उमादत्त नैथाणी भेंटलु मनियारस्यूं पौ० ग० 1920-1971
उमादत्त नैथाणी खाली कवि नि छौ बल्कण मां दिल्ली तैं गढ़वाˇी साहित्यिक मंडल को संस्थापक मदे एक छयो उमादत्त की भौत सि कविता इनैं उनै पत्रिकौं-पत्रूं अर सोविनियरूं मा छपेन, गीता अर मेघदूत का पद्यात्मक अनुवादक गढ़वाˇी सार का रचियता अपणों आप मा गढ़वाˇी साहित्यौं बान बड़ी उपलब्धि च।
श्रीधर जमलोकी (उखीमठ, 1920-1984)
हिंदी संस्कृत अर गढ़वाˇी मा साहित्यिक रचना दीण वˇु जमलोकी की गढ़वाˇी कविता खौˇ (संग्रहद्ध अश्रुमाला (1953) एक बिसी (1953),दंुदभि डिम डिम उनास्वपन्न इंदिरा प्रसिह् ∫वेन, सैकड़ाक से जादा गढ़वाˇी कवितौं जनक मा प्रकृति विषय क विषय छन, साम्यावादी या सोसलिष्ट विचाराधार का विद्रोही स्वर छन, जनान्यूं का दुख से उपजीं कˇकˇी ;करूणद्ध च, प्रतीक पैदा करण मा उस्तात च जमलोकी, अनुभव अर खैर खयी ;दुख को अनुभवद्ध बि जभलोकी कवितौं मा जगा-2 मिल्द, श्रीधर की कवितौं मा कल्पना उथगा इ मिल्द जु कवितों मा प्रवाह/गति रौंस लाण मा दगड़या साबित ∫वे साक निथर कविता रियलिज्म का नजीक छन। गढ़वाली गौ मा प्रचलित बिंम्ब अर संस्कृत शैली को कवि प्रयोग करण मा जमलोकी की पैथर नि राईं ।
जीवानंद श्रीयाल (जखन्याˇी नैलचामी, टि० ग० 1925-2003)
जीवानंद श्रीयाल कु सबसे बड़ों मिˇ्वाक च गढ़वाली गौं मा कवि सम्मेलनुं मा गीतेय कविता सुणैक ग्रामीण गढ़वाˇयूं साहित्यिक थौˇ का प्रति रूझान पैदा करण। गौˇ-ढौˇ अर गढ़वाली मान कु ज्ञान का धनी जीवानंद का तीन कविताघˇ(संग्रहद्ध छपेन- गढ़साहित्य सोपान शैलखंड(1966) गढ़साहित्यं सोपान तिसरोखंड (1980) छपीं छन,श्रीयालौ कवितौं मा रियालिज्म भौत च किलै कि कवि अफु बि हˇ्या च, किसाण च चिपको आन्दोलन को सिपै च। कवि कल्पना से जादा सिखैरी खयींपि ;अनुभव जन्यद्ध पर विश्वास करद पर जीवानंद श्रीयाल न भौं भौं विषयूं पर कविता रचीं छन, संस्कृतै
छंद- भौण तैं अंगीकार करीक गढ़वाˇी भौण मा बदलण मा उस्ताद च श्रीयाल, गढवाली आणा, पखाण, प्रतीक, बिंब कर्तब, श्रुतियों अर टिर्याˇी शब्दुं को प्रयोग से श्रीयाल की कवितौं तैं पढ़न मा भौंत ही रौंस औंद। जब कि श्रीयाल की प्रतीतात्मक कविता बांचे जावु त बंचनेर का मन मा श्रीयाल का मन माफिक इमेज पैदा ∫वे जांदन। श्रीयाल की आकाशंवाणी कथगाई कवितौं तैं कथगा ही दफैं रिलै कार अर यू साबित करद चल जीवानंद श्रीयाल कथगा तागतवर कवि च। कथगा ई पुरस्कार श्रीयाल तैं मिल्यां छन।