Author Topic: Kumaoni Poem by Sunder Kabdola-सुन्दर कबडोला की कुमाउनी कविताये  (Read 12518 times)

sundarkabdola

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जैसे ही नन्दा देवी को पता चलता है कि 'मैत' से उसका बुलावा आया है ये सुन के नन्दा देवी अतियन्त प्रसन्न चित है और दुसरे तरफ प्रभु हट योग मे विराजमान हो चुँकै है
ऐसी दशा मे माँ नन्दा देवी क्या कहती है
"ना तुमरि हट योग क रोक सँकु
ना अपणु मन दशा के कै सँकु"
ओ स्वामि नाथ...
मन मने सुन पुकार

ऊँच कैलाशी धाँरुण वास
हट योगि म्यर स्वामि नाथ
चार लोक कि सुद तेरी
म्यर मन धाँकणा सुन स्वामि
मैतोणि कि खुद लागि
ईज बौज्यु माय लोटि
त्याँरु ब्याँरु धै भेठलि
ईजा बौज्यु आस लगै
साल महण बिति गै
आज बुलावा आयो रे
मन मने सुन पुकार... ओ स्वामि
मैतोणि बै आयो रे
आज बुलावा आयो रे
हट योगि म्यर स्वामि नाथ
मन मने सुन पुकार
मन मने सुन पुकार

ऊँच कैलाशी धाँरु मा
नन्दा देवी हुलाँरु मा
मैतोणि कु जाण हौसि
मन तेरो कुत्यगालि रे
मन मने नि लुकैई... हे सुवा
मि रँयु राँख माटि
कैलाशी धार बाटि
"रिश्त नात कै भ्यौ
योगि जोगि मि भ्यौ"
छोड मिल घर बारा
विराणि कैलाश धार
त्यर दगडि माय लगैई...
ओ सुवा
मन मने नि लुकैई... हे सुवा
मन मने नि लुकैई... हे सुवा

तुम बैठि छा हट योगि
कसकै कु रे मन गीता
तुम बैठिया हट योगि
सार संसार त्वैँ रचि
मन दशा ले त्वैँ जाणि
म्यर मैतोणि चौ सिगिँ
तुमि रचै हट योगि
मन पिड़ा छोड स्वामि
मैतोणि कु जान आदेश
दीदीयौ स्वामि हट छोडि
म्यर बुलावा आयो रे
मन मने सुन पुकार... ओ स्वामि
मैतोणि बै आयो रे
आज बुलावा आयो रे
हट योगि म्यर स्वामि नाथ
मन मने सुन पुकार
मन मने सुन पुकार

हे सुवा
आद रुपैण शक्ति छै
काल रुपैण काल छै
मन मने नि लुकैई... हे सुवा
राँख मलि मि भ्यौ
राजपाठ तूँ पलि
म्यर दगै ब्यौ रचि
मन दशा त्यर जाणि
हे सुवा
म्यर दगै तूँ घैरि
जा सुवा आदेश छू
ईज बौज्यु माय फैरि
मैतोणि भेटिँ ऐई
मैतोणि भेटिँ ऐई

मन मने नि लगैई... ओ सुवा
मन मने नि लुकैई... हे सुवा

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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-सुन्दर कबडोला नि जलाओ नि जलाओ
 हैरि भैरि दाण टुकि
 
 नि लगाओ नि लगाओ
 ऊँचो निचो दाण टुकि
 हैरि भैरि धार रुखि
 अदभुत रौनक ठाँड बैरि
 
 नि जलाओ नि जलाओ
 तुमँरु हमँरु यु पहाड
 हैरि भैरि कै बिगै (नुकशान)
 फल दारु गौर बाँछु
 चरणि हैरि एक निवाल
 ऊँचो निचो दाण टुकि
 रुँडि दिना धुँघरि(धुँवा) पट
 
 नि करो नि करो
 पहाडुण दाण टुकि आग लगै
 चाड़ पथिल उडणि फुर
 
 “एक पेडु घोल पडि
 चाड़ पौथि आण जलि”
 
 सोचि मेरी बैणि दाज्यु
 चाड़ पौथिल आँख भैरि
 बेजुबाण प्राण भयि
 वैकु मुँया कैल मारि
 आण भदैर सँसार नै
 
 विनती मेरी गिनति तेरी
 जैल लगाई आग रे
 ऊँचो निचो दाण टुकि
 नि लगाओ नि लगाओ
 हैरि भैरि दाण टुकि
 तुमर हमर यु पहाड
 नि जलाओ नि जलाओ
 हैरि भैरि दाण टुकि
 ऊँचो निचो दाण टुकि
 
 लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखनि जलाओ नि जलाओ हैरि भैरि दाण टुकि नि लगाओ नि लगाओ ऊँचो निचो दाण टुकि हैरि भैरि धार रुखि अदभुत रौनक ठाँड बैरि नि जलाओ नि जलाओ तुमँरु हमँरु यु पहाड हैरि भैरि कै बिगै (नुकशान) फल दारु गौर बाँछु चरणि हैरि एक निवाल ऊँचो निचो दाण टुकि रुँडि दिना धुँघरि(धुँवा) पट नि करो नि करो पहाडुण दाण टुकि आग लगै चाड़ पथिल उडणि फुर “एक पेडु घोल पडि चाड़ पौथि आण जलि” सोचि मेरी बैणि दाज्यु चाड़ पौथिल आँख भैरि बेजुबाण प्राण भयि वैकु मुँया कैल मारि आण भदैर सँसार नै विनती मेरी गिनति तेरी जैल लगाई आग रे ऊँचो निचो दाण टुकि नि लगाओ नि लगाओ हैरि भैरि दाण टुकि तुमर हमर यु पहाड नि जलाओ नि जलाओ हैरि भैरि दाण टुकि ऊँचो निचो दाण टुकि लेख-सुन्दर कबडोला गलेई- बागेश्वर- उत्तराँख height=132

sundarkabdola

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"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"

दी डबलु कस हुणि हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो
कसकै कमाई तुमलै हो
आज लागो हो पत हो
आज लागो हो पत हो
"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"

ठीक कुछिया बौज्यु हो
पँढले च्याला पँढले हो
"तेरो पँढे काम लागल तेरो हो"
नि मानि हो बौज्यु हो
त्यर कैई बात हो
त्यर कैई बात हो
"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"

पैलि तँन्खा मिलगै हो
दिल जै मेरो दुखगै हो
गिणँडु-गिणँडु डबलु हो
खाणोँ-पिणो किराया हो
गिणँडु-गिणँडु डबलु हो
कम जै पड गिण डबलु हो
"काबै भैजि घर कु हो"
दिल जै मेरो दुखगै हो
दिल जै मेरो दुखगै हो
"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"

तबै कुनु हो दगडियो रे
ईज-बौज्यु क कौईई मानो
पढे लिखे बै ठाँड हैजा
ईज-बौज्यु क सहार दिजा
ईज-बौज्यु क सहार दिजा

"पैलि तँन्खा मिलगै हो
याद जै ऐगै बौज्यु हो"
दिल जै मेरो दुखगै हो
दिल जै मेरो दुखगै हो

http://phadikavitablog.wordpress.com
लेख-सुन्दर कबडोला
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sundarkabdola

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"हलिये द्वारा बैलो को सकेँतो का अध्याय"

ह पाण पाण- बैलो को पानी पीने का सकेँत

रौअ.... अ- बैलो को रोकने का सकेँत ( प्रोफ्सिनल हलिये बैलो को रोकने के लिऐ अन्य प्रकार कि आवाज निकालते है जिसे लिखना थोडा मुश्किल है पर उनकी प्रकिया कुछ युँ "होठो को दाँतो के बीच रख कर अन्दर को
जोर से साँस लिना जिससे पतली सी ध्वनि निकलती है जिसके सकेँत माञ से बैल रुक जाते है)

हअ... बँल्दा हअ- बैलो को चलने का सकेँत

हअ... कई, हअ... खैरु- बैलो के नाम से सकेँत देना

ह ईजाँऊ- बैलो को मिनाँऊ ( निचे के तरफ) के तरफ हल मे चलने का सकेँत (इस सकेँत का प्रयोग ईजाँऊ तरफ हल लगाने मे किया जाता है)

ह कनाँऊ- बैलो को भिड (ऊपर के तरफ) के तरफ हल मे चलने का सकेँत (इस सकेँत का प्रयोग कनाँऊ तरफ हल लगाने मे किया जाता है)

ह... तल, ह... मल- बैलो को हल मे ऊपर या निचे चलने का सकेँत

ह सिख बँल्दा- बैलो को बाँयै (हल लगे हुऐ ) हुऐ सिखोँ के समान्तर चलने का सकेँत (ताकि खेत मे बिरौड ना छोटे)

ह डुक डुक- मल ईजाँऊ से तल ईजाँऊ मे हल चलाते समय उस कोने को निकालने के लिऐ हलका सा गोलाकार हल लगाने के लिऐ बैलो को सकेँत, इस सकेँत का प्रयोग भीड तरफ से ईजाँऊ तरफ हल लगाते समय भी दिया जाता है यदि कोई कोना हो तो, और ग्रेहु के फसल के समय मौय लगाने मे इस सकेँत का प्रयोग अधिक होता है (ये सकेँत मूलत: खेत के कोनोँ मे हल लगाते समय दिया जाता है)

इस प्रकार हल चलाते समय हलिया चिगाँण भी हो जाता है तो बैलो को सिखौड मारते हुऐ "भ्यौणड पडि बल्द" कह के भी चेतावनी दार सकेँत देता है

सिखौड से सकेँत व बैलो के पुछँड अमौर के सकेँत भी हलिये द्वारा बैलो को दिया जाता है

बैल भी चिगाँण और हलिया भी चिगाँण पर ये सकेँत एक दुसरो कि मुश्किले कम कर देते है

"इसि लिऐ एक बेहतरिण हलिया हमेशा मार के विपरित हाँक से बैलो को अपने काबुँ मे रखते हुऐ हल लगाता"

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लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड


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यकलु बानरposted toMerapahadforum
"दी डबँलू चोट
एक ढुँगि दी ख्पीरँ"

घर मा परदेशी हैग्यू
दिल्ली मा पहाडि रैग्यू
दी डबँलू चोट
आँखा कूँ आँसू बणँग्यू

ना घँरक ना बँणक
बीच गाँडक जूँ (जीवन)
ना उँथै तँरु
ना यँथै मँरु
दी थाँली रँव्ट
कस भाग दियौ विधाँता त्वील
कदिनै तोडि ईजँक रँव्ट
कदिनै छोडि ईजँक घँव्ल

बस मा बैठि
मुँड-मुँड बै चैँ
आपँणा सी क्वीँ
आँखो सी औझँल
टँक-टँक देखि मोडु वार
त्यँर मयाँलु रुपि भाग
नमन करि यूँ आँसू म्याँर
मन मा आँश समाई
फिर लौटुण फिर देखुण
त्यँर मयाँलु घोलु ईजा
जा बै जुँण
वा बै उँणु
म्यँर गौ उजाँणि धारो मा
याद लिबेर छोडि मिल
आपँण चौथाँरु अन्तिम खूँट
कभतै हँसै
कभतै रुँवै
खुशि मिलि यूँ गीनती कम
चार दिनू कूँ छुँट्टी छम
कस भाग दियौ विधाँता त्वील

दे हिट दे बाँटा
और ना कर देरि तूँ
दी डबँलू चोट
एक ढुँगि दी ख्पीरँ
एक टुकुँड घँर रैग्यू
एक टुकुँड बँण हैग्यू
कै गम सताँण टपकँण आँस
कैल जताँण उ मैकू आँश
(मैकू का अर्थ- माँ,ईजा को सम्बोधित करने से होता है कुँमाऊ शब्दाँवाल मे)

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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''फिर भी मुझको र्दद नही मै पत्थर होता'' सुन्दर कबडोला (कुँमाऊ)
August 31, 2012 at 5:53pm

''फिर भी मुझको र्दद नही मै पत्थर होता''

दिन तपाता
रात कँपाता
कितने दुख
कितने गम
पथ पे मैरे
अडचन देती
शाम-सवेरे
प्रेम का बँन्धन
''फिर भी मुझको र्दद नही मै पत्थर होता''
कोई बाँटे
जख्म दिलो को
कोई रुलाति
मुझे छलाति
पग-पग पे
कोई भुलाति
घृणा देति
दिलको मेरे
''फिर भी मुझको र्दद नही मै पत्थर होता''
प्रेम का
सच्चा पंछी मिलता
मुझे हँसाति
मुझे रिझाति
प्रेम का बँन्धन
र्दद ना होता
अगर जहा मे
प्रेम ना होता
''फिर भी मुझको र्दद नही मै पत्थर होता''
लहु-लौहान
करते मुझको
करे अंकाल
जो प्रेम कंकाल
देते मैरे
दिलको रैते
करे विंकाल
देखको मुझको
''फिर भी मुझको र्दद नही मै पत्थर होता''
चमक जो जाता
प्रेम जगत मे
छिन-हतौडे
से तरस्ता
शब्द भी मेरा
उज्जवल होता
सच्चा प्रेमि
मिलता मुझको
''फिर भी मुझको र्दद नही मै पत्थर होता''
सूरज-चाँद
रोज तपाते
सच्चा प्रेमि
मुझे बताते
फिर भी देखो
दिल है रोता
मेरा लेख
मुझे बताता
''फिर भी मुझको दर्द नही मै पत्थर होता''

लेख-सुन्दर कबडोला (कुँमाऊ)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर “ऊँचो निचोँ याँकु बाँटु
 जँथै ढुँगि तै करनी वास
 देव देवो कु जाँगर काथ”
 
 जाँग जाँग थाँण थाँण
 ऊँचो निचो देवो थाँण
 गाड़ ग्धैरो निर्मल धार
 चाँड़ पथिल गूँज प्रँभात
 घुघति कि मार्मिक गाँथ
 भै बैणि काँथ है सार
 देवभूमि उत्तँरा है विशाल
 जतै माँटि मा भूँमाऊ देवो
 वास करै ऋषि योगी तपभूमि
 शब्द गढ़ै कुँ भाँव कुँर्मो
 सरियुँ गोमती र्जण धारा
 पूँजि जानी हे सँसार
 रित- रिर्वाजु अदँभुत सार
 पाडुण र्जण पानी धार
 थाँल हुँडुकि देवो नाच
 जतै हुणि अवतारित रात
 जँगरि धाँत हुँडुकि नाँथ
 गुरु गुरु कि महिमा पार
 गुरु गुरु कि महिमा पार
 “ऊँचो निचोँ याँकु बाँटु
 जँथै ढुँगि तै करनी वास
 देव देवो कु जाँगर काथ”
 
 http://phadikavitablog.wordpress.com/page/2/
 लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड

विनोद सिंह गढ़िया

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"म्यर देश कुँमाऊ"

तूँ काफल छै
कि तूँ बुँराश
देव-दारा धुँर
म्यर देश कुँमाऊ
"तू नँन्दा वेश
तू भगँवति केश"
सरियु गोमति लहराते खेत
मडुँवा झुँगरा छै कै दन
अल्मोडि धार
रानिखेती रौनक चार
नैनिताल अदँभुत ताल
चार चाँद कि छै कौसानी
बाँगश्रेरि कू देवी थाँण
कोट भ्राँमरि देवी थाँप
घुघति कि है मार्मिक गाँथ
भै बैणि कू बँन्धन मोल
म्यर देश कुँमाऊ बोलि शान
ईजा बोल माया कोष
म्यर देश कुँमाऊ सौकाँरा तौल
तू छै लाट
तू छै बाट
सार कुँमाऊ सँत रँगि गाँठ


लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड

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यकलु बानर
"नान कू मी छू ठुल
हाँ च्याला तू छै ठुल"
"नान ठुल कै मार बै कू... मी छू शेर
हाँ च्याला तू छै शेर"

कस जमान चलगो रँज
'आँखा छाण नाँखा बाण'
समझ गयौ कै मेरो कै!

लेख-सुन्दर कबडोला

 

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