Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 383912 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मि जन बि छो (व्यंग )
मि दागी बागी जन बि छो
पर तुमरु बिचौ
अपणु ही छो
मि लूट खसूट अत्याचारी
जन बि छो
मि अधर्मी ब्लातकारी
जन बि छो
मेरु ईमान
मि क्या देखणा
हाईकमान देखा
पार्टी देखा
मेनिफेस्टो पढ़ा
विचारधारा देखा पार्टी कि
मि देखि आखिर कन्न क्या तुमुन
मि त् जन छो तन छो......... शैलेंद्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पहाड की दहाड
सत्ताइस नक्षत्र, ग्रह नौ उत्तराखण्ड को चाट रहे थे
पञ्च महाभूत निर्दलीय माल सियासी काट रहे थे
और 29 बी.जे.पी. के शिखर में सत्ता छांट रहे थे
36 व्यञ्जन देव-भूमि को दानवता में बांट रहे थे
हवन हवि को सारे डाकू, हवन कुण्ड में डाल रहे थे
चोर मण्डली में चोरों को चोर,चोर खंगाल रहे थे
उत्तराखण्ड में, उत्तराखण्डी ही बीहड को पनपाते हैं
दशको से इस देव-भूमि में डाकू ही चुनकर आते है
16साल के भरे यौन में,आठ खसम करके छोडे हैं
उत्तराखण्ड की राजनीति में अय्यासी के ये घोडे हैं
दो साल में खसम छोड कर सत्ता, विधवा हो जाती हेै
नगरवधू भी राजनीति में देव-भूमि का सहलाती है
लावारिस भी हानीमून के टिकट सियासी,मांग रहे हैं
उत्तराखण्ड में सारे नंगे ,वस्त्र सियासी टांग रहे हैं
टी.वी. चैनल इन नंगो के अंग-भंग को दिखलाते हेैं
कुछ चैनल तो इन नंगो के कारण ही रोटी खाते हैं
देव-भूमि भी देवदास और देव - दासीयों को ढोती है
बलात्कार से लुटि पिटि पर्वत की जनता ही रोती है
राजनीति के वैश्यालय में रमणभ्रमण ही तो होता है
यें उत्तराखण्ड ही बलात्कार की घटनाओं से रोता है
इस राजनीति में सारे कौव्वे हंस भेष में दिखते हैं
उत्तराखण्ड में,ठाकुर,पण्डित,वैश्य,शुद्र सब बिकते हैं
सब राजनीति के गधे सियासी खडे हुये नीलामी में
क्यों डूब रहे हैं उत्तराखण्डी सागर समर सुनामी में
जिनके जूते खाये, उनको टिकट मिला सत्कारों में
यंंहा प्रतिद्वन्दता कब होती है, चोरों और चकारों मे
जो-जो असली जिस दल में,निर्दलीय धक्के खाते है
यंहा अहिरावण के वंशज सारे राम-भक्त बन जाते हैं
सतीत्व बचाना है अपना तो केन्द्र समर्पित होजाओ
नासूर बने इन घावो के,भावो को अब ना सहलाओ
जो भी नेता जंहा दिखे, बस जूते मारो सालों के
बस, कवि आग कंकाल फूंकने बैठा यंहा दलालो के।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो0 9897399815

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरे देश की धरती गीत पैरोडी
मेरे देश की धरती नेता उगले
उगले बागी दागी
मेरे देश की धरती
नेताओं के भाषण सुन
जनता गम दूर हो जाता है
विकास बुराँस खिल जाते है
नेताओ घोषणाओं को सुन
मन में बंसुरी सि बज जाती है
भला मनखी सा लगा हर नेता यहाँ
अपना असली रंग चुनाव बाद दिखलाता है
जब चले चुनाव दौर तो
हर नेता बागी बन जाता है
तो क्यों न पूजे इस मिटटी को
जहाँ हर नेता दागी बागी बन जाता है
मेरे देश की धरती ..........
माँ उपकार है
नेताओ से धरती भरमार है
गढ़वाल कुमाऊ
रवाई जौनसार
हर जगह नेताओ उपकार है
धन्य जन्म पाकर
बन जाते नेता सिएम झमाझम
मेरे देश की धरती ।.......शैलेंद्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गीत की फीलिंग में एक नया मुक्तक
प्रेम के गीत में
क्या नया लिखूं
गोरी या काली
वो चाँद है
वो सूरज है
वो फूल है
इन बासी उपमाओं
क्या नया गीत रचाउ
मै क्या नया गीत लिखूं
वो लम्बी है छोटी है
वो मोटि है छोटी है
कब तक इन बासी
उपमाओं में गीत रचाऊँ
प्रेम गोरा काला
लंबा या छोटा
मोटा या पितला
फिगर नही होता
फिर क्यों
इन बासी उपमाओं में
प्रेम के गीत रचाउ। ,............शैलेंद्र जोशी

Raje Singh Karakoti

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मूल कुमाउनी कविता : कां जूंला यैकन छाड़ी (
गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा')हमरो कुमाऊं, हम छौं कुमइयां, हमरीछ सब खेती बाड़ीतराई भाबर वण बोट घट गाड़, हमरा पहाड़ पहाड़ीयांई भयां हम यांई रूंला यांई छुटलिन नाड़ीपितर कुड़ीछ यांई हमारी, कां जूंला यैकन छाड़ीयांई जनम फिरि फिरि ल्यूंला यो थाती हमन लाड़ीबद्री केदारै धामलै येछन, कसि कसि छन फुलवाड़ीपांच प्रयाग उत्तर काशी, सब छन हमरा अध्याड़ीसब है ठूलो हिमाचल यां छ, कैलास जैका पिछाड़ीरूंछिया दै दूद घ्यू भरी ठेका, नाज कुथल भरी ठाड़ीऊंचा में रई ऊंचा छियां हम, नी छियां क्वे लै अनाड़ीपनघट गोचर सब छिया आपुण, तार लागी नै पिछाड़ीदार पिरूल पतेल लाकड़ो, ल्यूछियां छिलुकन फाड़ीअखोड़ दाड़िम निमुवां नारिंग, फल रूंछिबाड़ा अघ्याड़ीगोर भैंस बाकरा घर घर सितुकै, पाल छियां ग्वाला घसारी

Raje Singh Karakoti

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चुनावी रंगे की रंगतै न्यारी, [/size]मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!! दिल्ली बै छुटि गे पिचकारी, अब पधान गिरी की छू हमरी बारी, चुनावी रंगे की रंगतै न्यारी। मथुरा की लठमार होलि के देखन्छा, घर-घर मची रै लठमारी, मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!! आफी बण नैग, आफी बड़ा पैग, आफी बड़ा ख्वार में छापरि धरी, आब पधानगिरी छू हमरि बारि। बिन बाज बाजियै नाचि गै नौताड़, खई पड़ी छोड़नी किलक्यारी, आब पधानगिरी की छू हमरि बारी। रैली थैली, नोट-भोटनैकि, मची रै छो मारामारी, मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!! पांच साल तक कान-आंगुल खित, करनै रै हूं हु,हुमणै चारी, मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!! काटि में उताणा का लै काम नि ऎ जो, भोट मांगण हुणी भै ठाड़ी, मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!! पाणि है पताल, ऎल नौणि है चुपाड़, मसिणी कताई बोल-बोल प्यारी, चुनाव रंगे की रंगतै न्यारी। जो पुजौं दिल्ली, जो फुकौं चुल्ली, जैंकि चलैंछ किटकन दारी, चुनाव रंगे की रंगते न्यारी, मेरि बारी! मेरि बारी!! मेरि बारी!!! चुनाव रंगे की रंगते न्यारी।


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Raje Singh Karakoti

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मेरी बारी, मेरी बारी, मेरी बारी[/size]हाइ अलबेरि यो देखो मजेदारीधो धो कै तो सीट जनरल भै छाधो धो के ठाड़ हुणै ए बारीहाइ अलबेरि यो देखो मजेदारीएन बखत तौ चुल पन लुकलाएल डाका का जसा घ्वाड़ा ढाड़ीहाइ अलबेरि यो देखो मजेदारीकाटी मैं मूताणा का लै काम नी ए जोकुर्सी लिजी हुणी ऊ ठाड़ीहाइ अलबेरि यो देखो मजेदारीकभैं हमलैं जैको मूख नी देखोबैनर में छाजि ऊ मूरत प्यारीघर घर लटकन झख मारीहाइ अलबेरि यो देखो मजेदारीहरियो काकड़ जसो हरी नैनीतालहरी धणियों को लूण भरी नैनीतालकपोरी खाणिया भै या बेशुमारीएसि पड़ी अलबेर मारामारीहाइ अलबेरि यो देखो मजेदारी


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Raje Singh Karakoti

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सोचि ल्यूछा त सोच पड़नी, कौ भे मी, का बटी ऐ[/size]रूडीनिक जसी बरख सुदे, अरख, बरख, काँ हु गे !और उसिक सोचि ल्यूछा त, मई लिहबहर दुनी भे,!सूरज में उजियाव भे म्यर, जौडनी में रौशनी भे, !और उसिक औकात कूछा, तीन में न तेर में, द्वि सोरा मुरलिक सर, भ्यार में न भीटर में!जानी कभत फ्यासस करी दियो, हाउ की त जात भे!यो जौलिया मुरुलिक और चलण तककी बात भे ! पर जतुक भे, जे ले भे, यो सब तेरी करामात भे!वो रे हाउ पानिक पिना. तेरो ले बात भे!सोचि ल्यूछा त सोच पड़नी !


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Raje Singh Karakoti

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जोड़ – आम-बुबु सुणूँ छी[/size]गदगदानी ऊँ छीरामनङर पुजूँ छीकौशिकै की कूँ छीपिनाथ बै ऊँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।कौशिकै की कूँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।।क्या रोपै लगूँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।क्या स्यारा छजूँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।।घट-कुला रिङू छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।कास माछा खऊँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।।जतकाला नऊँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।पितर तरूँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।।पिनाथ बै ऊँछी मेरि कोसि हरै गे कोसि।रामनङर पुजूँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।।जोड़ – रामनङर पुजूँ छी,आँचुई भर्यूँ छी, – (ऐ छू बात समझ में ? जो चेली पहाड़ बै रामनगर बेवई भै, उ कूँणै यो बात) -पिनाथ बै ऊँ छी,रामनगङर पुजूँ छी,आँचुई भर्यूँ छी,मैं मुखड़ि देखूँ छी,छैल छुटी ऊँ छी,भै मुखड़ि देखूँ छी,अब कुचैलि है गे मेरि कोसि हरै गे कोसि।तिरङुली जै रै गे मेरि कोसि हरै गे कोसि।हाई पाँणी-पाणि है गे मेरि कोसि हरै गे कोसि।।भावार्थ: दादा-दादी सुनाते थे कि किस तरह इठलाती हुई आती थी कोसी । रामनगर पहुँचाती थी, कौशिक ऋषि की कहलाती थी। अब जाने कहाँ खो गई मेरी वह कोसी ? क्या रोपाई लगाती थी, सेरे (खेत) सजाती थी, पनचक्की घुमाती थी । क्या मछली खिलाती थी वाह !….. आह ! वह कोसी कहाँ खो गई ? जतकालों को नहलाती थी (जच्चा प्रसूति की शुद्धि) । पितरों को तारती थी । पिनाथ से आती थी, रामनगर पहुँचाती थी । रामनगर ब्याही पहाड़ की बेटी कह रही है कि कोसी का पानी अंचुरि में लेने के साथ ही छाया उतर आती थी अंचुरि में माँ-भाई के स्नेहिल चेहरे की । कहाँ खो गया कोसी का वह निर्मल स्वच्छ स्वरूप ? अब तो मैली-कुचैली तिरङुगली (छोटी) अंगुली की तरह रह गई है एक रेखा मात्र । हाय, पानी पानी हो गई है । मेरी कोसी खो गई है ।



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Raje Singh Karakoti

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जिकुडी मा च खैरी मेरीछौं मी दुर परदेश मा यखुली छौं मी हौर क्वी नीदीदों म्यार गैल माजिकुडी मा च खैरी मेरीगौं गैलों की याद मीतैआंदी रोज बड्युल्युं मांजिकुडी रैंदी यख उदासखुद लगीं च सांकी मा जिकुडी मा च खैरी मेरीदगडया गैल्यों तै मी अपणखुजदु छौं मौबेल मालाईक कमेंट करदु तौंकुफेसबुक की चैट माजिकुडी मा च खैरी मेरीमाटी कु च कर्ज दगडयों कभी चुके नी सकदु मी पौंछी जौं चै जुनी पर भीगौं नी भूली सकदु मीजिकुडी मा च खैरी मेरीपट्टी उदयपुर मा मेरुवाया भृगुखाल चरौंत्यालु उलारु म्यारुप्यारु गांव ब्वांग चजिकुडी मा च खैरी मेरीसर्वाधिकार सुरक्षित@सुदेश भट्ट (दगडया)

 

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