Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447363 times)

devbhumi

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कैल न जाणि

मेरी पीड़ा त मेरी पीड़ा च
कै दगडी  बोलों  .... कैल न जाणि
गेड अपड़ी जिकोडी क़ा मि
कै दगडी खोलों  .... कैल न जाणि

चखुलि ऐ जीबन
चखुलि बनेकि सर .... उड़ि जालो
उड़ि उड़ि  कि ऐ निलू आग्स
किले कि..... भूंयां नि आलो

मेरी पीड़ा त मेरी पीड़ा च  ......
कै दगडी  बोलों  .... कैल न जाणि

सोँण कि पीड़ा सोँण न जाणि
आंख्युं को पाणि आंख्युं न चखी
किलै तांसि की तिस न बुझै
गौलि का बाटो क्वी न हिटे

गेड अपड़ी जिकोडी क़ा मि
कै दगडी खोलों  .... कैल न जाणि

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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आवाज सुनो पहाड़ों की

आवाज सुनो पहाड़ों की
इन झरनों और इन तालों की
बड़े खूबसूरत ऐ नजारें हैं
तुम बिन बेसहारे बेचारे हैं

सुर और ताल का संगम है
कल कल बहती,गंगा सा मन  है
शीर्ष है खड़ा हिमालय है
निस्वार्थ ही अकेले वो आगे है

जीवन पथ मुसीबत भरे
पहाड़ो  ऐ बोल बोले और आगे चले
हर पल हर पथ  की गाथा है
भारत ही इसका भाग्य विधाता है

प्रेम की कल्पना तो
कर लेता कवी देख इनको
बिना आग के धुँआ
बस यूँ ही नहीं निकलता है

दुनियां के बाज़ार में
हर चीज मिलती है व्यापार में
इस चक्रव्यूह को भेदना मुश्किल है
अपने को और परखना  आसान है

आवाज सुनो पहाड़ों की  ......
 
बालकृष्ण डी ध्यानी
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अपने से दबी

अपने से दबी
सहमी उस शाम से  मिल लें
आओ चलें
ओझल होते उस रवि से
कुछ कह लें

अहसास होता है ऐसा
बैचैन उन साँसों को जैसा
धीरे धीरे हम उन्हें
अपने आगोश में भर लें
अपने से दबी  ..........

चौखट लाँघ कर चली
आखिर अकेले रूठकर  कहाँ चली
कुसूर क्या था उसका
इतना तो दे दे बता
अपने से दबी  ..........

धुंआ धुंआ ...है ज़िंदगी
परछाईयाँ  बात तू कंहा छुपी
धूप से क्या हुआ इतना बैर
जो अँधेरे से मिलने चली
अपने से दबी  ..........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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खिल खिलाती रहे

खिल खिलाती रहे
ऐ हंसी तेरी यूँ ही आती जाती रहे
मुस्कान ऐ तेरी
बस इन सातों जँहा में यूँ ही  गुनगुनाती रहे
खिल खिलाती रहे  ......

इठलाते रहे , बलखाते रहे
यूँ ही तुम्हे वो सब गुदगुदाते रहे
ओस की बूंदों की प्यारी शबनम
आँखों को तुम्हारे  चमचमाते रहे
खिल खिलाती रहे  ......

उन  वादियों में 
फूलों सा वो मुस्कुराना तेरा
झर झर झरने  लगे सारे झरने 
वंहा इस तरहं से  इतराना तेरा
खिल खिलाती रहे  ......

ऐ कविता मेरी
बस बन जाये  बेटी तेरी ही हंसी
मुझे और क्या चाहिये
आ हँस के जरा पाप गोदी खेल ने आजा 
खिल खिलाती रहे  ......
 
बालकृष्ण  डी ध्यानी
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जिंदगी चली गयी

जिंदगी चली गयी
और (मैं उसे संभला ना सका) .... २
कलियां के  कांटे बन गये
(जिंदगी चली गयी ) .... २

आँखो में जीत के सपने थे
वो सुबह भी बहुत अजीब थी
वो शाम भी बहुत अजीब थी
फिर चढ़ा कुछ मुझ पर ऐसा बुखार
जिंदगी की फ़िज़ाओं का (मै मैं ना रहा ) .... २

पागल आशिक़ मैं हुस्न का
उसने मुझे बन दिया 
मैंने (छोड़ दिया घरबार ) .... २ 
दिल से मैंने माफ़ी मांग ली
(दिल ने ही कर दिया बेकार) .... २ 

मिलन की आस  दब गयी
जुदाई इतनी रास आ गयी
मेरी एक जिंदगी पर हंसने को
जैसे  पूरा शहर था जुट गया

मतलब के रिश्ते उभर गये
खामोश मेरी शायरी हो गयी
किसी से कुछ उम्मीद ना रखना
उम्मीद राखी तो (वो भी दर्द दे गयी) .... २ 

टूटे दर्पण के टुकड़े समेटे  तो
वो चुबे हर बार,वो चुबे हर द्वार
वो चुंबन जब इतनी बढ़ गयी
उतरते ... २  (जिंदगी ही घट गयी) .... २   

जिंदगी चली गयी
और (मैं उसे संभला ना सका) .... २
कलियां के  कांटे बन गये
(जिंदगी चली गयी ) .... २

बालकृष्ण डी ध्यानी
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उस याद से

उस याद से
पल पल बदलते रहे
रिश्ते मेरे
हर पल बदलते रहे
किस्से मेरे

दो ऑंखें रखी थी  सुखाने  मैंने गीली सी
टिप टिप लगे रहे वो रुलाने मेरे
सपने मेरे , रिश्ते मेरे

तिनका .. २  उड़ेगा
शायद बंद वो दरवाजा खुलेगा
कभी ना कभी
शुरू जो हुआ था वंही अंत होगा
मेरा भी लगता है वैसा ही हर्ष होगा

बाकी है अब भी क्या आँखों में कंही कुछ नमी ?
रह गयी मुझ में क्या  अब भी कंही कोई कमी  ?
अनुयायी सा ऐ सर मैं हिलने लगा हूँ
पहले अपना था मैं
अब  बेगाना होने लगा हूँ

पल पल दम अब घुटने लगा
हर क्षण आकर वो मुझ से कहने लगा
पहले तेज बहती थी अब है माध्यम
साँसों  की रफ्तार का क्यों निकला रहा दम

दिनभर एसी रूम में मै बैठने लगा
अपने आप ही मैं खुद से अकड़ने लगा
जब उसकी ऐसी ऐठान मुझे ऐठने लगी
केटली गर्म हो होकर मुझ पर बड़बड़ने लगी

सेकंड सेकंड का हिसाब मैं रखने लगा
क्या था इतना कीमती जो मैं छुपाने लगा
झिलमिलाहट तेरी मेरी हंसी अब खोने लगी
कंहा अब सकूंन मिलेगा खोजों कौनसी गली

वो बीता पहाड़ अब भी मेरे शेष याद में है
खुश हो जाता हूँ मै वो अब भी मेरे ख्याल में है
एक  रेखा मैं खींचने लगता हूँ मैं अपने आप से
तब मैं कुछ बातें करने लगता हूँ मैं उस याद से
उस याद से , उस याद से

बालकृष्ण डी ध्यानी
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इतनी चाहत जो

इतनी चाहत जो
तुम से की थी .....मैंने
चाँद भी छत से
उत्तर के  आ जाता

आज के रिश्ते
इन को क्या....कहना   ... २
इतने नाजुक से हैं की
वो संभलते ही नहीं

प्यार करता हूँ
ऐ  गवाही नहीं मेरी
ऐ शायरी है बस तेरी
बस तन्हाई मेरी 

खूबसूरत जो पल था
मगर वो कल था
आज हातों में
क्यों कर कुछ रहता ही नहीं

रेत फिसलती जाती है
वैसे जिंदगानी मेरी
पन्नो पर बिखरी पड़ी
है कहानी मेरी

कुछ लोग हैं
फिर भी बदलते नहीं
चाहत अपनों की
वो समझते ही नहीं

इतनी चाहत जो  ......

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किलै छलै जांद तू

ऐजाँदी भग्यानी ओं बाटूं मां
हिट हिट जोंला त्यूं डंडियूं मां

विं अखियुं का मि सुपनिया ह्वैजाऊं
विं लटूलि मां मि लतै जाऊं

निन्दि बी वा च जाग बी वा च
ईं दुई आंखियुं को प्रभात बी वा च

जख पौड़ी नजरि दिखे जांद वा
हे बांदा मिथे किलै छलै जांद तू

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बाकी सब ऊनि छा

अठरह बरस पैलि जन छा
अब बी वा ऊनि छा
पीड़ा त अब बी ऊनि छा
खैरी बी ऊनि छा

जुन कि जुन्याली जन छे
अब बी वा ऊनि छा
नजरि कि भेंट्याली जन छे
अब बी वा ऊनि छा

दानि जिकोडी माया जन छे
अब बी वा ऊनि छा
बदलिगे बस अब मेरु ऐ मन
बाकी सब ऊनि छा  .... ३

बालकृष्ण डी ध्यानी
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आंसूं नहीं थे

आंसूं नहीं थे वो ख़्वाब थे वो
महके हुये से गुलाब थे वो

आँखों की उन बारिशों में
भीगे भीगे माहताब थे वो

प्यार की बातें,प्यार के सपने
प्यार की खुली किताब थे वो

रूह जैसे प्रेम की प्यासी है
उन आँखों की प्यास थे वो

आँखों में मासूमियत थी भरी
लहमों के एक सैलाब थे वो

उठ के झुकना, झुक के उठना
हर एक अदा में लाज़वाब थे वो

आंसूं नहीं थे .............

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