Jai Prakash Dangwal
मेरी कलम से:-
कभी इस कदर बेइंतहा मुहब्बत थी उन्हें नाम से मेरे,
एक नायाब मोती नजर आता था उनकों नाम में मेरे.
उनकी इस गलतफहमी पे बड़ी हँसी आतीं थी मुझको,
पत्थर को मोती समझ कर अर्श पे चढ़ा दिया मुझको.
हक़ीक़त पता चली, तो दूर बहुत दूर, दिया मुझे फेंक,
इस सुंदर गलतफह्मी का राज़ खुलने पर गया मैं झेंप.