Author Topic: जय प्रकाश डंगवाल-उत्तराखंड के लेखक JaiPrakashDangwal,An Author from Uttarakhand  (Read 25556 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
February 4
मेरी कलम से ©Jai Prakash Dangwal:-

एक खूबसूरत चिड़िया अक्सर चहचहाते हुए दिख जाती थी,
मुझे देखते ही, फुर्र से न जाने क्यों वह झट से उड़ जाती थी।

मैं, उस प्यारी चिड़िया से पूछता था: मुझसे क्या खता हुई थी,
लेकिन, कुछ बताने के बजाय, वह और भी दूर चली जाती थी।

मैं, उसे कहता रहा, मैं खुदा का नेक बंदा हूँ, कोई सय्याद नहीं,
मुझे तेरा चहचहाना, बहुत अच्छा लगता है, और कुछ भी नहीं।

उसने, मेरे आँगन में आना छोड़ दिया, कहीं और चहचहाने लगी,
थोडा सकूं था उसकी खैरियत मुझे इस तरह से अब मिलने लगी।

यकायक वह गायब हो गई और उसकी बेइंतहा फ़िक्र मुझे हो गई,
बहुत तलाशा पर कोई खबर नहीं मिली, न जाने वह कहाँ खो गई।

मुझे उससे कोई शिकायत नहीं,अगर शिकायत है तो वह खुद से है,
पंछी का कोई ठिकाना नहीं होता उसका खैरख्वाह तो खुदा होता है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
January 27
मेरी कलम से ©Jai Prakash Dangwal:-

हम किसी और की खामियों के विषय में, क्या कह सकते हैं
अपने ही अंदर बहुत सारी खामियां, स्वयं को नजर आती हैं।

फितरते इंसान है, अपनी नहीं दूसरों की कमी नजर आती हैं,
इसीलिए मुझे भी अपनी नहीं, दूसरों की कमी नजर आती हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
January 26
From my pen ©Jai Prakash Dangwal:-

न जाने क्यों, एक मनोहर स्वप्न के जैसे, मेरे पास आ तेरा मुझ पर छा जाना,
और, स्वयं को भूल, मेरा ऐ स्वप्न! जान बूझ कर तेरे मोह जाल में फंस जाना।

अभी नींद आई ही थी, और प्रेम का नशा गहराया ही था कि स्व्प्न तू टूट गया,
नींद टूट गई स्व्प्न खो गया, मगर ऐ स्व्प्न तू मेरा न हो कर भी मेरा हो गया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
January 24
From my pen ©Jai Prakash Dangwal:-

जीवन का तजुर्बा कुछ इस तरह होता है कि दूर की बातें भी, बड़ी साफ़ नजर आती हैं,
लाख छुपाये कोई पर बदलती पसंद और बदलती नजर बड़ी साफ़ साफ़ नजर आती हैं.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
1 hr · Delhi · Edited ·

मेरी कलम से:-

सब कुछ मयस्सर है, तेरे लिए, मेरे पास,
कुछ भी मयस्सर नहीं मेरे लिए तेरे पास.

कोई शिकवा शिकायत नहीं है मुझे तुझसे,
खुश हूँ, तू अपनी याद छीन न पाईं मुझसे.

यह न समझना कि बेइंतहा प्यार है तुमसे,
असल में तेरी याद को बड़ा प्यार है मुझसे.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
 
मेरी कलम से:-

भुलाना हो अगर, तो इस तरह भुलाना, कि कभी कभी याद आ जाये,
मगर इस तरह न भुलाना कि कहीं चाहने वाला ख़ुद को ही भूल जाये.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
April 30 near Delhi
मेरी कलम से:-

इस कदर भूलें हमको कि हम ख़ुद ही को भूल गये,
जमीं अस्मा, सूरज सितारे हम सभी कुछ भूल गये.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
April 27 
मेरी कलम से:-

पत्थर दिल हूँ, यह बात, तुझे अच्छी तरह पता है, दोस्त,
शायरी की गर्मी, जिसको कभी पिघला नहीं पायेगी दोस्त.

तोड़ दे अपनी कलम, इसकी गर्मी मैं और सह न पाऊँगी,
पिघलना फितरत नहीं, दरक कर मिट्‍टी में मिल जाऊँगी

दो ही सहारे थे शायर के जीने के एक तू और उसकी कलम,
मुहब्बत, रुस्वा न हो जाये, सोच कर, उसने तोड़ दी कलम.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
 
मेरी कलम से:-

कभी खुद से प्रश्न पूछता हूँ कि क्यों पत्थर दिल से हम प्यार करते हैं?
फ़कीर हंसकर कह देते हैं: क्योंकि कुछ पत्थर भी बेशकीमती होते हैं.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jai Prakash Dangwal
May 7 near Delhi · Edited
मेरी कलम से:-

फिर करवट सी ली है प्रेम ने, कहीं तेरे पत्थर दिल में,
फिर, हलचल सी मच गई है कहीं मेरे नादान दिल में.

फ़कीर ने कहा मूर्ख! पत्थर सदैव भावना शून्य होते हैं,
उनका हृदय भी पत्थर होता है उसमें भाव नहीं होते हैं.

पत्थर से तेरा लगाव है तो मैं एक काम कर सकता हूँ,
चल तेरे प्यार के खातिर, तुझे भी, पत्थर बना देता हूँ.

बहुत खुश हुआ यह सोचकर चलो यारे दीदार तो होगा,
मायूस हुआ सोचकर, उसका एहसास क्या खाक होगा.

फ़कीर से फरियाद की मुझे छोड़ दे मालिक मेरे हाल पर,
उसकी याद काफ़ी है मेरे लिये, खुश हूँ मैं, अपने हाल पर.

 

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