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पहाड की दहाड
सत्ताइस नक्षत्र, ग्रह नौ उत्तराखण्ड को चाट रहे थे
पञ्च महाभूत निर्दलीय माल सियासी काट रहे थे
और 29 बी.जे.पी. के शिखर में सत्ता छांट रहे थे
36 व्यञ्जन देव-भूमि को दानवता में बांट रहे थे
हवन हवि को सारे डाकू, हवन कुण्ड में डाल रहे थे
चोर मण्डली में चोरों को चोर,चोर खंगाल रहे थे
उत्तराखण्ड में, उत्तराखण्डी ही बीहड को पनपाते हैं
दशको से इस देव-भूमि में डाकू ही चुनकर आते है
16साल के भरे यौन में,आठ खसम करके छोडे हैं
उत्तराखण्ड की राजनीति में अय्यासी के ये घोडे हैं
दो साल में खसम छोड कर सत्ता, विधवा हो जाती हेै
नगरवधू भी राजनीति में देव-भूमि का सहलाती है
लावारिस भी हानीमून के टिकट सियासी,मांग रहे हैं
उत्तराखण्ड में सारे नंगे ,वस्त्र सियासी टांग रहे हैं
टी.वी. चैनल इन नंगो के अंग-भंग को दिखलाते हेैं
कुछ चैनल तो इन नंगो के कारण ही रोटी खाते हैं
देव-भूमि भी देवदास और देव - दासीयों को ढोती है
बलात्कार से लुटि पिटि पर्वत की जनता ही रोती है
राजनीति के वैश्यालय में रमणभ्रमण ही तो होता है
यें उत्तराखण्ड ही बलात्कार की घटनाओं से रोता है
इस राजनीति में सारे कौव्वे हंस भेष में दिखते हैं
उत्तराखण्ड में,ठाकुर,पण्डित,वैश्य,शुद्र सब बिकते हैं
सब राजनीति के गधे सियासी खडे हुये नीलामी में
क्यों डूब रहे हैं उत्तराखण्डी सागर समर सुनामी में
जिनके जूते खाये, उनको टिकट मिला सत्कारों में
यंंहा प्रतिद्वन्दता कब होती है, चोरों और चकारों मे
जो-जो असली जिस दल में,निर्दलीय धक्के खाते है
यंहा अहिरावण के वंशज सारे राम-भक्त बन जाते हैं
सतीत्व बचाना है अपना तो केन्द्र समर्पित होजाओ
नासूर बने इन घावो के,भावो को अब ना सहलाओ
जो भी नेता जंहा दिखे, बस जूते मारो सालों के
बस, कवि आग कंकाल फूंकने बैठा यंहा दलालो के।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो0 9897399815