्द सी सैंडा माँ की कूल
दादू वो सोंज्यड़यों की टोल व्हेग्यायी तिम्ला को फूल !
दादू रे उडमिला बुरांसुन लुछीन भोरों की जिकुड़ी
दादू रे किन्गोडयों का बीच देखदी मिन हेन्स्दी फ्युन्लाड़ी !
झुमकी सी तुड तुड़ी मंगरी मखमली हेरी से अंगडी
हिल्वार्यों हल्क्दी धोपैली घुन्कदी लोंक्दी कुयेडी !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शुभ प्रभात
कभित रात ब्यांली होलि सुबेर !
कभित खुलालि म्यरी खैरिकी घेड !!
कटैला यक दिन ई घोणा अँध्यारा !
कभित उजालु आलू यख फेर !!
साक्यो पुराणी बादलों मा " जोन "!
कभित ऐ जालि बोडि फिर भैर !!
बसग्याल जालू बिती यु अबत !
कभित बैणु मै बसंत मा ग्वेर !!
घुघूती बसालि मनमा कभि मेरा !
कबित आलू स्यु बक्त व वेर !!
सुपन्याँ मेरा सुपन्याँ हि नि राला !
कभित बिजालू यों सुपन्यों तें मैर !!
होला ई द्योयो देवता मेरा देणा !
कबि ना कबित मेरा भाग कि मुडेर.......!!

प्रभात सेमवाल ( अजाण ) सर्वाधिकार सुरक्षि

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पौढ़ी लेखी की, हौडू- हौडू पोड़ी की,
बड़ू बणगे तू राजी रौ,
विदेश जै की, जौ जगा जोड़ी की,
ठाठ कानी छै तू राजी रौ,
जणदू छौं भुला मी तेरी सरी गाथा,
हाथ जोड्यां त्वेकू मै न सुणों,
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
बड़ा दिनु बाद घौर अयें तू ,
घौर मु ऐकि जरा थौक ख़याल,
हिसर-काफुल सी मिठ्ठी मीठी छ्वीं,
लगै-सुणि की जी भऱ्याल,
भोल तिन फेर वापस चली जाण
औ जरा धोरा मेरा गौला भिटयों
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
वू मुल्क ही अपणु होंदु
जख बीतादु अपणु बचपन
जख रौंदन बवे- बुबा, भै-बैणा और
जख अपणा जलड़ा होंदन,
यखी बिटीन खाद पाणी मिललू त्वे ,
सेखी मारी मेरु जी न जलौ,
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
मै न पौढ़ी न लेखी सक्यों,
न देखि सकेनी मिन सुपन्या बड़ा
घौर ही मु लमडी- खरसेकी,
बींगी गयों मी वेद सरा,
तेरी आख्यों मा पीड़ा देख णु छौ,
खुश नी छै तू वख़ सच बतौ,
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
बढ़ू बणगे तू राजी रौ,
मैलु मा रौणी तू राजी रौ...
हे मेरा भुला जरा चुप रौ..
(अनिल पालीवाल )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कोरा मन सी लगान्दी गै

त्वैमा अर मैमा फरक इदगी छ

मै रोंदी गै अर तू रुलान्दी रै !

दोस त्यारू नि दोस म्यारू छै

बर्षों बीटि कुछ नि चितांदी गै

त्वैमा अर मैमा फरक इतगी छ

मै सुणदी रै अर तू सुणादी गै !

त्यरा बाना साथ कत्गों कु छोड़ी

यकुली आज गाणियों गणादी गै

त्वैमा अर मैमा फरक इतगी छ

मै झुरदी रै अर तू झुरान्दी गै !

रोई रोई ज्यू म्यारु ह्वै खारु

तू मुज्याँ खारा सुल्गांदी गै

त्वैमा अर मैमा फरक इतगी छ

मै जगदि रै अर तू जलान्दी गै !

प्रभात सेमवाल ( अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित

 

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